woh aasman se aati thi - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

वो आसमान से आती थी - 6


पिछले भाग में हमनें देखा कैसे,राजा माधव सिंह राठौड़ ने लुटेरों का पता लगा लिया और उसने उन पर हमला करने के लिए आदेश दिया,अब क्या होगा?देखतें हैं...

जब राजा माधव सिंह राठौड़ ने आदेश दिए तो सब तैयार हो गए,पूरा लश्कर इकट्ठा हो गया और सब दौड़ पड़े पहाड़ियों की तरफ जहां लुटेरे रहते थे।

लश्कर सरपट सरपट दौड़ कर पहाड़ियों पर पहुंचा,गुप्तचर(जासूस) ने इशारा किया,राजा माधव सिंह राठौड़ समझ गया की वो अब मंज़िल पर आ गए हैं।

राजा माधव अपने घोड़े से उतर कर गुप्तचर(जासूस) के पास गया,उसने लुटेरों की ऐन जगह दिखाई ज़्यादातर लुटेरे तितर बितर हो कर सोए हुए थे,लेकिन कुछ लुटेरे पहाड़ियों के कोनों पर खड़े होकर पहरा दे रहे थे।

ये सब तहकीकात करने के बाद राजा ने नीति बनाई,उसने लश्कर को दो हिस्सों में बांट दिया एक हिस्से को पहाड़ी के ऊपर से हमला करने को कहा और दूसरे को नीचे उतर कर।

अब राजा और उसकी फौज तैयार थे,दुश्मन पर टूटने के लिए,राजा सबसे आगे था उसने एक टुकड़ी को अपने साथ नीचे उतरने का इशारा किया और दूसरी को पहाड़ी पर खड़े हो कर पहरा दे रहे लुटेरों पर तीर बरसानें का इशारा दिया।

जैसे ही लुटेरों पर तीर बरसने लगे,नीचे सोए लुटेरे हड़बड़ाहट में जाग उठे उन्हें वक्त ही नहीं मिला की वो कुछ कर सकें।

नीचे उतरी टुकड़ी ने कयामत ढा दी,जो भी राजा और उसके सैनिकों के सामने आता समझो मौत के सामने आता,राजा ने भी अपने खूब जौहर दिखाए।

उसने अपनी तलवार को ख़ून से ऐसा रंग दिया,जैसे तलवार ही लाल रंग की बनी हो,राजा कुछ देर हमला ना करके सिर्फ ये पता लगा रहा था,की उनका सरदार कौन है।

तभी सामने से बड़े ही जोश के साथ एक लुटेरा आया और उसने तलवार से राजा पर वार करने की कोशिश की,लेकिन राजा कहां उसके वार से डरने वाला था,उसने भी अपनी तलवार की एक ज़र्ब लगाई और राजा की तलवार लुटेरे की तलवार से जा टकराई।

लेकिन लुटेरे की तलवार राजा के वार से एक झटके में गिर गई,फिर राजा ने उसकी बांह पकड़ कर मोड़ डाली और तलवार की नौक उसके गले पर रख दी और उससे पूछा

"तेरा सरदार कौन है और कहां है?"

मौत के डर से लुटेरे ने घोड़े पर भागते हुए एक शक्स की तरफ इशारा किया।

राजा उस लुटेरे को छोड़कर सीधा उस शक्स की तरफ भागा,लेकिन जब तक लुटेरों का सरदार घोड़े पर सवार हो कर वहां से निकल गया था।

राजा ने भी अपने घोड़े पर नज़र दौड़ाई और उस पर सवार होकर,सरदार के पीछे निकल पड़ा।

सरदार का घोड़ा आनन फानन जंगल के बीचों बीच दौड़े जा रहा था,लेकिन राजा का घोड़ा बादल भी तुग डुक तुग डुक दौड़ रहा था और राजा काफी हद तक सरदार के घोड़े के करीब पहुंच गया था।

