Kshama Karna Vrunda - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

क्षमा करना वृंदा - 9

भाग -9

मैंने सोचा, मेरा लियो तो तीन बातों को छोड़कर बाक़ी शरीर से एक स्ट्रॉन्ग मैन है। ऐसा आदमी जिसके साथ कोई भी लड़की बहुत ख़ुश रह सकती है। मैं बड़ी गंभीरता से ऐसी लड़की की तलाश में सक्रिय रहने लगी।

दृढ़ निश्चय कर लिया कि इक्कीस साल पूरा होते-होते लियो की शादी कर दूँगी। यह सब सोचते हुए मैं बिज़नेस को बढ़ाने के लिए जितना ज़ोर लगा सकती थी, वह लगा दिया। डिलीवरी मैन को पहले जहाँ छुट्टी के ही दिन बुलाती थी, अब उसे हर दिन आने को कह दिया। मेरी अनुपस्थिति में फ़हमीना माल देने लगी।

क़रीब चार महीने अच्छे नहीं, बहुत ही शानदार निकले। फ़हमीना भी हाथ नहीं बँटाती तो पैकिंग का काम समय से पूरा नहीं हो पाता। वह इसलिए जी-जान से सहयोग कर रही थी क्योंकि पर पैक उसे भी एक निश्चित अमाउंट शुरू से ही देने लगी थी।

लेकिन पाँचवें महीने के आख़िर में एक दिन मेरे सारे किए-धरे, सपनों पर पानी ही पानी फैल गया। फ़हमीना फ़ोन पर तबियत ख़राब होने की बात कह कर कई दिन तक नहीं आई। लियो को अकेले छोड़ कर हॉस्पिटल जाने की हिम्मत मैं नहीं जुटा पाई। ऑफ़िस से छुट्टी ले ली।

फ़हमीना हफ़्ते भर बाद आई, लेकिन चार दिन बाद ही फिर सुबह-सुबह ही फ़ोन किया कि ‘दीदी तबियत ख़राब है, नहीं आ पाऊँगी।’ और मेरी कोई बात सुने बिना ही फ़ोन काट दिया। मैं उससे पूछना चाह रही थी कि इन दिनों तुम्हें ऐसा क्या हो गया है, जो एवरेज चौथे पाँचवें दिन तुम्हारी तबियत ख़राब हो रही है।

मैंने महसूस किया कि उसे कोई तकलीफ़ है, उसकी आवाज़ से तो ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा है। मैं यह भी अच्छी तरह समझ रही थी कि हॉस्पिटल से बार-बार इस तरह छुट्टी लेना, मेरे लिए बड़ी मुसीबत पैदा कर देगा।

फ़हमीना की हरकत, बदले रूप ने मुझे वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए विवश कर दिया। मैंने सबसे पहले मेन दरवाज़े पर एक इंटरलॉक लगवाया। उसके बारे में लियो को ख़ूब समझाया कि जब वह बाहर लॉक करके जाएगी, तो एमरजेंसी में वह अंदर से कैसे खोलकर बाहर निकल सकता है।

इसके बाद शाम को लियो के साथ नाश्ता करते हुए टीवी देख रही थी। लियो को स्पर्श, वायु-लिपि की प्रैक्टिस करवा रही थी। तभी मेरे दिमाग़ में आया कि व्यस्तता के चलते मैंने सीसीटीवी की फुटेज तो आज-तक देखी ही नहीं, चलो आज इन्हें देख लेती हूँ।

जब देखना शुरू किया, तो कुछ ही देर के बाद कुछ ऐसा दिखा कि मेरे होश फ़ाख़्ता हो गए। उस फुटेज को रिवाइंड कर-कर के मैंने कई बार देखा। जो कुछ दिख रहा था, उस पर मेरी आँखें विश्वास नहीं कर पा रही थीं . . . मैं कभी फुटेज, तो कभी लियो को देखती। और बीच-बीच में बुदबुदाती जा रही थी बास्टर्ड फ़हमीना . . .

एक-एक करके मैंने सभी फुटेज देखीं। एक-एक सीन देख-देख कर मेरा ख़ून खौल रहा था। लियो पर भी बहुत ग़ुस्सा आ रहा था। मेरे मन में आया कि इन दोनों की ही छड़ी से ख़ूब कसके पिटाई करूँ। लियो को देख कर मैं दाँत पीसती कि सारी बातें बताता था, तो यह क्यों नहीं बताई।

