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चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 22

चन्द्रगुप्त

जयशंकर प्रसाद


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तृतीय अंक

(विपाशा-तट का शिविर... राक्षस टहलता हुआ)

राक्षसः एक दिन चाणक्य ने कहा था कि आक्रमणकारी यवन,ब्राह्मण और बौद्धों का भेद न मानेंगे। वही बात ठीक उतरी। यदि मालवऔर क्षुद्रक परास्त हो जाते और यवन-सेना शतद्रु पार कर जाती, तो मगधका नाश निश्चित था। मूर्ख मगध-नरेश ने संदेह किया है और बार-बारमेरे लौट आने की आज्ञाएँ आने लगी हैं! परन्तु...

(एक चर प्रवेश करके प्रणाम करता है।)

राक्षसः क्या समाचार है?

चरः बड़ा ह आतंकजनक है अमात्य!

राक्षसः कुछ कहो भी।

चरः सुवासिनी पर आपसे मिल कर कुचक्र रचने का अभियोगहै, वह कारागार में है।

राक्षसः (क्रोध से) और भी कुछ?

चरः हाँ अमात्य, प्रान्त - दुर्ग पर अधिकार करके विद्रोह करनेके अपराध मं आपको बन्दी बना कर ले आने वाले के लिए पुरस्कारकी घोषणा की गयी है।

राक्षसः यहाँ तक! तुम सत्य कहते हो?

चरः मैं तो यहाँ तक कहने के लिए प्रस्तुत हूँ कि अपने बचनेका शीघ्र उपाय कीजिए।

राक्षसः भूल थी! मेरी भूल थी! मूर्ख राक्षस! मगध की रक्‌करने चला था। जाता मगध, कटती प्रजा, लुटते नगर! नन्द! क्रूरता औरमूर्खता की प्रतिमूर्ति नन्द। एक पशु। उसके लिए क्या चिन्ता थी!सुवासिनी! मैं सुवासिनी के लिए मगध को बचाना चाहता था। कुटिलविश्वासघातिनी राज-सेवा! तुझे धिक्कार है!

(एक नायक का सैनिकों के साथ प्रवेश)

नायकः अमात्य राक्षस, मगध-सम्राट्‌ की आज्ञा से शस्त्र त्यागकीजिए, आप बन्दी हैं।

राक्षसः (खड्‌ग खींचकर) कौन है तू मूर्ख? इतना साहस!

नायकः यह तो बन्दीगृह बतावेगा। बल-प्रयोग करने के लिए मैंबाध्य हूँ। (सैनिकों से) अच्छा। बाँध लो।

(दूसरी ओर से आठ सैनिक आकर उन पहले के सैनिकों कोबन्दी बनाते हैं। राक्षस आश्चर्यचकित होकर देखता है।)

नायकः तुम सब कौन हो?

नवागत-सैनिकः राक्षस के शरीर-रक्षक!

राक्षसः मेरे!

नवागतः हाँ अमात्य! आर्य चाणक्य ने आज्ञा दी है कि जब तकयवनों का उपद्रव है, तब तक सब की रक्षा होनी चाहिए, भले ही वहराक्षस क्यों न हो।

राक्षसः इसके लिए मैं चाणक्य का कृतज्ञ हूँ।

नवागतः परन्तु अमात्य! कृतज्ञता प्रकट करने के लिए आपकोउनके समीप तक चलना होगा।

(सैनिकों को संकेत करता है, बन्दियों को लेकर चले जाते हैं।)

राक्षसः मुझे कहाँ चलना होगा? राजकुमारी से शिविर में भेंटकर लूँ।

नवागतः वहीं सबसे भेंट होगी। यह पत्र है।

(राक्षस पत्र लेकर पढ़ता है।)

राक्षसः अलका का सिंहरण से ब्याह होने वाला है, उसमें मैं भीनिमंत्रित किया गया हूँ! चाणक्य विलक्षण बुद्धि का ब्राह्मण है, उसकी प्रखरप्रतिभा कूट राजनीति के साथ रात-दिन जैसे खिलवाड़ किया करती है।

नवागतः हाँ, आपने और भी कुछ सुना है?

राक्षसः क्या?

नवागतः यवनों ने मालवों से सन्धि करने का संदेश भेजा है।सिकन्दर ने उस वीर रमणी अलका को देखने की बड़ी इच्छा प्रकट कीहै, जिसने दुर्ग में सिकन्दर का प्रतिरोध किया था।

राक्षसः आश्चर्य!

चरः हाँ अमात्य! यह तो मैं कहने ही नहीं पाया था। रावी-तट पर एक विस्तृत शिविरों की रंगभूमि बनी है, जिसमें अलका का ब्याहहोगा। जब से सिकन्दर को यह विदित हुआ है कि अलका तक्षशिला-नरेश आम्भीक की बहन है, तब से उसे एक अच्छा अवसर मिल गयाहै। उसने उक्त शुभ अवसर पर मालवों और यवनों के एक सम्मिलतउत्सव के करने की घोषणा कर दी है। आम्भीक के पक्ष से स्वयं निमंत्रितहोकर, परिणय-संपादन कराने दल-बल के साथ सिकन्दर भी आवेगा।

राक्षसः चाणक्य! तू धन्य है! मुझे ईर्ष्या होती है! चलो।

(सब जाते हैं)