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क्या ये सच है

क्या ये सच है ?

कोई भी इंसान पहले यही सवाल करेगा अगर उसे कहा जाए कि 'हरेक इंसान अपने अंदर कुछ भी करने की ताकत रखता है'।

हा दोस्तो ! ये सच है। १०० % पुरा सच।

मै आपको कुछ ऐसी बाते बताऊंगा की आपको यकीन हो जाएगा कि ये पुरा सच है।

भारत ही एक ऐसा देश है जिसने पुरी दुनिया को ये ज्ञान दिया। भारत ही इस ज्ञान का जन्मदाता है। जी हा, भारतमेही माइन्ड पॉवर और आयुर्वेद जैसे कई आविष्कारो का प्रारंभ हुआ और यही ज्ञान आज पुरी दुनियामे फैल गया है। पर दुःख की बात है कि विदेशो के लोग आज कल इस विषय मे रिसर्च कर रहे है और जिस देश में इसका जन्म हुआ वही लोग इसकी हँसी उड़ा रहे है। क्या करे ? यही हमारी मूर्खता है। जिसने हमे दुनिया मे पीछे छोड़ दिया है।

जैसे कि चीन का 'मार्शलआर्ट' और 'कुंगफू हसल' आज पुरी दुनियामे मशहूर है। इसकी शुरुआत भारत मे ही हुई थी। आयुर्वेद भी भारत की ही एक बहुमूल्य देन है। 'बोधी धर्मन' नाम के एक हिंदुस्तान के पहले डॉक्टर थे। जिन्होंने चीन को एक महामारी की बीमारी से बचाया और चीनको आयुर्वेद और कुंगफू जैसी अमूल्य भेट दी। आज ये विद्या उन देशोमें इतनी फली-फूली है की वो लोग हर कदम पर इन विद्याओ का उपयोग अपने जीवन को सरल और सुखमय बनाने के लिए करते है। हम हिंदुस्तानी इसे देखकर आश्चर्य चकित हो जाते है। शर्म की बात है कि जहाँ से इन विद्याओका प्रारम्भ हुआ वही घर आज उन विद्याओको जानने से इनकार कर रहा है।

खैर छोड़िये इन सब बातों को ! यहां पर मैं सिर्फ आपको इंसान के भीतर की अदभूत शक्तिओ के बारेमें बताना चाहता हूं विज्ञान के तरीके से। जो विज्ञान के द्वारा प्रमाणित हो चुकी है। इसका क्षेत्र इतना विशाल है कि उसे पूरा समजना लगभग असंभव है। यहां मैं आपको इसकी थोड़ीसी जानकारी देने की कोशिश करूंगा।

सोचिये की हम एक टोर्च चालु करते है। उसकी रोशनी से हम काफी दूर तक देख सकते है क्योकि उससे निकलने वाली प्रकाश एकत्रित होकर एक ही दिशामे आगे बढ़ती है। इस लिए वो बहौत दूर तक जाती है। पर अगर वही टोर्चके आगे का ढक्कन खोल दिया जाये तो वो प्रकाश इधर उधर फैल जाएगा और दूर तक नही जा सकेगा।

समजमे आया ना ? कि हमारे भीतर की शक्तिको भी हम इधर उधर फैला देते है, इधर उधर की सोचमे और व्यर्थ ख़यालोमें या बीन जरूरी कामोमे। इसी लिए हमारे भीतर की शक्तिभी फैल जाती है और उसका पॉवर कम हो जाता है। हम भी अगर हमारे भीतर की मनशक्ति को एकत्रित करके एक ही चीज पर फोकस करेंगे तो निसंदेह उसका असर बहोत दूर तक होगा और हम बहोत कुछ कर सकेंगे।

ध्यान और योगमें मन की शक्ति के बारेमे बताया गया है। कि मनकी शक्ति इतनी पावफुल है कि हम अगर इसे केंद्रित करके ध्यान करे तो उससे कोई भी काम करवा सकते है। इसके लिए उसमे चार चरण बताये गए है।

पहला की हम अगर किसी चीज पर केवल १७ सेकंड ध्यान केंद्रित करे (किसी और सोच के बिना केवल एक ही चीज पर फोकस करना ) तो उसे हम अपनी तरफ आकर्षित कर सकते है।

दूसरा स्टेज है १७+१७=३४ सेकंड हम किसी वस्तु पर फोकस करे तो उस चीज को हम अपनी मरजी से हिला सकते है।

तीसरा स्टेज है ३४+१७=५१ सेकंड हम अगर किसी चीज को फोकस कर तो उस चीज को हम अपनी मरजी से उठा सकते है और एक जगह से दूसरी जगह तक ले जा सकते है।

चौथा स्टेज आखरी और महत्वपूर्ण है ५१+१७=६८ सेकंड एक ही चीज पर फोकस करना है अगर आपने इसे करलिया तो आप उस चीज से अपनी मरजी के मुताबिक कोई भी काम करवा सकते है ...

