Prem Ratan Dhan Payo - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 13






कोई खुशी नही दे पाएंगे हम । हां बस जिंदगी का सबसे गहरा ज़ख्म बनकर रह जाएंगे । " दिशा ये कहते हुए सिसकने लगी थी , तभी उसी कमरें से कुछ आवाजें आई । दिशा अपने कमरे में चली आई । कोई दरवाजा नोंक कर रहा था । दिशा दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ गयी । उसने दरवाज़ा खोला तो देखा बाहर गायत्री खडी थी । उसके हाथों में दूध का गिलास था । गायत्री अंदर आते हुए बोली " दिशा तुम सो तो नही गयी थी न । "

" नही भाभी बस बालकनी में टहल रही थी । "

" अच्छा ये दूध का गिलास आराम से खत्म कर देना । " गायत्री ये कहकर जाने लगी । कुछ कदम चलकर वो रूकी और फिर दिशा के पास आकर बोली " क्या बात हैं दिशा तुम रो रही थी क्या ? "

दिशा मन में बोली " पूरे घर में एक आप ही तो हैं भाभी जो बिना कहे मन की बात जान लेती हैं । "

" चुप क्यों हो गयी दिशा बोलो न । " गायत्री उसके गालों को छूकर बोली ।

दिशा चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट बोली " नही भाभी ऐसी कोई बात नहीं है । बस आंखों में कुछ चला गया था । मैं चेहरा धोने के लिए ही जा रही थी । "

" ठीक है दूध पीकर आराम से सो जाना । " ये बोल गायत्री कमरें से बाहर चली गई । दिशा ने जाकर दरवाजा बंद किया ।

गायत्री अपने कमरे मे आई , तो देखा गिरिराज कुछ फाइलें लेकर सोफे पर बैठा था । गायत्री को आते देख गिरिराज बोला " ऑफिस का सारा खबर तुम रखती हो फिर ई बात हमको काहे नही बताई कि सरकारी टेंडर भरने का लास्ट डेट करीब आ रहा हैं । "

गायत्री ने एक नज़र उन फाइलों की ओर देखा फिर गिरिराज से बोली " हम कल शाम को ये बात बताने वाले थे लेकिन आप हमारी बात सुने ही नही । "

" अच्छा अच्छा ठीक हैं , अब ज्यादा ज़ुबान मत चलाओ । ई रही सारी फाइलें अच्छे से पढ़कर फाइल तैयार कर दो । अमाउंट हमसे बिना पूछे नही भरोगी । कल सवेरे तक सारा काम हो जाना चाहिए । " गिरिराज ने आदेशात्मक लहजे में कहा । गायत्री कुछ नहीं बोली । गिरिराज बेड पर जाकर लेट गया । गायत्री सोफे पर चली आई और फाइले पढने लगी । ये तो रोज का काम था । कमरे के अंदर बैठकर वो नारायण जी के इतने बडे बिजनेस को संभालती थी ये बात गिरिराज और दिशा के अलावा और कोई नही जानता है । घर परिवार संभालने के साथ साथ वो ऑफिस भी संभाल रही थी फिर भी घरवालों के आगे कोई रिस्पेक्ट नही थी ।

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महाशिवरात्रि , पशुपतिनाथ मंदिर ( जनकपुर )




जानकी मैथिली के साथ पशुपतिनाथ मंदिर आई हुई थी । ये बडा ही प्रसिद्ध शिव मंदिर है । चतुर्मुखी लिंग के रूप में शिव की प्रतिमा हैं । दोनों सहेलियां इस वक्त पूजा कर रही थी । महादेव को जल चढाने के बाद दोनों खडी हुई और मन्दिर के प्रांगण से बाहर निकलने लगी । तभी जानकी की नज़र एक लडकी पर पडी जो सीढ़ियां चढ ऊपर की ओर आ रही थी । जनकी ने मैथिली को इशारा किया तो उसने सामने की ओर देखा ।‌। मैथिली मुस्कुराते हुए बोली " संध्या तुम यहां , लेकिन तुम अयोध्या से वापस कब आई ? "

संध्या उन दोनों के पास चली आई । वो पहले जानकी फिर मैथिली के गले लगी । " पूरे छ महीने बाद देख रही हूं तुम दोनों को अभी भी वैसी की वैसी हो । "

" तुझे क्या लगता हैं हम मौसम हैं जो हर छ महीने बाद बदल जाएंगे । " मैथिली ने कहा तो तीनो एक साथ मुस्करा दी ।

" अच्छा मैं पहले पूजा कर लू फिर साथ बैठकर बाते करेंगे । " संध्या ये बोल आगे बढ गई । जानकी और मैथिली वही साइड में खड़ी होकर संध्या का इंतजार करने लगी । कुछ देर बाद संध्या ने अपनी पूजा खत्म की । तीनों मंदिर में ही बने चबूतरे पर आकर बैठ गयी । बीच में बडा सा पेड था जिसमें सफेद रंग के फूल रखे थे । काफी सारे फूल वही चबूतरे पर गिरे पडे थे । जानकी बैठते हुए बोली " अब बताओ तुम जनकपुर वापस कब आई और हमसे घर पर मिलने क्यों नहीं आई ? "

