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भाग-१ अकबर-बीरबल के लतीफे


अकबर-बीरबल के लतीफे

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अनुक्रमणिका

१.तन्त्र-मन्त्र

२.रानी की बात

३.जगर-मगर

४.तिनके का सहारा

५.ठट्‌टेबाजी

६.और क्या कढ़ी

७.अधर महल

८.अन्धकार

९.दो गधों का बोझ

१०.संगति का असर

११.लोटा न था

१२.रखपत रखापत

१३.गधे तम्बाकू नहीं खाते

१४.चार मूर्ख

१५.बकरे का दूध

१६.अक्ल की दाद

१७.हर वक्त कौन चलता है

१८.जो कहा सो कहा

१९.बीरबल की खिचड़ी

२०.बीरबल का नगर से निकाला जाना

२१.बादशाही महाभारत

२२.मोम का शेर

तन्त्र-मन्त्र

एक बार कुछ दरबारियों ने महाराजा अकबर से कहा महाराज, आजकल बीरबल को ज्योतिष का शौक चढ़ा है। कहता फिरता है, मन्त्रों से मैं कुछ भी कर सकता हूं।

तभी दूसरे दरबारी ने कान भरे - हाँ महाराज वह बहुत शेखी बधारता फिरता है। हम तो परेशान हो गए उससे। दरबार के काम में जरा भी रूचि नहीं लेता।

राजा बोले - अच्छा, परखकर देखते हैं बीरबल के मन्त्रों में क्या दम-खम है। यह कहते हुए राजा ने एक दरबारी से कहा - तुम अंगूठी छुपा लो। आज इसी के बारे में पूछेंगे।

तभी बीरबल दरबार में आया। राजा को प्रणाम कर अपनी जगह जा बैठा।

अकबर बोले-बीरबल अभी-अभी मेरी अंगूठी कहीं गायब हो गई। जरा पता लगाओ। सुना है, तुम तन्त्र-मन्त्र से बहुत कुछ कर सकते हो।

बीरबल ने कनखियों में दरबारियों की ओर देखा। वह समझ गया था कि उसके विरुद्ध राजा के कान डटकर भरे गए हैं। कुछ

सोचकर उसने कागज पर आड़ी तिरछी रेखायें खींचीं। फिर बोला -

महाराज, आप इस पर हाथ रखें, अंगूठी जहां भी होगी, अपने आप अंगूठी में आ जाएगी।

राजा ने उस तंत्र पर हाथ रख दिया। तभी बीरबल चावल हाथ में लेकर दरबारियों की ओर फेंकने लगा। जिसके पास अंगूठी थी,

वह सोचने लगा - कहीं सचमूच अंगूठी निकलकर राजा के पास न पहुंच जाए। उसने कसकर जेब पर हाथ रख लिया।

बीरबल यह देख रहा था। बोला - महाराज, अंगूठी तो मिल गई। लेकिन उस दरबारी ने कसकर पकड़ रखी है।

अकबर बीरबल का संकेत समझ हंस पड़े। उन्होंने अंगूठी पुरस्कार में बीरबल को दे दी। चुगली करने वालों के सिर शरम से झुक गए।

रानी की बात

एक बार महाराज अकबर रानी के आगे बीरबल की चतुराई की प्रशंसा कर रहे थे। रानी बोली - महाराज, बीरबल कितना ही चतुर सही पर मुझसे अवश्य हार जाएगा। महाराज अकबर ने कहा - ठीक है। परीक्षा कर लेते हैं। दूसरे दिन दरबार उठने के बाद बादशाह ने बीरबल को महल में बुलवा लिया।

गनी ने बीरबल के लिए सुगन्धित शर्बत और फल मिठाई खाने का आदेश दिया। दासी के जाते ही रानी गिनती गिनने लगी। एक से दस तक गिनकर बोली - अब शर्बत में तथा मिठाई और फल तश्तरी में रख लिए हैं। सचमुच दासी सब सामान लिए मौजूद थी।

रानी बोली - बीरबल देखो हमारा कितना नपा-तुला अन्दाज है। फल हम तुम्हारे यहां दावत खाने आएंगे। बीरबल ने सोचा - रानी स्वयं दावत पर आने को कह रही हैं। जरुर कुछ दाल में काला है। फिर वह सारी बात समझ गया। बादशाह ने रानी से कहा - आप तो बीरबल की परीक्षा लेने के लिए कह रही थीं ली क्यों नहीं? रानी बोली - कल बताऊंगी।

अगले दिन बादशाह और उनकी पत्नी बीलबल के घर पहुंचे। थोड़ी देर के बाद उसने सेवकों को खाना लगाने का आदेश दिया।

