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रात और दिन की संधि

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सीमा असीम की कवितायें

०९५५७९२९३६५

संग्रह की कवितायेँ

अँधेरी रात में
सोचती हूँ
अँधियारा
हाँ मैं जानती हूँ
तुम आओगे
याद आये
अल्हड नदी प्यार में !!
एक शाम गुलाबी और सलेटी सी
वे आने वाले ही होंगे
याद करती हूँ
लहू के संग !!
कुछ शब्द
अनकही
मौन
इंतज़ार रब का
आसमां और भी हैं
बुनती रहती है
प्रेम में होना या प्रेम करना
नीर बहाया नैनों ने
एक लकीर
तुम ही बताओ हमे
हम होते हैं प्यार में
गुलाब
नेह की डोर
तेरा जहाँ आवाद रहे
तुम्हारी बेचेनियाँ
खामोशियों
इतना प्यारा
ऋतुराज
मन को छू जाये
ख्वाब
अक्सर
अन्धकार
सूखते होठों से
बांसुरी
महसूस
तलाशती खुद को
बातें करती हैं
वसंत मेरे भीतर उतर आया है
अनजान अँधेरी राह
रातें कोरी भक्क सफ़ेद
आकाश की ऊंचाई
फ़नकार
बात नदी से
दुनियां देखना चाहती हूँ
बावरे मन
टूटा दिल
तन्हाई
उदास नज्म
नही थे तुम
वे दरख्त
दिन ढल गया
पुकार दिल की
अज़ीज़ दोस्ती
इद्र्धनुषी रंग
भूख
सो जाएँ रातें
सोचती हूँ अब
उनका निर्वासन
गीत
अकुलाहट है
एक रंग
प्यार हो गया
येसा लगता है
एक झलक
मीठे तराने
ये दिल
आस का दीप
उदासियों के बादल
कच्ची मिटटी से बनी मैं
थम गयी
सन्नाटा
अनजाना
मन के कागज़ पर
ये चाँद
यादें

अँधेरी रात में

चाँद के इन्तजार में

मेरी पलकों के किनारे

गीले हो जाते है

यादों की स्मिर्तियाँ

झिलमिला उठती हैं

आकुल हो उठती हूँ

कोमल याद भी

चुभन पैदा कर देती है

इस अँधेरी रात में भी

सिमट आता है

चाँद का सौन्दर्य

मेरी आँखों में

और मेरे मन में

तुम्हारा प्यार

किसी साज़ के तार सा

झनझनाता हुआ !!

सोचती हूँ

अब मै सोचती हूँ

याद करती हूँ

रात के अंधेरों में

दिन के उजालों में

भोर की पहली किरण के

आने से पहले

रच लेना चाहती हूँ

गीत, कोई मीठा सा

लेकिन साथ नही देते

शब्द, अर्थ, भाव

छोड़ जाते हैं वे भी तनहा

फिर बहने लगते हैं

आँखों से आंसुओं के साथ

हसरतें, ख्वाहिशें

उमड़ते, घुमड़ते भाव

जग जाते हैं दर्द

बादल भी घिर आये

काले काले

बरसने को संग संग

लगता है आज झूम के बरसेंगे

ये बदरा !!

अँधियारा

गहराता जा रहा है अँधियारा

मेरे भीतर

रात का दूसरा प्रहर होने से

पता है ये मेरे मन का अँधेरा

कभी ख़त्म नही होगा

न ख़त्म होंगी विछोह की रातें

असहनीय हो उठी हैं

जानती हूँ तुम भी भागीदार हो

पर बहुत दूर हो

चाहती हूँ आ जाओ इतना करीब

महसूस कर सकूँ

जी सकूँ तुम्हें

तो बढाओ अपना हाथ

करो वादा कि आओगे

एक बार फिर!!

हाँ मैं जानती हूँ

हाँ मैं जानती हूँ

हम दोनों दो पहाड़ से हैं

जो कभी करीब नही आ सकते

धरती आकाश से हैं जो कभी

मिल नही सकते

तो भी क्या

मिटा दूंगी अपना अस्तित्व

अपने स्व को

पहाड़ को तब्दील कर दूंगी रेत में

फिर चलती हुई तेज़ हवाओं के साथ उडकर

बिछ जाउंगी तुम्हारे ऊपर

धरती को कुछ ऊपर उठाकर

ले आउंगी छितिज़ तक

पा जाउंगी तुम्हें

अब तुमसे ही जीवन है

उसका सार है !!

