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शाश्वत गांधी

नोंध—यह आलेख गांधीजी और उनकी विचारधारा के संबंध में है, अतः उस हिसाब से अक्तूबर-2016 में आनेवाली गांधीजयंति के पर्व पर, 2 अक्तूबर को प्रकाशित कर सक्ते है.

फोटो सजेशन-

बुक का शीर्षक : शाश्वत गांधी

लेखक : परीक्षित जोशी

Book title- Shasvat Gandhi

by Parikshit Joshi

बुक कन्टेन्ट :

2 अक्तूबर. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के साथे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भी जन्मदिन है यह हम सभी भलीभांति ते है. एसे तो विश्वभर के लोगो के लिए महात्मा गांधी ने जो किया, जो राह दिखाई है, उस में कोई दो है लेकिन भारत गुजरात के सबसे लाभान्वित हुआ है तो वह है अहमदाबाद.

गांधीजी जब आफ्रिका से भारत वापिस आये तो उन्हो ने अपने जीवन के लिए गुजरात के साबरी नदी के े बसे अहमदाबाद को पसंद किया. तब उन्होने कहा था, ‘एक गुजराती होने के नाते, मैं गुजराती के से देश की सबसे बड़ी सकूंगा.’ उनके सन्मान के लिए अहमदाबाद में समारंभ में उन्होने कहा था, ‘अगर अहमदाबाद मुझे यहां रहने देगा तो मैं यही रहना चाहूंगा.’ ईसी संदर्भ में, गांधीजी के अहमदाबाद के साथ रहे संबंध के बारे में ‘गांधीजी अहमदाबाद में’ से एक जिसे गूजरात के से अहमदाबाद फाउन्डेशन के डा. माणेक पटेल रहे है. यह दस्तावेजी चलचित्र सिर्फ गुजराती में होनेवाला था लेकिन अब यह हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में ही होगा. उस के ‘एक फरिस्ता अहमदाबाद में आया’ टाईटल सोन्ग को कल्याणी कर का हुआ है. यह दस्तावेजी चलचित्र में मिलाकर 40 इन्टव्यूज होंगे.

गांधीजी ने अहमदाबाद में सब से पहले आश्रम की स्थापना की. वह था, आश्रम. जिस की बापू ने 1915 में अहमदाबाद के रब नामक गांव के की थी। यह बेरिस्टर जीवनलाल वृजलाल का समरविला बंगलो था. उन्होने यह बंगलो बापू को देश के लिए दिया था. 25 मई, 1915 के रोज 25 आश्रमवासीओं के बापू ने यहां किया. देढ के के बाद बापूने कोचरब आश्रम छोड दिया. 1950 यह ज्यों का त्यों था, लेकिन 1953 में उसे सत्याग्रह में रूपांतरित किया गया. जिस का गूजरात के जिम्मे है. 2015 का रब आश्रम की का शताब्दि वर्ष है वैसे ही गांधी बापू के अहमदाबाद का यानि दूसरे शब्दो में उनकी घरवापसी का भी शताब्दि वर्ष है. 9 जनवरी 1915 के दिन वह 21 के आफ्रिका निवास के बाद भारत लौटे थे. ईस दिवस को पहेलीबार प्रवासी भारतीय दिवस के उपलक्ष में गुजरात की पर मनाया गया था.

यहां फैलने की से 1917 में सत्याग्रह आश्रम साबरी नदी के े पर ित हुआ और तब से ‘साबरमती आश्रम’ कहलाने लगा. के बाद यह आश्रम हरिजन को उस के सौप दिया था. जिस वजह से यह ‘हरिजन आश्रम’ के से भी जाना जाता है. आश्रम के के में इतिहासकारों का है कि दधीचि ऋषि, जिन्हो ने असुर के के लिए वज्र के लिए अपनी अंतडीयां करने अपने जिवन का किया था, उन का आश्रम भी करीब था. हालांकि यह आश्रम की एक ओर सेंट्रल और दूसरी ओर दुधेश्वर है, सो गांधीवादीओ के लिए एक एसी भी हुई थी कि, आश्रम में रहकर बापू के सिद्धांतो पर न्योछावर करनेवालो को लिए आश्रम के बाद यही दो पर रहता है. कितनी है यह बात.

