ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश”
पोस्ट ऑफिस के पास रतनगढ़
जिला –नीमच ४५८२२६ मप्र
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लघुकथा – 1 ---------- गंगा ------------
प्रदूषित नदी आगे बढ़ी तो गंगा चहकी ,” आओ बहन ! तुम्हारा भी स्वागत है।”
"शुक्रिया गंगे !” कहते हुए प्रदूषित नदी गंगा की बांहों में समां गई। आज पहली बार उसके बदबूदार पानी ने खुल कर साँस ली थी, मगर गंगा की सांसे फूलने लगीं। फिर अचानक ही हाँफती हुई गंगा के कदम लड़खड़ाने लगे दिल धक से बैठने लगा, सामने से अनगिनत और ग़लीज़ जलधाराएँ उसकी ओर बढ़ रही थीं।
लघुकथा- 2---------- अँधा -------------
“अरे बाबा ! आप किधर जा रहे है ?,” जोर से चींखते हुए बच्चे ने बाबा को खींच लिया.
बाबा खुद को सम्हाल नहीं पाए. जमीन पर गिर गए. बोले ,” बेटा ! आखिर इस अंधे को गिरा दिया.”
“नहीं बाबा, ऐसा मत बोलिए ,”बच्चे ने बाबा को हाथ पकड़ कर उठाया ,” मगर , आप उधर क्या लेने जा रहे थे ?”
“मुझे मेरे बेटे ने बताया था, उधर खुदा का घर है. आप उधर इबादत करने चले जाइए .”
“बाबा ! आप को दिखाई नहीं देता है. उधर खुदा का घर नहीं, गहरी खाई है .”
लघुकथा –3------------ वापसी -----------------
बस में चढ़ते ही सीमा ने चैन की साँस ली. ‘ अब उसे कोई नहीं कहेगा कि वह हकले और नकारा आदमी की पत्नी है जो कोई काम धंधा नहीं करता है. अब वह अकेली ही रहेगी.’ उस ने तय कर लिया था.
तभी बस में पीछे खड़ा आवारा किस्म का लड़का उस से टकराया.
“ दिखता नहीं है ! अँधा है ! ”
“ जी नहीं. ये मेरे पति है और लंगड़े है. बस का धक्का सह नहीं पाए.” पास खड़ी लड़की उसे सम्हाल कर चिल्लाई.
“ क्षमा करे. ” कहते ही सीमा बस से उतर गई , ‘ जब एक लड़की लंगड़े पति का सहारा बन सकती है तो मैं हकले और नकारा पति के वैचारिक संबल का सहारा क्यों नहीं बन सकती .’ उस के दिमाग में घंटी बजी .
लघुकथा-4---------- आग ---------------
बरसते पानी में काम को तलाशती हरिया की पत्नी गोरी को बंगले में कुत्ते को बिस्कुट खाते हुए देख कर कुछ आश जगी, ‘ यहाँ काम मिल सकता है या खाने को कुछ. इस से दो दिन से भूखे पति-पत्नी की पेट की आग बूझ सकती थी.’
“ क्या चाहिए ?”
“ मालिक , कोई काम हो बताइए ?”
“ अच्छा ! कुछ भी करेगी ?” संगमरमरी गठीले बदन पर फिसलती हुई चंचल निगाहें उस के शरीर के रोमरोम को चीर रही थी., “ कुछ भी ,” उस ने जोर दे कर दोबारा पूछा.
“ जी !! ” उस की आवाज हलक में अटक गई और पेट की आग तन पर जलती महसूस होने लगी.
लघुकथा – 5--------- इच्छा --------------
“ आज ऐसा माल मिलना चाहिए जिसे मेरे अलावा कोई और छू न सके,” कहते हुए ठाकुर साहब ने नोटों की गड्डी अपनी रखैल बुलबुल के पास रख दी और वहां से उठा कर हवेली के अपने कमरे में चल दिए.
“ जी सरकार ! इंतजाम हो जाएगा, ” कहते ही बुलबुल को याद आया कि सुबह ठकुराइन ने कहा था, ‘ बुलबुल बहन ! ठाकुर साहब तो आजकल मेरी और देखते ही नहीं. मैं क्या करूं ? ताकि उन को पा सकूं ? ’
यह याद आते ही उस की आँखों में चमक आ गई. उस ने नोटों से भरा बेग उठाया. फिर गुमनाम राह पर जाते-जाते ठाकुर और ठकुराइन को यह खबर भेज दी कि आज आप दोनों रात को दस बजे उस के अँधेरे कमरे में आ जाए, “ आप की इच्छा पूरी हो जाएगी.” और बुलबुल उड़ गई.
लघुकथा- 6----------------उडान------------------
सीमा ने बीना को समझाया , " बॉस की बात मान ले. तू ऐश करेगी ."
" जैसे तू करती है ?"
" हाँ ," सीमा ने बेशर्मी से कहा, " इस में फायदें ही फायदें हैं ."
" सब चीज मुफ्त में ," बीना ने नाकभौ सिकोड़ कर कहा ," ऐश आराम के साथ, बदनामी भी मुफ्त में."
" तू भी क्या दकियानूसी औरतों की तरह बातें कर रही हैं. ," सीमा ने उसे उकसाया ," कभी उन्मुक्त उड़न भर कर देख ."
" हूँ ! मुझे नहीं भरना , बिना पंखो के उडान. कभी धडाम से नीचे गिर जाऊँगी ," कहते हुए बिना रुके चुपचाप चल दी .
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ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश”
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