रानी बोली - बीरबल क्या तुम हमारी तरह गिनकर बता सकते हो, खाना कितनी देर में आ जाएगा? वह बोला - रानी जी, आपके सामने मैं बोलना अच्छा नहीं समझता। आप गिनिंए, जब आप रूकेंगी, तभी खाना हाजिर हो जाएगा। रानी के गिनती खत्म करते ही खाना आ गया।

बादशाह बोले - रानी जी, बीरबल आपकी बात भांप गया। आप शर्त हारगई। तभी बीरबल बोला - जीत रानीजी की हुई है खाना तो इन्हीं के गिनने से आया। यह सुन, रानी ने कहा - बीरबल, तुम सचमुच दरबार के रत्न हो। हमें हराया भी तो जिताकर।

जगर-मगर

बादशाह अकबर ने भरी सभा में घोषणा की - इस बार मुहर्रम पर सभी दरबारी अपने महलों को अच्छी तरह सजाएं। जिसके महल में सबसे अच्छी रोशनी होगी, उसे पुरस्कार दिया जाएगा। मुहर्रम के दिन बादशाह घोड़े पर सवार होकर बीरबल के साथ दरबारियों के महलों की रोशनी देखने निकले। सभी के महल जगर-मगर कर रहे थे। बीरबल के महल के आगे राजा रुक गए। बोले - बस, दो-चार दीपक! तुमने हमारी आज्ञा का पालन नहीं किया है।

बादशाह को लेकर बीरबल नगर के बाहर गरीबों की बस्ती में गया। वहां झोपड़ियां प्रकाश से दमदमा रही थीं। बीरबल बादशाह अकबर से बोला - बादशाह, देखिए, आपकी ाज्ञा का मैंने ही सही पालन किया है। इन्हें ही रोशनी की सबसे ज्यादा जरूरत है। बादशाह ने मुस्करा कर पुरस्कार की राशि गरीबों में बांट दी।

तिनके का सहारा

गर्मी के दिन थे। बादशाह अकबर दरबारियों के साथ नौका विहार के लिए गए। नौका नदी के बीच में पहुंची, तो राजा को विनोद सुझा। एक तिनका दिखाकर बोले - जो इस तिनके के सहारे नदी पार करेगा, उसे मैं एक दिन के लिए विजयनगर का बादशाह बना दूंगा। दरबारी एक दूसरे का मुंह देखने लगे। बीरबल बोला - यह काम मैं कर सकता हूं, मगर बादशाह बनने के बाद।

बादशाह अकबर बोले - ठीक है आज के लिए मैं तुम्हे बादशाह बनाता हूं। राज-पाट महल और अंगरक्षकों को तुम्हें सौंपता हूं। इस तिनके को तुम राजदण्ड समझो। अब इसी के सहारे नदी पार करके दिखाओ। वरना मृत्यु दण्ड मिलेगा।

कहकर उन्होंने हाथ का तिनका बीरबल को दे दिया। बीरबल तिनका लेकर नदी में कूदने को हुआ। कूदने से पहले उसने अंगरक्षकों से कहा - इस समयम ैं राजा हूं! तुम अपने कर्तव्य का पालन करो।

सुनते ही अंगरक्षकों ने उसे पकड़ लिया। बोले आप राजा हैं? इसलिए हम आपको जान-जोखिम का काम नहीं करने देंगे। बीरबल ने समझाया, मगर वे नहीं माने। इतने में नौका दूसरे किनारे पर जा लगी।

बादशाह अकबर बोले - बीरबल तुम हार गये।

हार कहां गया जहांपनाह? बीरबल बोला इस तिनके के सहारे ही तो मैंने नदी पार की? यह मेरे पास न होता तो अंगरक्षक कूदने से भला क्यों रोकते? तब मैं नदी में डूब जाता।

सुनते ही बादशाह अकबर हसकर बोले - बीरबल तूमसे जीतना सचमुच मुश्किल है।

ठट्‌टेबाजी

अकबर बादशाह को ठट्‌टेबाजी का बड़ा शौक था और देवयोग से बीरबल भी बड़ा ठट्‌टेबाज था। एक बार बादशाह ने हंसी हंसी में बीरबल के जूते चुरा लिए। चलते समय बीरबल जूता ढूंढने लगा।

और क्या कढ़ी

एक दिन बीरबल को अपने किसी सम्बन्धी के यहां निमंत्रणमें जाना था, जिससे वह दरबार खत्म होने से पहले बादशाह सेअवकाश ले विदा हुए।

