woh aasman se aati thi - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

वो आसमान से आती थी - 5


पिछले भाग में हमने देखा राजा माधव सिंह राठौड़ अपनी पिछली ज़िंदगी के बारे में कबीर को बता रहा था,उसने बताया कैसे वो शान ओ शौकत भरी ज़िंदगी जी रहा था,लेकिन अचानक उसकी ज़िंदगी में कुछ ऐसा हुआ जिसने उसकी ज़िंदगी को पलट कर रख दिया आइए जानते हैं,आगे राजा माधव सिंह राठौड़ ने और क्या बताया कबीर को?

"मैं समझ गया की ये काफिले में ज़िंदा बच गई लड़की एक ऐसी दुल्हन है जो एक ही दिन में दुल्हन से विधवा बन गई है,वो खूबसूरत पहेली रोए जा रही थी और उसके आसुओं की वजह उसके सामने मुर्दा पड़ी थी।

मैंने उसे खूब रोने दिया,रोते रोते वो बेहोश हो गई,फिर मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और अपने घोड़े की ओर चल पड़ा मेरी बाहों में वो नयी नवेली दुल्हन किसी किताब की तरह लग रही थी,जब उसका आंचल हवा से उड़ता तो लगता जैसे किताब का कोई पन्ना हिल रहा हो।

जब मैंने उसे घोड़े पर बैठाया तो वो बेहोशी की हालत में घोड़े की ज़ीन पर गिरे जा रही थी अचानक मैंने अपना हाथ उसके सिर के नीचे लगा दिया ताकि उसे चोट ना लग जाए और मैं निकल पड़ा अपने महल की तरफ।

मेरा घोड़ा मद्धम मद्धम चल रहा था,मेरे हाथ तो घोड़े की लगाम पर थे पर निगाहें उस लड़की के चेहरे पर,कुछ देर बाद,मैं अपने महल पहुंच गया,जैसे ही मैंने कदम अंदर रखा दरबानों के सिर झुक गए,दरवाज़े खुल गए,संगीत रूक गया,नाचना गाना बंद हो गया,जो जहां था वहीं रुक गया।

सब दाईं और बाएं कतार बना कर खड़े हो गए, मैंने दो नौकरों को इशारे से बुलाया और उस लड़की को शाही कमरे में ले जाने का हुक्म दिया।

अब शाम हो चुकी थी,मैं और मेरा परिवार एक साथ खाने के लिए बैठे थे,लेकिन मैंने एक निवाला नहीं तोड़ा था,तभी मेरी पहली बीवी सुभद्रा ने मुझे टोका और कहा।"

"हुकुम सा क्या बात है आप इतनी देर से बैठे हैं आपने एक निवाला नहीं खाया और ना उस लड़की के बारे में बताया।"

"इतनी सी ही बात की थी मेरी पहली बीवी ने,तभी मेरी दूसरी बीवी शामवती ने कहा।"

"माफी चाहेंगे हुकुम सा लेकिन वो जो भी है आपको उसे यूं महल नहीं लाना चाहिए था,हो सकता है,ये एक शत्रुओं की कोई चाल हो,क्या पता वो गुप्तचर(जासूस) हो?"

"फिर मैंने उनके सारे शक दूर करने के लिए उनको पूरी दास्तान सुनाई,इतने में एक गुलाम सिर झुकाए भागा हुआ आया और कहने लगा।"

"हुकुम सा, उस लड़की को होश आ गया है।"

"इतना सुनकर में खाना छोड़ कर उस लड़की के कमरे की तरफ चल दिया और पीछे पीछे मेरे 7 बच्चे और उनकी दोनों माँ भी मेरे पीछे आ गईं।

मैं उस कमरे में दाखिल हुआ और देखा वो लड़की गुमसुम अपने घुटनों पर अपना सिर झुकाए बैठी थी, मैं उसके बगल में जा कर खड़ा हो गया और एक नौकरानी को पानी देने का इशारा किया मैंने वो पानी का गिलास उस लड़की की तरफ बढ़ाते हुए कहा।"

"लीजिए पहले पानी पी लीजिए,मेरी आवाज़ सुन कर लड़की ने अपना सिर ऊपर की तरफ उठाया और मेरी ओर देखा और फिर पानी का गिलास लेकर थोड़ा पानी पिया,फिर मैंने कुछ सवाल किए।"

"मैंने उससे पूछा की वो कौन है? उसका घर कहां है और आखिर उसके साथ क्या हुआ था? फिर उसने मुझे बताना शुरू किया...."

"जी मेरा नाम इरावती है! मैं विक्रम गढ़ की राज कुमारी हूं,आज ही मेरे पिताजी राजा रायचंद बहादुर ने मेरी शादी जय गढ़ के राजकुमार सुमैर सिंह से की थी,मुझे मेरे ससुराल वाले विदा करके ले जा रहे थे,लेकिन रास्ते में ही हम पर लुटेरों ने हमला कर दिया और सब मारे गए।"

ये बात बताने के बाद ही उस लड़की की आंखें फिर से नाम होने लगीं तो मैंने उसे रोने से रोकने के लिए अपनी बात कही...

