Wo Billy - 16 books and stories free download online pdf in Hindi

वो बिल्ली - 16

(भाग 16)

अब तक आपने पढ़ा कि रघुनाथ झटके से आँख खोलता है और उसके चेहरे पर एक डरावनी सी कुटिल मुस्कान तैर जाती है। शोभना इस बात से अनभिज्ञ फ़िर से अपनी जगह जाकर सो जाती है।

अब आगें...

भोर का सूरज पूर्व दिशा से झाँक रहा था। पूर्व दिशा भी लालिमा लिए हुए थीं। लगता था जैसे सूरज अपने माँ के लाल महीन आँचल के पीछे से छुपकर देख रहा हो।

शोभना की नींद तेज़ आवाज़ से उचट गई। वह झटके से उठकर बच्चों को देखती है। दोनों बेफिक्र होकर गहरी नींद में सो रहें थे, लेकिन यह क्या..रघुनाथ बिस्तर पर नहीं थें।

शोभना ने साड़ी का पल्लू अपनी कमर में खोंसते हुए मन ही मन सोचा - " रघु, इतनी सुबह कहाँ चलें गए ? "

रघुनाथ को ढूंढते हुए शोभना किचन में जाती है, तो वहाँ रघुनाथ को फ़र्श पर बैठा हुआ पाती है। रघुनाथ सुड़क-सुड़क की आवाज़ करते हुए कुछ खा रहा था। शोभना को उसका ऐसा बर्ताव अजीब लगा। आशंकित मन से डरते हुए कपकपाते हाथ को जब शोभना ने रघुनाथ के कंधे पर रखा तो वह झटके से पलटा। उसका मूँह टोमैटो सॉस से सना हुआ इतना भयानक लग रहा था मानो रघुनाथ किसी का रक्तपान कर रहा था।

शोभना की चीख़ निकल पड़ी। वह तेज़ी से रघुनाथ की ओर दौड़ी...उसने रघुनाथ के हाथ से सॉस की बॉटल छुड़ा ली। वह अपने पल्लू के सिरे से रघुनाथ का मुँह पोछते हुए बोली - " यह क्या कर रहें हैं आप..?"

रघुनाथ कहकहा लगाकर हँसा - " और हाथ को ज़मीन पर टिका कर किसी चौपाये जानवर की तरह पोजीशन लेकर किचन से हाथ व पैर के सहारे चलता हुआ तेज़ी से वहाँ से निकल गया। उसका इस तरह से चलना न सिर्फ़ अजीबोगरीब था बल्कि देखने पर वह दृश्य रोंगटे खड़े कर देने वाला था।

उधेड़बुन में ही शोभना भी तेज़ी से किचन के बाहर निकली। उसने हॉल में चारों तरफ़ अपनी नज़र दौड़ाकर रघुनाथ को ढूंढा। जब उसे वह कही भी दिखाई नहीं दिया तो वह आँगन की ओर जाती है। रघुनाथ उसे यहाँ भी नहीं दिखता है। शोभना को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। उसके दिमाग ने जैसे काम करना ही बन्द कर दिया था। ऊहापोह की इस स्थिति में वह यह भी भूल गई थी कि कल रात उसका सामना आत्मा से हुआ था। कैसे उस आत्मा के चंगुल से किटी को आज़ाद करवाया था। उसे यह भी समझ नहीं आ रहा था कि रघुनाथ पर उसी आत्मा का साया है। वह तो रघुनाथ के व्यवहार से क्षुब्ध होकर उसे बेतहाशा सी ढूंढ रहीं थी।

शोभना सिर पर हाथ धरे हुए असमंजस में पड़ी हुई थीं। अचानक गलियारे से तेज़ आवाज़ आई। शोभना ने चोंककर आवाज़ की दिशा में देखा और फ़िर तेज़ी से उस तऱफ भागते हुए गई।

वह गलियारे से गुजरती हुई स्टोर रूम के दरवाज़े तक चिंतित होकर धुन में पहुंच गई। दरवाज़े पर पहुंचते ही उसके कदम ठिठक गए। रात को घटित हुआ सारा घटनाक्रम उसकी आँखों के सामने आ गया। रघुनाथ के बर्ताव की वजह भी वह समझ गई। माजरा क्या है यह समझते ही उसकी रूह कांप उठी। अब उसका पति आत्मा की जद में था। सुबह के समय ही वह इस तरह का बर्ताव कर रहा था ..फ़िर रात को वह क्या कुछ नहीं करेगा..ओह ! इस ख्याल से ही शोभना सिर से पैर तक सिहर उठी।

 

शेष अगलें भाग में...

क्या शोभना अपने पति रघुनाथ को उस भयानक औरत की आत्मा से मुक्त करा पाएगी या उसे इस घर में रहने की बहुत मोटी कीमत चुंकाना पड़ेगी ? क्या वह रघुनाथ को हमेशा के लिए खो देगी ? जानने के लिए कहानी के साथ बनें रहें।