मैंने ग़ुस्से में कई बार फ़हमीना को कॉल की, लेकिन उसने कॉल रिसीव नहीं की और बाद में स्विच ऑफ़ कर दिया। इससे मेरा ग़ुस्सा सातवें आसमान को भी पार गया। मैं उठ खड़ी हुई कि इसके घर पर ही चल कर इसको ठीक करती हूँ।  लेकिन यह सोच कर रुक गई कि वह बास्टर्ड अपने घर पर न जाने कौन सा तमाशा खड़ा कर दे। ऐसे में लियो को देखूँगी, हॉस्पिटल देखूँगी कि उसका तमाशा। एक साथ इतनी मुश्किलों को फ़ेस करना आसान नहीं होगा। अच्छा यही होगा कि इसका हिसाब-किताब करके काम से ही निकाल देती दूँ।

यह सब करने से पहले मैंने सारी फुटेज कई जगह सेव की। लैप-टॉप, और छोटी-छोटी फ़ाइल बनाकर मेल पर भी डाल दी, कि यदि उसने कभी बदतमीज़ी की, तो प्रमाण रहेगा कि कैसे उसने कितने गंदे, कितनी क्रूरता-पूर्वक एक ऐसे जुवेनाइल का लगातार यौन शोषण किया, जो ना सिर्फ़ ब्लाइंड है, बल्कि देख-सुन भी नहीं सकता।

 

मन में उसे अपशब्द कहती रही कि बदतमीज़ बेशर्म उसका टॉयलेट तक चोरी से पीछा करती रही। कितनी धूर्तता-पूर्वक उसे खेल-खेल में, अपने गंदे खेल में इंवॉल्व करती चली गई। क्या-क्या घिनौनी हरकतें करती, करवाती रही। लिबर्टीन लेडी तू मुझे मिल गई तो तुझे छोड़ूँगी नहीं।

इतनी क्रूरता, इतनी चालाकी से सेक्स करती रही, इनोसेंट लियो को चाकू टच करा-करा कर डराया भी कि तेरी गंदगी को वह मेरे सामने ओपन न करे। मैंने उससे बात करने का तरीक़ा बताया, तो उसका ऐसा मिस-यूज़ किया। तेरे शौहर ने भी तुझे इसीलिए धक्के देकर भगाया होगा कि न जाने कहाँ-कहाँ मुँह मारती फिरने वाली औरत है तू।

मैं भी कितनी मूर्ख लेडी हूँ, एक नर्स होकर भी तेरी कमीनगी पहचान नहीं पाई। दिन-भर खाती-पीती रहती थी। चार-पाँच महीने में ही डेढ़ गुनी हो गई थी। और कुछ दिन रुकती तो डेढ़ क्या दस गुनी हो जाती।

दिन-भर जितना मन हुआ, जो मन हुआ वो खाती ही रहती थी। मेरी आँखों को भी न जाने क्या हो गया था कि तेरे मोटे होते जा रहे पेट की तरफ़ ध्यान ही नहीं दे पाई। तेरी कामुक आँखों को भी नहीं समझ पाई, जिनमें तू मेरे लियो को अपनी सेक्स-मशीन बनाने का सपना लिए आगे बढ़ती रही।

ओह रॉस्कल लेडी तेरा क्या करूँ? तुझे पुलिस में ही दे दूँ तो अच्छा है। जहाँ दसियों साल तू जेल में ही सड़े, वहाँ स्टॉफ़ से लेकर क़ैदी तक, तेरे लिए ढेरों सेक्स-मशीन के रूप में हमेशा उपलब्ध रहेंगे।

लेकिन तेरी कमीनगी की सज़ा मैं तेरे बच्चों को कैसे दे सकती हूँ। मैं नहीं चाहती कि कोई बच्चा मेरे लियो जैसे दौर से गुज़रे। इस पीड़ा को लियो और मैं ही समझ सकती हूँ।

लेकिन तेरी प्रेगनेंसी! उसका क्या करूँ? पता नहीं यह लियो से है या और भी कोई है? तू क्या करेगी इस बच्चे का? पैदा करके ब्लैक-मेल करेगी या किसी . . .

इसी के साथ मुझे फिर से सोशल मीडिया पर वायरल एक और वीडियो याद आया। जिसमें रात के अँधेरे में मुँह ढक कर, एक महिला पॉलिथीन में एक नवजात शिशु को मरने के लिए अच्छी ख़ासी गहरी नाली में फेंक कर भाग जाती है। पलट कर देखती तक नहीं। और तभी एक कुत्ता दौड़ा-दौड़ा आता है, नाली से पॉलिथीन निकाल कर उसे बचा लेता है।

अपनी हमलावर प्रकृति के अनुसार उस नवजात शिशु पर हमलावर नहीं हुआ था। जानवर ने इंसानों को मानवता का संदेश दिया था। ग़नीमत रही कि संदेश समय से सुन लिया गया, बच्चे को समय से ट्रीटमेंट मिल गया। लेकिन वह स्वस्थ हुआ कि नहीं, यदि स्वस्थ हुआ तो अब कहाँ है?