दूसरे दिन जब बीरबल आये तो बादशाह ने निमन्त्रण के भोजनके बारे में पूछना शुरू किया कैसा खाना बना था, क्या-क्या था आदि।बीरबल ने कई पकवानों का नाम बतला दिये तथा आगे कुछ बतलारहे थे कि बादशाह ने उन्हें किसी दूसरे प्रश्न से उलझा दिया जिनसेउनका कहना भी बन्द हो गया। इस घटना को हफ्तों गुजर गये।

एक दिन बादशाह दरबारियों के साथ दरबार में बैठे थे। अन्यदरबारियों के साथ बीरबल भी था। आज बादशाह को स्मरण आयाकि बीरबल ने उस दिन कहते-कहते अधूरे में ही बोजन की सामग्रीका वर्णन छोड़ दिया और उन्हें आज बीरबल का स्मरण शक्ति कीपरीक्षा लेने की सूझी। वे बोले बीरबल! और क्या?

बीरबल समझ गये कि उस दिन भोजन की सामग्री का नामबतलाते-बतलाते मैं किसी अन्य काम में लग गया था और यह बातअधूरी रह गई थी, बादशाह उसी को पूरा करने की गरज से पूछ रहेथे? बीरबल ने तत्काल ही उ्रूद्गार दिया, और क्या? कढ़ी! बस बीरबलकी इस गजब की स्मरण शक्ति से बादशाह बहुत ही खुश हुए औरअपने गले से मोती की माला उतार कर बीरबल को दे दी।

उपस्थित मण्डली यह न समझ सकी कि किस रहस्यमयी बातके उपर मोती की माला मिली है। उन लोगों ने विचार किया की मालामिली है। अन्य दरबारियों का भी जी ललचाया। मोती की माला पानेकी सबों में इच्छा हुई।

दूसरे दिन बढ़यिा-बिढ़िया कढ़ी अपने वहां लोगों ने तैयारकरवायी। जितना अच्छा तरीका वे जानते थे उसमें किसी किसी कीकमी बनाने में नहीं की गई। जब दरबार का समय हुआ तो नौकरको कढ़ी देकर सब साथ चले।

बादशाह के सामने ले जाकर सबों ने अपनी अपनी कढ़ी कीहांडी रखी बादशाह की समझ में पहले न आया।

उन्होंने सभासदों से पूछा कि इसमें क्या है और किसलिए लायेहैं। सब दरबारियों ने हाथ जोड़कर निवेदन किया कि जहांपनाह! आपनेकल इसी शब्द के कहने पर बीरबल को खुश होकर मोती की मालादे दी थी। हम लोगों ने समझा कि हजूर को कढ़ी बहुत पसन्द है।

जिससे आज हम कढ़ी ही सेवा में भेंट करने के लिए लाये हैं।

दरबारियों की मूर्खता पर बादशाह तिलमिला उठे, आवेश मेंआकर बुरा-भला कहकर सबको जेल में बन्द कर देने का हुक्म दियातथा बोले तुम लोग नकल करना जानते हो दूसरे को फूलते नहीं देखसकते जाो इनका यही दण्ड है।

दरबारियों ने देखा कि हाथ जल रहे हैं तो सबने क्षमा प्रार्थनाकी तब बादशाह ने उनको दण्ड मुक्त कर दिया और बोले, आज सेप्रतिज्ञा करो कि बिना समझे-बूझे किसी की नकल न करोगे। सभासदोंने ऐसा ही किया।

अधर महल

एक दिन दरबार के काम-काजों से निश्चित हो बादशाहबीरबल के साथ गह्रश्वप मार रहे थे। उसी दरमियान उसको एक अधरमहल बनवाने की इच्छा हुई। इस अभिप्राय से प्रेरित होकर बोलेबीरबल! क्या तुम मेरे लिएक एक अधर महल बनवा सकते हो?

बनवाना तुम्हारा काम है और रुपया खर्चा करना मेरा। बीरबल ने सोचविचार कर उ्रूद्गार दिया - पृथ्वीनाथ! थोड़ा ठहरकर महल बनवाने काकार्यारम्भ करूँगा। इसी कार्य के लिए किछ मुख्य-मुख्य सामानों कासंग्रह करना पड़ेगा। बादशाह इस पर राजी हो गया।

तब बीरबल ने एक दूसरी बात छेड़कर बादशाह का मन दूसरेकामों में उलझाकर सायंकाल का अवकाश पाकर घर लौट गया। दूसरेही दिन बहेलियों को रूपये देकर जंगल से तोतों को पकड़ कर लानेकी आज्ञा दे दी। हुक्म की देर थी कि बहेलिये उसी दिन सैंकड़ों तोतेपकड़ लाये। बीरबल ने चुनकर कुछ तोतों को खरीद लिया और उनकी