" सब बताती हूं । मैं कल सुबह ही यहां पहुंची । मां ने फ़ोन कर जल्दी आने को कहा था । कहां की पिताजी की तबियत बहुत खराब है । "

" क्या चाचाजी की तबियत खराब हैं लेकिन तुम्हारी मां ने तो हमे कुछ बताया ही नहीं । " मैथिली ने बीच में कहा ।

" अरे यार पहले मेरी पूरी बात तो सुन ले , उसके बाद सवाल करना । पिताजी की कोई तबियत खराब नही थी । दर असल मां का वही पुराना नाटक था । फिर से मेरे लिए उन्होंने कोई लडका ढूंढ लिया । बस उसी से मिलवाना था इसलिए उन्होंने झूठ बोलकर मुझे यहां बुला लिया था । " संध्या की बातें सुनकर मैथिली हंसते हुए बोली " कसम से चाची को ड्रामें का सबसे बडा अवार्ड देना चाहिए । ' जानकी मैथिली की बांह पर मारते हुए बोली " तुम चुप करो । ..... संध्या आगे क्या हुआ ? कब आ रहे हैं लड़के वाले तुम्हें देखने । "

" आए और आकर चले भी गए । कल मैंने जैसे ही मैंने घर में कदम रखा सामने लड़के वालो की मंडली बैठी थी । " संध्या कह ही रही थी कि तभी मैथिली बोली ' क्या बात कर रही हैं मतलब तेरा रिश्ता भी पक्का हो गया । "

" ऐसा कुछ नहीं हुआ ? न अक्ल न शक्ल मूंह खोलकर बैठे थे बारह लाख चाहिए दहेज में । ज्यादा कुछ नही एक मारूति कार दे दीजिए बस । हम ज्यादा नही मांगते बस फाइव स्टार ए सी , टी वी , सोफा सेट फल्लाना ढिककाना ये सब चाहिए । मैने भगा दिया उन सबको । एक तो मां बाप उन्हें जान से प्यारी अपनी बेटी दे , जिसके साथ ये लोग जानवरों जैसा सुलूक करते हैं । उसके बाद उपर से इनके दहेज का कोटा भी पूरा करे । " संध्या ये बोलकर चुप हो गयी ।

मैथिली हंसते हुए बोली " सिर्फ बातों से काम चलाया न , कही ऐसा तो नही झाडु से उन लोगों की पिटाई शूरू कर दी । '

" वो भी कर देती अगर जरूरत पडती तो , लेकिन बातों से ही काम पूरा हो गया । " संध्या के ये कहने पर जानकी और मैथिली दोनों को हंसी आ गई । मैथिली उठते हुए बोली " अच्छा मैं पंडित जी से प्रसाद लेकर आती हु शाम को जरूरत पडेगी । " मैथिली वहां से चली गई ।

संध्या जानकी से बोली " मां ने बताया जानकी तुम्हारी जॉब चली गयी । क्या दूसरी जगह अप्लाई किया ? "

जानकी सामने की ओर देखकर बोली ' कोशिश कर रही हूं । अब देखते हैं कब तक लगेगी । "

संध्या जानकी की ओर देखकर बोली " मेरी नज़र में एक जॉब हैं जानू । जहां मैं करती हूं वही पर हैं । ज्यादा कुछ नही करना बस एक पांच साल की बच्ची को संभालना हैं । तुम पढी लिखी हो और तुमने पीडियाट्रिशन का कोर्स भी किया हुआ हैं । तुम मेरे साथ अयोध्या चलो जानू । "

" कौन सी पर्सनल बातें चल रही हैं ज़रा हमें भी तो बताइए । " ये बोलते हुए मैथिली जानकी के बगल में बैठ गयी ‌‌। संध्या आगे बोली " हां जानू मैं सच कह रही हूं । मैथिली तू ही समझा । मैं जानू से कह रही थी एक केअर टेकर की जॉब हैं जहां मैं जॉब करती हूं वही पर । एक छोटी सी पांच साल की बच्ची हैं उसे संभालना हैं । वो बच्ची हर किसी के पास नही जाती । बहुत ही मुश्किल से एक केअर टेकर मिली थी । उसकी शादी होने वाली थी इसलिए वो चली गई । '

" अभी तुमने कहा उस बच्ची को संभालना आसान काम नहीं हैं फिर मैं ये काम कैसे कर पाऊगी ? " जानकी ने कहा ।

" जानू तुमसे बेहतर ये काम कोई नही कर सकते । तुम कितने अच्छे से बच्चों को संभाल लेती हो क्या हम सबने देखा नही हैं क्या ? " संध्या ने कहा तो जानकी चुप हो गयी । मैथिली कुछ सोचते हुए बोली " तुम्हारा मतलब हैं जानू हम सबको छोड़कर अयोध्या चली जाए । "

