Hanuman Prasad Poddar ji - 38 in Hindi Biography by Shrishti Kelkar books and stories PDF | हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 38

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हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 38

नोआखाली काण्ड से पीड़ित हिन्दुओं की सहायता

सं० 2003 (सन् 1946) में भारत-स्वतंत्रता प्राप्तिके समय देशमें एक हृदय-विदारक दृश्य उपस्थित हो गया। हजारों-हजारों व्यक्ति काल के मुँहमें चले गये, असंख्य लोगों का घरबार सभी कुछ चला गया, बहू-बेटियों पर हृदय-विदारक अत्याचार हुए। उस समय के दृश्य की आज भी स्मृति आनेपर रोंगटे खड़े जाते हैं। भाईजी जैसे संवेदनशील व्यक्ति के लिये निरपराध जनतापर ऐसे अमानुषिक अत्याचार देखकर चुप रहना संभव ही नहीं था। पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान से भागकर आये हुए लोगों की करुण-कथाएँ सुनकर भाईजी के नेत्रों से अश्रु-धारा बहने लगती थी। भाईजी हर संभव प्रयास करनेमें लग गये। नोआखाली इन अत्याचारों का एक मुख्य स्थान था। महामना मालवीय जी उन दिनों रोगग्रस्त थे एवं इन अत्याचारों की गाथायें सुनकर उनके हृदय को बड़ा धक्का लगा और उनका देहान्त हो गया। उनकी स्मृतिमें भाईजीने 'कल्याण' का एक श्रद्धांजलि अंक निकाला जिसमें हिन्दू-धर्म की रक्षा के लिये अनेक योजनायें प्रस्तुत की गयीं। बादमें उस अंक को सरकार ने जब्त कर लिया। पर भाई जी ऐसे अवसरों पर हमेशा ही निर्भीक रहे।

भाईजी ने गीताप्रेस से सहायता के लिये एक स्वयं सेवक दल नोआखाली भेजा। जिनमें मुख्य थे – श्रीगिरधारी बाबा, श्रीकृष्णदासजी बंगाली एवं श्रीकृष्णचन्द्र जी अग्रवाल। इन्हीं दिनों गोरखपुर के एक बंगाली रेलवे कर्मचारी का परिवार नोआखालीमें रहता था। परिवार को विपत्तिग्रस्त समझकर वह दौड़कर भाईजी के पास आया और बिलख पड़ा। भाईजी का हृदय द्रवित हो गया और तत्काल श्रीगिरधारी बाबा को बुलाकर स्थितिसे अवगत कराया। भाईजी के अशीर्वाद से श्रीगिरधारी बाबा उस परिवार को भीषण विपदा से निकालनेमें सफल हुए और परिवार को सुरक्षित रूपसे गोरखपुर भेज दिया। नोआखाली जाते समय गिरधारी बाबा हिन्दू विश्वविद्यालय, काशीमें महामना श्रीमदनमोहन मालवीयजी से मिले। वे रोग-शय्यापर पड़े थे। कमरेके बाहर जो सज्जन बैठे थे उन्होंने पूछा–कहाँसे आये हैं ? श्रीगिरधारी बाबाने कहा– गोरखपुरसे भाईजी श्रीहनुमानप्रसाद जी भाईजी के पास से। वे सज्जन तुरन्त अन्दर गये और मालवीयजी से कहा– 'एक सज्जन भाईजी के पाससे आये हैं और आपके दर्शन करना चाहते हैं।' तुरन्त आज्ञा हुई 'उन्हें बुला लीजिए।'

श्रीगिरधारी बाबाने प्रणाम किया तो महामनाने पूछा– भाईजी ठीक है न ? कैसे आये हो ? उत्तर दिया– नोआखाली जा रहा हूँ। भाईजी ने लोगों के सहायतार्थ वहाँ एक स्थानपर कैम्प खुलवा दिया है। वे बोले– 'भाईजी तो हिन्दू धर्मके प्राण हैं। वे ऐसे पुण्यात्मा हैं, जिससे हमको बहुत बल मिलता है।' गिरधारी बाबाने अनुभव किया कि मालवीयजी के हृदयमें भाईजी के लिये कितना ऊँचा स्थान है। उनसे आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा पर चले गये। इस तरह के सहायता कार्य भाईजी जब भी अवसर आता, करते ही रहते थे।

