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सरला लौट आई

वाजिद हुसैन की कहानी -मार्मिक सरला का प्रभाव कुछ ऐसा था कि लोग उसे सर्वगुण संपन्न लड़की मानते थे‌। उसकी सम्मोहक आंखों का जादू चल जाता तो कोई शायर शायरी लिखने लगता‌। उसके पापा के पास अकूत धन और संपत्ति थी। यह आश्चर्य की बात है - उसकी जब प्रसव के दौरान मृत्यु हूई तो उसके पंति को उसके कफन के लिए और उसकी नवजात बच्ची को अस्पताल की क़ैद से छुड़ाने के लिए चंदा करना पड़ा था जिसमें उसके पापा के पचास रुपये भी थे।

हालांकि इस बात के बारे में उसके मुहल्ले में एक चर्चा फैली थी। उसके पापा मनोज अग्रवाल के घर एक मामूली वकील रामकिशन जाटव मुकदमों की पैरवी के लिए आता था। उसके साथ उसका लड़का भीमसेन भी चला आता था। भीमसेन आकर्षक लंबे बालो वाला नवयुवक था। वह शार्ट हैंड और टाइपिंग का एक्सपर्ट था और वकालत पढ़ रहा था। उसके आने से मनोज अग्रवाल को सुविधा हो जाती थी‌। वह वकील से माथापच्ची करने से बेहतर भीमसेन को मुक़दमे से संबंधित बातें डिक्टेट कर दिया करते थे और पिता-पुत्र मिलकर मुक़दमे की फाइल तैयार कर लेते थे। जब कभी भीमसेन के लिए कोई काम नहीं होता, तो मनोज अग्रवाल अपनी बेटी सरला को उसके साथ मार्केट सर्वे के लिए भेज देते थे, जो उस समय एम.बी.ए कर रही थी‌।

सर्वे के बहाने सरला भड़काऊ वस्त्र पहनकर मोटरसाइकिल पर उससेे चिपक कर बैठ जाती। वे होटल पी.वी.आर. और भी न जाने कहां-कहां घूमते फिरते, जिसमें सरला का क्रेडिट कार्ड पूरा सहयोग देता था।

सरला शालीन ढंग से रहती और शानदार डांस करती थी। उसकी आंखें निश्छल थी और वह जिसे भी देखती उसका दिल जीत लेती। एक बार दिवाली की पार्टी में डांस करते समय एक अजीबोगरीब घटना हुई। सरला वहां मौजूद थी। ऐसी पार्टियों में ज़्यादातर लड़कियां अपने घर वालों या दोस्तों के साथ ही आती थी। वहां एक अमीर कारोबारी की पत्नी उमा देवी अपनी बेटी रेखा और भावी दामाद के साथ पधारी थी। उसका दामाद वही लड़का था जो सरला के साथ मार्केट सर्वे के लिए जाता था। वह लड़का गरीब था। उमा देवी उस लड़के की अक्सर मदद कर देती थी। लोग इस कारण उस लड़के को ठीक नहीं मानते थे। उनकी बेटी रेखा उस लड़के के साथ घूमती-फिरती और औरतें कुछ न कुछ फुसफुसाती रहती थी। पर इस पार्टी में रेखा अकेली थी। उसकी नज़रें मंगेतर को ढूंढ रही थी, जो वहां नज़र ही नहीं आ रहा था। काफी देर बाद वह पार्टी मेंं आया और फिर सरला के साथ डांस करने लगा।

यह देखकर उमा देवी गुस्से में आग बबूला हो गई और तीर की तरह बाहर निकल गई। पीछे-पीछे उसकी बेटी भी निकल गई‌। बेटी रेखा को प्यार या शादी के बारे में बस इतनी ही जानकारी थी जितनी उसकी मां ने उसे दी थी। उसकी मां भीमसेन को बुरा भला कह रही थी। इस बीच किसी दोस्त ने भीमसेन के कान में फुसफुसाया कि उसकी भावी सास उससे बहुत नाराज़ है। वह तुरंत उनके पीछे भागा और माफी मांगी, लेकिन अब वह अमीर सास किसी तरह माननेे वाली न थी‌।

यह देख सरला प्रसन्न हो गई। वह भीमसेन से प्रेम करने लगी थी। रेखा उसके रास्ते का काटा थी जो स्वयं ही उसके रास्ते से हट गई थी। वह देर रात फिर अपने भाई के साथ पार्टी से निकल गई।