तभी राजा ने अपने घोड़े से सरदार के घोड़े पर छलांग लगाई और राजा सरदार को लेकर ज़मीन पर गिर गया।

राजा ने उठते ही एक लात सरदार को मारी और दोनों हाथो से उसका गिरेबान पकड़ कर उसे उठाया और एक पेड़ पर उसे दे मारा।

फिर उसे एक हाथ से पकड़ कर अपने सामने लाया और एक मुक्का दिया,सरदार उस मुक्के से कुछ दूर जा कर गिरा।

राजा फिर उसके पास गया और फिर एक लात मारी और उसे फिर उठाया।

फिर राजा ने एक मुक्का उसके मुंह पर दिया और दाहिनी कोहनी से उसके कंधे पर वार किया।

सरदार फिर गिर पड़ा,फिर राजा ने एक हाथ से उसके बाल पकड़,उसे अपने घोड़े की तरफ घसीटना शुरू किया और घोड़े के करीब ला कर उसे रस्सी से बांध कर अपने घोड़े से घसीटना शुरू कर दिया।

सरदार चिल्लाता रहा की उसे छोड़ दो,लेकिन राजा के तो जैसे सिर पे खून सवार था,राजा उसके चिल्लाने पर अपने घोड़े की लगाम और तेज़ फटकारने लगा और घोड़ा और तेज़ भागने लगा।

राजा सरदार को वापिस उसी की जगह ले आया जहां वो रहता था, सरदार ने अधमरी हालत में देखा...

सब उसकी आंखों के सामने तबाह हो रहा है उसके आदमी एक एक करके मारे जा रहे हैं,उसका लूटा हुआ ज़ेवर बाहर निकाला जा रहा है।

और एक घमासान युद्ध चल रहा है, जिसमें राजा के सैनिक और लुटेरे एक दूसरे के साथ मार काट कर रहे हैं।

तभी राजा कुछ सैनिकों को इशारा करता है,थोड़ी देर बाद वो सैनिक राजा के पालतू शेर शमशेर को पिंजरे में कैद करके ले आए।

राजा ने हुकुम दिया शमशेर को इस युद्ध में छोड़ दो और सारे सैनिक युद्ध छोड़कर पीछे हट जाओ,सैनिक पीछे हट गए,लुटेरे भी शांत हो गए।

और डर के मारे सहम कर शमशेर को देखने लगे,जैसे ही शमशेर का पिंजरा खोला गया,शमशेर बाहर कदम रख कर दहाड़ने लगा और सामने खड़े लुटेरों को अपना शिकार समझ कर देखने लगा।

फिर शमशेर बिजली की रफ़्तार से उन लुटेरों की तरफ दौड़ा और उन पर झपटा।

और एक एक करके सब को मार दिया।

राजा शमशेर के पास गया और उसके सिर पर हाथ फेरा और उसे वापिस पिंजरे की तरफ ले आया।

अब सब शांत हो चुका था,पूरा लश्कर सरदार को गिरफ्तार करके महल की ओर जा रहा था।

सवेरे की हल्की धूप के साथ लश्कर महल पहुंचा और राजा ने दोपहर के समय एक सभा का आयोजन करने का आदेश दिया और सरदार को कैदखाने में ले जाने का हुकुम दिया।

अब राजा थक चुका था,उसे भी थोड़ी बहुत चोट आईं थी,
इसीलिए उसने वैध को बुलाया और अपने ज़ख्मों का इलाज कराने लगा।

वैध राजा के ज़ख्मों पर मरहम पट्टी कर रहा था और राजा की दोनों बीवियां और उसके सातों बच्चे उसके अगल बगल खड़े थे।

तभी दौड़ती हुई, इरावती राजा के कमरे के बाहर आ खड़ी हुई और चौकठ पकड़ कर गहरी गहरी सांसें लेने लगी और राजा की तरफ फिक्र भरी नज़रों से देखने लगी।

