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मौत की झांकी

मौत की झांकी

शाम का समय था. चौराहे पर जाम लगा हुआ था. एक एम्बुलेंस लगातार सायरन दिए जा रही थी लेकिन उसे जगह देना कोई नही चाहता था. क्योंकि वहां पर भगवान राम की झांकी जा रही थी. ये आयोजन शहर की एक सांकृतिक संस्था ने आयोजित किया था. कई नेतागण भी उसमे मौजूद थे. रईसों की तो गिनती ही नही की जा सकती थी.

स्त्रियों की जमात में भी खासा उत्साह था. वे झांकी में बज रहे गानों पर थिरक रहीं थी. उन्हें देख कर लगता था कि मानो वे भगवान की भक्ति में लीन दुनियां की सुध बुध भुलाये हों. तभी एम्बुलेंस के सामने थोड़ी जगह हुई. गाड़ियाँ चीटियों की शक्ल में रेंगने लगी. एम्बुलेंस भी सायरन देती आगे बढ़ी. झांकी के एक सेवादार ने एम्बुलेंस के पास आ ड्राईवर से कहा, “भाई ये सायरन बंद कर. देखता नही झांकी जा रही?”

एम्बुलेंस का ड्राईवर बोला, “भईया मरीज अंदर है. उसकी हालत ज्यादा खराब है इसलिए सायरन बजा रहा हूँ.” सेवादार बोला, “ठीक है अभी जगह हो जाएगी तब निकाल लेना. मगर तब तक सायरन न बजाना. समझे?”

इधर एम्बुलेंस में बैठे कृपाल सिंह का दिल बैठा जा रहा था. बार बार बेटे की तरफ देखते थे. जिसके चेहरे पर दर्द की असंख्य लकीरें उन्हें विचलित किये जा रहीं थी. उनके बेटे का नाम आनंद था. अकेला बेटा था जो बुढ़ापे में आकर पैदा हुआ था. उम्र कोई पंन्द्रह के आस पास रही होगी.

आनंद एक बार पहले भी बीमार हुआ था. तब डॉक्टरों ने बताया था की उसके दिल में छेद है. कृपाल सिंह पर तो मानो बज्र गिर पड़ा था. वे कई दिनों तक इस सदमे में रहे. फिर आनंद धीरे धीरे ठीक हुआ तो वे इस दुःख से बाहर आ गये. सोचा डॉक्टर तो बीमारी बढ़ाकर बताते हैं. भला कोई दिल में भी छेद होता है क्या?

लेकिन जब आनंद को फिर वही दर्द हुआ तो वे घबरा गये. उन्हें कुछ न सूझता था. तब आनंद की माँ रज्जो देवी पडोस के जुगनू को बुला कर लायीं. जुगनू पढ़ा लिखा लड़का था. आते ही बोला, “काका कहो तो एम्बुलेंस बुलवा लूं? उससे आनंद को शहर के अस्पताल में इलाज के लिए जल्दी ले जा सकेंगे.”

कृपाल सिंह को कुछ न सूझता था. बोले, “बेटा तुम जैसा समझो वैसा करो. बस आनंद की जान को खतरा न होने पाए.” जुगनू ने जल्दी से एम्बुलेंस का नम्बर मिलाया और तुरंत आने को कहा. एम्बुलेंस उस दिन खाली थी इसलिए जल्दी आ गयी. कृपाल सिंह को चलते न बनता था. पैर कहीं के कहीं पड़ते थे. जुगनू और रज्जो देवी ने आनंद को उठाकर एम्बुलेंस में लिटाया.

रज्जो देवी अंदर गयी और पैसों व गहनों से भरी छोटी सी एक पोटली लेकर आई. उन्होंने कृपाल सिंह के हाथ में पोटली रखते हुए कहा, “इसमें सारे पैसे हैं और मैने अपने जेवर भी इसी में रख दिए हैं. खर्च में पीछे न हटना चाहे जमीन गिरवी क्यों न रखनी पड़े?”

कृपाल सिंह ने भावुक हो अपनी पत्नी रज्जो देवी की तरफ देखा और स्वीकृति में सर हिला दिया. एम्बुलेंस चल पड़ी. एम्बुलेंस में बैठे कृपाल सिंह अपने बेटे के सर पर हाथ फेर रहे थे. आंसुओं की झड़ी रोके न रूकती थी. गले में पड़े गमछे से आंसू पोंछ लेते और रास्ते की तरफ देखते जैसे उन्हें लगता हो कि अस्पताल आने वाला है.

