Prem Ratan Dhan Payo - 16 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 16






" जानती हो संध्या इन खूबसूरत पेंटिंग्स का संबंध रामायण से केसे जुडा है ? "

" कैसे .... ? " संध्या ने पूछा ।

जानकी आगे बताते हुए बोली " जब राम जी सीता जी से विवाह करने के लिए जनकपुर पधारे थे , तो विदेह राज जनक ने मिथिला वासियों से कहा था । पूरे राज्य को हाथों से सजाने के लिए तो बस वही से शुरू हुआ इसका प्रचलन । हर तस्वीर कुछ न कुछ कहती हैं । खासकर औरतो ने इसे आज के समय में और भी ज्यादा प्रचलित कर दिया हैं । "

" ये तो तुमने सही कहा भला औरते किसी से कम हैं क्या ? " संध्या ने कहा और दोनों एकसाथ हंस पडी ।

शाम होते होते वो दोनों अयोध्या रेलवे स्टेशन पहुंच चुकी थी । जानकी ने पहली बार अयोध्या में कदम रखा था । ट्रेन से जैसे ही उसने अपना पहला कदम ज़मीन पर रखा पूरे शरीर में एक सनसनी सी दौड़ गई । उसने वापस से कदम पीछे ले लिए ।

" क्या हुआ जानु नीचे उतरो क्या सोच रही हो ? " संध्या ने उसे नीचे से आवाज लगाई । जानकी मन में बोली " लंबे समय से बैठी हुई थी शायद इसीलिए मुझे बिजली के झटके जैसा अनुभव हुआ । " जानकी ने संभालकर अपने कदम वापस नीचे रखे । दोनों स्टेशन से बाहर चली आई और ऑटो पकड़कर वहां से निकल गयी । गाडी अयोध्या की सडको पर दौड रही थी ।

" संध्या हम कहा रूकने वाले हैं ? " जानकी ने पूछा तो संध्या बोली " वही जहां मैं रहती हूं ।‌ देख जहां मैं काम करती हू उस हवेली के पीछे गार्डन हैं और उसी के एक हिस्से में सर्वेंट क्वार्टर बना हुआ हैं । तू वही मेरे साथ रहेगी । " संध्या की बातें सुनकर जानकी ने हां में अपना सिर हिला दिया । कुछ दूर चलने के बाद जानकी को राम मंदिर नज़र आया । जहां भवन निर्माण कार्य प्रारंभ था । जानकी संध्या से बोली " बहुत सुना हैं हमने इस मंदिर के बारे में संध्या । हमे देखना हैं । "

" अभी इस वक्त , जानकी रात होने वाली हैं । हम कल सवेरे चलेंगे । " संध्या ने कहा । जानकी की नजरें उस मंदिर को ही देखती रही जब तक वो उसकी आंखों से ओझल नही हो गया । घर पहुंचते पहुंचते रात हो चुकी थी । दोनों ही हवेली के पिछले वाले हिस्से से गार्डन में दाखिल हुई । अंधेरा होने की वजह से जानकी सब कुछ नही देख पा रही थी, लेकिन इस अंधेरे में भी उसे ये बात समझ आ रही थी की उसने विशाल भवन में प्रवेश किया हैं । संध्या उसे अपने रूम में ले आई । रूम ज्यादा बडा नही था, लेकिन इतना बडा था जिसमें जरूरत की सारी चीजें मौजूद थी । संध्या ने बैग साइड में रखा और जानकी से बोली " जानकी इस तरफ बालकनी हैं और इस साइड वाशरूम । तुम जाकर फ्रेश हो जाओ तब तक मैं कुछ खाने को बना देती हूं । "

" तुम रहने दो मैं बना देती हूं , तब तक तुम फ्रेश हो जाओ । " जानकी ने कहा ।

" बिल्कुल नही यहां आते ही काम शुरू कर दिया । मैथिली को पता चला न तो वो मेरे बाल नोचकर मुझे टकला कर देगी । न बाबा न ..... संध्या अपने बालों को छूते हुए बोली " एक तो मेरे पास ज्यादा बाल नही हैं और जितने हैं मुझे उनसे बहुत प्यार हैं ? "

जानकी मुस्कुराते हुए अपने बैग से सामान निकालने लगी । संध्या किचन में चली गई । जानकी अपने कपड़े लेकर वाशरूम में चेंज करने चली गई ।

कुछ देर बाद वो चेंज कर बाहर आई तो देखा उसका फ़ोन बज रहा था । जानकी फ़ोन रिसीव करते हुए बालकनी में चली आई । फ़ोन के दूसरी तरफ से मैथिली ने पूछा " तुम दोनों अच्छे से पहुंच गये न । सफर ज्यादा थकान भरा तो नही था न ? अभी तूं क्या कर रही हैं तूने कुछ खाया की नही और तूं कुछ बोल क्यों नही रही ? "