तुम आओगे

जब कभी तुम आओगे

तब दिखाउंगी तुम्हें

वे सब चीजें

जिन में खोजती थी तुम्हें

वे रातें तो वापस नही आ सकती

लेकिन उनकी यादें

जो मैंने सहेज रक्खी हैं

तकिये के गीलेपन में

बिस्तर की चादर पर

बदलता है सबकुछ धीरे से

हो जाता आडम्बर हीन और आदिम

मेरा घने जंगल में

तब्दील हो जाने से पहले

आ जाओ तुम

एक बार !!

याद आये

आज तुम कुछ ऐसे याद आये

मुझे याद आया वो दिन

जब हम वोटिंग कर रहे थे

बीच नदी में उठती उताल लहरें

मैं एक हाथ डाल कर

उन लहरों को सहलाने लगी

कैसे वे हमारे हाथ को काटती हुई

दूर निकली चली जा रही थी

तुम मुझे निहारते हुए

कुछ कह रहे थे और

मैं अनसुनी करती सी

खोती जा रही थी

नदी के बहाव के साथ

और तुम मुझमें

तेज़ हवा के झोंके ने मेरे आँचल को उडाया

वो लिपट गया तुम्हारे चेहरे से

तब तुमने कहा

देखा तुमसे अच्छा तो तुम्हारा आँचल है

उस दिन से वो आँचल हमेशा लपेट कर

रखती हूँ

उसमे अभी तक बसी है

तुम्हारी सांसों की खुशबु

जो मुझ बेजान को

हमेशा जीने का हौंसला देती है !!

अल्हड नदी प्यार में !!

अब वह पहाड़ी नदी नहीं

फिर भी अभी अल्हड है

वह सागर के प्यार में

छोटे बड़े पहाड़ों से घिरी उतर आई है समतल पर

मैदान की घास हरी हो उठी

खेत, खलियान उसके आने से खुश हो

मुस्कराते हुए लहलहा उठे हैं

पारदर्शी पानी के भीतर से झांकती मछलियाँ

हवा में पंख फैलाये

लहरों से खेलती, अठखेलियाँ करती

हर लहर पर शरमाती , मुस्कुरा उठती

हिलोरें लेती है मन ही मन नदी

सागर से मिलने का ख्वाब सजाये

दौड़ी जाती है नदी

मगन खुद में

सुध बुध बिसराए

राह में आई हर बाधा को

पार कर बहे चली जाती नदी

नदी, वह अल्हड नदी

अपने मीठेपन से सबको तर बतर करती

नही थमती किसी के आग्रह पर

भोर की लालिमाँ से सिंदूरी होती

रात की कालिमा से बिचलित नही होती

बन्धनों से व्याकुल

किनारों के प्यार से नही बंधती

साथ देते जाते फिर भी किनारे

पत्थर घुल कर रेत बन

उसके प्यार में संग बहे जाते

नही होती तब भी रफ़्तार कम

अल्हड नदी की

नही जानती नदी वास्तविकता

खारे, विशाल, समुनदर की

वह उसके प्यार में है

सपनों को पलकों में सजाए

समाने को समुंदर में उतावली है नदी

रचाएगी मेहँदी किरणों से

ओढ़ लेगी चुनर इन्द्रधनुषी

नदी महकने लगी सागर की खुशबु से

धरती अम्बर

नही देख पाते उसका मिलन

खारे नीले विशाल समुन्दर ने भी बाहें फैला दी हैं

नदी की आँखें सजल हो उठी

मिलन की आस से छलक पड़ी

उसकी तपस्या पूरी हो गयी

बिसरा के अपना खारापन अब मीठा होना चाहता है सागर

आ गया है वह भी नदी के प्यार में

अल्हड नदी के प्यार में !!

एक शाम गुलाबी और सलेटी सी

एक शाम गुलाबी और सलेटी सी

दिन और रात की संधि पर टिकी

खुबसूरत गुलाबी और सलेटी शाम

कल्पनाओं के पंख लगाये बतियाते से

दिन और रात, कुछ हम दोनों से

चलो निकल जाएँ दूर कहीं दूर

छितिज के पार, फूलती कांपती स्वांसों के साथ

न सीमायें बांधें

न दह्लीजें रोकें

वह चलें नदिया के संग संग

प्रकृति को नाप आयें दौड़ते हुए

क़दमों के निशानों पर चलते हुए

तुम्हारे पीछे पीछे या

हाथों में हाथ डाले संग संग

मै खो जाऊं तुम्हारे तेज़स्वी मुखमंडल में

और तुम मेरे हवा में लहराते उलझे बालों में

उलझते रहो, सुलझते रहो

चमक उठें मेरी आँखे जुगनुओं सी

जाग जाये ललक किरणों सी

हो जाये शायद मिलन

रात और दिन की संधि

शाम सा, हम दोनों का !!