शर्त बस ये है कि किसीभी दूसरे खयाल के सिवा सिर्फ एक ही विचार के साथ एक ही चीज पर आपको ध्यान केंद्रित करना है।

जी हाँ दोस्तो ये सच है। पर हम इसे नही कर सकते.. । इसका पहला कारण है कि हम इसपर यकीन ही नही करते है। किसीभी कार्य को करने के लिए पहला तो उसपर पक्का विश्वास होना जरूरी है। जिस दिन आपने पुरे विश्वास के साथ कोई भी काम किया और पूरी सावधानी के साथ सही तरीके से किया तो आपको सफल होने से कोई नही रोक सकता।

सोचिये की एक पूरे शहरको चलाने के लिए जितनी बिजलीकी जरूरत होती है वो बिजली सिर्फ एक ही बिजली के स्टेशन (फीडर) से पूरे शहरमें आती है और वही स्टेशन पुरे शहरकी बिजली को कंटोल करता है। ठीक उसी प्रकार हमारे शरीर को भी चलाने के लिएभी बिजली की जरूरत होती है। वो बिजली हमारे शरीर को हमारा मस्तिष्क पहुचाता है। शहर के बिजली के तारों की तरह ही हमारे शरीर के भीतरभी तारो की लाइन होती है। जिसे हम ज्ञानतंतु के नाम से जानते है। ये ज्ञानतंतुभी बिजली के तारोंकी तरह ही काम करते है। हमारे शरीरके किसीभी हिस्से को टच करे तो सीधा उसकी खबर हमारे दिमागमें पहुच जाएगी। हमे अगर छोटासा काटा लगे या चीटिने भी काटा तो हमारे ज्ञानतंतु उसे फौरन ही दिमाग तक पहुचा देते है। हमारा दिमाग तुरन्त उसके लिए काम करने लगता है। वो हमारे हाथों को संदेश भेजता है कि शरीर के इस हिस्सेमें काँटा लगा है या चीटिने काटा है उसे फौरन वहासे हटाया जाये। और हाथ तत्काल वो काम करने लगते है। इस तरह हमारे शरीर के भीतरकी बिजलिका नेटवर्क इतना पावरफुल होता है कि उसे काम करने के लिये या संदेशा पहुँचानेमे एक सेकंड भी नही लगता।

किसी शहरमे बिजली पहुचाने के लिये जैसे बडी बड़ी केबलोकी लाइन होती है उसी तरह हमारे शरीरमे वो काम हमारी नसे करती है। जिसमे बहने वाला खून उस बिजली के प्रवाह को आगे बढानेका काम करता है। अगर एक मिनट के लिए भी ये बहाव कम हो जाये तो जैसे बिजली के पाँवर के बिना हमारा शरीर तुरंत काम करना छोड़ देगा। शरीर निष्क्रिय हो जाएगा। आप ये तो जानते ही होंगे कि शरीर के जिस हिस्सेमें खून का बहाव कम हो जाता है वो हिस्सा काम करना छोड़ देता है और सुन्न होकर निष्क्रिय हो जाता है। इसे हम पैरालिसिस या लकवा कहते है। मतलब की शरीर के उस हिस्से को बिजली मिलना बंद हो गया है। कोई नस ब्लॉक हो गई हो तो उसे बायपास सर्जरी करवाके ठीक किया जाए तो वो हिस्सा फिरसे काम करने लगता है। मतलब उस हिस्सेमें जो फॉल्ट था उसे ठीक कर दिया जाये तो वो इलाका फिरसे बिजली के पहुचाने से ठीक होजायेगा।

आजकल 'अणु विज्ञान' और 'परमाणु विज्ञान' काफी आगे बढ़ चुका है। जो बताता है कि एक छोटे से अणु या परमाणु में भी गजब की शक्ति होती है। अब, जरा सोचिए कि उस निर्जीव अणु/परमाणुमें एक छोटे से कण में इतनी शक्ति छिपी है जो दुनियाका नक्शा बदल सकती है... तो हमारे भीतर के अणुओंमें कितनी ताकत होगी ? एक छोटे से बीजमें भी बहोत बड़ा पेड़ छिपा होता है पर जरूरत है तो सिर्फ उसे उगानेकी । उसी तरह हमारे भीतर भी एक अदभुत और अनन्य शक्ति छिपी है। बस, जरूरत है तो सिर्फ उसे पहचानने की और उसका सही उपयोग करनेकी।