इरावती ने जब राजा की ये हालत देखी,तो उसे मन ही मन बहुत दुख होने लगा,राजा भी इरावती की नज़रों में अपने लिए फिक्र को देख रहा था।

राजा की दोनों बीवियां जलन से कभी राजा को देखती, कभी इरावती को,तो कभी दोनों एक दूसरे को।

पर जैसे जलन का राजा और इरावती को कोई आभास ही नहीं था,वो एक दूसरे को बस देख रहे थे और मानो नज़रों से बातें हो रहीं थीं।

तभी अचानक एक ज़ख्म के ज़्यादा दुखने से राजा की आह निकली और इधर इरावती उसकी आह को सुनते ही झटके से अंदर आ गई और कुछ कदम आ कर रूक गई।

लेकिन जब उसने राजा की बीवियों और बच्चों की तरफ देखा तो,यूहीं अपने कदम पीछे लेकर वहां से चली गई।

अब दोपहर हो चुकी थी,सभा लग चुकी थी।

सिंहासन पर विराजमान राजा था और उसके कदमों में बैठा था,उसका शेर शमशेर।

सामने खड़े थे सैनिक,मंत्री,दीवान ओ ख़ास और आम जनता,उनके बीच में बेड़ियों में जकड़ा हुआ खड़ा था लुटेरों का सरदार।

राजा ने कहना शुरू किया...

"इरावती को इस सभा में लाया जाए।"

थोड़ी देर में इरावती को सभा में लाया गया और राजा ने उससे कहा...

"इरावती ये तुम्हारा अपराधी है,इसने ही तुम्हारी बारात लूटी और तुम्हारे बारातियों को मारा।
अब तुम ही तय करो की इसको तुम किस तरह को सज़ा देना चाहती हो,हम कुछ नहीं कहेंगे जैसे चाहो वैसा सलूक करो इसके साथ।"

इतना सुनकर इरावती पास खड़े सैनिक के पास गई और उस सैनिक की कटार निकल कर अपने हाथ में पकड़ी।

वो कटार लेकर धीरे धीरे सरदार की तरफ बढ़ने लगी,सरदार बेड़ियों में जकड़ा हुआ मांफी की भीख मांगने लगा।

लेकिन इरावती तो बदले की भावना में जल रही थी,उसने एक ना सुनी और कटार सीधे सरदार के सीने में उतार दी और बार उसने उस कटार से सरदार पर वार पे वार किए।

सरदार ज़मीन पर गिर गया,लेकिन इरावती ने अपने वार बंद ना किए और उसे कटार से गोदती रही।

ये मंज़र देख सबके दिल दहल गये और राजा माधव सिंह राठौड़ भी हैरान हो गया,महल की ऊपरी मंज़िल से राजशाही औरतें,राजा की बीवियां और बच्चे खिड़की के परदे की ओट से ये देख विचलित हो गए।

सरदार मर चुका था,लेकिन इरावती वार नहीं रोक रही थी और राजा ने इरावती को कई बार पुकारा लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ।

फिर राजा ने सैनिकों को हुकुम दिया की वो इरावती को शांत कराएं,कुछ देर बाद इरावती का गुस्सा शांत हो गया।

इतने में एक दरबान आया और राजा से कहने लगा की...

"हुकुम,विक्रम गढ़ से कुछ लोग आए हैं।"

राजा ने उन्हें अंदर लाने का आदेश दिया,जैसे ही वो लोग अंदर आए तो इरावती के मुंह से निकला...

"पिता जी"

अब आगे क्या होगा?
क्या इरावती वापस अपने पिता के साथ लौट जायेगी?
क्या राजा माधव सिंह और इरावती की कहानी यूहीं खत्म हो जाएगी?

देखते हैं,"वो आसमान से आती थी"के अगले भाग में,
तब तक के लिए इंतज़ार करें और हमें फॉलो करें,
ताकि आप तक अगले भाग की सूचना समय पर पहुंच जाए।

तब तक के लिए धन्यवाद।