Me Papan aesi jali - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

मैं पापन ऐसी जली--भाग(२)

सरगम ने जब सुना कि दीपा अब इस दुनिया में नहीं रही तो उसे उस बात का बहुत दुःख हुआ,वो कुछ दिनों तक केवल दीपा के बारें में सोचती रही और एक दिन अपनी माँ सुभागी से बोली....
माँ!दीपा को अगर उसके ससुराल ना भेजा जाता तो शायद आज वो जिन्दा होती,है ना!
तब उसकी माँ सुभागी बोली.....
बिटिया!ये जग ऐसा ही है,एक बार बेटी के हाथ में मेंहदी रच जातीं है ना तो वो अपने माँ बाप के लिए बिल्कुल पराई हो जाती है....
तुम भी मेरे साथ ऐसा ही करोगी,सरगम ने पूछा...
ना...बिटिया!हम तो उस दिन दीपा के ही पक्ष में बोले थे और तुम्हारे बाऊजी ने भी तो दीपा के बाऊजी से कहा था कि अभी दीपा को ससुराल मत भेजिए,लेकिन उन्होंने उल्टे तुम्हारे बाऊजी को ही खरी खोटी सुना दी,अब बताओ भला ऐसा कहीं होता है कि बिटिया कष्ट में हो और उसे फिर से ससुराल भेज दो,सुभागी बोली...
तुम मुझे कभी पराया तो ना करोगी,सरगम बोली...
ना...तुम तो मेरी सोनचिरैया हो,सुभागी बोली...
और उस दिन के बाद सरगम अपने माँ बाऊजी की तरफ से बिल्कुल निश्चित हो गई और उसने अपना मन अच्छी तरह से पढ़ाई में लगा लिया और उसने बहुत ही अच्छे अंकों के साथ दसवीं पास कर ली,अपने स्कूल में दसवीं में उसके सभी लड़कियों से ज्यादा अच्छे अंक आएं,उसकी अध्यापिकाओं ने भी उसकी बहुत तारीफ़ की,सरगम के बाऊजी को अपने बेटी पर फक्र महसूस हुआ और वें उसकी तरक्की से गदगद हो गए....
अब जब सरगम ने दसवीं पास कर ली तो सरगम के बाऊजी ने चाहा कि उनकी बिटिया डाक्टर बनें इसलिए वो चाहते थे कि सरगम ग्यहरवीं में मैथ ना लेकर बाँयलाँजी ले और सरगम ने अपने बाऊजी की बात मान ली ,उसे लगा कि उसके बाऊजी ने जो भी उसके बारें में सोचा होगा,वो ठीक ही सोचा होगा,इसलिए अब वो आगें की पढ़ाई बड़ा ही ध्यान देकर करने लगी...
समय बीता और उसने ग्याहरवीं भी पास कर ली और बाहरवीं में पहुँच गई,लेकिन इसी बीच उसके बाऊजी की तबियत बिगड़ी,डाँक्टरी इलाज के बाद पता चला कि उनके लीवर में अल्सर हो गया है,सरगम के बाऊजी अब स्कूल जाने में असमर्थ थे और घर पर भी बच्चों को संगीत का ट्यूशन नहीं दे पा रहें थे,घर में रूपयों की तंगी होने लगी तो सरगम ने पाँचवीं छठवीं कक्षा के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया....
और सुभागी ने अपनी सिलाई का काम फिर से शुरू कर दिया जो वो सालों पहले किया करती थी,तीन तीन बच्चों की परवरिश और पति का इलाज करवाने के लिए भी तो रूपयों की जरूरत थी,लेकिन उन रूपयों से गुजारा नहीं हो सकता था,इसलिए एक एक करके सुभागी के गहने बिकते रहे लेकिन त्रिपाठी जी की हालत में सुधार नहीं हो पाया और अल्सर ने कैंसर का रूप ले लिया,अपने बाऊजी की बिमारी और परिवार की जिम्मेदारियों के बावजूद भी सरगम ने अच्छे अंकों से बाहरवीं भी पास कर ली,अब उसे मेडिकल इग्जाम की पढ़ाई की तैयारी करनी थी,जिसके लिए उसे किताबों की जरूरत थी,लेकिन वो पैसों की कमी के कारण उन्हें नहीं खरीद सकती थी...
