Chityuva Buti - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

चिरयुवा बूटी - 5

(5)

 
दान
एक दिन एक व्यक्ति मोहन से मिला |

उसने अपना परिचय दिया, “ मै विनयकुमार हूँ | दिल्ली में मेरी टायर की बड़ी कंपनी है |

मैंने अख़बारों में मनुष्य को चिरयुवा बनाने के आपके महान कार्य के विषय में पढ़ा | मुझे बहुत ख़ुशी हुई |

मै आपके मानवता के खातिर किए जा रहे कार्यो की प्रशंषा करता हूँ |”

उसने एक बड़ी राशि का चेक देते हुए कहा, “ आपके महान कार्य के लिए मेरी एक तुच्छ भेंट स्वीकार कीजिए” |

मोहन ने कहा, “ बहुत बहुत धन्यवाद “

वह कहने लगा, “ मै आपसे अपनी समस्या के विषय में बात करना चाहता हूँ |”

मोहन ने कहा, “ अवश्य बतलाइए “

उसने कहना आरम्भ किया,” डॉक्टर साहब !, मैने अपनी सेक्रेटरी से हाल ही में विवाह कर लिया है किन्तु मै उससे किसी प्रकार का सम्बन्ध बनाने में असमर्थ हूँ | मै उससे ३० वर्ष अधिक आयु का हूँ और वह 25 वर्ष की युवती है | “

मोहन ने सांत्वना देते हुए कहा, “ महाशय, आप तनिक चिंता न करें, मै आपको महज कुछ ही दिनों में पूर्ण जवान बना दूंगा | “

मोहन ने उन्हें पंद्रह दिन का कोर्स दिया |

वे पंद्रह दिनों बाद वापस आए और अपने सुखद अनुभवों का वर्णन करते हुए उन्होंने फिर से एक बड़ी रकम का दान दिया |

मोहन के हॉस्पिटल का अब बहुत विस्तार हो रहा था |

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चिरयुवा संत
एक सुबह रामलाल ने मोहन से कहा ‘ साबजी ! आज मैं आपको एक चिरयुवा संत के दर्शन करवाने के लिए ले चलता हूं जो सैकड़ों साल से युवा बने हुए हैं ।

मेाहन ने कहा, “ रामलाल ! मैं ऐसे ही संत की खोज में कई महीनों हिमालय में भटकता रहा हूं” ।

वे दोनो एक पहाड़ की उंचाई पर दो घंटे की चढ़ाई के बाद एक गुफा के सामने आ गए ।

रामलाल ने कहा ‘ हमें यहां बाबाजी के दर्शन का इंतजार करना पड़ेगा | ’

वे वहां कुछ देर तक गुफा के सामने घांस पर बैठकर संत के बाहर निकलने का इंतजार करते रहे ।

रामलाल ने कहा, “ साबजी ! मेरे पिता जब छोटे बालक थे तब भी ये संत युवा थे और आप अभी अपनी आँखों से देखेंगे कि वे आज भी वैसे ही युवा हैं ” |

कुछ देर बाद गुफा से में से दिव्य आभा लिए एक संत प्रकट हुए । उन दोनों ने संत के चरण स्पर्श किए ।

उन्होंने मोहन को देखते ही कहा, “ आपकी चिरजवां बूटी की खोज कहाँ तक पहुंची, मोहनजी ?”

मोहन संत की यह बात सुनकर सन्न रह गया |

उसे ताज्जुब हुआ संत को उसके विषय में कैसे पता लगा |

मोहन ने कहा ‘ आप तो अंतर्यामी हैं | आपको मेरे विषय में कैसे पता चला? “

संत ने इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया |

उसने रामलाल की और मुड़कर धीरे से उसके कान मे कहा, “ रामलाल तुमने संत को मेरे विषय में बतलाया था क्या ?”

रामलाल ने कहा, “ आपसे मुलाकात होने के बाद मै यहाँ पहली बार आज आ रहा हूँ | मुझे यहाँ आए ऐक वर्ष हो गया है “|

मोहन ने संत से कहा, “क्या आप मुझे उस दिव्य बूटी के विषय में बता सकते हैं जो मनुष्य को हमेशा के लिए दुखों से मुक्त करके उसे चिरयुवा बना दे ? ’

संत ने कहा ‘ आम आदमी को चिरयुवा बनाने से क्या होगा ?