" मैथिली ऐसी कोई बात नही है । मेरी बात समझने की कोशिश करो । तुम तो अच्छे से जानती हो जानू को जॉब की कितनी जरूरत हैं । अपने लिए नही मीठी के लिए । वैसे भी इसके चाचा चाची इससे ज़मीन जायदाद छीन चुके हैं । सिवाय घर के सिवा और कुछ नही हैं वरना नाजों से पली लड़की को ज़रूरत के लिए बाहर जॉब नही करनी पडती । ' संध्या की बातों पर जानकी खामोश रही । उसके सामने बीते दिनों के किस्से आ रहे थे । जानकी ने कसकर अपनी आंखें बंद कर ली । संध्या उसके हाथ पर अपना हाथ रखकर बोली " परसो सुबह की ट्रेन से मैं अयोध्या जा रही हूं जानू । तू अच्छे से सोच ले और कल सुबह मुझे अपना फैसला बता देना । "

कुछ देर बात करने के बाद तीनों अपने अपने घर के लिए निकल गयी । जानकी सीधा अपने कमरे में चली आई । उसने दुपट्टा सीने से उतारकर साइड में रखा और आंखें बंद कर बेड पर लेट गयी । बीती बाते जहन में फिर से आने लगी थी ‌‌।

( फ़्लैश बैक , पांच साल पहले )

पूरे घर में मातम पसरा हुआ था । दो लड़कियां एक पार्थिव शरीर के आगे बैठी आंसू बहा रही थी । जानकी की उम्र उस वक्त सत्रह साल थी और उसके बगल में तेरह साल की मीठी बैठी थी । इस वक्त उनके आगे शंकर जी का पार्थिव शरीर था । आस पास कुछ गांव के लोग और आस पडोस के लोग मौजूद थे ।

मैथिली के परिवार वाले इस वक्त उन दोनों को संभाल रहे थे । कुछ देर बाद पार्थिव शरीर को श्मशान घाट ले जाया गया । शंकर जी का कोई बेटा तो था नही इसलिए चिता को जानकी ने अग्नि दी । इस मौके पर भाई को अग्नि देने के लिए ढूंढा गया लेकिन वो गायब थे । सारी विधियां पूर्ण कर वो अपने घर पहुंची । अभी अभी तो पिता की चिता को अग्नि देकर आई थी । जो खास रिश्तेदार आए हुए थे वो अपना सामान बांध जाने लगे । जानकी की समझ से सब परे था । किसे रोके किसे क्या बोले उसे कुछ समझ नही आ रहा था ।

जानकी एक औरत का हाथ पकड अश्रु भरी नजरों से उन्हें देखते हुए बोली " चाची आप तो कुछ दिन के लिए ठहर जाइए । आगे कौन सी विधिया करनी हैं मुझे कुछ नही मालूम । आप चली जाएगी तो कैसे सबको संभालूंगी । "

रमा जी अपना हाथ झटकते हुए बोली " सीख लेती अपने बाप के मरने से पहले। । मां का क्रियाकर्म भी तो किया था , तब क्यों नहीं सीखी थी ये सब चीजे । "

" चाची ये आप कैसी बातें कर रही हैं ? आप जीजी मां से ऐसे बात कैसे कर सकती हैं ? " मीठी ने कहा तो रमा जी जहर उगलते हुए बोली " करमजली तू तो बात मत कर मुझसे । तेरा साया जिस परिवार पर पडा उसका सर्वनाश हो गया । तुझे तो मैं .... " रमा जी ये कहते हुए मीठी के आगे बढ ही रही थी , की तभी जानकी ने रमा को अपने पीछे कर लिया । " बस चाची आप मुझे जो कहेंगी मैं सुन लूंगी लेकिन मीठी के लिए एक बुरा शब्द मैं बर्दाश्त नहीं करूंगी । "

रमा जी छाती पीटते हुए बोली " हाय राम देखो इस बेशर्म लडकी को बडो से जुबान लडाना भी इसने सीख लिया । बेहया अभी से ये सब सीख लिया न जाने आगे क्या क्या गुल खिलाएगी । "

" क्या हुआ रमा क्यों इतना शोर कर रही हो ? " पीछे से किसी की आवाज आई तो रमा बोली" आपकी भतीजी मुझे मजबूर कर रही हैं । पहले ही समझाया था आपको । रिश्ता भाई भाभी तक ही रहेगा । बच्चे अपना रंग दिखा देंगे और देखो महारानी अभी से रंग दिखाने लगी हैं । "

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जानकी के लिए अयोध्या से पैगाम आया हैं ? क्या वो जाएगी ? ये फैसला जानकी का हैं जानने के लिए कल का इंतजार करना पडेगा । देखते हैं जानकी आखिर क्या फैसला लेती हैं ? जानकी के परिवार ने क्या किया है उसके साथ

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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