शिष्य : उपनिषद क्या है ?
गुरु : उपनिषद्: वेदों से उपनिषदों की उत्पति हुई, व हर एक उपनिषद किसी न किसी वेद से जुड़ा हुआ है. वेदों के अंतिम भाग को 'वेदांत' कहते हैं, और इन्ही वेदांतों को ही "उपनिषद" के नाम से पुकारा गया हैं. उपनिषद का शाब्दिक अर्थ होता है- किसी के पास बैठना.
वेदों का सार है, उपनिषद और उपनिषदों का सार 'गीता' को माना गया है. इस क्रम से वेद, उपनिषद और गीता, इन तीनों को ही धर्मग्रंथ माना गया हैं. उपनिषद गुरु-शिष्य संवाद की शैली में संकलित किये गये थे, ओर इन्हें गद्य व् पद्य शेली में लिखा गया. आप जानते है, प्राचीन भारत में ऋषी मुनि लोग सुविधाओं से रहित जीवन व्यतीत करते थे. और जंगलों में आश्रम बना कर रहते थे, इन्ही आश्रमों को गुरुकुल भी कहा जाता था, गुरुकुल यानी गुरु का कुल, गुरु का परिवार, शिक्षा प्राप्त करने के लिए, राजा महाराजाओं की संतानों को भी यही आना पड़ता था. उपनिषदों की रचना इन्ही गुरुकुलों में हुई, इसलिए इन्हें आरण्यक ग्रन्थ कहा गया है, अरण्य का अर्थ होता है, वन यानी जंगल. ये भारतीय आध्यात्मिक चिंतन के मूल आधार हैं
गुरुकुलों या गुरुओं के आश्रमों में आत्मा, परमात्मा, समाज और सृष्टि आदि के गुढ रहस्यों और अनबुझ पहेलियों के बारें में शिष्य प्रश्न पुछता था, और गुरु उसका गुरु देता था. उपनिषद शिष्यों की जिज्ञासाओं के ऋषियों द्वारा दिये बताये गये समाधान हैं, अज्ञात की खोज के प्रयास हैं. उपनिषद बहुत ही दुर्लभ, अद्वितीय और रहस्यों से भरे हैं. इसमें आत्मा, परमात्मा, विद्या, अविद्या, समाज के संबंध में बहुत ही दार्शनिक और वैज्ञानिक वर्णन मिलता है. उपनिषद सबसे ज्यादा व्यवहारिक ग्रन्थ है. यह सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों की हजारों वर्षों की खोज का परिणाम है.
गुरुकुल में गुरु शिष्य को विद्या प्रदान करता था. विद्या का अर्थ है, किसी भी बात को जानने, या निष्कर्ष तक पहुँचने की विधि, और अविद्या का अर्थ है, ऐसी विधि जो विधी तो मालूम पड़ती है, पर जिसके उपयोग से कहीं भी नहीं पहुंचा जा सकता. विद्या एक प्रकार की चाबी है, जिससे अज्ञान नाम का ताला खुलता है. यही ज्ञान की चाबी गुरु शिष्य को देता है.
परन्तु आजकल ज्यादातर धर्म गुरु पाखंडी, ढोंगी, और धूर्त है, ये बीमार मानसिकता वाले गुरु, विद्या की चाबी बेचते हैं, यानी नकली चाबी देते है, जो दिखाई तो चाबी देती है, पर इनसे कोई ताला खुलता नहीं है. झूठी, नकली चाबी बेचने के लिए स्व घोषित धर्मगुरु, संत महात्मा बाज़ार में दूकान सजाये बेठें हैं. असली चाबी के लिए तो आपको प्रयत्न करना पड़ता है, साधना करनी पड़ती है. परन्तु नकली चाबी, इन तथाकथित मोह माया से दूर गुरुओं को अपनी माया का थोड़ा सा भाग अर्पण करने से, आराम से मिल जाती है. इस नकली चाबी से धर्म के ठेकेदारों का अहंकार भी संतुष्ट हो जाता है, कि देखो हम तो बड़े धार्मिक, आस्तिक, धर्म के रखवाले हैं, ओर तुम लोग तुच्छ प्राणी हो. इस तरह गुरु भी प्रसन्न है, और चेला भी, और यह व्यापार सदियों से बड़े मजे में चल रहा है. गुरु बनाना भी स्टेटस सिंबल बन गया है.
तो इन तथाकथित गुरुओ के कारण वेद ज्ञान, किस्सा कहानी मात्र लगते हैं, जिनका अध्ययन या तो मनोरंजन या समय बर्बादी माना जाने लगा है. ऐसा इसलिए है, कि हम वेद, उपनिषद की चर्चा ही करते हैं, जीवन में उतारते नहीं. अब अगर कोई जीवन में उतारना चाहे तो क्या करे?. वेद ऋषी उपाय बतलाते है की, इन्हें जानने के लिए, इन्हें जीना पडेगा, इसे जीना ही इनको जानने की विधि है, अन्य कोई उपाय नहीं है. पानी से बाहर रहकर तैरना सीखना, बस चर्चा ही है, इसे सीखने के लिए, तो पानी में उतरना ही पड़ेगा, चाहे यह कितना भी जोखिम भरा क्यों ना हो, यही वेदों पर लागू होता है, इन्हें जानने के लिए गहराई में उतरना ही होगा, स्वंय को बदलना ही होगा.
परुन्तु कुछ ज्ञान बिना बदले भी अर्जित किए जा सकते हैं, आप विज्ञानिक होना चाहते हैं, इंजीनियर होना चाहते हैं, गणितज्ञ होना चाहते हैं, हो सकते हैं, आप इनको सीख सकते हैं, आप वैसे ही रहेंगे, बदलने की कोई जरुरत नहीं, और आप विज्ञानिक, इंजीनियर, गणितज्ञ बन सकते हैं. इन साधारण उपलब्धियों को पाने के लिए भी कठिन परिश्रम करना पड़ता है, तो उस विराट को पाने के लिए, क्या कुछ नहीं करना पडेगा. ऋषी कहता है, उपनिषद को समझने के लिए, जानने के लिए, पहले खुद को बदलना होगा, तैयारी करनी होगी, तभी जान पाओगे. यह सब इतना आसान नहीं है. इसलिए तो हम वर्षों से बस चर्चा ही करते आ रहे हैं, चर्चा ही करते रहेंगे.
उपनिषदों की संख्या 1180 मानी गई है, लेकिन वर्तमान में 108 उपनिषद ही उपलब्ध हैं, और उनमे भी मुख्य उपनिषद 13 माने गये हैं. उपनिषदों की संख्या 1180 होने के कारण झंझट हो गया था, अब इतने उपनिषदों का अध्ययन कोन करे, तो वेद ऋषियों ने इसका भी हल निकाला व इन सभी उपनिषदों के सार को एक उपनिषद में संकलित कर दिया, जिसे सर्वसार उपनिषद कहा गया है.
शिष्य: सर्वसार उपनिषद क्या है ?
आगे कल, भाग … 14