एक दिन मनोज अग्रवाल ने सरला को भीमसेन के साथ प्रोजेक्ट वर्क के लिए भेजा। उसने ग़मगीन लहजे में सरला से कहा, 'दीवाली की पार्टी में तुम्हारे साथ नृत्य करना महंगा पड़ा, ' रेखा ने मंगनी तोड़ दी।'

सरला ने प्यार भरे अंदाज़ में कहा, 'छोटे क़द और भारी शरीर की रेखा के जुदा होने का मातम मना रहे हो, और सरला के मिलने की खुशी सेलीब्रेट नहीं करते।'

यह सुनकर भीमसेन ने कहा, 'जब तुम्हारे पापा को पता चलेगा कि उनकी बेटी एक जाटव लड़के से मुहब्बत करने लगी है तो उस लड़के के परिवार का नामोनिशान मिटा देंगे।

सरला ने आत्म विश्वास से लबरेज़ होकर कहा, 'मेरे पापा बेस्ट पापा हैं। वह मेरी हर फरमाइश पूरी करते हैं, भले ही उन्हें कितना कष्ट उठाना पड़े। एक बार तो मैंने हद ही कर दी, 'आधी रात को आइसक्रीम खाने की ज़िद पकड़ ली तो पापा रेलवे स्टेशन से लेकर आए थे।

अग्रवाल परिवार बेहद सुंदर जगह पर रहता था। यह एक सुंदर कोठी थी, जो फूलो वाली कोठी के नाम से मशहूर थी। कोठी के पास से गुज़रते लोग इसकी प्रशंसा भरी नज़रों से देखते। बारिश में धुलने के बाद इसका बगीचा भी बहुत सुंदर दिखता। सफेद दीवारों और लाल रंग की खपरैलों वाली छत के चारों ओर हरियाली थी और ऊपर नीले आसमान पर छाई काली घटाएं इस कोठी को सुंदर बनाने के साथ रहस्यमई भी बना देती थी।

उसके बाद से भीमसेन हमेशा इस घर से होकर गुज़रना पसंद करता, भले ही उसके लिए उसे लंबा रास्ता क्यों न लेना पड़े। वह गेट के बाहर से अंदाज़ लगाता कि किस कमरे में सरला चहल क़दमी कर रही होगी। वह उसके भाई रोहित को थोड़ा बहुत जानता था, जो बेंगलुरु में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था।

उमा देवी तेज़ तर्रार महिला थी। उसकी मनोज अग्रवाल से जान-पहचान थी। उमा देवी ने उन्हें दिवाली की रात की घटना के बारे में बताया और सरला को अपनी बेटी की सगाई तोड़ने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया।

मनोज अग्रवाल ने डांटकर सरला को भीमसेन से मेल-जोल ख़त्म करने के लिए कहा पर उसने बैक फुट पर जाना सीखा ही नहीं था, कैसे जाती?

एक दिन भीमसेन फूलो वाली कोठी से गुज़र रहा था पर वहां कोई दिखाई नहीं दिया। यहां तक की गुलाब और अंगूर की बेलें, जो बालकनी तक चली गई थी, बेरुखी दिखा रही थी। ऊपर की खिड़की पर पलभर को सरला की झलक मिली। उसने खिड़की से उसे जल्दी चले जाने का इशारा किया। वह कुछ समझ पाता, उससे पहले सिक्योरिटी गार्ड के भारी हाथ उसकी कलाईंयों तक पहुंच गए। कमरे में कैद सरला उसे पिटते देखती रही। चीत्कार करने के सिवा उसके पास कोई चारा नहीं था।

इस घटना के कुछ दिन बाद रामकिशन वकील की हत्या हो गई। सरला खुलेआम अपने पिता को उनका हत्यारा मानती थी। अत: उसने हत्या की रात को अपने को पिता की क़ैद से आज़ाद कर लिया और वकील साहब के घर हत्या का शोक मनाने चली गई।

मनोज अग्रवाल ने बेटी को मनाकर वापस लाने का कोई प्रयास नहीं किया। उससे क़ानूनी तौर पर संबंध विच्छेद कर लिया और अपनी जायदाद से बेदखल कर दिया।

रिश्ते नाते तोड़ने का यह पहला या इकलौता मामला नहीं था। लड़कियों को लोग इसी तरह हमेशा भूलते आए हैं‌।

वकील के घर सरला अविवाहित रह रही थी। अत: लोकलाज के कारण, उसे भीमसेन से विवाह करना पड़ा। वकील की मृत्यु के बाद आमदनी बंद हो गई थी। अमीरी में पली- बढ़ी सरला को घोर गरीबी में जीना पड़ रहा था। प्रेगनेंसी ने उसकी मुश्किलें और बढ़ा दी थी।