" बस मैथिली तुम मुझे बोलने दोगी तब तो मैं कुछ बोली " मैं और संध्या अच्छे से पहुंच गए । संध्या इस वक्त किचन में खाना बना रही हैं और तुझसे बात कर रही हूं । "

मैथिली एक गहरी सांस लेकर बोली " अब तेरी आवाज़ सुन ली तो मन को एक राहत सी मिली हैं । "

" वहां सब कैसे हैं मैथिली काकी मेरे जाने के बाद भी रो रही थी क्या ? "

" अरे यार तुझे तो पता हैं न मां को आंसुओं से कितना प्यार हैं ? बिन बुलाए ही आ जाते हैं । संध्या की मां और जीजी ने मिलकर उन्हें चुप कराया । " मैथिली ने कहा ।

जानकी हल्की मुस्कुराहट के साथ बोली " बेटियों के लिए मां का प्यार अनूठा होता हैं । ये आंसू तो बस उन्हें बताने का एक जरिया है । " कुछ देर यूं ही बात करने के बाद जानकी ने फ़ोन काट दिया । वो जैसे ही जाने के लिए पलटी उसके कदम रूक गए । उसने पलटकर आमने की ओर देखा । दूर से ही उसे एक खिडकी नज़र आ रही थी जिसके आगे सफेद पर्दा लगा हुआ था । अंदर रोशनी थी इसलिए पर्दे के पास खडे इंसान की परछाई उसे नजर आ रही थी । वो शख्श शायद किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था । जिस तरिका से वो कदम ताल ले रहा था और अपने हाथों से हरकते कर रहा था । उससे मालूम पड रहा था वो काफी गुस्से में किसी से बात कर रहा था ।

" जानू खाना रेडी है । " अंदर से संध्या कि आवाज आई तो जानकी ने उस खिडकी से अपनी नजरें हटाई । वो कमरे के अंदर चली गई । उसके जाते ही सामने की खिड़की से पर्दा हटा और वो शख्श कोई और नही बल्कि राघव था । राघव इस वक्त कान पर फ़ोन लगाए अपना दूसरा हाथ खिडकी पर रखकर खडा था । उसने जोर से अपना हाथ खिडकी पर मारते हुए कहा" मुझे बहाने मत दो । तुम क्या करोगे मैं नही जानता । मुझे कल तक वो आदमी मिल जाना चाहिए अदरवाइज तुम इस दुनिया में नज़र नही आओगे । " इतना कहकर राघव ने गुस्से से फोन काट दिया और कुछ पल वही खिड़की के पास ठहरने के बाद सोने के लिए बेड की ओर बढ गया ।

उधर दूसरी तरफ संध्या और जानकी खाना खा चुकी थी । बिस्तर के एक तरफ संध्या लेटी हुई थी तो वही दूसरी तरफ जानकी पीछे की ओर बेड से पीठ टिकाकर बैठी हुई थी । जानकी संध्या की ओर देखकर बोली " आगे क्या होगा संध्या ? "

संध्या शायद आधी नींद में थी । उसने बिना उसकी ओर देखे कहा " कल सबसे पहले राम मंदिर चलेंगे । फिर मैं हवेली जाकर भाभी से तेरे बारे में बात करूगी उसके बाद तुझे उनसे मिलवाऊगी । "

" अगर उन्होने मुझे काम पर नही रखा तो ..... जानकी के ये पूछने पर संध्या ने अपनी आंखें खोल ली । " तू कब से इतनी नेगिटिव हो गयी जानू । वो तुझे रख लेंगे ये भी तो सोच सकती हैं । मैं भाभी को बहुत अच्छे से जानती हूं । वो एक भली औरत हैं अगर इस काम के लिए न सही तो किसी और काम के लिए तुझे ज़रूर रख लेंगी । अब तूं प्लीज ये सब सोचना बंद कर और सो जा । मैं बहुत थक गयी हूं औय मुझे नींद भी आ रही हैं । मैं चली सोने गुड नाईट ... " ये बोल संधया सोने चली गयी । जानकी को नींद नहीं आ रही थी । अभी भी जहन में काफी सारे सवाल थे जिसके जवाब वो खुद से तलाशने की कोशिश कर रही थी ।

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सुबह का वक्त , रघुवंशी मैंशन




