Lie books and stories free download online pdf in Hindi

झूठ

आज गाँव में कुछ ज्यादा हि हलचल दिख रही है, मानो कोई मेला लगा है, सभी लोग मुखियाजी कि हवेली कि तरफ जा रहे है. कुछ लोग आपस में खुसपूस कर रहे है कि मुखियाजी नहीं रहे. कल वह दूसरे गाँव कि पंचायत में किसी गरीब के किसी मामले का निपटारा करने गये थे, वापस लौटते समय गाड़ी गहरी खाई में गिर गयी और... इसका कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं है कोई गाँव का बंदा यह खबर लेकर आया है, इसलिये सभी गाँववाले हवेली कि ओर जा रहे है. मुखियाजी का रुतबा जीस प्रकार का है गाँव में उसके विपरीत वह एकदम साधे और सरल स्वभाव के व्यक्ती है, वह अपने कर्म और अपने बोल के प्रती हमेशा से हि निष्ठावान रहे है. उन्होंने आज तक कभी किसी गरीब या फिर कोई ओर हो उसके साथ कोई अन्याय नहीं किया. सबके साथ हमेशा बराबर इन्साफ किया है. मुखियाजी को सच अपनी जान सेभी ज्यादा प्रिय है और झूठ से बहोत ज्यादा नफरत है. उन्होंने अपने संस्कार उनके दोंनो बेटों में भी बराबर डाले हैं. वह दोंनो भी उनकी कहीं हर बात मानते है. उनके प्रती असीमित प्यार होने के कारण गाँव का कोई भी व्यक्ती हो या खुद उनके घर का सदस्य उनकी बात से बाहर नहीं जाता.
कल पडोस के गांव से मुखियाजी के लिये एक संदेसा आया था कि, उस गाँव में किसी कि जमीन का मामला अधर में अटका है, तो उसका निपटारा करने के लिये कृपया हमारे गाँव पधारे और उचित न्याय कर के इस मामले को सुलझा दिजीये. संदेसा मिलते हि मुखियाजीने बेटे को आवाज लगाई, बेटा मुझे पडोस के गाँव में न्याय करने के लिये जाना है तो यहाँ हवेली और गाँव का ध्यान रखना, तभी उनका छोटा बेटा रतन भी वहाँ पहुंचा उसने यह बात सुनी तो वह बोला, 'पिताजी मैं भी आपके साथ वहाँ जाऊंगा, वहाँ पर आपका ख्याल रखुंगा, तभी बड़ा बेटा बोला नहीं मैं जाऊंगा और उनका ख्याल रखुंगा. छोटा बेटा बोला नहीं भैया आप मुझे कभी बड़ा होंने नहीं दोगे क्या, इतने में मुखियाजी कि बड़ी बहु वहाँ आ गयी और वह बोली, जाने दिजीयेना देवरजी को आखिर वह भी बड़े हो गये है. परंतु पिताजी आपके खाने पिने कि व्यवस्था का क्या मैं अभी आपके साथ में आपका खाना और आपकी दवाई बांध देती हूं. तभी वहाँ पर मुखियाजी कि छोटी बहु आ गयी और वह बोली पिताजी सम्भालकर जाईयेगा, सुना है कि रस्ते में गहरी खाई है और मुझे बहोत डर लग रहा है. उन सभी कि बात सुनकर मुखियाजी हंस उठे और बोले, कितना निस्वार्थ प्यार करते हो तुम मुझसे मेरी चिंता करते हो. मैं दुनिया का सबसे ज्यादा खुशनसीब इन्सान हुं जिसे इतना प्यारा परिवार मिला. मुझे तुम सब पर गर्व है मेरे बच्चो और मेरी चिंता मत करना मैं सही सलामत वापस आऊंगा. तुम अपने अपने काम पर ध्यान दो, तो मै चलता हुं कहकर मुखियाजी चल दिये.
आज मुखीयाजी कि हवेली का नजारा कुछ और हि दिख रहा था. उनके स्वर्गवास कि खबर फैलते हि अपने पराये, पास के दूर के सभी रीश्तेदार आये है. बाहर हवेली के आंगन में हि सब बैठकर चर्चा कर रहे है. उनके सगे दोंनो बेटे श्रवण और रतन गुमसुम बैठे है तभी कोई रीश्तेदार में से बोला तो फिर अब और कितनी देर राह देखनी है. जो हो गया सो हो गया सबको एकदिन जाना है और दुनिया को ऐसे हि चलना है. तो फिर कूछ व्यवहार कि बात कर लेनी चाहिये. तभी कोई दुसरा रीश्तेदार बोला अभी पार्थिव शरीर भी नहीं मिला है और आप लोंगो को बंटवारे कि सुझ रही है. तभी बीच में मुखियाजी का एकलौता सगा भाई बोला, आप कह रहे वह ठीक है और वह कह रहे वह भी ठीक है. अब बैठकर इंतजार करना हि है तो फिर समय का सदुपयोग क्यों न किया जाये. अभी पार्थिव शरीर पोलीस को प्राप्त नहीं हुआ है और इसमें और कितना समय लग सकता है हमें पता नही. तो फिर उचित होगा कि सभी रीश्तेदार यहाँ उपस्थित होने के कारण बंटवारे कि बात सबके सामने और जल्द जल्द कर लेनी चाहिये.
