Chityuva Buti - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

चिरयुवा बूटी - 4

(4)

‘चोरी का माल मोरी मे’

सुबह मोहन नींद से जागा | हिमालय की वादियों में खिलती धूप को देखकर वह बड़ा प्रसन्न हुआ । चारों और

लम्बे लम्बे देवदार के वृक्ष व नीचे बहती अलकनंदा नदी बड़ी ही मनोहारी लग रही थी । रात को बरसात होने से चारों ओर धरती गीली थी ।

मानवता के हित के लिए चुराए अपने बूटियों के खजाने को देखने मोहन पास के कमरे में गया ।

किन्तु यह क्या ! अपने बूटियों से भरे थैले को न देखकर वह स्तब्ध रह गया । उसने कमरे का एक एक कोना छान मारा

किन्तु उसका थैला कहीं नहीं मिला | कमरे का फर्श गीला था ।

संभवतः रात को कमरे में बारिश का पानी घुस आया था । पानी उसके थैले को बहा ले गया था । तेज हवाओं के थपेड़ो से ऐक दरवाजा खुला हुआ था ।

वह बदहवास होकर अपने थैले की खोज में चारों तरफ दौउ़ा । उसका थैला मकान के बाहर कुछ दूरी पर पड़ा हुआ मिल गया किन्तु हाय ! वह खाली था ।

सारी बूटियां बरसात के पानी में बह चुकी थी । वह बहुत निराश होकर अपने पलंग पर निढाल होकर लेट गया । ‍‌‌‍‍‍उसकी सारी आशाएं टूट चुकी थी । उसके सारे सपने धूल में मिल गए ।

‘चोरी का माल मोरी मे’ चरितार्थ करती हुई कहावत वहां दिखाई दे रही थी ।

कुछ देर बाद रामलाल ने वहां अपने चार साथियों के साथ प्रवेश किया ।

मोहन को निराश देख उसने पूछा ‘ क्या हुआ साबजी ? ’

मोहन ने निराश स्वर में कहा “रामलाल मैं तो लुट गया ! सारी बूटियां रात को बरसात के पानी में बह गई । मेरी सारी मेहनत पानी में चली गई |’’

रामलाल ढाढस बंधाते हुए बोला ‘ कोई बात नहीं, साबजी ! कोई नुकसान नही् हुआ । आप जरा भी फिक्र न करें साबजी !  हम उनसे भी अच्छी व ज्यादा जउ़ी बूटियां आपको ऐक सप्ताह में ढूंढ कर दिखा देंगे । हम किसलिए हैं ? ’

रामलाल की बातों का मोहन पर जादुई्र असर हुआ । उसकी चिंता दूर होगई ।

‘ फिर ठीक है । ’ वह थोड़ा स्वस्थ होकर बोला ।

रामलाल ने अपनी टीम के प्रत्येक व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए अपनी टीम का परिचय दिया ।

मोहन ने पूछा ‘ हम कब से अपना काम शुरू करें,रामलाल ?’

‘ कल से साबजी ! ’

‘ आपकी तनखा क्या होगी ? ’

‘जो भी आप दे देंगे ।’

मेाहन ने टीम के प्रत्येक सदस्य के पिछले वेतन के आधार पर वेतन नियत किया जिसमें जंगल में दवाएं ढूंढना व अस्पताल मे चार घंटे काम करना सम्मिलित था |

दूसरे दिन प्रातः वे हिमालय के जंगलों में बूटियां खोजने निकल गए ।

वह सारा वन्यप्रांत अनेकों हिमालयीन जड़ी बूटियों से भरा पड़ा था ।

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खोज
दूसरे दिन प्रातः रामलाल की पूरी टीम और मोहन जंगलों में बूटियां खोजने निकल पड़े |

रामलाल ने पूछा ‘ साबजी ! आज हमें कौन कौन सी दवाएं इकट्ठी करना है ?’

