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बचपन की खट्टी मीठी यादें

C.P.Hariharan

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बचपन की खट्टी मीठी यादें

सरिगा और संगीता सहपाठी थे। दोनों एक ही गाँव में अड़ोस पड़ोस में ही रहते थे। उनके गाँव के पास ही एक बड़ी सी जंगल भी थी। उस गाँव की चारों तरफ पहाड़ भी थी। इसलिए वहां हमेशा ठंडी ताज़ी हवा मौजूद थी। सरिगा पढ़ने में बड़ी तेज़ थी। दोनों के घर में एक एक पिल्ला भी था। सुबह शाम पिल्ले को घुमाने में दोनों इकट्ठे होकर ही जाते थे। वे दोस्त भी थे। दोनों बहुत ज़िद्द थे। जो जी चाहे करना चाहते थे। कुछ न कुछ शरारतें करते थे।

उस गांव में एक स्कूल भी थी। उस स्कूल में तो सिर्फ चारवीं कक्षा तक थी।उसके बाद तो पांचवीं से बारह तक, वहां से थोड़ी सी और दूर जाकर बड़ी स्कूल में पढ़ने केलिए जाना पड़ता था। हर रोज़,सुबह प्रार्थना करना, छुट्टी होने के पहले राष्ट्रीय गीत गाना, उस स्कूल की नियमित कार्यक्रम में थी। पाठयक्रम के अतिरिक्त, खेलखूद, ध्यान, नैतिक शिक्षा और अनुशासन कार्यक्रम की खासकरके जोरदार ज़बरदस्त इंतज़ाम थी । छात्रों की सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास ही स्कूल की ध्येय थी। हर साल गांधी जयंती पर सेवा सप्ताह मनाने का भी स्वछ वातावरण कार्यक्रम का आयोजन भी था।

उनके स्कूल में बड़ी सी दो सभामण्डप थी। उसमें हर एक कक्षा को अलगानेवाली लकड़ी की चौखट से बनी हुई दीवार भी थी। इसलिए एक क्लास में बच्चे ज्यादा शोर मचाने से दसरे क्लास को भी बाधा हो रही थी। जब भी सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है, बंटवारा को हटाते थे।

उस स्कूल की वातावरण बहुत सी अच्छी थी। वहां की माहौल चम्पक, मल्ली, पविल मल्ली, घाटी फूलों की ज़बरदस्त महक से भरपूर थी। फूलों की महक से भरपूर ताज़ी ठन्डी हवा वहां हमेशा मौजूद थी।सुबह शाम कोयल गीत गा रही थी। वहां सूर्योदय और अस्त की दृश्य देखने में मज़ा ही और कुछ था। पेड़ों की बीच में से लाल सी सूरज को देखने में कुछ ज्यादा ही अच्छा लग रहा था। रात को तो, चांदनी और सितारों से अलंकृत आसमान शानदार लग रही थी। बारिश की मौसम में कभी कभी आसमान में इंद्रधनुष भी दिखाई देती थी जो उस वातावरण की सुंदरता को और बढ़ाया।

वहां बहुत सारे मोर भी थे। उनको मालूम था कि बारिश कब आयेगी। वे बारिश आने के पहले से ही अपने पंख बिछाकर नाचने लगते थे। वहां बन्दर और खरगोश भी मौजूद थे। वहां एक बहुत बड़ी सी पार्क भी थी। उसमें झूले, सलइडर्स, कसरत की उपकरणों भी थे। बच्चे वहां खूब खेलते थे।

उनकी स्कूल में एक सुन्दर सी रंगीन और नाचनेवाले फव्वारा भी थी। इस माहौल में बच्चों को बहुत मज़ा आया।

स्कूल की सामनेवाली सड़क की दोनों तरफ से पेड़ों थी। वहां से जाने से तो ऐसा लग रहा था कि कोई किसी पेड़ों की गुफा में ही घुस रहा हो।

उस गाँव में एक नदी भी थी। गाँव के लोग रोज़ सुबह शाम वहां नहाया करते थे। बारिश की मौसम में ज़बरदस्त बारिश होती थी। बच्चे कागज़ की नाव बनाकर बारिश में बहता हुआ पानी में डालते थे। उसी माहौल में छात्रों की ख़ुशी और मौज मस्त की कोई ठिकाना नहीं थी।

वहां के लोग बहुत मेहनती थे।वे खेतीबारी करके ही अपनी गुजारा करते थे। जरूरत पड़ने पर

एक दूसरे की मदद ज़रूर किया करते थे।

एक दिन सरिगा को बुखार हो गयी। वह एक हफ्ते केलिए स्कूल ही नहीं जा पायी। अगलेसोमवार को स्कूल में शामिल हुई। एक हफ्ते में, उसकी गणित अध्यापक ने तो पूरा एक अध्याय ही पढ़ा चूका था। सरिगा को तो कुछ भी पल्ले में ही नहीं पड़ी। काला अक्षर भैंस बराबर की हिसाब थी, ऊपर से मास्टर जी ने उसी दिन को ही ताज्जुब परख भी ली। सरिगा अच्छी तरह पढ़ती है सोचकर उसके पास में बैठी हुई सारे छात्र उसको नक़ल की। सब को अंडा ही मिला। दूसरों की भरोसे में रहनेवालों को इससे ज्यादा और मिल भी क्या सकता है ? उन्होंने नक़ल करने की नतीजा भुगत ली। मास्टर जी ने सब को डांटा और एक एक चाटा भी मारा। उनको क्लास से बाहर खड़ा कर दी और उनको श्कूल की मंडप को तीन बार परिक्रमण करने की आदेश भी दिया गया।उनको अपनी नटखटी हरकतें की सही सजा मिली।