गांधीजी ने अपनी रखने के लिए तीन के एक को पसंद किया था. यह तीन बंदर का शिल्प गांधी आश्रम के शिल्पशिक्षक दत्ता ने किया था. जो भी गांधीआश्रम गांधी के में है. गांधीजी, दत्ता महा को महाराष्ट्र के खामगांव से अहमदाबाद गांधी आश्रम में बतौर शिल्पशिक्षक के कार्यभार के लिए आमंत्रित किया था. शिल्प में बंदर एक अच्छी सिख देता है. बंदर करता है कि बुरा बोलो. बंदर सूचित करता है कि बुरा मत देखो और तीसरा बंदर सूचित करता है कि बुरा मत सुनो. गांधी आश्रम की एक और विशेषता भी है. यहां में डाक डालने पर उस पर एक लगती है. गांधीजी ने जिस से पूरे को स्वाश्रय के पढाये थे वह चरखे की मुहर यहां जाती है. डाक यह विशेष सन्मान गांधी संग्रहालय-गांधी साबरमती आश्रम को दिया गया है.

आश्रम में रहते हुए ही गांधी जी ने अहमदाबाद की मिलों में हुई का किया. मिल ्मचारियों के को सुलझाने के लिए गांधी जी ने शूरु किया उसका एसा पडां कि पिछले 21 दिनों से रही हड़ताल को सिर्फ तीन दिनों में ही हो गई. इस के पचात् गांधी जी ने आश्रम में रहते हुए खेड़ा का सूत्रपात किया. रालेट की सिफारिशो का करने के लिए गांधी जी ने तत् ओं का एक किया और सभी उपस्थित लोगों ने सत्याग्रह के किए.

साबरमती आश्रम में रहते हुए महात्मा गांधी ने 2 1930 ई. को भारत के वाइसराय को एक लिख किया कि वह नौ दिनों का सविनय करने जा रहे हैं. 12 मार्च 1930 ई. को महात्मा गांधी ने आश्रम के अन्य 78 व्यक्तियों के नमक कानून करने के लिए दंडी की. इसके बाद गांधी जी भारत के होने यह आश्रम में लौटकर आए. आश्रम कुछ जनशून्य पड़ा रहा। बाद में यह किया गया कि हरिजनों तथा पिछड़े वर्गों के के लिए शिक्षा संस्थाओं को चलाया जाए और इस के लिए आश्रम को एक के कर दिया जाए. तब से यह आश्रम हरिजन को सौपा गया.

गांधी जी की के पचात् उनकी को रखने के उद्देय से एक की की गई. साबरमती आश्रम गांधी जी के के से ही है, गांधी-स्मारक-निधि नामक ने यह किया कि आश्रम के उन भवनों को, जो गांधी जी से संबंधित थे, सुरक्षित रखा जाए. इसलिए 1951 में साबरमती आश्रम स्मृति में आया। उसी से यह न्यास महात्मा गांधी के हृदयकुंज, उपासनाभूमि नामक प्रार्थनास्थल और मगन निवास की सुरक्षा के लिए रहा है.

हृदयकुंज में गांधी जी कस्तूरबा करते थे. 10 मई 1963 ई. को श्री जवाहरलाल ने हृदयकुंज के समीप गांधी का उद्घाटन किया. इस संग्रहालय में गांधी जी के पत्र, फोटोग्राफ और अन्य रखे गए हैं. यंग इंडिया, तथा हरिजन में प्रकाशित गांधी जी के 400 लेखों की प्रतियाँ, से लेकर के फोटोग्राफों का बृहत् संग्रह और उन के दिए गए भाषणों के 100 संग्रह प्रदर्शित किए गए हैं. संग्रहालय में भी हैं, जिसमें साबरमती आश्रम की 4,000 तथा महादेव देसाई की 3,000 पुस्तकों का संग्रह है. इस संग्रहालय में महात्मा गांधी और उनको लिखे गए 30,000 पत्रों की है. इन पत्रों में कुछ तो मूल में ही हैं और कुछ के माइक्रोफिल्म रखे गए हैं. गांधी में 1951 में एक ट्रस्ट चलाया जाता है . संग्रहालय के नए को 1963 में बनाया गया था.