पढ़ाई का कार्य अपनी बुद्धिमति कन्या को सौंप वह दरबार का आवश्यककार्य करने लगा। लड़की ने पिता के आदेशानुसार तोतों को पढ़ाकरपक्का कर दिया। जब बीरबल ने उनकी परीक्षा ली तो वे उसकी मर्जीके माफिक निकले फिर क्या था, वह तोतों को लिए हुए दरबार में हाजिरहुआ। तोतों को दीवानेखास में बन्द कर बीरबल बादशाह के पास गया।

तोते पिंजड़े से बाहर निकालकर छोड़ दिये थे। सब तरफ से किवाड़बन्द थे। शिक्षा के अनुसार तोते भीतर ही भीतर राग आलाप रहे थे।

बादशाह को सलाम कर बीरबल बोला - ‘पृथ्वीनाथ! आपकीमर्जी के मुनासिफ अधर महल में काम लगवा दिया है। इस समयउसमें बहुत से पेशराज और मिस्त्री काम कर रहे हैं। आप चलकरमुआयना कर लें। बदाशाह महल देखने की इच्छा से बीरबल के साथचला। जब बीरबल दीवानखाने के पास पहुँचा तो उसका किवाड़खुलवा दिया। तोते बाहर आकाश में उड़ते हुए बोलने लगे - इर्ंटलाओ, चूना लाओ, किवाड़ लाओ चौखट तैयार करो, दीवार चुनो।

इस प्रकार तोतों ने आकाश में खूब शोर मचाया। तब बादशाह नेबीरबल से पूछा - ‘क्यों बीरबल यह तोते क्या कर रहे हैं? बीरबलने अदब के साथ उ्रूद्गार दिया - महाराज? आपका अधर महल तैयारहो रहा है उसमें पेशराज और बढ़ई लोग लगे हुए हैं। सब समानएकत्रित हो जाने परमहल बनना शुरू हो जाएगा। बीरबल की इस बुद्धिपर बादशाह हर्षित हुआ और उसको बहुत सा धन देकर विदा किया।

अन्धकार

एक दिन बादशाह के साथ बीरबल यमुना किनारे हवा के सेवनकरने निकले।

रास्ते में इन्हें एक जरूरी बात ध्यान में आई तब बोलेबीरबल संसार में ऐसी कौन सी चीज है।

जिससे हम सब देख सकतेहैं, लेकिन चन्द्रमा की नजर उस पर नहीं पड़ती,

तब बीरबल बोला- यह चीज अन्धकार हैं।

दो गधों का बोझ

एक बार बादशाह अकबर उनका पुत्र शहजादा और बीरबल सैरकर रहे थे। गर्मी कुछ ज्यााद थी इसलिए अकबर ने अपना कोट उताराऔर बीरबल के कन्धे पर रख दिया। यह देखखर शहजादे से भी नरहा गया। उसने भी अपना कोट उतारा और बीरबल के कन्धे पर रधदिया। यह देखकर अकबर को मजाक सूझी और बोले - “बीरबल,

तुम्हारे कन्धों पर तो पूरे एक गधे का बोझ लदा हुई है।”

बीरबल - “जी नहीं, आप गलत बोले हैं एक नहीं दो गधोंका बोझ लदा हुआ है।”

शहजादा और बादशाह दोनों मुस्करा दिए।

संगति का असर

बादशाह और बीरबल की आपस में बातें हो रही थीं किअचानक बीरबल के मुंह से कोई अपशक्त निकल पड़ा। बादशाह कोबड़ा बुरा मालूम हुआ। वे बोले तुम्हें बोलने की तमीज अब नहीं रहीदिनों दिन बदतमीज होते जाते हो।

बीरबल बोले हां जहापनाह? पहले तो ऐसा नहीं था लेकिनअब संगति से दोष आना स्वाभाविक ही है। बादशाह निरु्रूद्गार हो गए।

लोटा न था

एक बार बादशाह ने बीरबल से पूछा ब्राह्मण ह्रश्वयासा क्यों औरगधा उदास क्यों, बीरबल ने जल्दी से उ्रूद्गार दिया लोटा न था। अर्थात्‌ब्राह्मण के पास लौटा न होने से ह्रश्वयासा रहा और गधा न लोटने सेउदास रहा।

बादशाह दो प्रश्नों का एक ही जवाब सुनकर बहुत खुश हुआ।

रखपत रखापत

एक रोज बादशाह के दरबार में यह बात हो रही थी कि पतपांच हैं। इन्द्रपत, सोनीपत, पानीपत, बागपत और बलपत। बीरबल नेकहा हुजूर दो पत और हैं एक रखपत और दूसरा रखापत।

बादशाह ने दोनों का मतलब पूछा। उन्होंने उ्रूद्गार दिया इन्हीं पतसे शराफत की पहचान है। अपनी इज्जत रखना पराये की इज्जत सेहो सकता है।