नोआखाली काण्ड से पीड़ित हिन्दुओं की सहायता

सं० 2003 (सन् 1946) में भारत-स्वतंत्रता प्राप्तिके समय देशमें एक हृदय-विदारक दृश्य उपस्थित हो गया। हजारों-हजारों व्यक्ति काल के मुँहमें चले गये, असंख्य लोगों का घरबार सभी कुछ चला गया, बहू-बेटियों पर हृदय-विदारक अत्याचार हुए। उस समय के दृश्य की आज भी स्मृति आनेपर रोंगटे खड़े जाते हैं। भाईजी जैसे संवेदनशील व्यक्ति के लिये निरपराध जनतापर ऐसे अमानुषिक अत्याचार देखकर चुप रहना संभव ही नहीं था। पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान से भागकर आये हुए लोगों की करुण-कथाएँ सुनकर भाईजी के नेत्रों से अश्रु-धारा बहने लगती थी। भाईजी हर संभव प्रयास करनेमें लग गये। नोआखाली इन अत्याचारों का एक मुख्य स्थान था। महामना मालवीय जी उन दिनों रोगग्रस्त थे एवं इन अत्याचारों की गाथायें सुनकर उनके हृदय को बड़ा धक्का लगा और उनका देहान्त हो गया। उनकी स्मृतिमें भाईजीने 'कल्याण' का एक श्रद्धांजलि अंक निकाला जिसमें हिन्दू-धर्म की रक्षा के लिये अनेक योजनायें प्रस्तुत की गयीं। बादमें उस अंक को सरकार ने जब्त कर लिया। पर भाई जी ऐसे अवसरों पर हमेशा ही निर्भीक रहे।

भाईजी ने गीताप्रेस से सहायता के लिये एक स्वयं सेवक दल नोआखाली भेजा। जिनमें मुख्य थे – श्रीगिरधारी बाबा, श्रीकृष्णदासजी बंगाली एवं श्रीकृष्णचन्द्र जी अग्रवाल। इन्हीं दिनों गोरखपुर के एक बंगाली रेलवे कर्मचारी का परिवार नोआखालीमें रहता था। परिवार को विपत्तिग्रस्त समझकर वह दौड़कर भाईजी के पास आया और बिलख पड़ा। भाईजी का हृदय द्रवित हो गया और तत्काल श्रीगिरधारी बाबा को बुलाकर स्थितिसे अवगत कराया। भाईजी के अशीर्वाद से श्रीगिरधारी बाबा उस परिवार को भीषण विपदा से निकालनेमें सफल हुए और परिवार को सुरक्षित रूपसे गोरखपुर भेज दिया। नोआखाली जाते समय गिरधारी बाबा हिन्दू विश्वविद्यालय, काशीमें महामना श्रीमदनमोहन मालवीयजी से मिले। वे रोग-शय्यापर पड़े थे। कमरेके बाहर जो सज्जन बैठे थे उन्होंने पूछा–कहाँसे आये हैं ? श्रीगिरधारी बाबाने कहा– गोरखपुरसे भाईजी श्रीहनुमानप्रसाद जी भाईजी के पास से। वे सज्जन तुरन्त अन्दर गये और मालवीयजी से कहा– 'एक सज्जन भाईजी के पाससे आये हैं और आपके दर्शन करना चाहते हैं।' तुरन्त आज्ञा हुई 'उन्हें बुला लीजिए।'

श्रीगिरधारी बाबाने प्रणाम किया तो महामनाने पूछा– भाईजी ठीक है न ? कैसे आये हो ? उत्तर दिया– नोआखाली जा रहा हूँ। भाईजी ने लोगों के सहायतार्थ वहाँ एक स्थानपर कैम्प खुलवा दिया है। वे बोले– 'भाईजी तो हिन्दू धर्मके प्राण हैं। वे ऐसे पुण्यात्मा हैं, जिससे हमको बहुत बल मिलता है।' गिरधारी बाबाने अनुभव किया कि मालवीयजी के हृदयमें भाईजी के लिये कितना ऊँचा स्थान है। उनसे आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा पर चले गये। इस तरह के सहायता कार्य भाईजी जब भी अवसर आता, करते ही रहते थे।