मोहन ने कहा ‘ रामलाल आज हमें मुख्यतः सामान्य बिमारियों की दवाएं इकट्ठी करना है जैसे बुखार, खांसी, जुकाम पेटदर्द, सिरदर्द, उल्टी दस्त आदि । ’

वे शीघ्रता से अपने थैले उठाए घने जंगल की ओर चल दिए |

उस दिन दोपहर चढ़ने तक वे जंगल में बूटियां इकट्ठी करते रहे ।

इस प्रकार बूटियां एकत्रित करते उन्हं एक सप्ताह हो चुका था ।

इस बीच घने जंगल में उनका कई खतरों से सामना भी हुआ । ]

ऐक दिन उन्हे अपने से दूर ऐक शेर दिखाई दिया । किन्तु वह उन्हे हानि पहुंचाए बिना ही दूर चला गया ।

तब से वे अपने साथ हथियार रखने लगे ।

फिर ऐक अन्य दिन ऐक भालू बड़ी तेजी से दौड़ता हुआ उनके सामने आ गया ।

पूरी टीम के जोर से चिल्लाने पर वह तेजी से दूर भाग गया ।

 

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बाढ़
एक बार जब वे नीचे घाटी में नदी के किनारे बूटियां इकट्ठी कर रहे थे तो वहां अचानक नदी में बाढ़ आगई ।

रामलाल चिल्लाया, “भागों, भागों “

वे बडी तेजी से ऊपर घाटी में भागने लगे |

वे आगे भागे जा रहे थे व उनके पीछे नदी का पानी तेजी से चला आ रहा था । वे बाढ़ में डूबने ही वाले थे कि रामलाल को एक बड़ी चट्टान दिखाई दी |

उस ऊंची चट्टान देखकर रामलाल ने कहा, “ सब लोग इस चट्टान पर चढ़ जाएँ “

उस दिन किसी तरह उस बड़ी चट्टान पर चढ़कर व पास में लगे हुए एक वृक्ष की शाखाएं पकड़कर उन्होंने अपनी जान बचाई ।

उनके पास भारी मात्रा में औषधियां इकट्ठी हो गई थी ।

 
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‘चिरयुवा अस्पताल’
ऐक सप्ताह बाद मोहन ने ‘चिरयुवा अस्पताल’ का उद्घाटन किया ।

उस दिन गांव व आसपास के सभी सरपंचों, पंचों व अन्य माननीय लोगों को आमंत्रित किया गया ।

रामलाल व उसकी पार्टी ने आयोजन के लिए दिनरात जुटकर सारे प्रबंध कर दिए ।

गांव के सरपंच को आयोजन का अध्यक्ष बनाया गया ।

मोहन ने अपने भाषण में कहा,

प्रिय बंधुओ व मेरी बहनों,

‘ चिरयुवा अस्पताल’ में हम नाम मात्र के शुल्क में आम लोगों की बिमारियों को दूर करने का प्रयास करेगे | साथ ही हम आदमी को चिरयुवा व सदा सुखी बनाने के लिए हिमालय के जंगलों में बूटियां ढूंढने का अद्भुत प्रयास कर रहे हें । आशा है कि हमें आप सभी महानुभावों का भरपूर सहयोग मिलेगा ।’

सभी उपस्थित समुदाय, व आसपास के पञ्च सरपंचों ने मोहन का तहेदिल से स्वागत किया व हर संभव सहायता देने का आश्वासन दिया ।

मोहन ने सभी लोगों का शुक्रिया अदा किया, विशेषकर रामलाल व पूरी पार्टी का ।

अंत में जनसहयोग से ऐक विशाल भंडारे का आयोजन किया गया ।

सभी ग्रामवासी मोहन के कार्यों से बहुत खुश थे ।

रामलाल ने दूसरे दिन मोहन से मजाक में पूछा

‘ साबजी ! मैं भी जवान बनना चाहता हूं । लडकियां मुझे बूढ़ा कहती हैं ।

सब लोग हंस हंस कर दोहरे हुए जा रहे थे ।

मोहन ने कहा ‘ रामलाल में अपना प्रयोग तुमसे ही शुरू करूंगा । तुम मेरे लिए ऐक आदर्श पात्र हो ।

मैं आपका बुढ़ापा दूर करके आपको युवा बना दूंगा ।’

‘ आप मुझे कब जवान बनाएंगे,साबजी ?’

