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भांग का भूत

भांग का भूत

सुबह के समय रमेश के मामा जी उसके घर पर आये हुए थे. वे करीब की ही एक कालोनी में रहते थे. रमेश और उसके बड़े भाई गणेश अक्सर उनके साथ मजाक करते रहते थे. एक दिन पहले ही गणेश के लडके का जन्मदिन था, मामा जी को न्यौता दिया लेकिन खर्चे के डर से दावत खाने न गये, सोचा कुछ देना पड़ेगा.

आज सुबह जब मामा जी आये तो कल वाला केक और मिठाइयाँ परोसने की तैयारी होने लगी, तभी गणेश को एक शरारत सूझी. कुछ दिन पहले वो पचास रू की भांग लेकर आये थे. उन्होंने मिठाइयों के अंदर भांग छुपाकर मामा जी को खिलाने की सोची. गणेश ने जब यह बात रमेश को बताई तो दोनों ने फटाफट पूरी तैयारी कर डाली.

भांग की एक परत खोवा की मिठाई में छुपाकर प्लेट में रखी गयी, घरवालों को बताया गया कि इस मिठाई में से कोई मत खाना. फिर मामा जी के पास वही मिठाई पहुंचा दी गयी. मिठाई देख मामा जी के मुंह में पानी आ गया. आपको बता दें मामा जी का घरेलू नाम 'कल्लू' है. उन्होंने पहली बार में ही भांग वाली मिठाई उठाई, मुंह में रखी, मुंह में रखते ही उन्हें थोड़ी सी अलग लगी, बोले, “अरे गणेश ये कौन सी मिठाई है.”

गणेश ने हंसी को दवाते हुए कहा, “मामा जी ये चोकलेटी मिठाई है और काफी मशहूर है.” थोड़ी ही देर में कल्लू मामा मिठाई की प्लेट को साफ़ कर चुके थे. फिर डकार लेते हुए बोले, “भाई मजा आ गया मिठाई तो अच्छी क्वालिटी की है.” रमेश और गणेश की हंसी बड़ी मुश्किल से काबू हो रही थी. थोड़ी देर मामा जी बातचीत करते रहे लेकिन बड़े खुश थे.

इधर रमेश और गणेश एक दूसरे की आखों में देखते मानो एक दूसरे से पूछ रहे हो कि अभी तो भांग ने अपना असर दिखाया ही नही. भांग के बारे में आम लोगो की सोच यह है कि इसे खाकर आदमी हँस रहा हो तो हसता रहता है, रो रहा हो तो रोता रहता है और खा रहा हो तो खाता रहता है. रमेश और गणेश चाहते थे कि मामा जी इनमे से कोई एक हरकत करने लगें लेकिन भांग खाए इतनी देर हुई कल्लू मामा टस से मस न हुए.

आख़िरकार काफी देर हुई, रमेश और गणेश ने आशा छोड़ दी कि भांग अब कोई कमाल दिखाएगी. उन्होंने सोचा कि आज का मिठाई खिलाना भी बेकार गया. मामा जी चलने को हुए, फिर दरवाजे पर खड़े होकर ठिठक गये. थोड़ी देर खड़े रहने के बाद मुड़े और गणेश से बोले, “गणेश मेरा सर घूम रहा है.”

इतना सुनना था कि रमेश व गणेश उछलकर खड़े हो गये, सोचा भांग काम करने लगी, उनकी स्थिति उस वल्व जैसी हो गयी जो बिजली आते ही जल उठता है. मामा जी का सर चकरा रहा था, वे तख़्त पर बैठ गए और फिर कटे वृक्ष की तरह ढह गये.

रमेश और गणेश की नजरें मिलीं, इशारों में बात हुई, “भाइयो भंग अपना रंग जमा चुकी है.” लेकिन दूसरी तरफ मामा जी अधमरे हुए जा रहे थे. अचानक चित्त लेते हुए मामा जी तख़्त में जोर जोर से सर मारने लगे, गणेश और रमेश की हंसी छूट गयी. लेकिन मामा जी का सर मारना बंद न होता था, सर भी काफी तेज मार रहे थे. फिर वह उठे और खड़े होकर दीवार में सर मारने लगे.

यह सब देख दोनों भाइयों की हंसी छूमंतर हो गयी. रमेश ने भागकर मामा जी को पकड़ लिया, लेकिन कल्लू मामा इतनी ताकत से सर मार रहे थे कि अकेले रमेश से काबू न हुए. मामा जी धरती पर गिरे और सर जमीन में मारने लगे.

रमेश और गणेश के हाथ पैर फूल गये, दोनों ने मामा जी को ताकत से पकड़ लिया. मामा जी में भांग खाकर इतनी ताकत आ गयी थी कि सहज काबू में न आते थे. दोनों ने बडी मुश्किल से काबू कर जमीन से उठा उन्हें तख़्त पर लिटाया.

तभी गणेश को एक विचार आया उसने सुना था कि ठंडे पानी के स्नान से भांग उतर जाती है. गणेश ने हडबडाते हुए रमेश से कहा, “रमेश मामा जी को कस के पकड कर रखना, मैं अभी आता हूं.” गणेश भाग कर अंदर गया, फ्रिज में जमी बर्फ और ठंडा पानी लेकर आया.