वह ज्यादा शराब पीएगा, ज्यादा एक दूसरे से लड़ेगा, ज्यादा भोग विलास मे डूबने की कोशिश करेगा ।

ऐसी रिसर्च के भारी दुश्परिणाम होंगे ।

 

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प्रकृति से छेड़छाड़ ठीक नहीं हैं ।

साधू लोग अपनी साधना की पूर्णता के लिए शरीर को चिरयुवा बनाए रखने का प्रयास करते हें ।

उनके समक्ष एक दिव्य लक्ष्य होता है जिसके लिए अधिक समय व कठोर साधना की आवश्यकता होती है |“

मोहन के बार बार अनुरोध करने पर उन्होंने कहा ‘योग व ध्यान के द्वारा शरीर व मन को दीर्घ समय तक निरोग व दुखों से मुक्त रखा जा सकता हे । ’

उन दोनों ने संत को प्रणाम करके उनसे विदा ली ।

 

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माँ का देहांत
तीन दिन बाद मोहन को उसके बड़े भाई का फोन आया,

“ मोहन शीघ्र घर पर आओ, माँ गंभीर हालत में हॉस्पिटल में भर्ती है | “

मोहन पहली ट्रेन पकड़कर हॉस्पिटल जा पहुंचा |

उसकी माँ इमेरजेन्सी वार्ड में भर्ती थी |

उसकी हालत गंभीर थी | उसे पेरेलिसिस हुआ था |

वह बिस्तर में ही मल मूत्र त्याग कर रही थी |

“कैसी है माँ ?”, मोहन ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए पूछा |

मोहन की आवाज सुनते ही माँ ने आँखे खोल दी |

वह रोते हुए मोहन को इशारे से कुछ कहने लगी | उसके कहने का तात्पर्य था,

“ भगवान से प्रार्थना करो, मुझे जल्दी से उठा ले |”

मोहन ने उसे धैर्य देते हुए कहा, “ माँ तू चिंता मत कर, तू जल्दी अच्छी हो जाएगी |

मै आगया हूँ अब सब ठीक हो जाएगा |”

उस रात माँ का देहांत हो गया |

मोहन व उसका भाई फूट फूट कर रो रहे थे |

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पागल
कौशल्या श्यामा की मां थी । वह ७५ साल की बुढ़िया अपने अंतिम समय में पागल हो गई थी ।

वह आते जाते राहगीर के सामने नग्न हो जाया करती |

वह निर्वस्त्र होकर सड़कों पर भागती ।

कौशल्या चाहे जहां शौच करने बैठ जाती व आने जाने वाले लोगों पर मैला फेंकने लगती । वह अनेक दिनों तक घर से बिना बताऐ गायब हो जाती थी ।

फिर अचानक घर लौट आती |

लौटने पर वह अपने बाहर रहने के दौरान हुऐ खतरनाक किस्सों को सुनाती रहती ।

वह चटकारे ले लेकर व अनेक तरह के हाव भाव करते हुए बताती कि वह कहाँ कहाँ रही व क्या क्या हुआ |

उसे जंजीरों से बांधकर रखना पड़ता था ।

आखिर एक दिन उसे पागलखाने में भर्ती करना पउ़ा । वहीं उसकी मृत्यु होगई ।

कौशल्या की कहानी का दुखद पहलू यह था कि उसके ऐक जवान पुत्र की असमय में मृत्यु हो गई थी ।

ऐक दिन कौशल्या का बड़ा बेटा शंकर अपनी पत्नि को लेने उसके गांव गया हुआ था । वह गांव इंदौर से सौ कि॰मी॰ दूर था ।

वे भीषण गर्मी के दिन थे ।

लौटते वक्त शंकर लेट हो गया | उससे इदौर जाने वाली एकमात्र बस छूट गई ।

वह नौकरी छूट जाने के डर से अकेला उस भयानक गर्मी में पैदल निकल पड़ा ।

रास्ते में एक नदी पड़ी । उसे पार करते वक्त शंकर के पेट में भयानक दर्द्र उठा । वह एपेन्डिक्स का दर्द था ।

शंकर मछली के समान नदी में ही दर्द से तड़पने लगा । वह किसी तरह किनारे पर आकर बेहोंश होगया ।