बादशाह यह मतलब समझकर खुश हुए।

गधे तम्बाकू नहीं खाते

बीरबल तम्बाकू खाता था लेकिन अकबर न खाते थे। एक दिन अकबर ने तम्बाकू के खेत में गधे को घास खाते देखकर कहा बीरबलये देखा तम्हापू कैसी बुरी चीज है। गधा तक इसको नहीं खाता।

बीरबल ने कहा हां हुजूर सच है गधे, तम्बाकू नहीं खातेबादशाह शर्मिन्दा हुए।

चार मूर्ख

सकता केवल सच्ची लगनहोनी चाहिए। कुछ दूर जाने के बाद बीरबल को एक आदमी दिखाईपड़ा जो थालों में पान का एक जोज़ा बीड़ा और मिठाई लिए बड़ेउत्साह से नगर की तरफ जल्दी जल्दी भागा जा रहा था।

बीरबल ने उस आदमी से पूछा क्यों साहब यह सामान कहांलिए जा रहे हो जो आपका पैस खुशी के मारे जमीन पर नहीं पड़रहा है।

आपके मन को जानने की मुझे बड़ी इच्छा है। एतएव थोड़ाकष्ट कर बतलाते जाइए।

उस आदमी ने बीरबल को टालने की कोशिश की क्योंकि वहआपसे नियत स्थान पर जल्दी पहुंचवाना चाहता था।

परन्तु बीरबल ने बार-बार उसे बताने का आग्रह किया तब वहव्यक्ति बोला यद्यपि मुझे विलम्ब हो रहा है परन्तु आपके इतना आग्रहकरने पर बता देना भी जरूरी है।

मेरी औरत ने एक दूसरा खसम कर लिया है उसके बुलावेपर उसके न्यौते में जा रहा हूं।

बीरबल ने उस आदमी को अपना परिचय देकर रोक लियाऔर कहा तुम्हें बादशाह के पास चलना होगा तब ही तुम आगे जासकोगे तब बादशाह का नाम सुनकर डर गया तथा लाचार होकरबीरबल के साथ हो लिया।

वह इसको लेकर आगे बढ़ा। दैवयोग से रास्ते में एक घोड़ीसवार मिला वह आप तो घोड़ी पर सवार था पर उसके सिर पर एकबड़ा गट्‌ठर रखा हुआ था।

बीरबल ने उस आदमी से पूछा क्यों भाई यह क्या मामला हैआप अपने सिर का बोझ घोड़ी पर लादकर क्यों नहीं ले जाते?

उस आदमी ने उ्रूद्गार दिया गरीब परवर मेरी यह घोड़ी गर्भिणीहै ऐसी दशा में उस पर इतना बोझ नहीं लादा जा सकता।

यह मुझे ले जा रही है, यही क्या कम गनीमत है, बीरबल नेडरा, धमका कर इस घोड़ी सवार को भी अपने साथ ले लिया।

अब बीरबल दोनों व्यक्तियों सहित बादशाह के पास पहुंचा।

बीरबल ने कहा - ये चारों मूर्ख आपके सामने हैं।

बादशाह तो दो को ही देख रहा था अतः बोला तीसरा तथाचौथा मूर्ख कहां है?

बीरबल ने कहा तीरसार नं. हजूर का है जो आपको ऐसे मूर्खोंको देखने की इच्छा होती है। चौथा मूर्ख मैं हूं जो इन्हें ढूंढ कर लायाहूं।

बादशाह को बीरबल के ऐसे सही उ्रूद्गार से बड़ी प्रसन्नता हुईजब उन्हें उन दोनों की मूर्खता का परिचय मिला तो खिल-खिला करहंस पड़े।

बकरे का दूध

एक दभा बादशाह ने बीरबल से कहा कि बीरबल हमारी बेगमको कुछ दिन से बराबर सिर में दर्द रहता है।

और किसी ओझा ने इसकी दवा बनाने के लिए बकरे का दूधमांगा है। अतः हमें कहीं से भी बकरे का दूध मंगवाकर दो।

बीरबलसमझ गया कि औझा ने बादशाह को मूर्ख बनाया है।

घर जाकर उसने अपनी लड़की को समझाया और वह फौरनही रात्रि के समय बादशाह के महल के पास यमुना में कपड़े घोने लगीबादशाह की नींद में विघ्न पड़ा तो बादशाह ने फौरन ही उसे बुलावकरपूछा कि तू कौन है और रात के समय कपड़े क्यों धो रही है?

लड़की ने कहा - हुजूर मैं बीरबल की लड़की हूं अभी शामको ही बीरबल के पेट में बच्चा पैदा हुआ है मैं उन्हीं के कपड़े धोरही हूं।

बादशाह ने कहा - लड़की? क्या तू पागल तो नहीं है कहींमर्द के पेट से बच्चा हुआ है?