वे आने वाले ही होगे

वे आने वाले ही होगे

चलो घर को जरा बुहार लूँ

बिस्तर की सलवटें सवांर दूँ

लेकिन वो तो येसे ही पड़ा है

जब से तुम गए हो

मैंने तो ठंडी ज़मीन को ही

अपना बिछोना बना रखा है न

दरवाज़े की झाड़ कर धूल

कपड़े से पोंछ दूँ

उनके हाथ मैले हो जायेंगे न

थपथपाने से

आने से पहले उलझी बिखरी लटें

सवांर लूँ

कहाँ लगाई इनमे कंघी

जबसे तुम गए

यादों से महकते बदन को

स्पा से महका लूँ

तुम्हे पसंद है न इसकी महक

अरे अब बस आते ही होंगे

मुरझाये मन का कमल पल्लवित हो उठा

किरने चमक उठीं

अंधकार छटने लगा

वो देखो चिड़ियाँ भी पेड़ पर चहचहा उठी

हाँ वे आ जो गए हैं !!

याद करती हूँ

जब कभी तुम्हें याद करती हूँ

कोई सिहरन मुझे सहला देती है

स्पर्श कर मेरे बदन को

मन में खुशबू सी महक उठती है

और होठों पर एक मुस्कान तिर जाती है

अगले ही पल भिगोती जाती है

क्योंकि बरस पड़ती है

आँखें व्याकुलतावश !!

लहू के संग !!

जब शिद्दत से याद आ जाते हो

हुड़क उठती है सीने में

आँखों से आंसू छलक पड़ते हैं

बमुश्किल रोक लेती हूँ उन्हें

सीने में घुटती स्वांसें

तेज़ी से चलने लगती हैं

तब महसूस होने लगते हो

नस नस में शिराओं में

और बहने लगते हो धमनिओं में

लहू के संग !!

कुछ शब्द

कुछ शब्द जीवन को महका देते है

गुनगुनाने को जी चाहने लगता है

मन न जाने कौन सी

अनजानी ख़ुशी से भर उठता है

और भटकने को जी चाहने लगता है

उसमें ही खुशियाँ पाने लगती हूँ ढूढने लगती हूँ

क्यों नही समझ पाती कि

खुशियाँ तो उसके भीतर ही है

सब कुछ बसता है

तभी अजान की आवाज से मन में

श्रद्धा भर जाती है

आखिर ईश्वर तो सबका एक ही है

किसी भी नाम से पुकारो

बस तुम्हें याद रहे

उसकी शक्ति का भान रहे

वो हममें भी रहता है हमारे भीतर भी

क्यों बैर भाव झगडा मन में रहे

खुद प्रफुल्लित रहो हमेशा

देखो सब अपने आप ही मिल जायेगा !!

अनकही

वे बातें जो अनकही हैं अनसुनी हैं

कहा ही न जा सका है जिन्हें

गले में अटकी अटकी सी

सीने में फंसी हुई

किसी गुबार की मानिंद

कितने शब्द हैं अर्थ हैं

सब अधूरे से

होठों पर आने को बेचैन

जैसे हवा में तेरती हुई कोई सुगंध सी

बस गयी अंतर्मन तक

महका दिया अस्तित्व

खुद को बिसरा उस महक में खोती सी

सब शांत कहीं कोई आहट नही

छाया कर्फु सा शहर में

देखती अकेली ख़ड़ी मै

निपट अकेली मैं !!

मौन

ये मौन बहुत बातें करता है

कितना वाचाल हो उठा है आजकल

बोलता रहता है अंतर्मन से

हर समय

दुनियां ज़हान की बातें

करता रहता है

नीले आकाश में उड़ती

वह चिड़िया भी ठिठक गयी देखो

कुछ पल को

हमारी बातें सुनने को

बेचारी नही समझ पाती हमारी भाषा

न हमारे मन को

फिर करने लगती आकाश से बातें

और मै तुमसे

हाँ तुम ही तो समझ सकते हो

तुम से तो जुड़े है मन के तार

चलता रहता है निरंतर

वार्तालाप

देखो कैसे मुखर हो उठा है मौन

मौन होकर भी मौन नही है !!

