Kya Tumne - Part 2 books and stories free download online pdf in Hindi

क्या तुमने - भाग - २

गोविंद और जयंती दोनों ने ही मोहन और बसंती के रिश्ते के बारे में अपने-अपने घर में बात कर ली। दोनों तरफ से हरा सिग्नल मिलने के बाद फिर एक दिन गोविंद जयंती के घर आया।

उसने जयंती के पिता से कहा, “बाबूजी जयंती को तो आप मुझे सौंप ही रहे हैं। अगर बसंती की शादी मोहन से हो जाए तो?”

“अरे गोविंद बेटा तुम हमारे दामाद हो और तुम्हारी तरफ़ से आया यह रिश्ता हमें भी मान्य है। हमारी दोनों बेटियों का साथ कभी नहीं छूटेगा। हमारे लिए तो यह बहुत ही ख़ुशी की बात है।”

गोविंद ने कहा, “बाबूजी फिर भी आप एक बार बसंती से भी पूछ लीजिए।”

“अरे नहीं गोविंद बेटा इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। हम अपनी बेटी के लिए जो सबसे अच्छा होगा वही तो करेंगे ना। फिर उससे पूछने की क्या आवश्यकता है?”

“ठीक है बाबू जी जैसी आपकी इच्छा।”

पंद्रह दिनों में ही जयंती और बसंती के लिए दो घोड़ियों पर सजे दोनों दूल्हे बारात लेकर आ गए। शादी की विधियाँ होने लगीं। ढोलक मंजीरे की ताल पर बन्ना-बन्नी के गीत गाए जा रहे थे। कुछ महिलाएँ घूँघट लेकर नृत्य कर रही थीं।

दोनों जोड़ों की वरमाला की विधि साथ में ही हो रही थी। लोग यह देखकर आपस में बुदबुदा रहे थे कि बड़ी बेटी की तो ठीक है लेकिन बसंती की जोड़ी तो बिल्कुल ही बराबर नहीं है। कहाँ इतनी सुंदर लड़की और कहाँ ऐसा दूल्हा।

पहले गोविंद और जयंती का विवाह संपन्न हुआ। उसके बाद उसी मंडप में मोहन और बसंती का विवाह हो रहा था। पंडित जी मंत्र पढ़ रहे थे। मोहन बहुत ख़ुश था। उसे तो ऐसा लग रहा था मानो स्वर्ग से उतरी कोई अप्सरा उसे मिल गई हो। मोहन ख़ुशी के साथ बसंती की मांग में सिंदूर भर रहा था।

उनकी अजीब बेमेल जोड़ी को देखकर महिलाओं के बीच कानाफूसी हो रही थी जो मोहन को भी सुनाई दे रही थी; क्योंकि वह महिलाएँ बिल्कुल मोहन और बसंती के पीछे ही बैठी थीं।

तभी मोहन के कानों में आवाज़ आई, “देखो तो कितनी सुंदर लड़की है और कैसे बदसूरत के साथ ब्याह दिया।”

फिर दूसरी आवाज़ आई, “अरे तुम देख लेना ये शादी ज़्यादा दिन टिकने वाली नहीं है। ना सूरत, ना शक्ल, ना रंग, ना रूप, कैसे लड़के के साथ ब्याह दिया माँ बाप ने? मुझे तो बड़ा बुरा लग रहा है, यदि मैं होती तो ऐसा कभी नहीं करती। ये लड़की तो एक ना एक दिन किसी और के साथ भाग जाएगी, देख लेना।”

फिर किसी ने कहा, “एक ही मंडप में दो शादी करके माँ बाप ने पैसे बचा लिए। लड़की के तो भाग्य ही फूट गए हैं।”

पंडित जी के मंत्रों के बीच कानाफूसी के ये शब्द मोहन को शूल की तरह चुभ रहे थे। बसंती भी इन शब्दों को सुनकर सोच रही थी कैसी महिलाएँ हैं ये जो उसके पति के लिए इस तरह की बातें कर रही हैं। सबसे ज़्यादा तो उसके कानों में वह शब्द चुभ रहा था कि ‘भाग जाएगी किसी के साथ देख लेना।’ बसंती को ‘भाग जाएगी’ शब्द सुनकर बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन समय की नज़ाकत देखकर उसने चुप रहना ही बेहतर समझा।

तभी फिर किसी महिला की आवाज़ आई, “अरे मुझे तो लगता है मां-बाप ने छोरी को लड़का दिखाया ही नहीं कि कहीं छोरी मना ना कर दे। लेकिन हाँ छोरे का तो भाग्य ही चमक गया, क्या सुंदर छोरी हाथ लगी है। साथ चलेंगे तो ऐसा लगेगा, साथ में नौकर जा रहा है,” कहते हुए हंसी की आवाज़ भी व्यंग में शामिल हो गई।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः