Wo Maya he - 72 books and stories free download online pdf in Hindi

वो माया है.... - 72



(72)

मनीषा और दिशा दोनों किचन में थीं। दोनों मिलकर खाना बना रही थीं। मनीषा आज शांतनु की मनपसंद माछ बना रही थीं। डोरबेल बजी तो दिशा ने कहा,
"लगता है काकू आ गए....."
यह कहकर वह दरवाज़ा खोलने चली गई। शांतनु ने अंदर आते हुए कहा,
"लो भाई डिम्पी....तुम्हारी फेवरेट आइसक्रीम ले आया।"
आइसक्रीम का टब पकड़ते हुए दिशा ने कहा,
"थैंक्यू काकू....."
उसने आइसक्रीम ले जाकर फ्रिज में रख दी। शांतनु भी किचन में आ गए थे। उन्होंने मनीषा से कहा,
"वाह मनीषा तुम बिल्कुल किसी बंगालन की तरह माछ पकाती हो।"
मनीषा ने हंसकर कहा,
"मेरा एक बंगाली दोस्त था। उसने ही माछ बनाना सिखाया था।"
यह सुनकर दिशा भी हंस दी। शांतनु ने कहा,
"वैसे अभी तो खाने में वक्त है। तब तक एक कप चाय पिला दो।"
दिशा ने कहा,
"आप चलकर बैठिए। मैं चाय बनाकर लाती हूँ।"
शांतनु बाहर हॉल में आकर बैठ गए।‌ वह और मनीषा चार दिनों के लिए दिशा के पास दिल्ली आए थे। मनीषा को हर वक्त दिशा की चिंता लगी रहती थी। उन्हें लगता था कि उनकी बेटी पर इतना बड़ा दुख पड़ा। वह अकेली दिल्ली में रह रही है। लेकिन वह कुछ कर नहीं पा रही हैं। वह अक्सर शांतनु से इस विषय में बात करती थीं। शांतनु ने सुझाव दिया कि ऑफिस से छुट्टी लेकर कुछ दिन दिशा के पास रह आओ। मनीषा ने कहा कि अगर वह भी साथ चलें तो दिशा को और अच्छा लगेगा।‌ शांतनु मान गए। दोनों दिशा के पास आ गए। चार दिन कब बीते पता ही नहीं चला। कल सुबह उन लोगों को वापस जाना था। इसलिए आज मनीषा ने खास डिनर का इंतज़ाम किया था।
शांतनु को यह देखकर तसल्ली हुई थी कि दिशा ने अब अपने दुख से बाहर निकलने की कोशिश शुरू कर दी थी। वह बहुत हद तक उसमें से बाहर भी निकल आई थी। उसने उन्हें और मनीषा को बताया था कि उसने अपने घर को नए सिरे से सजाया है। अपने लिए कुछ नई ड्रेसेज़ भी खरीद कर लाई थी। घर के लिए भी बहुत सा सामान खरीदा था। सबकुछ उन दोनों को बड़े चाव से दिखाया था। यह सब करके वह खुद को समझा रही थी कि अब उसे अकेले ही जीना है। शांतनु समझ रहे थे कि सारी कोशिश सिर्फ अपना ध्यान उस दुख से हटाने के लिए है।
"काकू चाय...."
दिशा की आवाज़ सुनकर शांतनु अपने खयालों से बाहर आए। शांतनु ने चाय का कप पकड़ते हुए कहा,
"मैं अकेला चाय पिऊँगा। मेरी डिम्पी मेरा साथ नहीं देगी।"
दिशा उनके सामने बैठते हुए बोली,
"सॉरी काकू....इधर मैंने चाय कॉफी दोनों छोड़ दी हैं।"
"हाँ यह तो मैंने ध्यान दिया कि हम लोगों के सामने तुमने चाय नहीं पी। लेकिन छोड़ने का कोई खास कारण है।"
"कोई खास कारण नहीं है काकू। बस मन ने कहा तो छोड़ दिया।"
शांतनु ने दिशा की आँखों में एक सूनापन महसूस किया। यह सूनापन कह रहा था कि दिशा भले ही अपनी ज़िंदगी को सामान्य बनाने की कोशिश कर रही हो पर अभी उसके अंदर बहुत दुख बाकी है। जिसे उसने प्यार किया था। जिसे यह सोचकर जीवनसाथी बनाया था कि जीवन भर साथ रहेगा। वह शादी के चार दिन बाद ही चला गया। इस दुख को भुलाने में बहुत समय लगना था। उन्होंने कहा,
"डिम्पी.... तुम ठीक हो ना ?"
"हाँ काकू मैं ठीक हूँ। आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं ?"
"इसलिए बेटा कि खुद को सामान्य दिखाने की सारी कोशिशों के बावजूद तुम्हारी आँखें कुछ और कहती हैं।"
दिशा कुछ क्षणों तक चुप रही। उसके बाद बोली,
"काकू.... आप मेरी आँखों से मेरे अंदर झांक लेते हैं। आपने मेरे अंदर के खालीपन को देख लिया। हाँ काकू अभी मेरे अंदर बहुत दुख है। यह जल्दी खत्म नहीं होगा। पर आप परेशान मत होइए। मैं इतना समझ गई हूँ कि इस दुख को भुलाने में ही भला है। वक्त लगेगा पर मैं पूरी तरह से इससे बाहर आ जाऊँगी।"
"तभी मैं कह रही थी कि कुछ दिन मेरे पास रहो। पर तुम मानी नहीं।"
मनीषा ने उसके पास बैठते हुए कहा। किचन से निकलते हुए उन्होंने उसकी बात सुन ली थी। दिशा ने उनकी बात का जवाब देते हुए कहा,
"उससे क्या होता मम्मी ? इस लड़ाई को तो मुझे अकेले ही लड़ना है। वहाँ रुककर मैं बस कुछ समय के लिए इसे टाल सकती थी। इस दुख से निजात तो मुझे तब ही मिलेगी जब मैं अपनी कोशिश करूँगी।"
"यह कोशिश मेरे साथ रहकर भी कर सकती थी बेटा।"
"नहीं हो पाता मम्मी। मैंने उस समय बहुत हिम्मत करके यहाँ आने का निर्णय लिया था। उसी हिम्मत के कारण इतना कुछ कर पाई हूँ। नहीं तो हारकर बैठ जाती।"
शांतनु ने कहा,
"ठीक है बेटा.... तुम अपनी लड़ाई लड़ो। पर याद रखना कि तुम अकेली नहीं हो।"
"मालूम है काकू। यही बात तो मुझे सहारा देती है। आप लोग परेशान मत होइए। बस इसी तरह कभी कभी मौका निकाल कर आ जाया करिएगा।"
दिशा की नज़र चाय के कप पर पड़ी। इस बातचीत में शांतनु ने चाय पी नहीं थी। वह चाय दोबारा गरम करके ले आई। तीनों लोग बातें करने लगे।

शांतनु गेस्टरूम में सो रहे थे। मनीषा और दिशा एक ही कमरे में थीं। मनीषा ने सारा डिनर खुद ही तैयार किया था। सब करते हुए वह थक गई थीं। दिशा ने उनकी तरफ निगाह डाली तो वह सो रही थीं। दिशा को नींद नहीं आ रही थी। उसकी बात अदीबा से हुई थी। अदीबा ने उससे मिलने की इच्छा ज़ाहिर की थी। पहले तो उसने यही कहा था कि जो भी पूछना है फोन पर पूछ ले। लेकिन जब अदीबा ने उसे समझाया कि वह सिर्फ उसके और पुष्कर के बारे में जानना ही नहीं चाहती है बल्की जो हुआ उसे सही तरह से समझने की कोशिश करना चाहती है तो वह उससे मिलने को तैयार हो गई। यह तय हुआ था कि अदीबा इस रविवार पूरा दिन उसके साथ उसके घर पर बिताएगी। दिशा उसे सबकुछ विस्तार से बताएगी। अदीबा ने कहा था कि वह लोगों के सामने उसकी कहानी उसी के दृष्टिकोण से रखना चाहती है।
दिशा ने अदीबा से मिलने वाली बात मनीषा और शांतनु को नहीं बताई थी। अदीबा आने वाले रविवार को आ रही थी। जबकी मनीषा और शांतनु कल ही जाने वाले थे। उसने सोचा था कि एकबार अदीबा से मिल ले फिर उन्हें अदीबा से मुलाकात के बारे में बता देगी।
अदीबा ने उसे खबर रोज़ाना में छपी विशाल और उसके साथी की गिरफ्तारी की खबर के बारे में बताया था। साथ ही उन सवालों के बारे में भी बताया था जो उस रिपोर्ट में उठाए गए थे। उसने दिशा से कहा था कि वह विशाल के बारे में अच्छी तरह सोचकर देखे। क्या उसे विशाल के संबंध में ऐसा कुछ याद आता है जो अजीब हो। वह सोचने की कोशिश कर रही थी पर उसे ऐसा कुछ याद नहीं आया था जिसका ज़िक्र करती।
दिशा पुष्कर के परिवार के बारे में बहुत ही कम जानती थी। उसे और पुष्कर को लगता था कि शादी के बाद दोनों दिल्ली में अपने हिसाब से रहेंगे। इसलिए पुष्कर ने अपने परिवार के बारे में उतनी ही बातें बताई थीं जो कुछ दिनों तक साथ रहने के लिए जानना ज़रूरी था। उसने भी इससे अघिक कुछ जानने की कोशिश नहीं की थी। जब ताबीज़ को लेकर बवाल हुआ और उसे लगा कि घरवाले किसी बात को लेकर परेशान हैं तब उसने उसका कारण जानना चाहा। उस समय पुष्कर से उसे कुसुम और मोहित की मौत के बारे में पता चला था।
खबर रोज़ाना में छपी रिपोर्ट में कहा गया था कि पकड़े गए व्यक्ति कौशल और विशाल का आपस में संबंध था। यह सवाल भी उठाया गया था कि क्या पुष्कर की हत्या से विशाल का कोई संबंध है ? यह सब जानने के बाद दिशा आश्चर्य में थी। थोड़े से समय में जितना वह विशाल को जान पाई थी यही कह सकती थी कि वह बहुत सीधासादा है। बल्की माया वाला किस्सा जानने के बाद उसे दब्बू समझती थी। एक ऐसा इंसान जो अपने परिवार के सामने अपने हक के लिए भी आवाज़ नहीं उठा पाया था। रिपोर्ट में उस पर जो सवाल उठाया गया था वह उसकी दब्बू इंसान वाली छवि को देखते हुए सही नहीं लगता था। दिशा सोच रही थी कि क्या ऐसा इंसान जो अपने लिए आवाज़ भी नहीं उठा सका वह इतनी हिम्मत कर सकेगा कि अपने सगे छोटे भाई के खिलाफ षड्यंत्र रचे।
पर विशाल के साथी कौशल को उसने खुद ढाबे पर देखा था। वह उसे और पुष्कर को घूर रहा था। उसका घूरना उसे बड़ा अजीब लगा था। यही कारण था कि उसकी शक्ल उसके मन में बैठ गई थी। दिशा सोच रही थी कि कितनी विचित्र बात है। विशाल अपने हक के लिए आवाज़ नहीं उठा पाया। लेकिन अंदर ही अंदर अपने भाई के खिलाफ इतनी बड़ी साज़िश रच डाली।‌ विशाल कमज़ोर नहीं बल्की ज़हनी तौर पर बीमार इंसान है। यह बात मन में आते ही उसे खून से लथपथ पुष्कर की याद आई। उसे बड़ी बेरहमी से मारा गया था। ऐसा लगता था कि मारने वाला कोई जानवर था। पुष्कर को मारने के लिए विशाल ने कौशल को भेजा था। यह बात सोचकर उसका मन विशाल के लिए नफरत से भर उठा। नफरत‌ बेबसी में बदल गई। वह बिस्तर पर लेटे हुए रोने लगी। मनीषा कहीं उसके रोने से जाग ना जाएं यह सोचकर वह उठकर वॉशरूम में जाकर रोने लगी।
अगले दिन मनीषा और शांतनु वापस चले गए। जाते समय उससे कह गए थे कि जब कभी अकेलेपन से मन घबराए तो उनसे बात कर लिया करे। जब भी उन्हें मौका मिलेगा वह उसके पास आ जाया करेंगे। वह अपना खयाल रखे और फोन पर बात करती रहे।