Prem Ratan Dhan Payo - 44 books and stories free download online pdf in Hindi

Prem Ratan Dhan Payo - 44







जानकी परी के कमरे में आई तो देखा वो जगी हुई थी और अपनी डॉल के साथ खेल रही थी । जानकी ने अपने हाथों से उसे आरती दी और फिर प्यार से उसके गालों पर किस किया । ' गुड मॉर्निंग '

परी ने भी कुछ ऐसा ही जवाब दिया । वो भी जानकी के गालों पर किस करते हुए बोली " गुड मॉर्निंग जानू । "'

जानकी ने मुस्कुराते हुए प्लेट साइड टेबल पर रखी । उसने परी के लिए ड्रेस निकाली और उसे तैयार करने के लिए ले गयी ।

इधर राघव नीचे हॉल में बैठकर नाश्ता कर रहा था । करुणा उसे देखते ही बोली " होली नजदीक आ रही हैं देवरजी । "

" हां भाभी मां आपको जो तैयारियां करवानी है आप देख लीजिएगा । " राघव ने कहा तो करूणा आगे बोली " मालिनी जी का फोन आया था । वो कह रही थी की अमायरा अपने दोस्तों को लेकर हम लोगों के साथ होली मनाना चाहती हैं । "

" समायरा का नाम सुनते ही राघव के खाते हुए हाथ रूक गए । एक पल सोचने के बाद उसने करूणा से पूछा " तो फिर आपने क्या कहा भाभी मां ? "

" मैंने उन्हें हां कह दिया । वैसे भी समायरा को यहां आए हुए साल भर से ऊपर बीत चुका हैं । वो यहां आएगी तो घर में रौनक बनी रहेगी । " करूणा ने कहा । " जैसा आपको ठीक लगे भाभी मां । " राघव ने बस इतना कहा । समायरा के आने की बात सुनकर संध्या बोली " वैसे भाभी कब आ रही हैं समायरा दीदी ? "

संध्या ये पूछ ही रही थी की तभी जानकी परी को तैयार कर नीचे ले आई । करूणा संध्या से बोली " मालिनी जी ने कहा हैं वो अपने दोस्तों के साथ दिल्ली घुमने गयी हैं । एक दो दिन में यहां आ जाएगी । "

जानकी उनकी बातें चुपचाप सुन रही थी । न ही उसने कोई सवाल किया और न ही कुछ कहा । वो बस परी को अपने हाथों से खिला रही थी । राघव का नाश्ता फिनिश हो चुका था । उसने जानकी से कहा " आज मैं परी को स्कूल छोड दूंगा तुम रहने दो । " जानकी ने बस हां में अपना सिर हिला दिया । राघव परी को लेकर जा चुका था । करूणा अपने कमरे में चली गई । संध्या किचन का काम निपटाने लगी । जानकी अकेली बैठी क्या करती इसलिए संध्या के पास बाते करने के लिए किचन में चली आई । जानकी स्लैब से लगकर खडी थी । उसने संध्या से पूछा " एक बात पूछूं संध्या । "

" हां पूछों "

" ये समायरा कौन हैं ? "

संध्या ने सिंक में बर्तनों को वेसे छोड दिया और अपने हाथ धोकर पीछे की ओर पलटी । " समायरा इस घर की होने वाली छोटी मालकिन हैं । राघव भैया की मंगेतर । साल भर पहले ही राघव भैया और उनकी सगाई हुई थी । वो करूणा भाभी से बेहद अलग हैं । तुम मिलोगी तो जान जाओगी । पूरी तरह से मोडर्न विचारों वाली हैं । देखने में भी अच्छी हैं ।‌‌‌ सब कुछ ठीक हैं बस बोलने का लहजा थोडा चुभन भरा हैं । किसी किसी को बात चुभ भी जाती है । खैर कोई नही आखिर हैं तो वो इस घर की होने वाली मालकिन ही । " जानकी खामोश खडी उसकी बातें सुनती रही । संध्या की बातों से उसपर कोई खास असर नही हुआ । बस इतना जरूर बता सकती हु की उसे अच्छा नही लगा ।‌‌‌‌अब क्यों इस फीलिग को न जानकी जानती हैं और न ही अच्छे तरीके से मैं जानती हु ।

___________

दोपहर का वक्त , अंबेडकर पार्क

राकेश दिशा को लेकर अंबेडकर पार्क आया हुआ था । दोनों ही पेड के नीचे बैठे एक दूसरे की बातों में गुम थे । दिशा पेड से टिककर बैठी थीं । राकेश उसकी गोद में सिर रखकर लेटा था ।‌‌ दिशा राकेश के बालों में अपनी उंगलियां चलाते हुए बोली " कितना सुकून हैं न राकेश इस जगह पर । '