लड़की ने कहा - तो हुजूर कहीं बकरे के भी दूध होता है।

लड़की की बात सुनते ही बादशाह सब समझ गए और उसेइनाम देकर घर भिजवा दिया।

अक्ल की दाद

एक दिन बादशाह अकबर ने कागज पर पेन्सिल से एक लम्बीलकीर खींची और बीरबल को बुलवा कर कहा बीरबल न तो यहलकीर घटाई जाये, और न मिटाई जाये लेकिन छोटी हो जाये?

बीरबल ने पौरन उस लकीर के नीचे एक दूसरी लकीरपेन्सिल से बड़ी खींच दी।

यह देखिए जहांपनाह! बीरबल बोले - ‘अब आपकी लकीरइससे छोटी गो हई।’

बादशाह यह देखकर बहुत खुश हुए और मन ही मन में उसकीअक्ल की दाद देने लगे।

हर वक्त कौन चलता है

एक दिन बादशाह ने दरबारियों से पूछा की हर समय कौनचलता है?

उ्रूद्गार में किसी ने सूर्य किसी ने पृथ्वी तथा इसी तरह किसीने चन्द्रमा आदि को बतलाया।

बादशाह ने तब यह प्रश्न बीरबल से कहा तो उन्होंने उ्रूद्गार दियाकि आली जहा।

महाजन का ब्याज (सूद) हर समय चलता है इसेकभी थकावट नहीं मालूम होती।

दिन दुगना रातचौगनी वेग से चलता रहता है। बादशाह को यदउ्रूद्गार पसन्द आया।

जो कहा सो कहा

आम की फसल के दिन थे!

एक दिन अकबर बादशाह अपनी बेगम के साथ बैठे आम खारहे थे। बादशाह खा-खाकर उनकी गुठलियां और छिलके अपनी वेगमके आगे इकठ्ठे करते जा रहे थे।

अचानक बीरबल भी वहां पहुंच गये।

बादशाह उन्हें देखकर मुस्कराये और बोले - देखो बीरबल यहबेगहम कितनी पेटू है। मैं अभी तक एक आम नहीं खा पाया, औरइन्होंने कितने आम खा डाले।

बेदम (महारानी जोधाबाई) इस मजाक का उ्रूद्गार न दे पाई औरलजा कर रह गई।

बड़ी शर्म के साथ उन्होंने बीरपल की ओर देखा।

बीरबल भी चुप न रहे और उन्होंने फौरन बादशाह को उ्रूद्गारदे डाला -

जहांपनाह कुसूर माफ हो। बेगम साहिबा अधिक आम खाछिलके व गुठलियां तो छोड़ देती हैं। पर हुजूर उन्हें भी नहीं छोड़ते।

यह सुनकर बादशाह का मुंह बन्द हो गया और बेगम खुश होउठी।

बीरबल की खिचड़ी

एक दफा बादशाह अकबर ने एक शर्त रखी थी कि कोईमनुष्य रात भर छाती तक पानी में खड़ा रहे तो उसे ५००० रुपये इनामदिए जायेंगे।

माघ के महीने की कड़ी सर्दी थी। कौन अपनी जान आफतमें डालता। आखिर एक गरीब ब्राह्मण जिसे अपनी लड़की की शादीकरनी थी, तैयार हुआ।

रात भर बेचारा पानी में खड़ा रहा। सवेरे बादशाह ने उसेबुलाया और पूछा कि तुम किसके आश्रय से पानी में खड़े रहे हो।

सीधे ब्राह्मण देवता ने उ्रूद्गार दिया कि जहांपनाह, मैं आपकेकिले की कंडील देखता रहा।

बादशाह ने कहा कि जरूर ही तम्हें उसकी गर्मी लगी होगीजाओ इनाम नहीं मिलेगा।

बेचारा ब्राह्मण रोता हुआ बीरबल के पास गया और सारा हालकह सुनाया।

बीरबल ने उसे ढांढस बंधाया और उसको घर भेज दिया। कुछदिन बाद बादशाह को शिकार करने की सूझी।

फिर क्या था सारी सेना तैयार हो गई। बादशाह ने बीरबलको बुलाया। जो नौकर उसे बुलाने गया था उसने लौटकर उ्रूद्गार दियाकि बीरबल खिचड़ी बना रहे हैं खाकर आयेंगे।

लेकिन घण्टे भर बाद भी बीरबल न आये तब दूसरे नौकरको भेजा उसने भी यही उ्रूद्गार दिया दो घंटे हो गये, पर बीरबल नहीआये।