एक दिन अंग्रेजी मास्टर जी छुट्टी पर था। उनके घर पर पिल्ले पैदा होने की वजह से उन्होंने छुट्टी लिया था। जब क्लास लीडर ने इस बात को क्लास में बताया तो सारे छात्र ज़बरदस्त फट फटकर लगातार हंसने लगे और मास्टर जी को हंसी उड़ाने लगे। गुरूजी ही ऐसा है तो चेलों का क्या हाल होगा ? कुछ छात्रों ने सवाल उड़ाया। कक्षा अध्यापक ने कक्षा लीडर को क्लास में शोर मचानेवालों की नाम लिखने की आदेश दी। संगीता चुप रहने के बावजूद भी उसकी नाम क्लास लीडर ने लिखा। बाद में जिन जिन छात्रों ने शोर मचाया, उन सब को प्रिंसिपल ने बुलाया। संगीता ने प्रिंसिपल से मिलने केलिए इनकार कर दी, बल्कि वह क्लास में ही बैठ गयी। उसकी हिसाब से वह ठीक थी। लेकिन किसी ने उसकी साथ नहीं दिया, न ही उसको सुनने की कोशिश की। प्रिंसिपल ने दोनों हाथ उल्टा कान में पकड़कर उठक बैठक करने केलिए बच्चों को हुकम दिया। संगीता प्रिंसिपल की आदेश को न मानने के कारण, प्रिंसिपल ने उसको चाटा मारा। वह सारा दिन फुट फुटकर रोती ही रह गयी। अगर वह सबके साथ चली गयी होती, सजा भी कम मिल गयी होती। उसने ज़िंदगी में सबके साथ चलने की एक सबक सीख ली।

संगीता के घर के आसपास जो बाग बगीचा थी वह बहुत सुन्दर थी। वहां बहुत सारे पेड़ पौधे भी थी।संगीता और सरिगा रोज़ शाम को पेड़ पौधों की सिंचाई भी करते थे। इसीलिए ठंडी हवा हमेशा वहाँ मौजूद थी। दोनों पिल्ले को भी घुमाते थे।वह बगीचा फूल फलों की महक से भरपूर थी। शाम को वहां से घर वापस जाने को उनको मन ही नहीं करता था। फिर भी हर हालत में उनको छे बजे वापस घर पहुंचने की माँ बाप की आदेश थी। उनको जंगल की एक सीमा से आगे न जाने का भी की पाबन्दी लगी हुई थी।एक दिन ऐसा हुआ कि सारिका की पिल्ला जिंगिल ने सीमा पार करके आगे भाग गया। उनको उसके पीछे भागने के सिवा और कोई रास्ता नहीं था। वह भाग भागकर गन्दा पानी का डबरा में गिर गया।सरिको को उसको संभालना बहुत मुस्किल लगी। उसको डबरा से निकालते वक्त सारिका भी उसमें गिर गयी।संगीता ने उसको हाथ दिया और उसको बचाया, तब तक अँधेरा छा गयी थी।घर वापस जाने में दोनों को देर लगने लगा। थोड़ी ही दूर आने से ही उनको रास्ते में एक अजनबी नज़र पड़ी। दोनों वहां से भागम भाग भागने लगा। उसने भी उनका पीछा किया। उसको तो बच्चों की नाजायज़ फायदा उड़ाने का इरादा था। थोड़ी सी और दूर आने पर, एक ज़बरदस्त सांप सामने आयी। एक पल केलिए क्या करना है कि दोनों को समझ में ही नहीं आया। उन्होंने ज़बरदस्त शोर मचाया। घरवाले भी हैरान होकर उन दोनों को ढूँढने लगे। उन्होंने उनकी आवाज़ सुन ली। और लोगों को देखकर अजनबी तो भाग गया था। उनकी माँ बाप ने बच्चों को सांप से बचाया। इतने में तो दोनों पिल्ले जिंगिल और विंगिल गायब हो गये थे। जब दोनों घर पहुंचे, दोनों को माँ बाप से ज़बरदस्त डाँट खानी पड़ी। बच्चों को एक तरफ से वहां से बचने की राहत थी, तो भी पिल्ले को खोने की अफसोस भी थी।