रॉस्कल फ़हमीना कहीं तू भी तो पॉलिथीन का यूज़ नहीं करेगी। तुम्हारी हालत, तुम्हारे बच्चों को तो देखते हुए नहीं लगता कि तुम बच्चे को जन्म दोगी।

उस अजन्में बच्चे के लिए, तेरे लिए अच्छा यही होगा कि उसे इस दुनिया के कष्टों के एहसास से पहले ही मुक्ति दे दी जाए।

मैंने सोचने-विचारने में ज़्यादा समय न लगा कर जल्दी ही तय कर लिया कि दुनिया में एक और लियो अपनी जानकारी में तो नहीं आने दूँगी।

मैं बार-बार लियो को देख रही थी, जो मेरी ही बग़ल में, मुझसे सटा हुआ लेटा था। करवट लेकर। मुँह मेरी कमर के पास जाँघों से सटा हुआ था। और एक हाथ सामने पेट से होता हुआ, अगली छोर तक लपेटे हुए था।

मैंने प्यार से उसके सिर को सहलाते हुए मन ही मन कहा, मेरे प्यारे लियो तुझे तो इस फ़हमीना की बच्ची ने समय से बहुत पहले ही पूरा मर्द बना दिया है। तू इतना कैसे डर गया कि पहली बार, फिर बार-बार की गई उसकी ग़लत हरकत के बारे में, मुझे बताया तक नहीं।

तुझे कितना तो सब कुछ बताती, सिखाती, समझाती रहती हूँ। एक स्ट्रोंग बॉय बनाने की हर कोशिश की, लेकिन तुम इतने कमज़ोर निकले। या यह कहूँ कि तुम एक दो बच्चों की माँ के लिए भी एक स्ट्रॉन्ग मैन बन गए।

उस के फ़ेवरेट मर्द बन गए। तुम इतनी छोटी उम्र में ही इतनी तेज़ी से, इतने मैच्योर हो गए कि एक मैच्योर लेडी को एंजॉय करने लगे। फुटेज में तो पहली बार के बाद से तुम्हारे चेहरे पर भी, कुछ ऐसा दिख रहा है, जो साफ़-साफ़ बता रहा है कि तुम उसके साथ एंजॉय करते थे।

सिर्फ़ उसे ग़लत कहूँ या कि तुझे भी, या दोनों को ही ग़लत कहूँ। या अकेले ख़ुद को ही दोषी कहूँ कि एक जवान ख़ूबसूरत मर्द को, एक जवान महिला के हवाले कर गई, ऐसी महिला जिसके आदमी ने उसे दुत्कार दिया है।

लेकिन उसको भी ग़लत कैसे कहूँ, वह भी तो इंसान है। उसमें भी तो इच्छा होगी ही। उसे भी तो अधिकार है, अपनी इच्छाओं को पूरा करने का। मुझे यह सब करने से पहले सोचना चाहिए था कि हर कोई फ़्रेशिया नहीं हो सकती, जिसमें किसी से सेक्स रिलेशन बनाने की बात सोच कर ही घृणा भर जाती है।

दरअसल मैं भी निश्चित ही एक सामान्य युवती होती, यदि मेरे एक अंकल ने मुझे मारिया के रास्ते चलकर प्रभु यीशू की कृपा मिलने, कृपा होने पर मुझे मेरे पेरेंट्स के मिल जाने का लालच देकर, अपने वश में न किया होता।

और मैं पेरेंट्स मिल जाएँगे इस लालच में उनके जाल में उलझी, उन्हें अपना शोषण न करने देती। और उनके शोषण ने मुझ में सेक्स शब्द से ही घृणा न भर दी होती। ओह सोचते ही उबकाई आने लगती है।

कितने शातिर और लोमड़ी से भी हज़ारों गुना ज़्यादा चालाक थे वो कि बिना किसी सुरक्षात्मक उपाय के मेरे साथ कुछ नहीं करते थे। जिससे मेरे प्रेग्नेंट होने का कोई रिस्क न रहे, और उनके घिनौने काम की जानकारी मेरे नाना-नानी या दुनिया को कभी न हो, उनका यह काम हमेशा चलता ही रहे। उनके उन उपायों का मतलब मैं बहुत बाद में समझ पाई थी।

इन कटु अनुभवों से गुजरने के बाद तो मेरे लिए और भी ज़्यादा ज़रूरी था कि फ़हमीना को लाने से पहले ऐसे हर बिंदुओं पर मुझे बहुत गहराई से बार-बार सोचना चाहिए था। यह हर हाल में सोचना ही चाहिए था कि हर कोई वह नहीं सोचता, उसकी वह भावना नहीं होती, जो मैं सोचती हूँ। मेरी जो भावना होती है। हर कोई उन कामों को एंजॉय नहीं करता, जिसे मैं करती हूँ।