बापू जी ने आश्रम में करीबन देढ किया. जब वे साबरमती में होते थे, तो एक छोटी सी कुटिया में रहते थे जिसे भी "ह्रदय-कुञ्ज" कहा जाता है. यह से है जहाँ उनका डेस्क, खादी का कुर्ता, उनके हैं. कुंज नामक कुटीर आश्रम के बीचो बीच है, इसका काका साहब ेलकर ने किया था. इसी आश्रम के एक हिस्से में विनोबा-मीरा कुटीर है. यह है, जहाँ विनोबा भावे ने अपने के कुछ महीने बिताए थे. इसके अलावा गांधी जी के आदर्शो से ब्रिटिश युवती मेडलीन स्लेड भी यहीं रहीं. गांधी जी ने अपनी इस प्रिय शिष्या का मीरा रखा था. इन्हीं दोनों शख्सीयतों के नाम पर इस कुटीर का हुआ.

आश्रम में रहने वाले सभी सुबह-शाम में एकत्र होकर प्रार्थना करते थे. यह प्रार्थना भूमि गांधी जी लिए गए निर्णयों की रह चुकी है. ह्रदय-कुञ्ज" के दाईं ओर "नन्दिनी" है. यह इस "-कक्ष" है जहाँ देश और से आए हुर अतिथि ठहराए जाते थे. देश के जाने-माने नी जैसे- पं॰ जवाहरलाल नेहरू, डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद, सी.राजगोपालाचारी, दीनबंधु एंड्रयूज और रवींद्रनाथ टैगोर जब भी अहमदाबाद आते थे तो यहीं ठहरते थे.

1932 में गांधीजी हरिजन को 1933 के आसपास यह आश्रम सौंपने के बाद यहां हो रही है. बापू के 11 व्रत ो के अमलीण का जिम्मा साबरमती आश्रम के शिर पर है. हरिजन सेवक संघ गुजरात में आश्रमशालाए का रहा है. सफाई-स्वच्छता के उमदा के यहां पाये की डिजाइन्स का निर्दशन होता है. सफाई दार आंगनवाडी की बहनो को भी विविध तालीम दि जाती है. उनके घर के लोगो द्वारा निर्मित चीजवस्तुओ को ग्रामश्री द्वारा विश्वबाजार पहुंचाया जाता है. सफाई के एक ‘टोयलेट-काफे’ भी रहां है जहां पर लोग जिस टेबल-कुर्सी पर बैठ के े है उस की डिजाईन टोयलेट-पायखाने की जैसी है. देशविदेश की हस्तीयां यहां बैठकर खाना खा चूकी है.

एसा ही एक प्रकल्प है पायखाना. भारत में अभी ‘पे एन्ड युज’ का काफी है लेकिन तौर पर यहां शुरू हुए ‘युज एन्ड पे’ के प्रकल्प को काफी सराहना मिली है. टोयलेट का एक बार करने पर उपयोग करनेवाले को दो रूपये दिये जाते है. ईकठ्ठा होनेवाला मानवमलमूत्र दो चीजो के लिए में आता है. एक, गैस और दूसरा, खाध. यही मानवमल से ‘सोनाखाध’ निर्मित किया जाता है.

गांधी में भी बापू उनकी शोधप्रकल्प चलते रहते है. गांधी है वैसे ही गांधी भी शाश्वत है. उन के दिये गये विचार में जो है वैसी ही शक्ति-संचार उन के द्वारा किये गये कार्य में है. इस लिए गांधी और उनकी विचारधारा भी शाश्वत है.