एक बाल्टी में ठंडा पानी और बर्फ मिलकर कल्लू मामा के ऊपर सर व चेहरे पर डालना शुरू कर दिया. धीरे धीरे सारा ठंडा पानी मामा जी के सिर से उतर गया, अब मामा जी कंपकपा रहे थे, सारा भांग का नशा हिरन हो गया, कंपकपाते हुए बोले, “एक बीडी चाहिए, एक बीडी दो.”

शायद गर्मी पैदा करने के लिए बीडी पीना चाहते थे. लेकिन ये क्या? रमेश ने बीडी जलाकर दी तो दो सुट्टे में पूरी बीडी खत्म, आँखे तन गयी, शरीर कमान की तरह तिरछा हो गया. गणेश और रमेश के होश उड़ चुके थे. गणेश ने और ठंडा पानी मामा जी के चेहरे पर डाल दिया, पानी पड़ते ही मामा जी फिर दुरुस्त हो गये. अब गणेश को मामा जी की नब्ज मालूम पड गयी. जैसे ही वे कोई तमाशा करते, गणेश ठंडा पानी डाल देता. कल्लू मामा शांत हो जाते.

यह तमाशा काफी देर से चल रहा था, गणेश ने परेशान होकर रमेश से कहा, “रमेश जाकर मामी जी को बुला ला, कहीं लेने के देने न पड़ जाएँ.” रमेश भागकर गया और मामी जी के घर पहुंचा. मामी जी बैठी चटनी बना रहीं थी. रमेश ने सारी बात मामी जी के कान में कह सुनाई और जल्दी से घर चलने के लिए कहा. मामी जी सिल बट्टा छोड़ रमेश के संग चल दी.

जब रमेश मामी जी को घर लेकर पहुंचा तो मामा जी वही तमाशा कर रहे थे, गणेश का भी वही ठंडे पानी वाला उपाय जारी था. दोनों की हालत नाग और सपेरा जैसी थी. यहाँ पर मामा जी नाग थे जो फन मारते थे और गणेश सपेरा जो उन्हें ठंडे पानी रूपी बीन से शांत करता था.

घर पहुंची मामी जी यह देख कर घबरा गयी और तुरंत गणेश से कहा, “लला पानी मत डालो ये तुम्हे पता नही क्या मामला है.” ये कहने के बाद उन्होंने मन ही मन कुछ मंत्र पढ़ा और मामा जी के सर पर हाथ फेर दिया. रमेश और गणेश वाबले से हो यह नजारा देख रहे थे. मामी जी के ऐसा करने के पीछे कारण था कि मामा जी पर आये दिन भूत आता था. किसी तांत्रिक ने यह मंत्र दिया था, सो मामी जी वही उपाय करने लगी.

मामा जी के ऊपर मन्त्र लगते ही वे फुंकार उठे, बोले, “तुमने इक्यावन रू प्रसाद के उठा कर रखे थे, अभी तक प्रसाद नही बांटा और पैसे भी खर्च कर दिए.” इतना कह मामा जी जोर जोर से रोने लगे. मामी जी को यकीन था कि भूत आ गया है लेकिन रमेश और गणेश को आश्चर्य के मारे चैन न पड़ता था सोचते थे की भांग का नशा भूत में कैसे बदल गया, दोनों भाई भोच्क्के थे.

मामी जी कल्लू मामा की तरफ देख कर बोलीं, “हम पचास के सौ उठाकर रखते है लेकिन महाराज हमारे पति को छोड़ दो.” इतना कह मामी जी मामा जी के पैरों में गिर पड़ी. मामा जी शांत हो गये, मामी जी को लगा कि भूत को शांत हो गया.

इधर गणेश और रमेश को मारे आश्चर्य के बात न सूझती थी, सोचते थे ये अच्छी भाग खिलाई. मामी जी को लग रहा था कि मामा जी पर भूत आया है, लेकिन चाहकर भी दोनों भाई भांग खिलने वाली बात कबूल न कर सकते थे. चुपचाप भूत की कहानी सुनते रहे.

मामा जी का सारा बदन दुःख रहा था, थोड़ी देर पहले पूरा शरीर जमीन में जो दे मारा था. ठंड के मारे काँप रहे थे, बर्फ का एक बाल्टी पानी जो ऊपर पड़ा था. मामी जी कल्लू मामा को धीरे धीरे घर की तरफ लेकर चली. कल्लू मामा ऐसे चल रहे थे मानो कहीं से पिटकर आ रहे हों, कभी रास्ते के दाए जाते कभी बांये.

मामा जी के चले जाने के बाद कमरे में बैठे रमेश और गणेश की ऐसी हंसी छूटी कि हंसते हंसते लोट पोट हो गये. लेकिन मामा जी की हालत का ध्यान कर तरस भी आता था. दोनों ने कसम खायी कि अब मामा जी को भांग न खिलाएंगे. क्योंकि कल्लू मामा के भांग खाते ही उन पर भांग का भूत आ जाता है.

[ समाप्त ]