Kshama Karna Vrunda - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

क्षमा करना वृंदा - 2

भाग -2

मैं सोचती कि क्या लड़की केवल पुरुषों के भोग लिए बनी, एक जीती-जागती मशीन भर है। घर बाहर कहीं भी, क्या वह निश्चिंत होकर नहीं जी सकती। ऐसे क्षणों में मुझे किशोरावस्था में घर पर बार-बार आने वाले अपने एक अंकल ज़रूर याद आते। जो किसी चर्च से जुड़े हुए थे। शौक़िया फ़ोटोग्राफ़र भी थे। कोई ख़ास काम-धाम नहीं करते थे, फिर भी न जाने कैसे उनके पास बहुत पैसा था। अपनी दोनों लड़कियों को अमरीका में पढ़ा रहे थे।

जब भी आते तो मेरे लिए पेस्ट्री, कैडबरीज़ चॉकलेट का बड़ा गिफ़्ट पैक ज़रूर लाते। यह सब मुझे अपनी गोद में ही बिठा कर देते, ख़ूब प्यार भी करते जाते। मैं ख़ुश होती कि चलो नाना-नानी के बाद मुझे प्यार करने वाले एक अंकल भी हैं।

लेकिन जल्दी ही मैंने महसूस हुआ कि उनका प्यार तो अंकल वाला प्यार है ही नहीं। वह गंदे वाले आदमी जैसा प्यार करते हैं। शरीर के हर उस हिस्से को स्पर्श करते हैं, जो उन्हें बिलकुल भी नहीं करना चाहिए। और यह सब नाना-नानी की नज़र बचा कर करते हैं।

मुझे बाइबिल की कहानियाँ सुनाने के नाम पर न जाने कौन-कौन सी कहानियाँ सुनाते कि उनमें अश्लीलता के सिवा कुछ नहीं होता था। बाइबिल की एक पात्र मारिया मेग्डालिना (मैरी मैग्डलेन) का उल्लेख करते हुए कहते कि “पंद्रह अप्रैल चौदह सौ बावन को एक महान चित्रकार लिओनार्डो द विन्ची का जन्म हुआ था।

उन्होंने मारिया की ऑयल पेंटिंग बनाई थी। जो दुनिया कि महान पेंटिंग्स में शामिल की जाती है। उनके इस कार्य से प्रभु यीशु बहुत ख़ुश हुए थे। उनकी कृपा विन्ची पर ऐसी हुई कि वह अमर हो गए। मारिया की उस ऑयल पेंटिंग का पोस्ट-कार्ड साइज़ चित्र दिखाते। जिसमें मारिया क़रीब-क़रीब निर्वस्त्र थीं।

एक दिन मुझसे बोले, “मैं तुम्हारी ऐसी ही ढेर सारी तस्वीरें खींच कर, तुम्हें दुनिया में फ़ेमस कर दूँगा। दुनिया के बड़े-बड़े लोग तुमसे मिलेंगे। तुम्हारे पास बहुत सारा पैसा आएगा। तुम बहुत बड़े से, शानदार घर में प्रिंसेज़ की तरह रहोगी।

“बहुत बड़ी-बड़ी कारों में घूमने निकलोगी। ऐसा करके तुम पवित्र कार्य करोगी। क्योंकि मारिया प्रभु यीशु की पत्नी थीं। प्रभु यीशु तुमसे उसी तरह ख़ुश हो जाएँगे, जैसे विन्ची से हुए थे। तुम्हें तुम्हारे पेरेंट्स से मिला देंगे।”

उनका पेरेंट्स वाला तीर सटीक लक्ष्य पर लगा। वह मेरे हृदय को भेद गया। मैं उनके झाँसे में आ गई। उनके कहने पर नाना-नानी को भी कुछ नहीं बताती। दो दिन बाद पड़े रविवार को वह चर्च में प्रेयर अटेंड कर सीधे घर आ गए।

