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परिवर्तन - उसके प्यार में - 2

राजन काफी देर तक बार मे बैठकर शराब पितां रहा।धीरे धीरे एक एक करके सब ग्राहक उठकर बार से चले गए।राजन को उठता न देख कर बार का मालिक राजन के पास आकर बोला,"सर बार बन्द करने का समय हो गया है।"
राजन ने हाथ मे बंधी घड़ी में समय देखा।रात के बारह बजने की सूचना घड़ी दे रही थी।राजन अपनी जगह से उठते हुए बोला,"ओ के
राजन ने इला की तरफ देखा और वह बार से बाहर निकल आया।बार की पार्किंग में राजन की कार खड़ी थी।वह अपनी कार के पास चला आया।कार के पास खड़े होकर उसने कार की चाबी निकालने के लिए जेब मे हाथ डाला।जेब मे कार की चाबी नही थी।उसने एक एक करके अपनी पेंट और कमीज की जेब मे बार बार हाथ डाला लेकिन उसे चाभी नही मिली।
चाभी कहा गयी?उसने कार पार्क करके चाबी जेब मे ही रखी थी।तभी उसके कान में आवाज सुनाई पड़ी,"सुनिए
इला दौड़ती हुई उसके पास आई
"यह चाभी तुम्हारी तो नही।मेज के नीचे पड़ी थी
"मेरी ही है।चाभी वहां थी और मैं इसे यहा तलाश कर रहा था।इला चाभी देकर जाने के लिए मुड़ी तो राजन बोला,"अब तुम कहा चली।
इला,राजन की बात सुनकर रुक गयी।राजन कार में बैठकर कार स्टार्ट करते हुए बोला,"आओ बैठो
राजन के कहने पर इला कुछ भी नही बोली और चुपचाप उसके बगल वाली सीट पर आकर बैठ गयी।इला के बैठते ही राजन ने कार स्टार्ट कर दी।
मुम्बई पूरी तरह से रात की बाहों में समा चुकी थी।मुम्बई यू तो कभी सोती ही नही।चलती रहती है,या जगती रहती है।रात को मुम्बई और जवां और खूबसूरत दिखती है।रंग बिरंगे प्रकाश और साइन बोर्डो से जगमगा रही थी।
"तुम्हारा घर कहा है?"कार चलाते हुए राजन बोला।
"कही नही।"
"कही नही,"राजन गर्दन घुमाकर उसकी तरफ देखते हुए बोला,"तुम रहती कहा हो?"
"बार मे"
"बार मे तो तुम नौकरी करती हो,"राजन बोला,"रहती कहा हो।तुम्हारा घर कहा है?"
"इस सपनो के शहर मुम्बई मैं मेरा कोई घर नही है।न घर न कोउ ठिकाना
"तो रहती कहा हो?"राजन ने आश्चर्य से उसे देखा था।
"इसी बार मे में काम करती हूँ।और रात होने पर जब बार बन्द हो जाता है,तब इसी बार मे रात गुजारती हूँ "
"तो क्या मुम्बई में तुम्हारा कोई अपना नही है?"
"नही,"इला बोली,"मुम्बई क्या,इस संसार मे ही कोई मेरा अपना नही है।""
"तो क्या तुम अकेली हो।
हाँ
"बिल्कुल अकेली।"
"हां।मैं बिल्कुल अकेली हूँ।
"माँ बाप भी नही है
"माँ थी--बाप कहा होते है मेरी जैसी औरत के
"मतलब
मेरी माँ वेश्या थी।लेकिन वह नही चाहती थी,मैं उसके गलीज पेशे में पडू।इसलिए उसने मुझे अपने से दूर रखा।मेरा जन्म होते ही पहले किसी के पास रखा और जब में समझदार हुई तो मुझे होस्टल में भर्ती करा दिया।मा चाहती थी।मैं लिख पढ़ लू तो कोई मुझे अच्छा घर मिल जाएगा
इला अपनी कहानी सुनाते हुए चुप हो गयी।फिर उसने गर्दन घुमाकर कार चलाते हुए राजन की तरफ देखा।राजन कार चलाते हुए उसकी आप बीती को बड़े ध्यान से सुन रहा था।जब वह बोलते हुए रुक गयी तो राजन बोला,"चुप क्यो हो गयी।बताओ आगे
"मेरी पढ़ाई नैनीताल में हुई।मा मुझसे मिलने के लिए साल में दो बार आती थी।और मेरी पढ़ाई पूरी हुई तब तक मैं जवान हो चुकी थी।हर मा की तरह मेरी माँ भी मेरी शादी कर देना चाहती थी
"
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