उसका निचला आधा शरीर पानी में व ऊपर का आधा पानी के बाहर पड़ा रहा ।

वह घंटों सुबह से शाम तक भयानक स्थिति में उस बियाबान जंगल में तेज धूप मे असहाय बेहोंश पड़ा रहा ।

बड़ी देर बाद उधर से ऐक बैलगाड़ी वाला निकला । वह उसे होंश में लाया ।

शंकर फिर तड़पने लगा ।

वह दयावान गाड़ीवाला उसे तेजी से गाड़ी दौड़ाता हुआ इंदौर लाया ।

शहर में प्रवेश के पूर्व ही शंकर दम छोड़ चुका था ।

अपने जवान बेटे के गम ने कौशल्या का मरते दम तक पीछा नहीं छोड़ा । इसी गम ने अंत में उसे पागल कर दिया ।

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पेरेलेसिस
मोहन की माता का पेरेलेसिस से देहांत हुआ था | उसने गंभीरता से विचार किया कि उसकी मां को पेरेलिसिस क्यों हुआ ?

उसकी नानी पागल क्यों हो गई ?

पेरेलिसिस में इंसान को उसकी ऐच्छिक व अनैच्छिक मांसपेशियों पर नियंत्रण नहीं रह जाता ।

यदि हम अपनी उक्त दोनों प्रकार की मांसपेशियों पर नियंत्रण पा लें तो पेरेलिसिस व अन्य अनेक समस्याओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है ।

उसने सर्व्रप्रथम अपने पंजों की मांसपेशियों को खींचा व छोड़ा ।

प्रारंभ मे उसे बड़ी कठिनाई हुई किन्तु एक सप्ताह की मेहनत के बाद वह पंजे की मांसपेशियों को सफलतापूर्वक नियंत्रित करने लगा ।

फिर उसने पिंडलियों,जांघों,कमर,पीठ सीना,गला,चेहरा व आंख आदि सभी अंगों की मांसपेशियों पर नियंत्रण करना सीख लिया ।

एक माह में उसने मस्तिष्क, हृदय, गुप्तांग व किडनी की मांसपेशियों को नियंत्रित करने में सफलता पा ली ।

यदि आप सभी मांसपेषियों को नियंत्रित कर लेते हें तो आपको आजीवन पेरेलिसिस की समस्या नहीं होगी । हृदय व किडनी की मांसपेषियों पर नियंत्रण कर लेने से आप हार्ट समस्या व किडनी प्राबलेम से काफी हद तक बच जाएंगे ।

इसी प्रकार मस्तिष्क की मांसपेशियों पर अधिकार कर लेने से आप थ्राम्बोसिस, पागलपन व मानसिक तनाव की समस्याओं से बच सकते हें ।

अपरंपरागत चिकित्सा के क्षेत्र में मांसपेशियों के नियंत्रण की यह एक बड़ी शानदार खोज थी ।

 
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ईश्वर पर प्रश्न
मेाहन अनोखे संत के विचारों से बड़ा प्रभावित था । उसने संत के क्रांतिकारी विचारों पर आधारित एक किताब लिखी ।

इस पुस्तक में ईश्वर के स्वरूप की वर्तमान अवधारणा पर प्रश्न खड़े किए गए ।

उसक मुख्य बिन्दु इस प्रकार थे:

1 ईश्वर है या नहीं, इस तथ्य पर रिसर्च होना चाहिए ।

2 यदि ईश्वर ने सृष्टि अपने रूप मे बनाई तो उसमे इतना अन्याय असमानता, दुख क्यों है ?

क्यों एक जीव दूसरे को निर्दयता से खा रहा है,मार रहा है ?

स्रष्टि में ईश्वर के गुण यथा शांति, अहिंसा, आनंद आदि के मनुष्य की कल्पना के अतिरिक्त कहीं दर्शन नहीं होते हैं ?

3 चार्वाक ऋषि ने भी कहा है कि कहीं कोई ईश्वर नहीं हे । मरने के बाद कुछ शेष नहीं बचता । जब तक जीओ, मजे करो । आत्मा परमात्मा पुनर्जन्म सब पंडितों के ढकोसले व कल्पनाएं हें ।

4 ईश्वर का जो रूप धर्मग्रंथों में बतलाया गया है वह आदमी की कल्पना मात्र है |

5 धर्मग्रंथ भी विरोधी बातें करते हैं । कहीं ईश्वर को अनंत अजन्मा, अविनाशी, समदर्शी तथा सुख दुःख से परे बतलाते हें तो दूसरी ओर वह अवतार के रूप मे जन्म लेता, मरता है; दुखी सुखी प्रसन्न होता है; लड़ाई, झगड़े व युद्ध करता है ।

उपरोक्त दोनों विचार एक दुसरे का खंडन करते हैं |

मनुष्य की ईश्वर के प्रति अवधारणा उसके स्वयं के विचार है न कि कोई सत्य | प्रचलित धर्म के विचारों पर प्रश्न चिन्ह खड़े करते हुए अनेक तर्क इस किताब में दिए गए थे । मोहन ने अनेक प्रकाशकों से इस पुस्तक के प्रकाशन के लिए संपर्क किया किन्तु ऐसी पुस्तक प्रकाशित करने के लिए कोई प्रकाशक तैयार नहीं हुआ ।

इस देश में लोग सत्य नहीं सुनना चाहते है | अनेको सदियों से चले आ रहे प्रचारित झूठ के विशाल संख्या में भक्त हैं । यहां परंपरावाद का बोलबाला है ।

निराश मोहन ने अपने खर्च से पुस्तक का प्रकाशन करवा कर बुक स्टाल पर बंटवा दी ।

इसके एक सप्ताह बाद कुछ कट्टर साम्प्रदायिक लोग किताब का सख्त विरोध करके उसे धर्म विरूद्ध बताने लगे । उन्होने अनेक चौराहों पर किताब की प्रतियां जलाना शुरू कर दिया | वे मोहन को जान से मारने की धौंस देने लगे ।

अंत में मोहन ने अखबारों में एक प्रतिवाद छपवाया,

‘ मैं निरीश्वरवादी नहीं हूं । मैं ईश्वर पर रिसर्च वर्क पर जोर दे रहा हूं । हमे सिर्फ धर्मग्रंथों का ही अध्ययन करके अपनी धारणा नहीं बनाना चाहिए वरन् स्वयं का मौलिक चिंतन व अन्वेषण भी करना चाहिए । मै स्वयें एक पुजारी का पुत्र हूं | मेरा जन्म मंदिर में हुआ है । मेरा परिवार परंपरावादी है । मैं ईश्वर पर एडवांस रिसर्च करने पर जोर देता हूं । ’’

इस स्पष्टिकरण के बाद सारा विरोध शांत होगया । किताब की प्रतियां जलाये जाने के बाद उसकी बिक्री बहुत बढ़ गई ।

 
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जातिवाद का जहर
एक दिन मोहन ने अखबार मे एक बड़ी भयानक खबर पढ़ी ।

एक गांव में एक युवक युवती दोनो को अंतर्जातीय विवाह करने पर गाव की पंचायत ने जान से मारने का फरमान सुनाया । वर पक्ष ने वधू की व वधू पक्ष ने वर की चाकू घोंप कर हत्या कर दी । इतना ही नहीं पंचायत ने उन दोनों पक्षों के परिवारों को गांव छोड़ने के लिए मजबूर किया गया ।

मेाहन ने जातिवाद के जहर को दूर करने का बीड़ा उठाया । गांव के लोग जातिवाद से भयानक रूप से ग्रस्त हें ।

उसने पास के गांव के ग्रामीणों की सभा का आयोजन किया व उन्हें जातिवाद के दुश्परिणाम के विषय में समझाने लगा :

1 जाति इंसान इंसान के बीच दीवार खड़ी करती हे ।

2 यह प्रथा अन्य जातियों से घृणा की नींव पर आधारित है ।

3 जातिप्रथा के कारण हमारा देश एक हजार साल तक गुलाम रहा ।

4 इसने इंसान को कूपमंडूक बना दिया है ।

5 प्रति वर्ष पूरे भारत में हजारों प्रेमी जोड़ों की नृशंस हत्या जाति के नाम पर कर दी जाती है ।

मोहन जाति प्रथा की बुराइयां बता रहा था तभी सारे ग्रामीण उठ कर चले गए ।

वहां के सरपंच ने मोहन को पुनः उस गांव में न आने की चेतावनी दी ।

उसने कहा ‘ हम जाति गंगा की बुराई नहीं सुन सकते ।’

तब मोहन ने अपने अभियान को आगे बढ़ाने के लिए अन्य माध्यम अपनाने का विचार किया ।

 

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