Kya Tumne - Part 1 books and stories free download online pdf in Hindi

क्या तुमने - भाग - १

बसंती अपने माता पिता और बड़ी बहन जयंती के साथ झोपड़ पट्टी की एक खोली में रहती थी। उसकी उम्र अभी 15 साल ही थी। बसंती के पूरे परिवार में उसे छोड़कर बाक़ी सभी श्याम रंग के थे लेकिन वह तो मानो जैसे चमकता हुआ सोना हो; ऊपर से सुनहरे बाल उसकी सुंदरता में चार चांद लगा देते। झोपड़ पट्टी में सबसे अलग खूबसूरती का लिबास पहने बसंती को देखकर ऐसा लगता था मानो कीचड़ में यह कमल का फूल खिल गया हो। बसंती की बड़ी बहन जयंती के विवाह की तैयारियाँ चल रही थीं। गोविंद और जयंती एक दूसरे से प्यार करते थे। जयंती जिस किराने की दुकान पर सामान लेने आती थी उसका मालिक गोविंद ही था और अब गोविंद जयंती का होने वाला पति था।

गोविंद के साथ एक दिन उसका छोटा भाई भी उसके साथ बसंती के घर की तरफ़ आया था। उसने बसंती को देखा और देखता ही रह गया।

उसने गोविंद से पूछा, “भैया ये लड़की मेरी होने वाली भाभी की छोटी बहन है ना?”

“हाँ मोहन वही है, क्या बात है तू ऐसा क्यों पूछ रहा है? उसे देखकर कहीं तेरा मन …”

“हाँ भैया उसे देखते ही वह मन में समा गई है। क्या मेरी शादी उससे …”

“हाँ-हाँ मोहन यह तो बड़ी ही अच्छी बात है। दोनों बहने हमारे घर आ जाएंगी तो लड़ाई झगड़े की कभी नौबत ही नहीं आएगी। पूरा जीवन प्यार से एक ही छत के नीचे गुजारेंगे।”

मोहन दिखने में एकदम बसंती से विपरीत था। वह जितनी खूबसूरत थी, मोहन उतना ही बदसूरत था। गोविंद ने हाँ तो कह दिया पर वह मन में यह सोच रहा था कि बसंती क्या मोहन से शादी के लिए तैयार होगी? फिर उसने सोचा कि बात करने में हर्ज ही क्या है उसका भाई ख़ुश हो जाएगा।

बहुत सोच समझकर गोविंद ने जयंती के कान में यह बात डाल दी कि उसका भाई मोहन बसंती को पसंद करता है फिर क्या था बात जयंती के माता-पिता तक पहुँचने में समय नहीं लगा। जयंती बहुत ख़ुश थी कि बहन का साथ बना रहेगा।

गोविंद ने भी अपने पिता सखाराम से यह बात की तो वह भी तैयार हो गए। परंतु उन्होंने कहा, “गोविंद वह लड़की तो बहुत ही खूबसूरत है। क्या वे लोग मोहन के लिए राजी होंगे?”

“बाबूजी बात करने में क्या हर्ज है? हमारा मोहन ख़ुश हो जाएगा और ख़ुश रहेगा।”

बसंती का परिवार तो एकदम गरीब था। गोविंद और उसका परिवार बसंती के परिवार से काफ़ी ठीक परिस्थिति में रहते थे। वह उसी शहर में कुछ ही दूरी पर रहते थे। बसंती के माता-पिता को जब मोहन के विषय में पता चला तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। एक ही साथ एक ही खर्चे में दोनों बेटियों का विवाह हो जाए तो इससे अच्छी क्या बात हो सकती है और फिर घर परिवार भी अच्छा ही था। वैसे तो हर माता-पिता चाहे वह कितने भी गरीब क्यों ना हों, अपनी बेटियों की शादी में हैसियत से ज़्यादा ही ख़र्च करते हैं। यहाँ तो बात शादी के ख़र्च की थी वह ज़रूर कम हो जाएगा। मोहन के अत्यधिक श्याम रंग से उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी क्योंकि उनके स्वयं के घर में भी सभी श्याम रंग के ही थे।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः