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बादशाह का बकरा

बादषाह का बकरा

बा

दषाह अकबर सैर के लिए गए. वहां उन्हें एक हट्‌टाकट्‌टा और सुंदर बकरा दिखाई दिया. जिस पर वे मोहित हो गए. उन्हों ने बीरबल से कहा,‘‘ कितना सुंदर बकरा है?''

बीरबल कब चुकने वाला था. तत्काल जवाब दिया,‘‘ जी हां, जहांपनाह! यह संसार का सब से सुंदर बकरा है.''

‘‘ तब तो इसे हमारे साथ राजमहल की घुड़साल में होना चाहिए.''

‘‘ जी हां जहांपनाह,'' बीरबल ने कहा और फिर एक सैनिक को आदेष देते हुए बोले,‘‘ राजबीर! इस बकरे को खरीद कर अपने साथ ले चलो.''

राजकीय आदेष का पालन हुआ.

उसी वक्त बकरा बादषाह की संपत्ति हो गया. उसे राजकीय घुड़साल में बांध दिया गया. और बादषाह की मंषा के अनुसार उस की देखभाल के लिए एक जमादार नियुक्त कर दिया गया. जो उस बकरे की देखभाल करता और उसे नियम से जंगल में चराने ले जाता और लाता था.

बादषाह भी उस बकरे को शाम को देखने आते. उसे अपने हाथों से हरीहरी और मुलायम घास खिलाते. यह क्रम नियम से चल रहा था कि एक दिन बादषाह के दिमाग में एक विचार कौंधा.‘‘ उन की राजकीय बकरा भूखा रहता है. अन्यथा क्या कारण है कि जब भी वे उसे घास खिलाते हैं, वह तुरंत घास खा जाता है. इस का मतलब है कि इस की देखभाल ठीक से नहीं हो रही है.

‘‘ हो न हां,े जमादार इसे जंगल में ठीक से चराता नहीं है. वह इसे भूखा रखता है.'' यह विचार करते ही उन्हों ने सैनिक के हाथों बीरबल को बुलावा भेजा.

असमय राजा का निमंत्रण पा कर बीरबल चौंका.‘‘ हाें न हो, कुछ बात जरूर है. अन्यथा बादषाह उन्हें असमय नहींं बुलाते .'' यह सोचते हुए बीरबल तुरंत बादषाह के सामने हाजिर हो गया.

‘‘ कहिए जहांपनाह कैसे याद किया ?''

‘‘बीरबल यह बताइए,'' बादषाह ने कोई भूमिका बांधे बिना सीधे ही पूछ लिया,‘‘ हमने बकरे की देखभाल के लिए जमादार नियुक्त कर रखा है.''

‘‘हां जहांपनाह.''

‘‘ उसे नियमित वेतन भी देते हैं.''

‘‘ बिलकुल सही फरमाया, जहांपनाह.''

‘‘ तब वह इस बकरे की देखभाल ठीक ढंग से क्यों नहीं करता है. इस का कारण यह है कि यह बकरा रोज भूखा रहता है. अर्थात जमादार इसे ठीक ढंग से जंगल में चराता नहीं है.'' बादषाह का यह बात सुनते ही बीरबल समझ गया कि जहांपनाह अपने हाथों से रोज बकरे को मुलायम और ताजातरीन घास खिलाते हैं जिस बकरा तुरंत खा जाता है. जिसे देख कर बादषाह समझ रहे है कि बकरा भूखा रहता है.

बीरबल बादषाह को समझाना चाहते थे कि बकरा ठहरा जानवर. यह क्या जाने कि पेट भरा है या खाली ? उस का काम तो खाना है. वह खाता रहता है. मगर वे बादषाह को यह बात कह नहीं पाए. क्यों कि बीरबल जानता था कि बादषाह इस बात को सीधे से मानने वाले नहीं है.

‘‘ठीक फरमाते है जहांपनाह.'' बीरबल ने कहा.

‘‘ तब उस जमादार को बुलवाइए. उसे इस नाफरमानी की सजा मिलेगी. उस ने राजकीय बकरे को भूखा रखने की गुस्ताखी की है.'' बादषाह ने कहा और एक संतरी को आदेष दिया,‘‘ सैनिकों ! तुरंत जाओं. उस नाफरमान जमादार को पकड़ कर लाओं और उसे हमारे सामने पेष करों.''

बीरबल यह आदेष सुन कर हैरान रह गए. वे समझ गए कि बेबात में जमादार फसने जा रहा है. बादषाह उसे सजा जरूर देगें. उसे बचाना ज्यादा जरूरी है. यह सोचते हुए बीरबल ने बादषाह सलामत से जाने की अनुमति लीं और सीधा कचहरी में पहुंच कर जमादार का इंतजार करने लगा.