चाचा कि बात सुनकर मुखीयाजी के छोटे बेटे रतन बोला हा हा मालूम है बाकी किसी और को नहीं बस आपको हि ज्यादा जल्दी है. पिताजी जिंदा थे तब भी बस पैसो के लिये हि आपने उनसे रिश्ता रखा और अब मरने के बाद भी बस पैसो कि खातिर रीश्तेदारी दिखा रहे है. पिताजी के सरल स्वभाव का काफी फायदा आपने उठाया है, क्या हम जानते नहीं के पिताजी के नाम का सहारा लेकर आपने कितने लोगो को ठगा है वह लोग पिताजी कि इज्जत करते है इस कारण से किसीने आपकी शिकायत पिताजी से नहीं कि. तभी चाचा उठकर बोले, चूप कर तू सपोले मै तो सगा भाई होकर भी उनसे दूर रहकर यह करता था, लेकीन तू तो उनके घर में उनके करीब रहकर जो गुल खिला रहा है उसका मुझे पता नहीं है क्या. तू तो आस्तीन का सांप है जो उनको इसने कि पुरी तयारी कर चुका है.
यह बात सुनकर बड़े बेटे ने पुछा क्या बोल रहे हो तुम चाचा कुछ भी बोलने से पहले उस बात कि सच्चाई को जान लिया करो और फिर बोला करो. चाचा बोले, सच्चाई तो मैं तुम्हे बताता हूँ, तेरा यह सपोला भाई तेरे पीठ पिछे तेरे पिताजी कि सारी जायदाद अपने नाम लिखवाने का सारा बंदोबस्त कर चुका है. यह सपोला वकील से मिलकर सारे कागजात बना चुका है और मौंका मिलते हि पिताजी से किसी कारण से जाने अनजाने में उनपर उनके दस्तख़त करवाने वाला है. तू बस राम बनकर जनम भर का बनवास भोगता रह जायेगा और यह सपोला अपनी पत्नी के साथ पुरी जायदाद पर राज करेगा.
और राज कि बात यह है कि इसके इस कुकर्म के इसकी पत्नी भी शामिल है. चाचा कि बात सुनकर बड़े बेटे का परा चढ़ गया, उसने छोटे बेटे से सच बताने को कहाँ , तो उसने कहाँ हा यह सच है, मुझे हमेशा छोटा छोटा कहकर मुझे कहीं जाने नही दिया, मै जो काम करने कि कोशिश करता वह करने नहीं दिया. मुझे छोटा छोटा कहकर खुद हमेशा बड़े होते गये, मुझे अपने पैरो कि जुती समझते रहे. एकदिन मुझे यह अहसास हुआ कि इस तरह तो मै जनम भर छोटा हि रह जाऊँगा, बड़ा कभी नही हो पाउंगा. मजबुरी में मैंने बल्की हम दोंनो ने यह कदम उठाया और वह सही है. यह सुनकर बड़ी बहु बीच में बोली तभी इस चुड़ैल को बड़ी पिताजी कि चिंता हो रही थी. गाँववालों से या कहीं से भी पिताजी को मिलनेवाले तोहफे पर तो इसकी नजर इस तरह गढ़ी रहती थी. मुफ्त कि हर चीज पर तो इस भुक्कड कि लार रस्ते के उस कुत्ते से भी ज्यादा गलती थी. हम हि क्यों बेवकूफ कि तरह मुफ्त में किसी कि सेवा करेंगे. हमको भी हमारा हक मिलना चाहिये और हम वह लेकर रहेंगे. इस बात पर सभी में पहले बहस और फिर हाथापाई सुरु हो गयी. देखते हि देखते हवेली का वह आँगन जंग का मैदान बन गया.
अरे मुखियाजी, आप अभी तक बाहर हि खड़े है भीतर क्यों नहीं गये, वह मुझे चिल्लर लाने में देरी हो गयी वरना आपको आपकी हि हवेली के बाहर इंतजार करवाने कि मेरी हिम्मत कहा, कृपया मुझे क्षमा करे. 'मुखियाजी' यह शब्द कानों पर पडते हि किसीने पीछे मुड़कर देखा तो मुखियाजी साक्षात द्वार पर खड़े थे, वह जोर से चील्लाया, 'मुखियाजी आ गये'. यह सुनकर जंग के मैदान बने आँगन में स्मशान सी शांती छा गयी. सब जहाँ थे वही ठीठकर खड़े रह गये. मुखियाजी बोले, मुझे तुम्हे क्षमा नही बल्की धन्यवाद देना है, 'हरिया'. तुने चिल्लर लाने में जो देरी कि उस पल ने मुझे एक ऐसे सच का सामना करा दिया जो कभी सच हि नहीं था. वह तो बस एक छलावा था, जिसमें मैं आजतक जी रहा था. मै सच कि राह पर चलनेवाला आज उस सच के ही नाम से ठगा गया हुं. शायद उस भगवान को भी मुझे इस झूठे सच से अवगत कराना था, इस लिये पहले जीस गाड़ी में मेरी मौत निश्चित थी उस गाड़ी में मेरे लिये जगह हि नही छोड़ी. दुसरे उस बंदे का मै शुक्रगुजार हुं जिसने यह सच जो उसने खुद की आंखों देखा हि नहीं और असल में जो झूठ था, इन सबके सामने उजागर कर दिया. उस छोटे से झूठ ने इन मक्कार लोगों कि सच्चाई को मेरे और पुरे गाँव के सामने
प्रस्तुत कर दिया. मै जिस खोखले सच के गुब्बारे पर बैठकर उड़ रहा था, उसे इस झूठ ने एक पल में फोड दिया. काश! यह झूठ एक सच होता और मै उस गाड़ी के साथ खाई में गिरकर मर जाता, तो मुझे यह सब अपनी आंखो से देखना न पड़ता. मै इनके लिये मर चुका हुं और मरा हि
रहना चाहता हूँ.

स्वलिखित

गजेंद्र गोविंदराव कूडमाते