चाय-नाश्ता पहले की ही तरह बना कर मैं ही ले आई। उसी समय उन्होंने नाना-नानी से कहा, “फ़्रेशिया को इसकी आंटी ने बुलाया है। आज का दिन यह हमारे साथ बिताएगी। शाम को घुमाने भी ले जाएँगे। और डिनर के बाद मैं छोड़ जाऊँगा।”

नाना-नानी ने मुझे आधे-अधूरे मन से भेज दिया। मैं तो उतावली थी ही। क्योंकि उनके तीर का घाव समय के साथ बड़ा होता गया था। उनकी कार में जब मैं उनके बहुत बड़े से घर पर पहुँची, तो वहाँ का ऐश्वर्य देख कर बहुत प्रभावित हुई।

अंकल ने मुझे पूरा घर दिखाया, लेकिन आंटी कहीं नहीं दिखीं। पूछने पर कहा, “उनकी एक अर्जेन्ट कॉल आ गई थी। जल्दी ही वापस आ जाएँगी।”

आंटी नहीं हैं यह जानकर मैं भयभीत हो गई। मुझ में उभरा भय, मेरे चेहरे पर दिखने लगा। मेरी हालत समझते ही उन्होंने कहा, “तुम्हें डरने की ज़रूरत नहीं है। तुम एक महान काम के लिए आई हो, आओ मैं तुम्हें प्रभु यीशु के दर्शन करवाता हूँ।”

वह मुझे एक बहुत बड़े से कमरे में ले गए। जहाँ की चारों दीवारों पर चार कलर की महँगी फैंसी लाइट्स जल रहीं थीं। जो बहुत धीमीं थीं। कमरे के बीचों-बीच बड़ा सा झाड़-फानूस लटक रहा था। जो रंग-बिरंगी लाइट्स से जगमगा रहा था। यह सब मैं पहली बार देख रही थी, अभिभूत थी।

वह दीवार पर टँगे प्रभु यीशु के बड़े से चित्र के सामने, मुझे लेकर खड़े हो गए। कहा, “देखो प्रभु यीशु कितने स्नेह से तुम्हें देख रहे हैं,” साथ ही उन्हें प्रणाम किया। मैंने भी। वहीं ख़ूबसूरत सी मेज़ पर, चाँदी के बर्तन में रखे पानी को उन्होंने अपनी अंजुरी में लेकर मुझ पर छिड़कते हुए कहा, “देखो प्रभु यीशु की कृपा तुम पर बरस रही है।

“यह बचपन से ही तुम्हें कष्ट दे रहे, तुम्हारे पेरेंट्स को तुमसे दूर कर देने वाले शैतानी साए से तुम्हें मुक्ति दिलाएँगे। जल्दी ही तुम अपने पेरेंट्स से मिलोगी। तुम पर ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ बरसेंगी।”

मुझे उस पानी की ख़ुश्बू बहुत अच्छी लग रही थी। मुझे ठीक सामने वाली दीवार पर उतना ही बड़ा मारिया का भी वही चित्र दिखा। क़रीब-क़रीब नग्न। अन्य दीवारों पर भी क़रीब दर्जन भर चित्र पूर्णतः निर्वस्त्र स्त्री-पुरुषों के टँगे हुए थे।

सभी चित्रों के फ़्रेम और साइज़ एक समान थे। चित्रों पर चित्रकारों के नाम लिखे हुए थे। वो मुझे लेकर एक-एक चित्र के सामने पहुँच रहे थे। उनके डिटेल्स बताते जा रहे थे। ये सभी चित्र पश्चिमी देशों के आर्टिस्ट्स की क्लासिक न्यूड पेंटिंग्स थीं। इनमें मुझे चार बहुत अच्छी लगीं।

पहली टिज़ियानो वेसेलियो टिटियन की पंद्रह सौ पचीस में बनाई गई पेंटिंग ‘वीनस एनाडायोमीन’। यह वाशिंगटन डीसी में नेशनल गैलरी ऑफ़ आर्ट में लगी हुई है।