" सो तो हैं , तुम जहां रहती हो वो जगह मेरे लिए सुकून भरी होती हैं । " राकेश ने कहा तो दिशा को हंसी आ गयी । राकेश ने उसकी गर्दन में हाथ डाला और उसे अपने चेहरे के करीब झुकाकर बोला " दिशु अगर इजाजत हो तो क्या इन लवो को छू सकता हु ‌। " राकेश के ये कहते ही दिशा उससे दूर हो गयी । राकेश भी उठकर बैठ गया । " क्या हुआ दिशु तुम डरो मत ? मैं तुम्हें किसी चीज के लिए फोर्स नही करूगा । तुम्हारी मर्जी मेरे लिए सबसे ज्यादा इम्पोर्टेंस रखती है । "

राकेश की बाते दिशा के लिए सुकून भरे थे । वो उसके करीब आई और हल्के होंठो से उसके होंठों को छू लिया । " ऐसा नही हैं की मुझे तुमपर विश्वास नही । अगर नही होता तो तुमसे दोस्ती ही न करती । राकेश मुस्कुराया और उसके चेहरे की ओर झुकने लगा ।‌ कुछ ही पलो में दोनों के होंठों के दरिमिया कोई दूरी नही थी । लवर्स पाइंट पर से ऐसे कयी जोडे देखने को मिल ही जाते हैं । वो दोनो भी इस वक्त दुनिया से बेपरवाह थे ।‌। कुछ पल बाद राकेश उसके होंठों से दूर हुआ तो दिशा ने अपना चेहरा उसके सीने में छुपा लिया , क्योंकि शर्म से उसका पूरा चेहरा लाल हो चुका था । राकेश के होंठों पर मुस्कुराहट तैर गयी । वो यूं ही उसे बाहों में थामें बैठा रहा ‌‌।

___________

रात का वक्त , रघुवंशी मेंशन




सब लोग खाना खाने के बाद अपने अपने कमरे में जा चुके थे । जानकी छत पर चली आई । बाहर ठंडी हवा बह रही थी । मार्च का महिना , जाती हुई सर्दी का वक्त हल्की हल्की ठंड तो रहती ही है । जानकी बिना शॉल लिए ही छत पर चली आई । हालांकि उसे ठंड लग रही थी , लेकिन सर्द हवाए जब छूकर गुजरती तो पूरे शरीर में गुदगुदी सी होने लगती । जानकी खुद को गुनगुनाने से रोक नही पायी । ........

सब्ज़ हवा के मौसम देखते हैं तेरी राहें

सब्ज़ हवा के मौसम देखते हैं तेरी राहें

बारिश बादल सब हैं खाली है ये बाहें

फूल खुशबू सबनम सर्द मौसम बेक़रार

आँखों को मेरी तेरा इंतज़ार ....

रातों को मेरी तेरा इंतज़ार....

(लगन लगन लागी लगन लगन लागी लागी लगन, लागी लगन लगन लागी लगन लगन लागी रे)

आँखों को मेरी तेरा इंतज़ार ....

( जानकी खुद में ही खोई हुई सी बस गाए जा रही थी । उसके लिए ये अंधेरी रात , सर्द हवाएं सब साथ दे रहे थे ‌‌। वही दूसरी तरफ छत के एक कोने में राघव खडा अपनी तन्हाई के साथ अकेला बैठा था । जानकी के गाने की आवाज उसके कानों में पड़ी , तो वो उठकर उसे तलाशने लगा । )

गीली ज़मीं पे धुप बिखर गयी

दिन चढ़ा कब रात उतर गयी

और करूँ मैं कितना इंतज़ार तेरा ...

ज़र्द फज़ाएँ छू के गुज़र गयी

ख्वाबों में तेरी यादें भर गयी

जीने भी ना दे मुझको ये प्यार तेरा ...

सदाओं को मेरी तेरा इंतज़ार ....

बाहों को मेरी तेरा इंतज़ार....

(लगन लगन लागी लगन लगन लागी लागी लगन, लागी लगन लगन लागी लगन लगन लागी रे)

आँखों को मेरी तेरा इंतज़ार ....

( राघव दूर खडा बस जानकी को देख रहा था । जानकी का दुपट्टा हवा के कारण पीछे की ओर उडे जा रहा था ‌‌ । वही उसके बाल हवाओ के कारण दुपट्टे की दिशा में उड़ रहे थे । वो बस खुद में मगन होकर गाए जा रही थी । )

फिर से दुआ को फलक ने रोका

ले गया तुझको उड़ा के झोंका ,

उठने लगा सबसे ऐतबार मेरा

राहें मेरी इंतज़ार से थक गयी

देखने को तुझे आँखें तरस गयी

रोता है दिल जार-ओ-कतार मेरा

आँखों को मेरी तेरा इंतज़ार ....

दुआओं को मेरी तेरा इंतज़ार ....

(लगन लगन लागी लगन लगन लागी लागी लगन, लागी लगन लगन लागी लगन लगन लागी रे)

आँखों को मेरी तेरा इंतज़ार .....