कल का दशहरा था इसलिए शहर में चारो तरफ सजावट थी. कृपाल सिंह को जल्दी पड़ रही थी. वे आनंद को जल्दी से डॉक्टर को दिखाना चाहते थे लेकिन झांकी की भीड़ आगे पड़ गयी. जब सेवादार ड्राईवर को घुड़क कर गया तो उसने सायरन बजाना बंद कर दिया. कृपाल सिंह के बार बार कहने पर ड्राईवर बोला, “चचा मैं भी जल्दी चलना चाहता हूं लेकिन साइड मिले तब न? ये झांकी वाले हटने को तैयार नही है.”

कृपाल सिंह का दिल बैठा जाता था. बोले, “बेटा मैं कहकर देखूं?” ड्राईवर बोला, “काका वे मानेंगे नही. फिर भी आप कहकर देख लो शायद मान जाए?” कृपाल सिंह एम्बुलेंस से उतरे. उनके कदम लडखडा रहे थे. भीड़ को चीरते हुए वे पुरोहित से दिखने वाले एक आदमी के पास पहुंचे और उससे हाथ जोड़ते हुए बोले, “बाबूजी बच्चा बीमार है. एम्बुलेंस को जरा सी साइड दिलवा दे तो आपकी बड़ी कृपा होगी.”

पुरोहित ने सारी बात सुन ली लेकिन अनसुनी करके दूसरी तरफ देखने लगा. जब उसने देखा कि बुढ्ढा अब भी हाथ जोड़े खड़ा है तो ऊँचे स्वर में बोला, “शांति रखो चचा अभी निकल जाना.” कृपाल सिंह को एक एक पल भरी पड रहा था. बोले, “ बाबूजी मैं आपके पैर पडता हूँ. बच्चा हाथ से निकल जायेगा उसकी हालत ज्यादा नाजुक है.”

तभी एक नेता जी आये और पुरोहित जी को हाथ जोडकर प्रणाम किया. पुरोहित हँस कर नेता जी से बातों में लग गया. जब वे दोनों बातों में मगन थे तो कृपाल सिंह ने फिर कहा, “बाबूजी जरा साइड दिला दीजिये आपकी बड़ी कृपा होगी.”

पुरोहित ने इस बार कड़े शब्दों में कहा, “बोला न अभी निकाल लेना. अभी झांकी चलने वाली है. अब जाओ यहाँ से.” कृपालसिंह हाथ जोड़कर पुरोहित के पैरों में झुक गये और बोले, “मालिक एक ही बच्चा है. बच्चे को कुछ हो गया तो मैं कहीं का न रहूँगा.”

पुरोहित थोडा पीछे हटते हुए नेताजी से बोला, “पता नहीं कितना ढीट आदमी है. मैं कई बार कह चुका लेकिन सुनता ही नही.” इतने में जुगनू दौड़ता हुआ कृपाल सिंह के पास आया और बोला, “काका जल्दी चलो आनंद को क्या हो गया.”

कृपाल सिंह उठे और एम्बुलेंस की तरफ दौड़े. उन्होंने जैसे ही एम्बुलेंस में कदम रखा तो उनके चेहरे का रंग उड़ गया. आनंद शिथिल पड़ा था. जैसे उसका दर्द समाप्त हो गया हो. जैसे उसे मीठी नींद आ गयी हो. कृपाल सिंह ने जल्दी से आनंद को पकडकर हिलाया और बोले, “बेटा आनंद क्या हुआ? कुछ तो बोलो...अभी अस्पताल पहुंच जायेगे.”

लेकिन जब कोई हरकत न हुई तो वे समझ गये कि आनंद अब नही रहा. किन्तु उन्हें यकीन न होता था. वे गोद में आनद का सर रखे रो रहे थे. ड्राईवर ने कृपाल सिंह की तरफ देखा. मानो पूंछ रहा हो कि अब क्या करें? कृपाल सिंह सिसकते हुए धीरे से बोले, “गाड़ी घर की तरफ ले चलो.”

आनंद मर चुका था किन्तु झांकी अभी भी जारी थी. पुरोहित और नेता जी अब भी एक दूसरे से उतने ही उत्साह से बात कर रहे थे. स्त्रियाँ अब भी गानों पर झूम रही थी. झांकी रेगने लगी. ड्राईवर ने एम्बुलेंस स्टार्ट कर दी और उसे कृपाल सिंह के घर की तरफ ले चलने के लिए झांकी के साथ साथ चलने लगा.

उसे अब जल्दी नही थी. कृपाल सिंह भी अब शांत बैठे थे. उनकी बूढी आँखे लगातार पानी की बारिस कर रही थी. उन्हें लग रहा था मानो ये आनंद की मौत की झांकी निकल रही हो. झांकी आगे बढ़ गयी. एम्बुलेंस को जगह मिलते ही ड्राईवर ने एम्बुलेंस फिर उसी रास्ते पर ले ली जिधर से वह अभी आया था.

[समाप्त]