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श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार (श्रीभाईजी) - Novels
by Shrishti Kelkar
in
Hindi Biography
दिव्य जीवन की एक झलक
हमारा सौभाग्य है कि हमारी वसुन्धरा कभी संतों से विरहित नहीं रही। संतों की चेष्टायें साधन काल में भी एवं सिद्धावस्था में भी विभिन्न प्रकार की होती हैं पर होती है समस्त जगत् के कल्याण के लिये। हम अपनी रज-तमाच्छादित मन-बुद्धि के द्वारा संतों को पहचान नहीं सकते। देवर्षि नारदजी के सूत्र ‘तस्मिंस्तज्जने भेदाभावात्’ के अनुसार श्रीभगवान् एवं उनके परम भक्त में भेद का अभाव हो जाता है। ऐसी स्थिति में संतों की तुलना करने की चेष्टा करना महान् मूर्खता है। मेरे जैसे व्यक्ति के लिये संत को पहचानना ही संभव नहीं है तब कोई तुलना करने की कल्पना भी मन में नहीं है। सभी ज्ञात-अज्ञात संतों के चरणों में सभक्ति साष्टांग प्रणाम करके अपने मन की बात लिख रहा हूँ।
विगत 15-20 वर्षो से संतों-भक्तों के जीवन चरित्र पढ़ने में मेरी रुचि रही है। ऐसे पठन से सत्प्रेरणा मिले यह भाव तो था ही साथ में यह भी था जो विशेषताएँ मुझे पूज्य श्रीभाईजी में प्रतीत हो रही हैं उनका दर्शन अन्यत्र कैसा है ? यद्यपि मेरा अध्ययन बहुत व्यापक नहीं है इस कारण मैं कोई दावा नहीं कर सकता पर तीन बातें मुझे भाई जी में बहुत विशेष लगीं। संत चाहे अभेदोपासक हो या भेदोपासक मोटे रूप में हम ब्रह्ममें स्थिति होने या साकार विग्रह के साक्षात् दर्शन होने पर ही सिद्ध संत कहते हैं। दोनों स्थिति ही स्वसंवेद्य है। अतः किसी को पता लगना कठिन ही होता है। सत्यता का दर्शन तभी संभव है जब या तो स्वयं संत कृपा करके संकेत कर दें या भगवान कोई ऐसी प्रकटीकरण की लीला प्रस्तुत कर दें।
।। श्रीहरिः ।।दिव्य जीवन की एक झलकहमारा सौभाग्य है कि हमारी वसुन्धरा कभी संतों से विरहित नहीं रही। संतों की चेष्टायें साधन काल में भी एवं सिद्धावस्था में भी विभिन्न प्रकार की होती हैं पर होती है समस्त जगत् ...Read Moreकल्याण के लिये। हम अपनी रज-तमाच्छादित मन-बुद्धि के द्वारा संतों को पहचान नहीं सकते। देवर्षि नारदजी के सूत्र ‘तस्मिंस्तज्जने भेदाभावात्’ के अनुसार श्रीभगवान् एवं उनके परम भक्त में भेद का अभाव हो जाता है। ऐसी स्थिति में संतों की तुलना करने की चेष्टा करना महान् मूर्खता है। मेरे जैसे व्यक्ति के लिये संत को पहचानना ही संभव नहीं है तब
वंश परिचयशास्त्र की यह स्पष्ट उद्घोषणा है— वे माता-पिता, वह कुल, वह जाति, वह समाज, वह देश धन्य है, जहाँ भगवत् परायण परम भागवत महापुरुष आविर्भूत होते हैं। राजस्थान के बीकानेर जिलेमें (वर्तमानमें चूरू जिले में) रतनगढ़ एक छोटा ...Read Moreशहर है। भाईजी के पितामह सेठ श्रीताराचन्द जी पोदार की गणना नगर के गिने चुने व्यापारियों में थी। वे बड़े ही धर्म-प्राण थे। उनके दो पुत्र थे— कनीरामजी और भीमराम जी। श्रीभीमराम जी को ही भाईजी के पिता होने का दुर्लभ सौभाग्य प्राप्त हुआ। श्रीकनीराम जी पिता की अनुमति प्राप्त करके आसाम व्यापार करने चले गये। रतनगढ से शिलांग जाने
जन्म:शिलांग पहुँचने के कुछ समय बाद रामकौर देवी को रिखीबाई के गर्भवती होने का पता लगा तो उनके आनन्द की सीमा नहीं रही। परम अभिलषित वस्तु की प्रतीक्षा में हृदय की क्या अवस्था होती है— यह किसी से सुनकर ...Read Moreनहीं जा सकता है। पल-पल पर विघ्न की आशंका से मन कैसे चंचल हो उठता है --यह तो सर्वथा भुक्त भोगी ही जानता है। आखिर वह परम पुण्यमय क्षण उपस्थित हुआ आश्विन कृष्ण 12 वि०सं 1949 (दि० 17 सितम्बर सन् 1892) को रिखीबाई ने पुत्ररत्न प्राप्त किया। यह सुयोग हनुमानजी के दिन शनिवार को संघटित हुआ। सभी को देखकर बड़ा
भाईजी का चरित्रबल एवं देवी सरोजनी का अलौकिक आत्मोत्सर्ग 'यह पूरा प्रसंग पूज्य बाबा के हाथ से लिखा हुआ है। वे स्लेट पर लिखते थे,पिताजी उसकी नकल कर लेते थे।'आर्य रमणी का जीवन कैसा होता है, आज इस विलासिता ...Read Moreयुग में समझ लेना कुछ कठिन है। पूर्वकाल की बात है मुगल सेना एवं राजपूत वीरों में सारे दिन युद्ध हुआ। रणभूमि शव से पाट दी गयी। अनेक राजपूत वीर, अनेक क्षत्रिय युवक अपनी मातृभूमि की गोद में चिरनिद्रा में सो गये। संध्याकालीन सूर्य की रश्मियों में उनका निर्मल प्रशान्त मुख चमक रहा था।मातृभूमि के लिये अपना जीवन अर्पण करने
सेठ जी श्रीजयदयाल जी गोयन्दका से मिलनपरम संत सेठ जी श्रीजयदयाल जी गोयन्द का एक ऐसे मारवाड़ी संत थे, जिन्हें लोग जानकर भी नहीं पहचान पाते थे। उनका रहन-सहन, वेष-भूषा, मारवाड़ी-मिश्रित हिन्दी बोली, सब इतने साधारण थे कि लोग ...Read Moreसे देखकर भी नहीं पहचान पाते थे कि ये आध्यात्मिक जगत् की विशेष विभूति हैं। साधारणतया सत्संगी लोग इन्हें 'सेठजी' के नाम से ही पुकारते थे। सत्संग करानेके उद्देश्यसे ये स्थान-स्थानपर जाया करते थे। भाईजी ने भी अपने व्यापारिक जीवनके बीच इनकी प्रशंसा सुनी थी। सं० 1967-68 (सन् 1910-1911) में श्रीसेठजी का कलकत्ते में आगमन हुआ। संयोग वश उनके सत्संग