दूसरी अठारह सौ अड़सठ में लॉर्ड फ्रेडरिक लीटन की बनाई गई पेंटिंग ‘एक्कटेया’, जो उन्होंने ग्रीक पौराणिक कथा से प्रेरित होकर बनाई थी। तीसरी जूल्स जोसेफ लेफ़ेब्रे की अठारह सौ बांसठ में बनाई गई पेंटिंग ‘क्लोई’ थी। अंकल ने बताया कि क्लोई पेरिस की एक मॉडल थी।

चौथी पेंटिंग थी जॉन विलियम गॉडवर्ड की ‘टेपिडेरियम’ जिसकी अंकल ने सबसे ज़्यादा प्रशंसा की, सबसे ज़्यादा ब्योरा देते हुए कहा, “ये रोमन साम्राज्य की संस्कृति से प्रेरित है। उस दौर में उच्च वर्ग में, विशेष रूप से महिलाओं के स्नान की ऐसी ही व्यवस्था होती थी।”

वो क़रीब पंद्रह-बीस मिनट तक मुझे यह सब दिखाते रहे। इस दौरान उनका दाहिना हाथ निरंतर मेरी कमर, नितम्बों पर ही रेंगते रहे। कभी-कभी कंधों पर भी।

उनकी उस दुनिया में, तब मुझ पर उनका ऐसा प्रभाव पड़ रहा था कि उनकी उन गन्दी हरकतों की तरफ़ मेरा ध्यान ही नहीं गया।

इस तरफ़ मेरा ध्यान तब गया, जब वह मुझे लेकर दूसरे कमरे में पहुँचे और तब भी उनकी वह हरकतें जारी रहीं। इस तरफ़ ध्यान जाते ही मुझे यह सब बहुत बुरा लगने लगा, लेकिन चाह कर भी मना करने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी।

उस कमरे में उन्होंने मुझे अपनी गोद में बैठा कर, एक से बढ़ कर एक, ख़ूब टेस्टी चीज़ें खिलाईं-पिलाईं। आख़िर में जो पिलाया, वह विह्स्की है, यह समझते ही मैंने मना किया, लेकिन वह नहीं माने। नाना-नानी हफ़्ते में तीन-चार दिन सोते समय लेते थे, तेज़ जाड़ों में थोड़ी सी मुझे भी देते थे, इसलिए विह्स्की से मैं परिचित थी।

इस बीच मैंने उनकी गोद से हटने की कई कोशिशें कीं, लेकिन उन्होंने हटने तब दिया, जब प्रभु यीशु को ख़ुश करने के लिए मुझे आधुनिक मारिया बनाने लगे। उन्होंने विन्ची की तरह आयल पेंट्स, तूलिका से कैनवस पर अर्ध-नग्न मारिया को नहीं उकेरा। बल्कि अपने महँगे कैमरे से मेरी पूर्ण नग्न तस्वीरें खींचीं। मारिया के नाम पर।

मैं पूरे विश्वास के साथ यही सोचती थी कि विन्ची ने मारिया को उकेरते समय अपनी मॉडल को स्पर्श नहीं किया होगा। लेकिन अंकल ने मुझे पूर्ण नग्न करके, पहले हर वह कर्म किए, जो सिर्फ़ और सिर्फ़ कुकर्म की श्रेणी में आते हैं।

यदि आज भी मैं क़ानून का सहारा लूँ, तो पॉक्सो क़ानून (बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा प्रदान करने लिए २०१२ में बच्चों का संरक्षण क़ानून [POCSO] बनाया गया था) के तहत अंकल, आंटी दोनों को सज़ा हो सकती है, इस बुढ़ापे में भी।

यदि हैशटैग मी-टू के रास्ते चलूँ, तो कम से कम अपनी बेटियों, नातिनों, समाज के सामने नज़र उठा कर देखने लायक़ नहीं रहेंगे, यदि उन दोनों में ज़रा भी आत्म-सम्मान बचा होगा।

