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लाडली दान ....

लाडली यानी बेटी अपने माता पिता की लाडली होती है
एक बेटी विवाह के पुर्व अपना सारा सुख दुख अपने माता पिपा पर छोड देती है ...
कभी सरल कभी भोली और रूठकर अपने माता पिता से अपना सारा जिद को मान लेती है ..
अपनी छोटी मोटी बातो को बडे आसानी से माता पिता से शेयर करती है ...उसके माता पिता भी जहा तक हो सके उसके आरमानो को पूरा करने की कोशिश करते है ...
इसके लिए चाहे उन्हे किसी भी प्रकार की करनाइया उठानी पढे उठाते है वे हमेश चाहते हे की उनकी लाडली खुश रहे..
लेकिन जब उस लाडली का विवाह तय हो जाता है तब उस कन्या के मन मे तरह-तरह की कल्पना ए उठने लगती है अगर पिता के घरस कीसी तरह का अभाव और तकलीफ हो तो वो सोचती है कि ससुराल जाकर उन आरमानो को पूरा करेगी वह सोचती है की विवाहपोरात उसके जीवन मे परिवर्तन आएगा उसकी सभी इच्छा ए पुरी होगी...
लेकिन विवाह के बाद उसके इन नाजुक भावनाओ पर अगर पानी फीर जाता है तो उसका मन आत्मा और दिल चकनाचूर हो जाता है उसका जीना मरने के बराबर हो जाता है..
उसके अपेक्षा विपरित उसे नियमो के बेडियो मे बांध दीया जाता है. ससुराल के मर्यादा को मानने के लिए उसे मजबुर किया जाता है ऐसे तो हर लडकी मर्यादा का उल्लंघन करना चाहती है ...उसे पिता के घर मे जो स्नेह मिला उसे याद करके मन ही मन घुटने लगती है..परिवार के हर जन उस पर कुछ न कुछ बोझ डालने लगते है कुछ लड़किया इन सभी बातो को अपनी भाग्य समझकर उसके अनुसार अपने आप को ढालने की कोशिश करती है और कुछ निराशाजनक जिन्दगी को लेकर पिता के घर लोट जाती है...
कुछ पिता जो आधुनिक रिती रिवाज को मानने वाले होते है अपनी लाडली को गले लगा लेते है और जो रूढियादी होते है अपनी लाडली से उस वक्त मुंह फैर लेते है जब लाडली को उनकी जरूरत है लाचार बेटी अंत मे मौत को गले लगा लेती है...

पर ऐसा करना पाप है..मौत इसका हल नही है जमाना बदल चुका और तुम खुद अपनी जिन्दगी अपने दम पर जी सकती हो........वो जमाना और था ऐ जमाना कुछ और आज की पढी लिखी लाडली ऐसा नही करेगी क्योकि उसे होशला है खुद पर भरोशा है उसे किसी के सहारे की जरूरत नही वो जमाने से कदम मिला के चल सकती और अपने बच्चो को भी उस ही काबिल बनाती है..ये है आज की लाडली......



कुछ लाइन थोडी सी अलग.. हिस्स उसी का पर थोडा अलग

सिर्फ पुरूष ही नही कुछ औरते भी खुद समाज के लिए काटे स्वरूप है अपने बेटो की शादी के समय ये खुलकर दहेज मागती है अगर बहू अच्छा दहेज ला ई तो उसे सांस बहुत ही अच्छी तरह रखती है और अगर दहेज मे जरा सी भी कमी हुई तो अत्याचार शुरू हो जाता है गाव मे तो रोज ऐसा घर देखने को मिलता है जहा सांस ननद का जलूस होते रहता है कुछ बेटियो को अपने मे भी बहुत कुछ सहना पढता है कुछ लोग रूढिवादी के चपेट मे होने के कारण बेटी को बाहर जाने ही नही देना चाहते वे सोचते है अगर कुछ ऐसा वैसा हो जाए तो उसकी नाक कट जाएगी...कुछ भा ई भी बहन का बाहर जाना दूसरे से मेल मिलाप रखना पसंद नही करते है चाहे वो खुद बाहर मौज मस्ती करे घुमे ऐसे परिवारो के लोगो का इक मात्र उदेश्य होता है की बेटी शादी कराके दायित्व मुक्त हो जाए चाहे उस बेटी को नरक यातना सहना पढे औरतो के साथ होने वाले अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना खुद औरत ही कर सकती है ऐसा अन्याय का विरोध करना और ऐसे पीड़ित महिलाओ की उन्नती करना ही समाज के हर शुरक्षित व्यक्ति का कर्त्तव्य है सरकार तो बहुत चेस्टाए कर रही है अगर हम उनका साथ दे तो शायद ऐसी सहसाय महिलाओ का दर्द थोडा कम हो सकता है...