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पूर्णाहुति

मृदुल बिहारी जी कि कालज्यी कृति पूर्णाहुति -

मृदुल बिहारी एक ऐसा नाम जिनकी अभिव्यक्ति ने साहित्य को एक नई पहचान एवं ऊंचाई प्रधान करने कि साध्य साधना के महा अनुष्ठान के महायज्ञ की हव्य से अनेक अनमोल कृतिया प्रज्वलित हो कर समय समाज संसार राष्ट्र एवं युग में प्रज्वलित मशाल बन साहित्यिक छितिज पर दैदीप्यमान है जिससे आज का समाज प्रेरित होते हुए दिशा दृष्टि प्राप्त करता है तो भविष्य के सुंदर आयाम के आगमन का संकेत देता है!

मृदुल बिहारी एक ऐसी नारी जिन्होने सोच कर्म कर्तव्य के समन्वयक प्रयास से सम्पूर्ण नारी समाज को मार्यादित एवं गौरवान्वित कर उन्हें जागृत करते हुए अपनी पूर्णता के लिए प्रेरित किया है पूर्णाहुति मृदुल बिहारी जी द्वारा नारी भावनाओं, संवेदनाओं एवं उसकी महिमा गरिमा पर समय कि अराजकता क्रूरता के प्रहार कि प्रज्वलित अग्नि को समर्पित पूर्णाहुति ह्व्य है जिसकी लपटे नारी समाज को अपने स्वाभिमान के लिए जागरण का सकारात्मक संदेश देती है।

भारत पर इस्लामिक आक्रमण के दौर में ग्यारहवीं शताब्दी से सोलहवीं शताब्दी तक राजपूताना कि तीन नारियों के विषय में ऐतिहासिक वर्णन मिलते है जबकि लाखो गुमनाम ऐसी भारतीय नारिया हैं जिन्होंने जुल्म जलालत कि जिंदगी दरिंदगी कि भ्ठठी में झोंक दिया और उनके वर्तमान ने भी उन पर कोई ध्यान नहीं दिया एवं इतिहास के पन्नों में भी उनको स्थान नहीं मिला मगर तीन भारतीय नारियों कि चर्चा अवश्य होती है जिनको तत्कालीन समाज में नारी के प्रति सोच एवं व्यवहार को व्याख्यायित करता है उनमें प्रथम महारानी पद्मनी ही है जिनके जौहर को भारतीय नारी कि साहस शक्ति एवं गौरव त्याग बलिदान का प्रतिनिधि है दूसरी है रानी कर्मावती हुमायूं से अपनी रक्षा के लिए भाई बनाकर गुहार लगाई गई लेकिन हुमायूं ने दूसरे युद्ध में उलझे रहने का कारण बता नहीं आया तीसरी है जोधा बाई विवशता के संबंधों पर सहमति के पैबंद कि जीवन गाथा इनमें सर्व प्रथम काल और नाम आता है रानी पद्मावती का आदरणीया मृदुल बिहारी जी कि पूर्णाहुति रानी पद्मावती के नारी मन में कि संवेदनाओं भावनावो एवं अनेक बंधन विवश्ताओ के सकारात्मक नकारात्म के टकराव के सत्यार्थ को वास्तविकता के परिपेक्ष में प्रस्तुत किया है जो तब भी सत्य था और आज भी आदरणीया मृदुल बिहारी जी का पराक्रम नारी मर्यादा कि पराकाष्ठा कि पूर्णाहुति है ।

जो शिक्षा भी है साक्षात भी हा शाश्वत भी है सृष्टि में नारी और कि कोमलता लावण्य सौंदर्य प्रेम साहस शक्ति त्याग तपस्या पुरुष के अहंकार पुरुष प्रधानता की प्रधान नारी भोग साधन कि वास्तविकता के छद्म टकराहट द्वंद से प्रज्वलित अग्नि की पूरणाहुति है।

पुर्णाहुति का प्रारम्भ मेवाड़ में व्याप्त आतंक बोध से होता है दिल्ली का बादशाह अल्लुद्दीन खिलजी अपनी विशाल सेना के साथ और चितौड़ को चारों तरफ से घेर लेता है जीवन चारो तरफ से अवरुद्ध हो जाती है ।राजा रतन सिंह के लिए फरमान भेजता है बादशाह अल्लुद्दीन खिलजी का संदेश भारतीय इतिहास में गुप्त वंश के राजा राम गुप्त की पत्नी की मांग शको द्वारा की गई थी तब चन्द्र गुप्त द्वारा भाभी धुवस्वामिनी के धिक्कारने पर बीरता एव पुरुषार्थ का परिचय देते हुए आक्रांताओं को समाप्त कर दिया लेकिन समय काल के क्रूर परिहास के रूप में भारतीय इतिहास को राजा रतन सिंह के समक्ष संकट खड़ा कर दिया क्योकि बादशाह अल्लुद्दीन द्वारा फरमान जारी कर राजा रतन सिंह की रानी पद्मावती को ही बुलाने लिए था ।

पद्मिनी तत्कालीन एव आज तक कि विश्व सुंदरियों क्लियोपेट्रा, हेलेन ,पद्मिनी।

महारानी पद्मिनी को जब बादशाह के आदेश का पता चला वह व्यथित हो उठी उसकी भावनाओ में तूफान उठने लगे वह सोचने को विवश हो गयी कि #क्यो इतना रक्त पिपासु होगया है ?क्यो अपनी इच्छा को धर्म बनाता है क्यो नही समझता करुणा रहित योद्धा आततायी और निर्विवेक युद्ध बर्बता है# ब्रह्मांड सुंदरी पद्मिनी के नारी अन्तरात्मा कि आवाज़ भी सुंदर एव मानवीय मूल्यों का आदर्श है

#यह सदा ध्यान रहे कर्ता चाहे पुरुष हो करवाने वाली प्रेरणा नारी होती है नारी ही पुरुष के संघर्ष और सपनों को सजोने का सामर्थ्य रखती है #

पद्मिनी का अपने अतीत में खो जाती है और अपने और राजा रतन सिंह के सात फेरों और प्रथम मिलन एव राजा की प्रथम महारानी प्रभवती के प्रथम दिन व्यवहार को स्मरण करती है इस पूरे प्रकरण को लेखिका द्वारा बहुत जीवन्तता से पद्मनी के माध्यम से व्यक्त किया गया है ।
जो तब भी यथार्त था आज भी यथार्थ है।

#मार्ग भर राजन ने कोई विशेष बात नही की कम बोलना इनकी प्रबृत्ति है या किन्ही अन्य विचारों में उलझ गए है कैसे होंगे राजन शांत?गम्भीर?गर्वीले? या भाव प्रणय?वहाँ राजतंत्र का अंतहीन क्रियाकलाप होगा राज्य हितों कि रक्षा का दायित्व होगा ।कल मर्मज्ञों से चर्चा करनी होगी असख्य अनगिनत कार्यो के बीच भला उन्हें पद्मा की सुधि रहेगीं? नारी मन की कोमल भावनाओं का सर्वोच्च भाव नवविवाहिता पद्मिनी के मन उठते तरंगों कि तरह जीवन के सपनो और वास्तविकता के मध्य के सांसय का प्रत्यक्ष कि पराकाष्ठा के भाव आज भी समान वातवरण में नारी मन के सत्यार्थ का दर्पण है। पद्मावती को ईश्वर द्वारा ब्रह्मांड की सर्वश्रेष्ठ सुंदर रूप यौवन प्रदान किया गया था रम्भा मेनका उर्वशी के समान एव बैभव में भी वह राज घराने की रानी थी।

#पद्मिनी महल में पासवानों गीतरनियो ढोलनियो बांदियों का जमावड़ा जुट गया ।कंकण किंकनियो वलयो नूपुरों के मुखरित स्वर घाघरे ओढ़न की लक दक कंठो में गूंजती मधुर हंसी की गूंज रानी पद्मावती के देखने की शिशुक्त उत्सुकता कंठो से फूटती मधुर हंसी आनंद और कोलाहल से वातावरण चंचल हो उठा#

राज घरानों में राजाओं द्वारा किये जाने वाले कई विवाहों के कारण उनके महल में एक रानी द्वारा दूसरी रानी पर ही प्रभवी होने के खड्यंत्र राजा को केंद बनाकर किये जाते थे जिसके कभी कभी बहुत भयंकर परिणाम भी होते थे पद्मावती से पूर्व राजा रतन सिंह की रानी प्रभावती द्वारा रानी पद्मावती को निर्देश -

#हम दोनों का जीवन समांतर चलेगा अतः अपनी सीमाओं को मर्यादित रखना खुलने न खुलने का आआत्मीय रहित स्नेह लगा# राजा रतन सिंह के पद्मिनी प्रणय को बहुत शसक्त भाव एव अंतर्मन में उठते कल्पनाओं के याथार्त मिलन जीवन कि फुलवारी के आत्मीय अविनि एव भावनाओं के आकाश और कल्पनाओं के प्रवाह #

#दो प्रेमिल बांहों ने उसे चौड़े सीने में ऐसे छिपा लिया मानो उसके सांसों के कस्तूरी की सारी सुरभी एक साथ पी जाना चाहता हो #

#रेशम की शरसराहट सा अंतरिम सुख अंग अंग में प्रियतम की सुगंध समा गई मन प्राण में जाने कैसा नशा छा गया#

जीवन के इतने सुंदर सौगात के मध्य बादशाह अल्लुद्दीन खिलजी का फरमान पद्मिनी सोच कर सिहर उठती है कि यदि कही वह अल्लुद्दीन खिलजी को सौंप दी गयी तो -

#वे रनिवास को हरम कहते है उस नारी नरक में औरतें कैद रहती है खोजा और लौडियां उसकी पहरेदारी करती है और शक्की सुल्तान समय समय पर बेगमो की जांच करता है एक मनहूस अमानवीय जीवन नरक भोग अकल्पनिक यातना#

राघव चेतन तांत्रिक द्वारा गोरा के विरुद्ध घड़यंत्र करके उसे राजा रतन सिंह जी के कोप का भाजन बनाना फिर स्वय के कुकृत्यों के लिए राजा रतन सिंह जी द्वारा निर्वासित करना राघव चेनत द्वारा अल्लुद्दीन खिलजी के समक्ष रानी पद्मावती के रूप सौंदर्य का वर्णन करना --

#पद्मिनी पद्म गंधा ,हस्तिनी मद्य गंधा च मत्स्यगंधा ,पदमिनी सूर्य वदनी, चंद्रवदनी च चित्रणी हस्तिनी कमल वदनी काक वरणी च सुरवणी#

कामी और नारी भोग कि कामना के अंधे अल्लुद्दीन के लिये पद्मिनी के लिए लालसा जगा दिया जिससे उसके अंतर मन का राक्षस जागृत हो उठा और उसने पद्मिनी को हासिल करने की ठान ली जिसकी कामना से ही उसने चितौड़ को चारों तरफ से घेर लिया और रानी पद्मावती की मांग कर बैठा ।

राजा रतन सिह द्वारा पद्मिनी को बताना की अलाउद्दीन ने युद्ध संधि के शर्त में पद्मिनी के दर्पण में दीदार का प्रस्ताव रखा है तब पद्मिनी और रतन सिंह के संवाद पुरुष प्रधान समाज मे नारी कि मर्यादा पर प्रहार का जवाव वास्तव में पदमिनी को भरतीय इतिहास में नारी शिरोमणि के आदर्श चरित्र के रूप में प्रस्तुत करता है ।

जब अल्लुद्दीन के सिपाही किला देखने के बहाने राजा रतन सिंह को धोखे से बंदी बना लेते है और प्रभावती के पुत्र राजकुमार बीर भाणा द्वारा पद्मावती को बताया जाता है कि-

#दीर्घ विचार विनिमय के बाद यह नीर्णय लिया गया है कि रानी पद्मावती उपहार स्वरूप बादशाह को भेंट कर दी जाय #

रानी पद्मावती द्वारा पूर्व पराक्रमी इतिहास का हवाला देते हुए राजकुमार वीरभाणा जी को राजपूत वीरोचित आचरण के लिये प्रेरित किया जाता है मगर अवयस्क राजकुमार के मन पर गहरा प्रभाव नही पड़ता है अंत मे रानी पद्मावती कहती है कि

#वह राज कुल वधु है सिर्फ रानी प्रभावती की सौत नही#

रानी पद्मावती के मन मे जब भी उंसे बादशाह अल्लुद्दीन खिलजी को सौंपे जाने की याद जब भी आती वह सर से पैर तक सिहर जाती -

#दमघोंटू भयानक नारी नरक शरीर और मांस कि दुनियां चीखे कराहे अट्टाहास खुले संभोग और कोड़े की बौछार यातना केवल यातना नंगी यातना#

मायके से विदा होते माँ बाप का आशीर्वाद दोनों कुलो कि मर्यादा के दायित्व का निर्वहन के लिए शक्ति शिक्षा दायित्व बोध आज भी बेटियों के लिए माँ बाप का आर्शीवाद होता है ।

पूर्णाहुति में तत्कालीन राजा रतन सिंह के पुरुखों एव स्वय राजा रतन सिंह का जैन धर्म में आस्था कि प्रामाणिकता राघव चेतन द्वारा बादशाह अल्लुद्दीन खिलजी को पद्मावती के रूप सौंदर्य के लिये उकसाने की सूचना जैन मुनि के माध्यम से ही मिलती है ।