श्वेता भी उनके क्लास में ही पढ़ रही थी। स्वेता की किताबें हमेशा नया लगती थी क्यों कि वह कभी किताब छूने की कष्ठ ही नहीं करती थी।वह सिर्फ एक औसत छात्र थी।उसने सोचा कि ज़िंदगी में सिर्फ पढ़ना लिखना ही सब कुछ नहीं है। बस, सिर्फ क्लास में ही पूरी ध्यान देती थी। वह अच्छी गायक कलाकार थी।एक बार, सामूहिक पाठ मास्टर जी ने उसको परीक्षा में हारने की वजह से एक ज़बरदस्त चाटा मारा। उसकी सोने की अंगूठी टूट गयी जो उसकी मामा जी ने उसकी जनम दिन पर तोहफा की रूप में दिया था। उसकी भी कोई कसूर नहीं थी।वह बहुत गरीब थी। एक वक्त की खाना भी मुस्किल से ही उसको मिल रही थी। इसलिए उसको पढ़ाई में इतनी ध्यान नहीं लग रही थी। सिर्फ पढ़ने लिखने से ही ज़िंदगी में कोई आगे नहीं बढ़ सकता।जैसे कि क्रिकेट में हरफनमौला का हेी आखिर जीत होती है, ज़िंदगी में भी ऐसा ही होता है।

राजा और रोजा भी वही स्कूल में ही पढ़ रहे थे। वे पढ़ाई में निपुण थे। रोजा तो असली रोजा की तरह खूब सूरत और सुन्दर थी।उसकी मन में कोई कांटे नहीं थे। वह भोली भाली थी।उसकी लम्बी सी केश हवा में जल तरंग की तरह झर रही थी । राजा भी देखने में फ़िल्मी सितारों की तरह सुन्दर था। सच में तो वह राजा नहीं था बल्कि रजाधिराजा था। वे बगीचे में झूले झूलने में बहुत मज़े लेते थे। वे बहुत चुस्ती थे।।दोनों खास दोस्त थे और बहुत साफ और स्वच्छ थे।

उनकी हिंदी टीचर तो उनको बहुत मारती थी। हर क्लास में, ए और बी की दो विभाग थी। दोनों क्लास ३ए में पढ़ रहे थे। क्लास ३ बी में राधा टीचर छात्रों को प्यार से हिंदी पढ़ा रही थी। वे राधा टीचर को पसंद करते थे।इसलिए, दोनों ने क्लास बी में ही बैठने की हरकत की। कभी कभी हिंदी क्लास डाट करते

थे।बगीचे में छिपाकर चुप चाप बैठे रह गये थे।उनको हिंदी पढने में मन ही नहीं लगी।

इसीलिए तो बच्चों को प्यार से सिखाना बहुत ज़रूरी है।उनको पढ़ने को कहने से ज्यादा बच्चों के

सामने हम खुद पढ़ना बहुत ज़रूरी है जो कई माँ बाप नहीं करते।

एक दिन शिक्षक दिवस पर बच्चों ने चन्दा इक्कट्ठा करके अपने क्लास टीचर को तोहफा दी।

उस तोहफा को कई सारे लपेट से लपेट लिया गया था। क्लास टीचर को उस तोहफा

की लपेट को उतारने में बहुत प्रयास और देर लग गयी। सब लोग चौक पड़े। उनकी

परेशानी को देखकर बच्चों को तो उलटा बहुत मज़ा भी आया था, लेकिन टीचर ने तो उस तोहफा को स्वीकार करने केलिए इनकार कर दी । उन्होंने कहा "आप लोग अच्छी तरह पढ़ लिखकर आगे बढ़े तो, वही हमारेलिए बड़ी तोहफा है, उससे बड़ी तोहफा हमारेलिए और कुछ भी नहीं हो सकती है, आगे से ऐसी हरकतें नहीं करने का ”, उन्होंने बच्चों को आदेश दी।

एक दिन स्कूल में सरकार की तरफ से डी. इ. ओ. निरीक्षण केलिए आनेवाली थी।उसके पहले दिन ही प्रिंसिपल ने स्कूल को साफ सुथरा रखने केलिए छात्रों को आदेश दिया था।उस दिन सारे छात्र अच्छे यूनिफार्म पहनकर आ गये थे। छात्रों को तो, निरीक्षक से डर था कि वह कोई सवाल पूछ भी सकता है।अध्यापक भी ज़रा सा डरते हुए दिखाई दिया।उनका पढ़ाने की तरीके का मानदंड निरीक्षक ने अपनी फाइल में नोट किया और अध्यापक को सुधरने की सुझाव देकर चली गयी।

हर साल, चारवीं क्लास की बच्चों की बिदाई की पार्टी होती थी। उन छात्रों हस्तलेख भी प्रतिदान करते थे। पार्टी में सांस्कृतिक कार्यक्रम था और सब के फोटो भी खींचे थे ताकि सब को फोटो की एक एक प्रति दे सके।उनको महसूस हुई कि इस स्कूल की यादें कभी भी भूल से भी भूल नहीं सकती। सब की आँखों में आंसू भरी हुई थी।उन्होंने सोचा कि ऐसी माहौल ज़िंदगी में फिर कभी वापस नहीं आयेगी। उन्होंने एक दूसरे की आंसू पोछकर दूसरों से बिदाई ली।वह उनकी ज़िंदगी की पहली मोड़ थी।उनको समझ में आया कि इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है।

शुभम

Author : C.P.Hariharan

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