तीसरा नौकर भेजा उसने भी यही उ्रूद्गार दिया कि अकबरखिचड़ी पक रही है। खाकर आयेंगे।

अब बादशाह को बड़ा क्रोध आया। वे आप ही बीरबल केपास पहुंचे। और देखते हैं कि पांच गज ऊंची बल्ली पर खिचड़ी कीहांडी रखी है और जरा सी आग जल रही है। बीरबल आराम पे बैठेहुए हैं।

बादशाह ने आश्चर्य से पूछा - बीरबल यह क्या तमाशा होरहा है। बीरबल ने उ्रूद्गार दिया खिचड़ी पक रही है।

यह कैसी खिचड़ी? इतनी नीची आग से खिचड़ी की हांडीको कुछ भी गर्मी नहीं लग सकती है। यह कैसे हो सकता है? बादशाहने बड़ी हैरत से पूछा।

उसी तरह जैसे कि बूढ़े ब्राह्मण को किले की कंडील से गर्मीपहुंची। बीरबल ने उ्रूद्गार दिया।

यह सुनते ही ब्राह्मण को बुलाकर ५ हजार रुपये दे दिए।

बेचारा ब्राह्मण बीरबल को हजारों आशीर्वाद देता हुआ घर गया।

बीरबल का नगर से निकाला जाना

किसी कारणवश बादशाह ने रुष्ट होकर बीरबल को नगरछोड़कर कहीं अन्य जगह जाने का आदेश दिया, आदेश पाकर बीरबलकिसी दूर के गांव में भेष बदल कर जीवन व्यतीत करने लगे।

ईश्वर की कृपा से उन्हें कहीं कष्ट नहीं होता था। बीरबलस्वाभिमानी पुरुष थे। बादशाह के बिना बुलाए कैसे आते।

एक दिन बादशाह को उनकी याद आई तो मिलने के लिएबादशाह उतावले हो उठे। लेकिन किसी को उनका पता ठिकाना भीतो मालूम न था।

हर जह पता लगाने वाले दौड़ाये गये लेकिन कुछ पता न चलसका। बादशाह को इस मौके पर एक उपाय सूझा उन्होंने शहर मेंमुनादी कराके कहा जो कोई आधी धूप आधी छाया में होकर मेरे सामनेआयेगा उसे एक हजार रूपये इनाम के रूप में दिया जाएगा।

इसकी खबर सारे शहर तथा गांव में फैल गई सभी के मुंहमें पानी भर आया।

लेकिन किसी को कुछ भी उपाय न सूझा। इस बात की खबरबीरबल के कानों में पहुंच गई।

उन्होंने अपने ही हाथों से बीच-बीच में जगह छोड़कर एकखाट बुनी।

इस खाट को एक पड़ोसी गरीब किसान को देकर कहा किदेखो इस खाट को अपने सिर पर रखकर बादशाह के सामने जानाऔर निवेदन करना कि आपके सामने आधी धूप तथा आधी छाया मेंआया हूं एतएव पुरस्कार मुझे मिलना चाहिए।

बीरबल के कथानुसार ही उस किसान ने खाट को सिर पररखकर बादशाह के महल का रास्ता लिया तथा बादशाह के सामनेउपस्थित होकर बीरबल द्वारा बतलाये गये निवेदन को कह सुनाया।

बादशाह समझ गए कि यह किसान के दिमाग की उपज नहींहै और किसान से बोले तुम सच-सच बताओ यह उपाय तुमको किसनेबताया?

किसान ने सारा हाल सच-सच वर्णन कर दिया कि एक बीरबलनामी ब्राह्मण ने, जो कुछ दिनं से हमारे गांव में आकर रह रहा है मुझे ऐसाकरने की अनुमति दी है।

बादशाह उस गरीब किसान पर बीरबल का पता लग जाने सेबहुत खुश हुए।

एक हजार रुपये उस किसान को दिलाया गया तथा दोकर्मचारी भी उसके साथ भेज दिए जो बीरबल को आदरपूर्वक नगरमें लाए।

इस तरह अपनी चतुरायी से बीरबल बादशाह का मनोरंजनकरते थे।

बादशाही महाभारत

यह तो सभी जानते हैं कि बादशाह अकबर हमेशा बड़ा बननेकी कोशिश किया करते थे।

एक बार बीरबल ने बादशाह को एक महाभारत की बड़ी पोथीभेंट की, उसे पढ़कर उनके मन में अपनी महाभारत बनवाने की धुनसवार हुई।

बीरबल को यह काम सौंपा गया। बीरबल ने सोचा यहबादशाह को अकलमन्दी का सबक देने का अच्छा मौका है।