हमारे शरीरकी छोटी छोटी हरकते जैसे कि चलना, बोलना, सुनना, श्वासलेना ये सब तो छोटे छोटे काम है। विज्ञान तो कहता है कि हमारे शरीरमें इतनी गर्मी होती है कि जिससे एक घंटेमें २० किलो बर्फ पिगलाई जा सकती है। ये गर्मी कहासे आती है ? तो जवाब है.. हमारे भीतर चलरहे बिजली के पाँवर हाउस से हम तो सिर्फ उसका १० % ही इस्तेमाल करते है बाकी ९० % तो वेस्ट हो जाता है। अगर हम उसका ५० % भी इस्तेमाल कर सके तो कुछभी असंभव नही है। हम जो चाहे कर सकते है।

कई डॉक्टर्सने ये प्रमाणित किया है कि हमारे भीतरकी शक्ति को इकठ्ठा करे तो उससे एक पुरी फेक्ट्री चलाई जा सकती है। पर हम उसे इकठ्ठा नही करते बल्कि बार्बाद कर देते है। यही हमारी बड़ी कमजोरी है।

दोस्तो, आप ये तो जानते ही होंगे कि हमारे भीतर दो तरह का माइन्ड होता है एक 'कॉन्शियस माइन्ड' और दूसरा 'सब कॉन्शियस माइन्ड' (जाग्रत मन और अर्ध जाग्रत मन) आज कल इस विषयमे बहोत ज्यादा रिसर्च होने लगे है। कई सारे रिसर्चर इस विषयमे काम कर रहे है। जिससे आज काफी सारे सच हमारे सामने आने लगे है।

दोस्तो, हम जागती आंखोसे सपने कभी नही देख सकते क्यो की उस वक्त हमारा जाग्रत मन काम करता है। जब कि सपने देखना तो हमारे अर्ध जाग्रत मनका काम होता है। वैसे ही हम नींदमें जाग्रत मनसे कोई काम नही करवा सकते पर नींदमें हमारा अर्ध जाग्रत मन काम करता है और वो इतना पॉवरफुल है कि हमारे जाग्रत मन के पास तो केवल उसकी १० % ही शक्ति होती है बाकी ९० % शक्ति तो हमारे अर्ध जाग्रत मनके पास होती है।

अब सोचिये की हमारे जाग्रत मन के पास १० % शक्ति होने के बावजूद हम इतना कुछ कर सकते है तो अगर हमारे अर्ध जाग्रत मनकी शक्ति को इस्तेमाल करके हम कितना कुछ कर सकते है ?

दोस्तो जैसे कि आप जानते ही है कि एक राजा के कई सारे मंत्री और नोकर होते है। जिनकी मददसे वो पूरा राज्य चलाता है। उसके मंत्री उसका पुरा राज्य कारोबार संभालते है। वो राज्यकी सारी खबरे और कुशल-मंगल के समाचार एवं सारी जिम्मेदारी संभालते है। पर फिरभी आखरी निर्णय तो राजाका ही होता है ना । राजा जो निर्णय सुनाये वो ही होता है। उसी प्रकार हमारे शरीरमें भी हमारा अर्ध जाग्रत मन एक राजाकी तरह ही है। जिसके पास आखरी निर्णय लेनेकी ताकत है। वो जो कहता है वही होता है। अब रही बात सही और गलतकी तो एक राजा उसके मंत्रियो द्वारा जो सुजाव मिलते है उसीपर अपना आखरी निर्णय लेता है। इसी तरह हमारा अर्ध जाग्रत मनभी उसके मंत्री जैसे कि जाग्रत मन, दिमाग, आँखे, कान इन सबके द्वारा जो संदेशा या जानकारी मिलती है उसी के आधार पर काम करता है।

इसी लिए तो कहते है कि हम जैसा सोचते है वैसे ही हम बन जाते है। क्यो की हमारे अर्ध जाग्रत मन यानी राजाको वही संदेश मिलता है जो उसके मंत्री उसे देते है। इसी तरह हमारी सोच ही हमे उसके अनुसार बना देती है।

अगर आपको बड़ा बनाना है या कुछ भी करना है। जिंदगीमें आगे बढ़ना है अपने राजा तक अच्छे विचार और ऊंचे विचार ही पहुचाये ताकि वो आपको और आगे और ऊंचे ले जाये।

बस, एक बार सोचना जरूर....।

Rakesh Rathod