उन्होंने मुझे मारिया बनाने का खेल अगले क़रीब दो साल तक खेला। और पहली बार को छोड़ कर आंटी हर बार खेल में शामिल होती रहीं। दोनों ने मुझे इस तरह अपने जाल में फँसाया था कि मैं अकेले में फूट-फूट कर रोती, लेकिन बार-बार कोशिश करके भी नाना-नानी या किसी और से कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी।

क्योंकि किसी से कहने पर नाना-नानी को जान से मार देने की उनकी धमकी, उनकी चमकती पिस्टल मेरे लिए किसी कोने में बे-आवाज़ चुपचाप रो लेने के सिवा और कोई रास्ता नहीं छोड़ती थी। वैसे नाना-नानी के सिवा और कौन था भी मेरा।

दो साल बाद मेरे साथ उनका हर हफ़्ते दो हफ़्ते में मारिया-मारिया खेलना बंद तब हुआ जब एक दिन दोनों ही लोग फेमा क़ानून (विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम) के उल्लंघन में दस साल के लिए जेल चले गए।

आय का कोई स्रोत न दिखा पाने, कई अन्य गैर-क़ानूनी कार्यों के चलते, उनका आलीशान मकान, कार आदि सहित चल-अचल, सारी सम्पत्ति ज़ब्त कर ली गई। चर्च ने भी उनकी कोई मदद नहीं की, क्योंकि उन्होंने चर्च को भी धोखा दिया था।

तीन कमरों का एक छोटा सा मकान ही बचा रह गया, क्योंकि वह उनकी पैतृक सम्पत्ति थी। देखते-देखते सब-कुछ ऐसे बिगड़ा कि पैसों की तंगी के चलते दोनों लड़कियों को पढ़ाई अधूरी छोड़ कर घर वापस लौटना पड़ा। तीन कमरों के छोटे से मकान में ही।

उन्हें छोटे-मोटे स्कूलों में टीचरी करनी पड़ी। लेकिन ऐशो-आराम में बड़ी हुईं ये लड़कियाँ जीवन के कठिन रास्ते पर ज़्यादा दूर नहीं चल पाईं। अपने कट्टर प्रोटेस्टेंट ईसाई पिता, जो कैथोलिक ईसाईयों को छोटा मानते हुए, उनसे घोर घृणा करते थे, उन्हें एक क्षण को बर्दाश्त नहीं कर पाते थे, उनकी हर बात को धता बताते हुए बड़ी लड़की एक कैथोलिक युवक के ही साथ शादी करके दिल्ली चली गई।

शादी से पहले जब वह जेल में पेरेंट्स से युवक के साथ मिली, उनसे शादी के बारे में बात की, तो वह कैथोलिक से शादी की बात सुनते ही भड़क गए। बहस आगे बढ़ी तो उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि ‘तुम्हें शादी प्रोटेस्टेंट से ही करनी होगी, नहीं तो हमसे हमेशा के लिए रिश्ता ख़त्म करना होगा।’

लड़की ने कुछ ही क्षण सोच कर कहा, ‘ओके डैड, हमारी बातें कम्प्लीट हो चुकी हैं। इसलिए मैं अपनी यह आख़िरी मुलाक़ात अब यहीं ख़त्म करती हूँ। अब मॉम के पास जाने का भी मुझे कोई मतलब नहीं दिखता, इसलिए आप ही उन्हें बता दीजियेगा।’

यह कहते हुए उसने उन्हें नमस्कार किया, उठ कर चल दी। वह उसे आगे गलियारा मुड़ कर ओझल होने तक अवाक्‌ देखते रहे। उन्हें उससे इतने ठेठ अंदाज़ में, तुरंत ही ऐसा जवाब मिलने की ज़रा भी आशा नहीं थी।

दूसरी लड़की ने भी ज़्यादा समय नहीं लिया। एक सॉफ़्ट-वेअर इंजीनियर से आर्य-समाज मंदिर में शादी कर के चली गई।