इसलिए इस काम में बहुत सी कठिनाइयां बताई। साथ हीकार्यारम्भ के लिए ५० हजार रुपये की मांग की बादशाह तो मतवालेहो रहे थे। झट से पचास हजार रुपये और दो महीने की छुट्टी मंजूरकर ली।

घर आकर रुपया तो बीरबल ने धर्म कामों और गरीबों में बांटदिया।

और एक मन रद्दी मंगवाकर रख ली। बीरबल जब दरबार मेंआते तो बादशाह रोज पूछते।

बीरबल कह देता हुजूर दस ब्राह्मण रोज लिख रहे हैं। बड़ाखर्चा हो रहा है।

एक हजार रूपया दिला दो पांच ब्राह्मण और बढ़ा दूं। बादशाहमंजूर कर लेते हैं।

इस तरह बीरबल रोज हजार दो हजार रुपया ले आते औरगरीबों को बांट देते।

इस महीने के बाद उस रद्दी कागज की जिल्द बनवाकर दरबारमें पहुंचे और बादशाह से कहा, हुजूर महाभारत लगभग तैयार है।

केवल कुछ बातों पर आपसे और बेगम साहिबा से सलाह लेनीहै।

बादशाह की अनुमति लेकर बीरबल वेगम साहिबा के पासपहुंचे। बीरबल को आए देखकर बेगम बड़ी खुश हुई। बेगम ने बीरबलके आने का कारण पूछा।

बीरबल ने हंसी दबाते हुए कहा - बादशाह ने शाही महाभारतबनवाया है। वह करीब-करीब तैयार हो गया है। मैं अपने साथ लायाहूं।

कुछ बातें उसमें रह गई हैं जिनके बारे में आपसे सलाह लेनाचाहा है। आप जानती हैं महाभारत में पांडवों की ओर से द्रौपदी थीं।

और इस महाभारत की नायिका आप ही हैं। परन्तु जैसेहिन्दुओं के प्राचीन महाभारत में नायक पांच पांडव थे तो आपके पांचपतियों में बादशाह सलामत के अलावा चार कौन कौन से हैं?

दूसरी बात यह है कि जैसे भरी सभा में दुशासन ने द्रौपदीका चीर हरण किया था और पांडव इस अपमान को सहन करते रहेथे।

उसी तरह किस काफिरने भरी सभा में आपकी इज्जत खराबकी थी और जिसे बादशाह सलामत चुपचाप सहन करते रहे हों।

बीरबल की बात सुनते ही बेगम का पारा सातवें आसमान परपहुंच चुका था। वह गुस्से में लाल थी। फौरन दासियों को हुक्म दियाकि इस महाभारत को आग लगा दो।

हुक्म की देर थी। महाभारत दो मिनट में जलकर राख बनगयी। बीरबल भी वापस आ गए और बनावटी दुख प्रकट करते हुएबादशाह को सारा हाल बताया।

हाल सुनकर बादशाह बड़े शरमाए और जिन्दगी भर फिर कभीशाही महाभारत बनवाने का नाम न लिया।

मोम का शेर

पुराने समय में बादशाह एक दूसरे की बुद्धि की परीक्षा लियाकरते थे। एक बार फारस के बादशाह ने अकबर को नीचा दिखानेके लिए एक शेर बनवाया और उसे एक पिंजड़े में बन्द करवा दिया।

इस पिंजड़े को उसने एक दूत के हाथों बादशाह अकबर केपास भेजा और कहलवा दिया कि यदि उनके दरबार में कोई बुद्धिमानपुरुष हो तो इस शेर को बिना पिंजड़ा खोले ही निकाल दे। साथ हीयह शर्त भी थी कि अगर उस प्रश्न का हल ना हुआ तो फारस केबादशाह का सारे राज्य पर अधिकार हो जाएगा।

अब तो बादशाह बड़े चिंतित हुए सारे दरबार में उन्होंने यहप्रश्न रखा। इस समय बीरबल वहां न थे। कोई भी दरबारी इस प्रश्नको हल नहीं कर सका।

बादशाह को बड़ी चिंता हुई कि शान भी मिट्टी में मिल जाएगीऔर राज्य भी हाथ से चला जाएगा।

उसी समय बीरबल आ पहुंचा। बादशाह ने इनके सामने भीयह प्रश्न रखा पहले तो बीरबल ने अच्छी तरह शेर को देखा फिरएक गर्म लोहे की छड़ से उन्होंने थोड़ी देर में सारे शेर को पिंजड़ेसे गायब कर दिया। कारण यह था कि शेर मोम का था जो धातुका मालूम होता था।

इस बात को बीरबल ने पहचान लिया। फारस का राजदूतइसकी बुद्धइमता को देखकर दंह रग गया और बादशाह भी बड़े प्रसन्नहुए।