खाना खत्म हुआ तो एकाएक जानकि पीछे की ओर पलटी । जब उसने सामने राघव को देखा तो नर्वस हो गयी । उसने नजरें नीची कर ली । " ये क्या किया मैंने ? अगर मुझे मालूम होता ये यहां हैं तो मैं गाती ही नही । " जानकी ये सब सोचते हुए बस अपने दुपट्टे को उंगलियों में लपेट रही थी । राघव आहिस्ता आहिस्ता अपने कदम उसकी ओर बढाने लगा था । जानकी डर के मारे अपने कदम पीछे लेने लगी थी । ज्यादा पीछे जा नही सकती थी , क्योंकि कुछ कदम लेते ही वो मुंडेर से लग गयी । अब अगर कोशिश भी करती तो छत से सीधा नीचे गिरती । राघव उसके ठीक बगल में आकर खडा हो गया । वो बाहर का नजारा देख रहा था । जानकी जाने को हुई तो राघव उसकी ओर पलटते हुए बोला " अगर चाहो तो रूक सकती हो । " जानकी ठहर गयी राघव आगे बोला " मैं बस यू ही टहल रहा था । तुम्हें डिस्टर्ब करने का कोई इरादा नहीं था , बस आवाज सुनकर यहां चला आया । " जानकी ने अपने कदम पीछे ले लिए और उसके साइड में आकर खडी हो गयी । राघव को ये देखकर अच्छा लगा । दोनों के बीच ही खामोशी अपनी जगह बनाए हुए थी ।

राघव ने उस चुप्पी को तोडते हुए कहा " तुम अच्छा गाती हो । " जानकी ने उसकी ओर देखा तो पाया वो अभी भी सामने की ओर देख रहा था । जानकी ने भी उससे अपनी नजरें हटा ली और थोडा रूककर बोली " जो भी सीखा मां से सीखा । वो मुझसे भी अच्छा गाती थी । "

" बहुत मिस करती हो उन्हें । "

" हमममम ...... अपने तो हर वक्त याद आते हैं । " जानकी ने कहा । उसके इस जवाब के बाद दोनों के ही दरमियान फिर से खामोशी ने जगह बना ली । बात करने के लिए दोनों के पास कुछ नहीं था या ये कहिए खुद को सवालों को एक दूसरे से पूछ नही पा रहे थे । खडे खडे जानकी थक गयी , तो वही दीवार से पीठ लगाकर नीचे बैठ गयी । उसने दुपट्टे से अपनी दोनों बाहें ढक ली । हल्की हल्की ठंड का अहसास अब उसे होने लगा था । जानकी बिना राघव की ओर देखे बोली " एक बात पूछे आपसे । " राघव भी वही उससे एक फासले पर नीचे बैठ गया । ' हां पूछो '

" राघव जी हम इतने बडे तो नही हैं जो आपको समझाए बस आपसे एक बात कहना चाहेंगे ।‌‌‌‌ परेशानियां सबके जीवन में होती हैं । किसी के जीवन मे कम तो किसी के जीवन में ज्यादा । मजबूत वही इंसान कहलाता हैं जो इन परेशानियों को पार कर आगे बढता हैं । बुरा वक्त ज्यादा लंबे समय तक नहीं ठहरता । बस इंसान को खुद पर भरोसा रखना चाहिए । "

राघव ने कुछ पल रूककर कहा " कहना आसान होता हैं जानकी , लेकिन जिसपर बीतती हैं सिर्फ वही जानता है । " यह कहते हुए राघव ने अपना सिर पीछे दीवार से टिका लिया । जानकी बस खामोशी से उसे देखती रही । पीछे की ओर दीवार से सिर टिकाए वो बस एक टक आसमान में चमक रहे चांद को देखता रहा । काफी देर तक राघव यू ही बैठा । रात भी काफी हो चुकी थी । जाने के लिए वो उठने लगा तो उसकी नज़र जानकी पर पडी । वो वही बैठे बैठे सो गयी थी । उसका सिर भी झूल रहा था । इससे पहले वो गिरती राघव ने आगे बढ़कर अपने कंधे का सहारा दे दिया । जानकी का सिर अब उसके कंधे पर था । उसके करीब होने से जानकी ने एक गर्माहट महसूस की तो नींद में ही अपने दोनों हाथ से उसकी बांह पकड़ ली । राघव तो बस उसे देखता ही रह गया । इस तरह जानकी का उसे छूना एक अलग एहसास दे रहा था ‌। मानो पास आने का भी डर हो और दूर जाने की भी घबराहट ।‌ राघव अकेला ही उन एहसासों से लडता रहा । उसने जानकी को जगाने की कोशिश नही की । " उसके चेहरे को देखते हुए राघव ने कहा " इसमें कोई शक नही की ये मासूम हैं , लेकिन सोते वक्त और भी ज्यादा मासूम लगती हैं । " उसे देखते देखते राघव को भी नींद आ गयी ।

नज़रो का झुके रहने भी एक अलग अंदाज़ था,

वक़्त नहीं था की कहानी बताऊ अपनी,

इसलिए शांत रहना ही कुछ अपना अंदाज़ था।


**********

आज का भाग कैसा लगा कमेंट करके जरूर बताइएगा । हम इंतजार करेंगे

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


******