जानकी को रोज सवेरे जागने की आदत थी । वो उठकर बालकनी में चली आई । सूर्योदय भी हो चुका था । उसने हाथ जोड़कर सूर्य देवता को नमस्कार किया । जानकी आस पास का नजारा देखने लगी जो रात के अंधेरे में उसे ठीक से नजर नही आ रहा था । ये हवेली का पिछला हिस्सा था । ऊची ऊची दीवारें देखकर अब साफ़ पता चल रहा था वो कोई महल हैं । नीचे बडा सा गार्डन किसी मैदान की तरह लग रहा था । पूरी तरह फूलों से सजा हुआ था । ऐसा कोई कोना नही था गार्डन का जहां फूल न लगे हों । कनेर और अरहुल के फूल भी लगे थे जिनके पेड काफी घने थे । गुलाब और गेंदे के पौधे भी फूलों से भरे हुए थे । सुबह पक्षियों की मधुर आवाज़ सुनकर जानकी के होंठों पर मुस्कुराहट तैर गई । वो कमरे में चली आई और अपने कपड़े लेकर नहाने चली गई । कुछ देर बाद जानकी जब वापस आई तो देखा संध्या अभी भी सो रही थी । सफर की थकान अभी तक उतरी नही थी । जानकी ने उसे जगाना उचित नही समझा । इस वक्त जानकी ने हल्के गुलाबी रंग का फ्राकसूट पहना था और सफ़ेद दुपट्टा कंधे के एक ओर टिका रखा था । बाल गीले थे जिसे उसने टॉवल में लपेट रखा था ।

जानकी नीचे गार्डन में चली आई । पूजा के लिए फूल जो तोड़ने थे । इधर गार्डन के दूसरे हिस्से में झूले पर राघव लेटा हुआ था । रात को कमरे में नींद नही आई तो गार्डन में टहलने चला आया । झूले पर बैठते ही कब नींद आई उसे पता ही नही चला । उस झूलें पर वो जिस पोजिशन में सोया था उससे साफ पता चल रहा था की वो अनकन्फ़र्ट था । ...........

‌भोर भए मिट गए अंधियारा

निस दिन होवे जग उजियारा


( राघव के कानो जैसे ही किसी के गाने की आवाज गूजी उसकी नींद टूट गयी । वो सोफे से उठकर बैठ गया और आस पास नजरें दौड़ाकर गाते हुए शख्श को तलाशने लगा । राघव आवाज की दिशा में जाने लगा । )

काम क्रोध मग लोभ हरो प्रभू

सदगुण नेक बने जग सारा

न केहू मन हो व्याकुल विहवन

होवे अटल विश्वास हमारा


( इधर जानकी अपने आप में हूं गुनगुनाते हुए फूलों को तोड रही थी । वही दूसरी ओर राघव उसे तलाश रहा था ।‌‌ जानकी जाने के लिए मुड़ी तो गुलाब के पौधे में उसका दुपट्टा अटक गया । उसने उसे निकालने की कोशिश की तो वो जल्दी निकल गया ‌‌। जानकी वहां से चली गई ।‌‌ राघव को दूर से अरहुल का पेड हिलता हुआ नज़र आया । राघव उस ओर भागा । वो जब पेड के पास पहुंचा तो देखा दो बिल्लिया आपस में झगड रही थी । राघव ने उनसे ध्यान हटाया और आवाज की दिशा में गर्दन हिलाई । )

तुम जानत सब अंतरयामी

दीन बंधू करुणामय स्वामी

है इश्वर है दया के सागर

जन जन के तू कष्ट निवारा......


( जानकी सर्वेंट क्वार्टर के अंदर जा चुकी थी । राघव भी उससे थोडी दूरी पर आकर रूक गया क्योंकि अब गाने की आवाज उस तक नही पहुंच रही थी । राघव खुद से बोला " ये किसी लडकी की आवाज थी , लेकिन आज से पहले ये आवाज़ कभी नही सुनी । " कुछ देर यही सब सोचते रहने के बाद राघव वहां से चला गया ।

वही दूसरी तरफ जानकी पूजा करके उठी और संध्या को जगाने के लिए उसके पास चली आई । " संध्या .... अब उठो भी , सूर्य देवता नाराज़ हैं जाएगे । "

संध्या अपनी आंखें खोल उसे देखते हुए बोली " तेरा भजन कीर्तन सुनकर मेरी नींद पहले ही खुल गई थी मेरी जान , वैसे भी सूर्य देवता संध्या से हमेशा नाराज़ सी रहते हैं क्योंकि उसके आने के बाद उन्हें जाना जो पडता है । " उसकी बातों पर जानकी को हंसी आ गई । वो उठते हुए बोली " जाओ जाकर तैयार हो जाओ आज तुम मुझे मंदिर लेकर चलोगी । "

" हां भयी मुझे अच्छे से याद हैं । बस दस मिनट दो अभी रेडी होकर आती हूं । " ये बोल संध्या वाशरूम में चली गई ।

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राघव और जानकी की मुलाकात आज नही हो पाई लेकिन निराश मत होईए अब उसमें ज्यादा वक्त नही है । बहुत जल्द उनका आमना सामना होगा । वैसे जानकी का डर उचित है । क्या उसे यहां काम मिल पाएगा ? क्या ये नौकरी सच में उसे नसीब होगी? कितना आसान होगा उसके लिए आगे का सफर जानने के लिए बने रहिए मेरे साथ और पढते रहिए मेरी नोवल

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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