कुछ ही देर में जमादार हाजिर हुआ. बीरबल ने तरकीब के मुताबिक उस के कान मे अपनी बात कह दी. मरता क्या न करता ? उस ने हामी भर लीं.. बीरबल ने जैसा कहा है वह वैसा ही करेगा.

ठीक समय पर बादषाह सलामत दरबार मे हाजिर हुए. उन्हों ने आते ही जमादार से पूछा,‘‘ जानते हो, तुम्हें यहां क्यों बुलाया गया है ?''

‘‘ जी हां जहांपनाह। मुझे सैनिकों ने अपना जुर्म पहले ही बता दिया था.''

‘‘ क्या तुम्हें पता है, राजकीय बकरे को भूखे रखने के जुर्म की सजा क्या हो सकती है ?''

‘‘ जी हां जहांपनाह, इस की सजा है सजा—ए—मौत.''

‘‘ क्या तुम अपना जुर्म कबूल करते हो ?'' बादषाह ने पूछा तो जमादार ने एक पल खोए बिना जवाब दिया,‘‘ जी हां जहांपनाह, मुझे जुर्म कबूल है.''

‘‘ अब तुम अपनी आखिरी इच्छा बता सकते हो,'' बादषाह ने अगला व अंतिम सवाल किया. मगर इस दौरान वे बीरबल को चोर निगाह से देखना नहीं भूलें. क्यों कि बादषाह जानते थे कि बीरबल ऐसे समय कुछ न कुछ जरूर बोलते थे. इस का कारण यह था कि वे लोगों को कम से कम सजा दिलाने के पक्ष में रहते थें. जहां तक हो सकता था वे बेकसूर को सजा से बचा जाते थें.

मगर आज बीरबल को चुप देख कर बादषाह को अचरज हुआ.

‘‘ जमादार तुम अपनी आखिरी इच्छा बताओ ?''

बादषाह ने दोबारा पूछा तो जमादार ने कहा,‘‘ जहांपनाह आप का इकबाल बुलंद हो. अल्लाताला आप पर नैमत बरसाए. '' यह कहते हुए जमादार ने अपनी इच्छा बताई,‘‘ जहांपनाह मेरी आखिरी इच्छा यह है कि मैं राजकीय बकरे को एक बार भरपेट खाना खिलाना चाहता हूं.''

‘‘ इन की अंतिम इच्छा पूरी की जाए,'' बादषाह ने कहा,‘‘ यदि हमें यह महसूस हुआ कि तुम ने राजकीय बकरे को वाकई भरपेट भोजन करा दिया तो हम तुम्हारी सजा कम कर सकते हैं.''

‘‘ जहांपनाह का इकबाल बुलंद हो,'' जमादार ने कहा और बकरा ले कर जंगल में चला गया.

बीरबल की तरकीब के अनुसार जमादार ने एक तरफ हरीहरी घास रखी. दूसरी तरफ सुखी घास रखीं. जैसे ही बकरा हरीहरी घास खाता जमादार उस के मुंह पर डंडा बरसा देता . मगर जब वह सूखी घास खाता तो उसे मार नहीं पड़तीं.

आखिर दिनभर चले इस नाटक से बकरा समझ गया कि यदि उस ने हरीहरी घास खाई तो उस को डंडे पड़ेंगे इसलिए उस ने हरीहरी घास खाना छोड़ दिया.

इस तरह शाम तक बकरे को चरा कर जमादार दरबार में ले आया.

‘‘ जहांपनाह मैं ने अपनी अंतिम इच्छा पूरी कर दी,''जमादार ने कहा तो बादषाह अकबर अपने हाथ में हरीहरी घास ले कर आए. वे बकरे को जितनी बार घास खिलाने की कोषिष करते उतनी बार बकरा मार के डर से पीछे हट जाता.

यह देख कर बादषाह ने कहा,‘‘ वाकई जमादार, तुम ने अपनी अंतिम इच्छा पूरी कर दी. मगर मुझे यह बात समझ में नहीं आई कि यदि तुम्हारी अंतिम इच्छा पूरी नहीं होती तो क्या होता ?''

‘‘ जहांपनाह तब भी मैं जिन्दा रहता .''

‘‘ कैसे ?'' बादषाह ने पूछा तो जमादार ने बीरबल की ओर देखते हुए कहा,‘‘ जहांपनाह यदि बकरे का पेट नहीं भरता तब भी, जब तक मेरी यह अंतिम इच्छा पूरी नहीं होती तब तक आप मुझे फांसी पर नहीं चढ़ पाते.''

‘‘ तुम ने ठीक फरमाया,'' बादषाह ने कहा और अपने महल की तरफ चल दिए. मगर उन्हें आज तक समझ में नहीं आया कि बकरे का पेट कैसे भरा था.

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