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रतन टाटा सक्सेस स्टोरी


रतन टाटा को आज कौन नहीं जानता। आज का हर कोई युवा उन्हें प्रेरणास्त्रोत के रूप में देखता है कि कैसे उन्होंने नए स्टार्टअप से कई लोगों की जिंदगी बदल दी और लोगों को रोजगार देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया। रतन टाटा भारत के महान उद्योगपति, टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन और एक दरियादिल इंसान हैं।

रतन टाटा को 1991 में टाटा ग्रुप का चेयरमैन बनाया गया था। और 21 साल इस पद पर काम करने के बाद वो इस पद से रिटायर हो गए। लेकिन रतन टाटा ‘टाटा ग्रुप चैरिटेबल ट्रस्ट’ के चेयरमैन पद पर बरकरार हैं।

रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को गुजरात के सूरत शहर में हुआ। जब रतन 10 साल के थे तब उनके माता-पिता (नवल टाटा-सोनू टाटा) ने औपचारिक तौर पर एक दूसरे से तलाक ले लिया था। तब उनके और उनके भाई जिमी की जिम्मेदारी उनकी दादी नवजबाई टाटा ने ले ली। और उनका पालन पोषण बहुत अच्छे से किया।

Ratan Tata की शुरूआती पढ़ाई मुंबई के कैम्पियन स्कूल में हुई। और माध्यमिक शिक्षा कैथेड्रल एंड जॉन केनन स्कूल से की इसके बाद वो आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चले गए। जहाँ उन्होंने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से 1962 में बीएस वास्तुकला में स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। उसके बाद उन्होंने हॉवर्ड बिज़नेस स्कूल से 1975 में अपना एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम पूरा किया।

अपनी पढ़ाई ख़त्म करने के बाद वे भारत लौट आये और टाटा ग्रुप में काम किया। शुरूआती दिनों में उन्होंने टाटा स्टील के साथ शॉप फ्लोर पर काम किया। उसके कुछ सालों बाद उन्हें राष्ट्रीय रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी (NALCO) का प्रभारी निदेशक बनाया गया।

उसके बाद उन्हें टाटा इंडस्ट्रीज का चैयरमैन बनाया गया और आखिरी में जेआरडी टाटा के टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद को छोड़ने के बाद रतन टाटा को टाटा ग्रुप का चेयरमैन बना दिया गया। टाटा सॉल्ट (salt) से लेकर टाटा सॉफ्टवेयर तक सभी में रतन टाटा की कड़ी मेहनत और रचनात्मक दिमाग है। सबसे छोटी और सस्ती कार जिसे एक आम आदमी भी खरीद सके।
इस सोच के साथ उन्होने नैनो कार बाजार में उतारी। हालांकि नैनो कार उनकी सोच के मुताबिक काम नहीं कर पायी। और कुछ सालों बाद इसके प्रोडक्शन को बंद कर दिया गया। एक पत्रिका के अनुसार रतन टाटा अपनी पूँजी का 66% दान कर देते हैं।

कोविड-19 जैसी महामारी ने जब देश को चारों ओर से घेर लिया था ऐसे वित्तीय संकट में टाटा एंड ग्रुप ने अपनी पूँजी में से 1500 करोड़ का फंड दिया। हालाँकि आज रतन टाटा ‘टाटा ग्रुप’ के चेयरमैन पद से रिटायर हो चुके हैं लेकिन वो आज भी कामकाज में लगे हुए हैं और नए-नए इनोवेटिव आइडियाज के साथ कुछ न कुछ क्रिएटिव सोचते है जिससे कि नए युवा पीढ़ी को रोजगार मिल सकें। ऐसे महान व्यक्तित्व के बारें में जितना कहा जाए उतना कम है। हमें उनसे सीख लेनी चाहिए कि सफलता कि सिर्फ एक ही कुंजी है मेहनत।

रतन टाटा एक ऐसे सख्स हैं जो अपनी कमाई का ज्यादातर हिस्सा दान में दे देते हैं। और वो युवाओं को अक्सर कुछ नया करने और सीखने की सलाह देते हैं। आज कल ऐसे लोग बहुत कम ही होते हैं जो अपनी कमाई हुई चीज़ों को दान में देना चाहते हैं। रतन टाटा हम सभी के लिए प्रेरणा के स्रोत इसलिए हैं क्यों की वो हमेशा सबसे पहले अपने काम को importance देते हैं।

वो कहते हैं की अगर आपको life में सफल होना है तो सबसे पहले अपने काम में focus करिये ना की उन चीज़ों में जो आपको अपने aim से दूर कर देती हैं। साथ ही रतन टाटा दूसरों को बहुत ही सम्मान देते हैं। वो अपने कर्मचारियों, चाहे वो बड़ा हो या छोटा सबसे प्यार से मिलते और बाते करते हैं।

रतन टाटा का ये भी कहना है आपको अगर सफल होना है तो हमेशा साथ मिलकर काम करिये भले किसी काम की शुरुवात आप अकेले ही क्यों ना करें। लेकिन अगर आपको उस काम को आगे भी सफलता पूर्वक बढ़ाना है तो लोगो के साथ जुड़ें रहें और उनके साथ मिल कर काम को आगे बढ़ाएं।