‘मैं आज से ही आपको दवा देना शुरू कर देता हूं ।’

मेाहन ने उसे कुछ यौवनवर्धक दवाएं दी ।

दूसरे दिन मोहन ने रामलाल से रात के अनुभव की रिपोर्ट मांगी ।

रामलाल ने कुछ गंभीर होकर कहा ‘ साबजी ! जिंदगी में मैंने पहली बार जवानी के भरपूर जोश का अनुभव किया । किन्तु ऐक समस्या है ? ’

‘क्या ? ’

‘ मेरी बुढ़िया जवान नहीं रही । वह मुझे सदा वासनाऐं छोउ़कर राम का नाम लेने की सलाह देती रहती है ।’

सभी लोग जोरों से हंसने लगे ।

‘ हम उसे भी जवान बना देंगे । आप बेफिॅक्र रहो । ’

मेाहन ने रामलाल की स्त्री के लिऐ एक उग्र कामोत्तेजक दवा दी ।

अगले दिन रामलाल की प्रतिक्रिया बहुत अच्छी थी ।

वह अत्यंत खुश होते हुए बोला, “ पहली बार जिंदगी का मजा आ गया साबजी ! मुझे विश्वास है आप अपने सभी मरीजो को चिरयुवा बना दोगे | “

मोहन ने कहा, “ बस अब आपके आशीर्वाद की जरुरत है रामलालजी साहब !”

सभी लोग जोरो से हँसते हुए लोटपोट हो गऐ |

 

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वृद्धावस्था की समस्याएँ
बुढ़ापे में वृद्ध लोगों की पाचन प्रणाली बहुत कमजोर हो जाती है |

उन्हें मल त्याग में भारी कठिनाई होती है | भूख नहीं लगती है |

अनेक दिनों तक दस्त नहीं लगता है |

मोहन ने हरड, त्रिफला ( हरड, बहेड़ा आवंला ) व सनेाय आदि के मिश्रण को एक विशिष्ट अनुपात में मिलाकर

एक चमत्कारिक दवा बनाई |

साथ ही अपने उपचार में योग की अग्निसार क्रिया व अश्विनी मुद्रा को सम्मिलित कर लिया | इनसे पाचन क्रिया को सुगम बनाने में बहुत मदद मिलती है |

 
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चिरयुवा बूटी
ऐक दिन वे लोग बडे सवेरे एक पहाड़ की ढाल में बूटियां इकट्टी कर रहे थे । वहां खाई में नदी बड़े तेज प्रवाह से बह रही थी |

तभी मोहन को नीचे एक गहरी खाई में वही बूटी दिखाई दी जो अनोखे संत ने उसे दी थी ।

मोहन ने रामलाल को कहा, “ रामलाल वह बूटी खाई में देखते हो “ |

वह हमारी खास दवा है | उसे किसी भी तरह लाना है “ |

रामलाल ने कहा, “ अभी लाता हूँ साहब “ |

“ किन्तु वहां जाना खतरनाक है, वह बूटी ऐक खड़ी गहरी ढलान पर लगी हुई है | उस तक पहुंचना खतरनाक है |”

“ आप बेफिक्र रहें साबजी, उसे लाना मेरा काम है “, यह कहते हुए रामलाल उस बूटी को लाने का उपक्रम करने लगा |

उस खतरनाक घाटी में उतरना बेहद खतरनाक था किन्तु रामलाल को खतरों से खेलने की आदत थी । उसने अपनी कमर मे एक रस्सी बांधी | उसका दूसरा सिरा पास के ऐक मजबूत वृक्ष के तने से बांध दिया | फिर वह झूलता हुआ घाटी में उस बूटी तक जा पहुंचा । वह बूटी एक खड़ी पहाड़ी ढाल पर लगी हुई थी । रामलाल ने उसे उखाड़कर अपने बेग मे डाल लिया । किन्तु वह जैसे ही ऊपर आने लगा कि अचानक आसपास की मिट्टी तेजी से धंसने लगी । वहां तेजी से भू स्खलन होने लगा |

मोहन व पूरी टीम के ऊपर भी पास के ऊपरी पहाड़ों से मिटटी बड़ी तेजी से गिरने लगी |

सब लोग रामलाल को वहीँ छोड़ अपनी जान बचाकर भाग खड़े हुए ।

दो मिनट बाद भूस्खलन शांत हुआ तो सब लोग इकठ्ठा होकर रामलाल को देखने दौड़ पड़े |

रामलाल पर मिट्टी का भारी मलवा इकट्ठा हो चुका था । वह ऊपर से दिखाई नहीं दे रहा था |

रस्सी को जोरो से हिलाकर उन सभी ने रामलाल के ऊपर गिरी हुई जमा मिटटी तेजी से हटाई्र ।

वह बेहोंश होकर नीचे लटका था । उन्होंने जल्दी से उसे ऊपर खींचा । बडी मुश्किल से उसे होंश में लाया गया ।

उसे सकुशल देख सबने भगवान को धन्यवाद दिया ।

वह जादुई बूटी तोड़ चुका था । मोहन ने दूसरे दिन उस पर प्रयोग किया किन्तु उसका कोई परिणाम नहीं मिला । वह सोचने लगा क्या संत ने उस पर सम्मोहन किया था या कुछ और, मोहन गहरी सोच में पड़ गया ।

चिरयुवा अस्पताल में मरीजों की संख्या रोज बढ़ती चली जा रही थी ।

वहां नाम मात्र के शुल्क में साधारण से लेकर गंभीर बीमारियों का इलाज होता था ।

मरीजों की बढ़ती हुइ्र संख्या को देखकर मोहन ने अन्य अपरंपरागत चिकित्सा विधियों को भी शामिल कर लिया ।

उसने एक्यूप्रेशर, सुजोक व योग को भी अपने इलाज मे शामिल कर लिया ।

मोहन इन विधियों का ज्ञाता था ।

उसने अपने स्टाफ के कुछ सदस्यों को चिकित्सा की इन विधिओ की ट्रेनिंग दी ।

अस्पताल में योग, एक्यूप्रेशर, सुजोक विधियों से इलाज करने का एक अलग विभाग खोल दिया गया ।

 

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बुढ़ापे मे दांत गिरने लगते हैं ।।

वे दर्द करते हैं, हिलने लगते हें, उनमें कीड़ा लग जाता है व दांत सड़ने लगते हैं ।

इन्सान को अनेक प्रकार के रोग लग जाते हैं

मोहन ने कुछ जंगली जड़ी बूटियों का ऐसा मिश्रण तेयार किया कि उससे हिलते हुए दांत मजबूत हो गए । सड़न रूक गई । हिलते हुए दांत बड़े मजबूत हो गए।

इस प्रकार बुढ़ापे की एक बड़ी समस्या हल कर ली गई।

वहीँ दूसरी समस्या आंखों की कमजोरी की है । बुढ़ापे मे न नजदीक का दिखता है और न दूर का । इसके लिए मोहन ने आयुर्वेद का एक बड़ा प्राचीन नुस्खा आजमाया ।

इसमे एक विशेष प्रकार के फूल को एक पीपल के वृक्ष की खोल मे कुछ दिन तक रखकर उससे बने केमिकल को आंखों में लगाया जाता हें। साथ मे त्रिफला का एक विशेष विधि से सेवन किया जाता है । उससे आंखों की रोशनी तेज हुई |

इस दवा के सेवन से चश्मा भी छूट गया।

इस प्रकार मोहन बुढ़ापे पर विजय की दिशा मे एक के बाद एक महत्वपूर्ण पड़ाव पार कर रहा था।

 
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विदेशी अखबार
एक दिन एक विदेशी अखबार का संवाददाता उस गांव में आया ।

वह मोहन के कार्य से बड़ा प्रभावित हुआ ।

उसने अपने अंग्रेजी अखबार में मोहन के कार्यों को विस्तार से छापा ।

उसे पढ़कर अनेक विदेशी सैलानी उस गांव में उत्सुकतावश आने लगे ।

उनमें से कई दानवीरों ने मनुष्यता की भलाई् के उस महान निस्वार्थ कार्य के लिए बड़ी राशि का दान दिया ।

कुछ विदेशी उाक्टरों ने भी मोहन से सहयोग करने में रूचि दिखाई ।

अस्पताल में कई आधुनिक मशीने खरीदी गई । नये कमरे व हाल बनवाए गये ।

डाक्टरों की एक टीम नई रिसर्च्र के लिए नियुक्त की गई ।

इस छेाटे से गांव मे देश विदेश से अनेकों मरीज आने लगे ।

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