और फिर उसके बाऊजी की हालत बेहतर होने के वजाय और बिगड़ती चली गई लेकिन त्रिपाठी जी की मदद के लिए उनका कोई भी रिश्तेदार सामने नहीं आया,क्योंकि त्रिपाठी जी ने सुभागी से प्रेमविवाह किया था और सुभागी ब्राह्मण परिवार से नहीं वैश्य परिवार से थी, जो कि त्रिपाठी जी के परिवार को मंजूर नहीं था,इसलिए त्रिपाठी जी अपने परिवार को त्यागकर इस कस्बें में चले आएं थे,अब त्रिपाठी जी ने अपने और अपने परिवार की मदद के लिए अपने पुराने मित्र सदानन्द मिश्रा जी को बुलवाया ,जो कि दिल्ली में रहते थे,सदानन्द बड़े ही भले और दयालु प्रवृत्ति के थे अपने मित्र की एक ही पुकार पर वें दौड़े चले आएं और अपने मित्र का हालचाल पूछा....
तब त्रिपाठी जी ने उनसे कहा कि.....
आप मेरी हालत तो देख ही रहे हैं,मुझे लगता है अब मैं इस दुनिया में ज्यादा दिनों का मेहमान नहीं रह गया हूँ,मैं तो ये सोच रहा हूँ कि मेरे जाने के बाद मेरे परिवार का क्या होगा?
तब सदानन्द जी ने त्रिपाठी जी से कहा.....
मित्र!आप परेशान ना हो!आपकी सेहद में जल्द ही सुधार हो जाएगा...
तब त्रिपाठी जी बोलें....
आपका ये झूठा दिलासा मेरी सेहद ठीक नहीं कर सकता,मुझे ये अच्छी तरह से मालूम है कि मेरा अब अन्त समय चल रहा है...
मित्र ऐसा ना कहें,इतनी निराशा अच्छी नहीं,सदानन्द जी बोलें...
मुझे अपनी चिन्ता नहीं,मेरे बाद मेरे परिवार का क्या होगा?बस यही सोच सोचकर मेरा दिल बैठा जा रहा है,त्रिपाठी जी बोले...
आप नाहक ही परेशान होते हैं,मैं हूँ ना!सदानन्द मिश्र जी बोलें....
बस,मैं ऐसा ही दिलासा चाहता था,त्रिपाठी जी बोलें....
मित्र!चिन्ता ना करें,सरगम भी मेरी बेटी भानुप्रिया की तरह ही है,अब से उसकी पढ़ाई का खर्च मैं उठाऊँगा,मैं कोशिश करूँगा कि वो इस काबिल बन जाए कि भविष्य में अपनी माँ और भाइयों का सहारा बन सकें,सदानन्द मिश्र जी बोलें...
मुझे आपसे यही आशा थी,वादा कीजिए कि मेरे बाद मेरा परिवार दर-दर की ठोकरें नहीं खाएगा,त्रिपाठी जी बोलें....
जी!मैं आपसे वादा करता हूँ,सदानन्द मिश्र जी बोलें...
और फिर सदानन्द जी से ऐसा ही वादा लेकर आखिर एक दिन त्रिपाठी जी इस दुनिया से विदा हो गए और पीछे छोड़ गए अपना रोता बिलखता परिवार,त्रिपाठी जी के जाने के बाद सदानन्द जी ने पूरी तरह से त्रिपाठी के परिवार की जिम्मेदारी अपने काँधों पर ले लीं,वैसें भी सदानन्द जी बहुत ही अमीर थे,उनका दिल्ली में बँगला था और काफी फैक्ट्रियाँ थीं,जो उन्हें विरासत में मिली थी,सदानन्द जी के परिवार में उनका बेटा आदेश, उनकी बेटी भानुप्रिया और उनकी पत्नी शीतला थे.....
काँलेज के जमाने से ही कुलभूषण त्रिपाठी और सदानन्द मिश्र जी दोनों दोस्त थे,दोनों के विचार मिलते थे इसलिए अच्छी दोस्ती हो गई,ऊपर से सदानन्द जी त्रिपाठी जी की गायकी के कायल थे,त्रिपाठी जी कुछ गरीब परिवार से थे इसलिए सदानन्द जी रूपयों से भी उनकी मदद कर दिया करते थे,काँलेज के दिन बीते ,फिर दोनों का ब्याह हो गया और दोनों अपनी अपनी गृहस्थी में रम गए,दोनों में ख़तों के जरिए कभीकभार बात भी हो जाती थी,लेकिन जिम्मेदारियों के बढ़ने के साथ साथ ये सिलसिला भी टूट गया,अब जब त्रिपाठी जी को कोई सहारा नज़र नहीं आया तो उन्हें सदानन्द बाबू की याद आई और सदानन्द बाबू भी पीछे नहीं हटे,अपने दोस्त की एक पुकार पर वें दौड़े चले आएं....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....