"तुम फिक्र मत करो हम तुम्हारे ऊपर हमला करने वालों को ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे और एक एक को उसके अंजाम तक पहुंचाएंगे वैसे तो काफ़ी लुटेरों को तो मैंने वहीं मार दिया था,लेकिन बाकियों का पता भी जल्द लग जायेगा,फिलहाल अभी आराम कीजिए और कुछ खा लीजिए।"

फिर मैं वहां से जाने लगा,तभी उसने मुझे रोका और कहा..

"आप मेरे घरवालों को संदेश भिजवा दीजिए वो मुझे लेने आ जायेंगे।"

उसके यहां से जाने की बात सुनकर मैं थोड़ा उदास हुआ और गर्दन को हिला कर मैंने उसे हां का इशारा दिया।

थोड़ी देर बाद ही मैंने दरबार लगवाया सबको इकट्ठा किया और सब मेरे इशारे पर दरबार लगा कर खड़े हो गए,मैंने अपने सेनापतियों,गुप्तचरों,दीवानों और आम जनता को सारी घटना बताई और हुकुम जारी किया की वो लुटेरे मुझे हर कीमत पर चाहिए,फिर मैंने ताली की आवाज़ से दरबार खत्म किया और सब जुट गए मेरे हुकुम को पूरा करने में।

मैं रात के वख़्त अपने कमरे में अकेला बैठा था,मैंने सामने रखी अलमारी की दराज़ खोली और एक कलम और कागज़ निकाला और लिखने बैठ गया, मैंने लिखा...

"सम्मानिए,राजा रायचंद बहादुर जी आपको अपना प्रणाम देता हूं, मैं शक्तीगढ़ का राजा माधव सिंह राठौड़ आपको ये सूचना देना चाहता हूं,की आपकी बेटी इरावती हमारे पास है,हमारे महल में है,उन पर और उनके बारातियों पर लुटेरों ने बीच रास्ते में हमला कर दिया था,सब मारे गए सिवाय आपकी बेटी के मैं उनको अपने महल में सुरक्षित ले आया हूं, इरावती ने आपको सूचना देने की इच्छा जताई है,कृपया जल्द से जल्द आप यहां आगमन करें हम आपके स्वागत के लिए आपकी प्रतीक्षा करेंगे,धन्यवाद।"

इतना संदेश लिखने के बाद मैंने बाहर खड़े दरबान को अंदर बुलाया और उसे वो संदेश विक्रम गढ़ भिजवाने के लिए हुकुम दिया।

अब हवाएं चलने लगीं थी,रात सर्द होती जा रही थी, मैं खिड़की से खड़ा हो कर आसमान में धुंधलाते चांद को देख रहा था,फिर अचानक मुझे इरावती का ख्याल आया, मैंने बहुत सोचा फिर दिल नहीं माना तो अपने कमरे से निकल कर राजकुमारी इरावती के कमरे की तरफ चल दिया, इरावती के कमरे के बाहर खड़े हो कर मैंने फिर एक बार सोंचा की इस तरह अंदर जाना ठीक है या नहीं।

फिर मैंने दरबानों को दरवाज़ा खोलने का हुकुम दिया,मेरे अंदर जाने के बाद दरबानों ने दरवाज़ा बंद कर दिया,अब उस कमरे में,मैं था और मेरे सामने बिस्तर पर बिखरी हुई सी लेटी राजकुमारी इरावती।

मैंने रोशनदान रोशन किया और इरावती के चेहरे को निहारा,उसका चेहरा देख कर लगा की जैसे मैंने जो खिड़की से धुंधला चांद देखा था,अब वो साफ नज़र आ रहा हो।

इतने में दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई,मैंने अंदर आने का हुकुम दिया और फिर एक दरबान अंदर सिर झुकाए चला आया,उसने मुझे बताया नीचे मेरा एक गुप्तचर(जासूस) है, मैं फौरन कमरे से निकल कर,सीढ़ियों से नीचे उतर कर आया और अपने सिंहासन पर बैठ गया

फिर गुप्तचर को मैंने इशारा किया उसने मुझे बताना शुरू किया...

"हुकुम,आपने मुझे लुटेरों को ढूंढने का आदेश दिया था,मैंने उस जगह जा कर घोड़ों के कदमों के निशान देखे, मैं उन निशानों का पीछा करते करते एक पहाड़ी पर पहुंचा और देखा की पहाड़ी के उस तरफ कुछ लुटेरे रहते हैं उनके पास तलवारें और बंदूकें भी थी और वो लूटा हुआ ज़ेवर छुपा रहे थे।"

मैंने जैसे ही ये बात सुनी मैंने अपना लश्कर तैयार करने का हुकुम दिया और एक गुलाम को इशारा किया और कहा...

"शमशेर को लेकर आओ"

थोड़ी देर बाद दो आदमी ज़ंजीरों में जकड़े हुए,मेरे चहेते शेर शमशेर को लेकर सीधे मेरे पास ले आए,मैंने उन दोनों से ज़ंजीर अपने हाथों में ले ली।

और हुकुम दिया की लुटेरों पर हमला करने चलो...

कहानी जारी है...
क्या होगा अब?
क्या राजा माधव सिंह राठौड़ उन लुटेरों को उनके अंजाम तक पहुंचा पाएगा?
क्या इरावती इससे खुश होगी?
और क्या होगा जब इरावती को उसके घरवाले लेने आयेंगे?

देखते हैं अगले भाग में,नोटिफिकेशन के लिए हमें फॉलो कर लीजिए,तब तक के लिए धन्यवाद।