मैं मन में ही संघर्षरत थी कि क्या सारा दोष अकेले मेरा ही है। बिना ठीक से सोचे-समझे मैं क्यों दोनों को एक जगह, इस तरह रखती आ रही हूँ? क्या मुझे समय-समय पर लियो के शारीरिक तनाव और उसके फ़र्स्ट नाईट-फॉल को भी ध्यान में नहीं रखना चाहिए था।

सारी ग़लती मेरी ही है? यदि हाँ, तो मेरी सज़ा क्या है? कौन है जो मुझे सज़ा देगा? एक निरीह जान, जो अभी ठीक से जान भी नहीं बन पाई होगी, उसे आने से पहले ही मार देने की सोच कर, क्या मैं एक महापाप कर रही हूँ।

पता नहीं वह तैयार भी होगी या नहीं। लेकिन इन सबसे ऊपर, सबसे पहली बात यह है कि एक और लियो को जन्म लेने दिया जाए या नहीं? एक को तो फ़्रेशिया मिल गई, लेकिन दूसरे को भी मिलेगी? फ़हमीना पॉलिथीन यूज़ नहीं करेगी इस बात की क्या गारंटी?

मैं दिमाग़ में ऐसे अनगिनत प्रश्नों का उत्तर रात-भर ढूँढ़ती रही। लेकिन मुझे कभी उत्तर मिलते, तो कभी वह ग़लत लगने लगते। लेकिन नींद भी आख़िर कोई चीज़ है। बहुत ताक़तवर है। उसे नेचर ने इतनी ताक़त दी है कि पार्थिव शरीर के बग़ल में भी लोगों को सुला देती है।

मुझको भी भोर यानी अर्ली मॉर्निंग में नींद आ गई। जब नींद खुली तो मोबाइल की रिंग बज रही थी। फ़हमीना का फ़ोन था। कॉल रिसीव करते ही उसने कहा, “दीदी मैं थोड़ा देर से आऊँगी।” यह कह कर उसने तुरंत फ़ोन काट दिया।

सवेरे-सवेरे उसकी आवाज़ सुनकर मुझे बहुत ग़ुस्सा आया। आग में घी का काम किया उसकी देर से आने की बात ने। लेकिन बहुत कुछ सोच कर, मैंने अपने ग़ुस्से पर नियंत्रण करके तुरंत कॉल-बैक कर कहा, “ठीक है, लेकिन फिर भी जल्दी करना। मुझे ऑफ़िस जल्दी निकलना है।”

मैंने टाइम देखा तो आठ बज रहे थे। और दिन होता तो अब-तक मैं तैयार हो चुकी होती। लेकिन तब मैं हर हाल में लियो, फ़हमीना चैप्टर का समापन करना चाहती थी। तो ऑफ़िस से आधे दिन की छुट्टी ले ली। जल्दी-जल्दी ख़ुद तैयार होकर लियो को भी उठा दिया।

फ़हमीना जब दस बजे आई, तब-तक मैंने चाय-नाश्ता, खाना-पीना सब बना लिया था। पहले मैंने सोचा कि अपने दो ही लोगों के लिए बनाऊँ। लेकिन फिर न जाने क्या सोचकर फ़हमीना का भी नाश्ता बना लिया। सुबह, शाम का नाश्ता, खाना-पीना वह यहीं करती थी।

फ़हमीना के आते ही मेरी पहली नज़र उसके पेट पर ही गई। मैंने देखा कि पेट पर उसके कपड़े पहले से काफ़ी टाइट हो रहे हैं। मन ही मन कहा कि प्रेग्नेंसी कम से कम तीन महीने की तो हो ही गई है।

भीतर ही भीतर ग़ुस्से से भरी होने के बावजूद भी, मैंने अपने भाव को ज़ाहिर नहीं होने दिया। उसे किचन में जाकर नाश्ता करने के लिए कह दिया। उसकी इस बात का कोई जवाब नहीं दिया कि दीदी आप अभी तक तैयार क्यों नहीं हुईं।

वह दस मिनट में नाश्ता करके आई और बोली, “दीदी आपने तो खाना, नाश्ता सब बना लिया। मैंने तो कहा था कि आ रही हूँ।”

मैंने उसकी तरफ़ देखे बिना बड़ी नम्रता से कहा, “बैठो फ़हमीना, मैंने सोचा आज तुमसे दूसरी तरह का काम करवाऊँगी, बात करने का काम।”

मेरी इस बात से वह कुछ भ्रमित हुई, कुछ सोचती हुई, प्रश्न-भरी दृष्टि से मुझे देखती रही तो उसे सामने पड़ी कुर्सी पर बैठने के लिए कहा। उसके बैठते ही तुरंत पूछा, “फ़हमीना तुम फिर माँ बनने वाली हो, यह अच्छी ख़बर तो तुमने बताई ही नहीं। हस्बैंड से तुम्हारी सुलह कब हो गई?”