कुछ माह बाद सरला को भाई की एक्सीडेंट से मृत्यु की सूचना मिली जिसे सुनकर वह भाई के अंतिम दर्शन करने मायके गई। वह सोच रही थी, कि मम्मी-पापा अकेले रह गये हैं। इस दुखद समय में उसके पिता की ममता जाग उठेगी और वह उसे स्वीकार कर लेंगे पर ऐसा नहीं हुआ। भाई की अर्थी उठते ही उसके पिता ने उससे साफ-साफ वापस जाने को तो नहीं कहा पर उसके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए। अत: उसे वापस जाना पड़ा।

एक सवेरे मनोज अग्रवाल डाइनिंग टेबल पर विराजमान थे। दायें-बायें उनके ससुराल वाले जी हज़ूरी में व्यस्त थे। मनोज अग्रवाल को सरला से दूर करने में उनकी अहम भूमिका थी क्योंकि बाप-बेटी के पुनः संबंध स्थापित होने पर उनके हाथ से करोड़ों की संपत्ति निकल जाती।

उसी समय उनके पड़ोसी विजय सक्सेना आए। और यह वृतांत सुनाया : कुछ देर पहले आपके गेट पर एक युवक खड़ा था। उसकी गोद में एक नवजात बच्ची थी, और हाथ में अस्थि कलश था। उसने बहुत विनम्रता से मुझसे कहा, 'अंकल मुझे अपनी पत्नी की अस्थियां विसर्जन के लिए जाना है। आप यह पचास रुपये मनोज अग्रवाल को दे दीजिए, बहुत मेहरबानी होगी। मैंने कहा, 'यहां तक आ गए हो तो स्वयं क्यों नहीं दे देते?' उसने कहा, 'मैं बहुत देर से गेट खटखटा रहा हूं, बैल भी बजा रहा हूं, पर कोई निकल कर नहीं आता।' तभी गोद की बच्ची को बिलखते देख मैंने उससे बच्ची को चुपाने को कहा।' उसने रूंधे गले से कहा, 'इसकी मां मर गई, भूखी है।' रुपये लौटाने का कारण पूछने पर उसने कहा, 'मेरा नाम भीमसेन है। मैंने अपनी पत्नी को डिलीवरी के लिए एक अस्पताल में भर्ती किया था पर मुफलिसी के कारण पैसे जमा न कर सका, फलस्वरूप पुत्री को‌ जन्म देने के बाद उसकी मृत्यु हो गई। उसने मरने से पहले अपने पापा के सामने हाथ न फैलाने को मना किया था।

मैं अस्पताल की क़ैद से बेटी को छुड़ाने और सरला के क्रिया कर्म के लिए चंदा इकट्ठा कर रहा था। उसी समय उसके पापा अपनी मित्र मंडली के साथ मॉर्निंग वॉक से गपियाते हुए लौट रहे थे। उन्होंने सड़क किनारे चद्दर से ढकी मृत देह पर लावारिस समझकर पचास का नोट फेका था। मैं उन्हें वही नोट लौटाने आया हूं ताकि सरला की अंतिम इच्छा पूरी हो। उसकी दयनीय अवस्था देखकर मेरा जी भर आया, मैंने उससे रुपए ले लिए और आपको देने आया हूं।

यह सुनकर मनोज अग्रवाल ने अपने साले से ग़ुस्से में कहा, 'तूने जानबूझकर झूठ कहा‌, 'भिखारी गेट बजा रहा है।'

वह चीत्कार करते हुए भीमसेन को ढूंढने निकल पड़े। जो कोई मिलता, पूछते, 'क्या तुमने देखा, वह आदमी, 'गोदी में बच्ची, हाथ में कलश?' पूछते- पाछते वह रामगंगा तक पहुंच गए।

भीमसेन घाट पर खड़ा अपने आप से पूछ रहा था, 'मुझे तो ऊची जाति की लड़की से प्यार करने की सज़ा में मौत मिल रही है, पर इस बेचारी मासूम बच्ची का क्या क़सूर है ...?'

एक करूणामय आवाज़ सुनकर ठिठक गया। उसके सामने पश्चाताप की मुद्रा में एक ऊची जाति वाला हाथ जोड़कर कह रहा था। मैं 'रूढ़िवादिता की ज़ंजीरों में जकड़कर बेरहम हो गया था। मुझे माफ कर दो और इस बच्ची को सौप दो। इसे पाकर मुझे लगेगा सरला लौट आई।'

भीमसेन ने बेटी को प्यार किया और उस आदमी को सौप दिया फिर अस्थि ‌ कलश लेकर गंगा मैया में कूद गया।

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