अंत मे निराश हताश का एक विश्वास के साथ गोरा के पास जाना एव गोरा को राजा रतन सिंह जी को धोखे से बादशाह द्वारा बंदी बनाये जाने एव कोई विकल्प न होने की दशा में एक संकल्प सत्कार का शाश्वत गोरा ही पद्मावती के लिये शौर्य है जो राजा रतन सिंह को मुक्त कराने का सकारात्क श्रम कर सकता है और गोरा कि वफ़ादारी को रानी जागृति करने में सफल हो जाती है और गोरा और बादल सैन्य परिषद की आम बैठक में
बीरो में ऊर्जा उत्साह के देश भक्ति का संचार करने में सफल हो जाता है और हताश निराश योद्धाओं में नई इफूर्ति चेतना जागृति का सांचार होता है गोरा का यह कथन-

#इस पवित्र भूमि को मलेक्षो की क्रीड़ा स्थली बना दोगे अपनी रानी को सौंप कर निश्चिंत हो जाओगे ?पराजय के भय से इस पैशाचिक प्रवृत्ति को निर्वाध पनपने दोगे?प्रश्न और सघन होकर प्रहरात्मक हो उठे।#
#युद्ध कौशल शत्रु पर विजय पाने की अभिलाषा जीत के संकल्प के साथ युद्ध आरम्भ होता है जो युद्ध से पूर्व ही हार मान लेता है वह कभी नही जीत सकता #

सभी बीर योद्धाओ द्वारा गोरा एव बादल के नेतृव बड़े सुनियोजित तरीके से राजा रतन सिंह को मुक्त करा लेते है पुनः एक बार विजय का बैभव राज एव राजा रतन सिंह के नेतृत्व में आस्थावान हो उठता है ।

मगर भागा घायल सर्प की तरह बादशाह अल्लुद्दीन खिलजी उचित अवसर की तलाश कर रहा था और अपनी शक्ति बढ़ा रहा था कुछ दिन बाद ही उसने अत्यधिक शक्ति के साथ निर्णायक आक्रमण कर दिया गांवों को लुटाता खून कि नदियाँ बहाता किले की तरफ बढ़ता जा रहा था बड़ी बहादुरी के साथ राजा रतन सिंह के नेतृत्व में गोरा एव बादल जैसे बीर योद्धाओं की सेना के साथ राजपूतों ने युद्ध लड़ा मगर अल्लुद्दीन कि विशाल सेना ने उन्हें धूल धुसित कर दिया अंत मे जब रानी पद्मिनी ने देखा कि सारे योद्धा सेना राजकुमार स्वय राज रतन सिंह युद्ध मे खेत रहे तो उसने यमन तुर्क के गंदे मंसूबो के गंदे हाथो में जाने से बेहतर जौहर का मार्ग चुना।

पद्मावती ने स्नान कर सोलहो श्रृंगार किया और अग्नि पूजन के बाद विधि विधान से स्वयं को अग्नि देव को समर्पित कर दिया

#कमनीय शरीर अग्नि के साथ एकाकार हो गया जलती चिताओं कि लपटे धूं धूं कर ऊंची उठने लगी मंत्रोच्चार तीब्र होता गया दशो दिशाएं गूंजने लगी मृत्य जयति धरूं #

समग्र ब्रह्मांड महिमा शाली हो गया अनुष्ठान की पुर्णाहुति हो गयी।।

पुर्णाहुति वास्तव में नारी गौरव की गाथा है जिसमे युग नारी का प्रतिनिधित्व करती है महारानी पद्मावती ने किया और नारी से सृष्टि सारी एव नारी देवो की शक्ति सारी को स्वय के व्यवहारिक आचरण से प्रस्तुत किया वह भारतीय इतिहास की एक मात्र नारी गौरब है जिसने पुरूष प्रधान समाज द्वारा अपनी रक्षा के लिये अपनी शुख भोग भविष्य के लिये इच्छाओं दमन नैतिकता एव पराक्रम के धार से कर सदा नारी समाज को प्रेरित करती रहेगी और निश्चित रूप से लेखिका के अंतर्मन एव आत्मबोध का प्रसंगिग परिणाम भी पुर्णाहुति का यही है द्रोपदी, ध्रुव स्वामिनी,पद्मिनी कि आहुति कि पूर्णाहुति पुरुष प्रभावी समाज द्वारा समाप्त हो समझने में मृदुल बिहारी जी ने पूर्णाहुति का मशाल प्रज्वलित किया है-

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।