एक मौन तुम्हारा

एक मौन तुम्हारा

मेरी वाचालता

अनवरत चलती रहे

स्वांस रहने तक

क्योंकि मुझे पसंद है

बोलना, बात करना

नही येसा हरगिज़ नही है

बल्कि जब तुम कर देते हो

अनसुना मुझे

तो तब तक कहती रहना चाहती हूँ

जब तक तुम तोड़ न दो

अपनी ख़ामोशी , अपना मौन

फिर थिरक उठेंगे शब्द

खनकते हुए से

अभिव्यक्ति बन

रंग बिखेर देंगे

जीवन में

देखो दूर कहीं घंटियों की आवाज आई

हाँ शायद मौन टूटा है !!

इंतज़ार रब का

मंदिर की लाइन में खड़ी

करती रही इंतजार देर तक

अपने रब को पूजने के लिए

हाथों में पूजा की थाली पकड़े

थकन छाती रही

चेहरे का मीठापन घुला

खारा खारा सा हो उठा सबकुछ

घंटियों की घनन घनन से

कुछ मिट जाता मन का गुबार

एक लोटा जल शिव लिंग पर चढाने को

इतना लम्बा इंतजार

मन में ही बसी है तेरी मूरत

दिन रात पूजती हूँ तुझे ही

क्यों करूँ फिर इंतजार

जब मन में ही बसते हैं मेरे रब

रहते हैं मेरे आसपास !!

आसमाँ और भी हैं

मेरा आसमां इतना छोटा नही है

वह अनंत है विशाल है

अथाह है

उसकी कोई सीमा रेखा नही है

उन बाँहों में समाते ही

स्पर्श मात्र से ही पवित्र हो जाती हूँ

गंगोत्री से निकली गंगा सी

खो जाती हूँ

सप्तरंग की स्वरलहरिओं में

दूर होते ही उनसे

निरीह कातर सी

हिरणी के समान

दौड़ती भागती हूँ

उसे तलाशते हुए

कस्तूरी को खोजने के समान

क्यों नही जान पाती

उसकी विस्तारिता

जहाँ मैं वहां वह

क्योंकि मेरा आसमां

इतना छोटा नही है

सीमित नही है

असीमित है वह

बिलकुल मेरी तरह !!

बुनती रहती है

वो सदियों से बुनती आई है

बुनती रहती है

बुनती रहेगी

आजन्म

डूबकर

कोई परवाह नही

आसपास की दुनियादारी की

उलझा देते हैं जब

सुलझाती रहती उन्हें

दिल से

चाहते हैं उलझी रहे

सुलझाने में

पागल सी

फँसी रहे

आखो में भरे आंसुओं के बीच भी

नही कोई संदेह

उसे उनके पूरा होने में

वह समझ चुकी है

सुलझन निकल ही जाती है

अगर शिद्दत से निकली जाये !!

प्रेम में होना या प्रेम करना

_________________________

प्रेम में होना या प्रेम करना

कह देने भर से नही होता

प्रेम तो बसता है यादों में

जो पल पल टीसता है

दर्द में बसता है प्रेम

एक ख्वाब जैसा होता है प्रेम

जिसे पाया नही जाता

खोकर पाया जाता है

इसे जीता नही जाता

हारकर जीता जाता है

त्याग में होता है प्रेम

समर्पण नही मांगता

समर्पित होकर पाया जाता है

कुछ पल का नही

युगों तक साथ निभाता है

अमर होता है प्रेम

हर दिल में जीवित रहता है

क्यूंकि आदि, इति,

स्वार्थ, झूठ में नही

सच्चाई में बसता है प्रेम

महसूस करके देखिये

किसी को प्रेम से

अपना बना कर तो देखिये

प्रेम तो सिर्फ प्रेम में होता है

सिर्फ प्रेम में !!!

नीर बहाया नैनों ने

नीर बहाया नैनों ने इतना

बन गया सागर

भर गया ऊपर तक लबालब

फिर खुद डूबने लगी

डूबती गयी, डूबती गयी

अतल गहराईयों में

बना लिया बसेरा वहीँ पर

भुला कर सब कुछ

मिटाने लगी खुद को

दिशा ज्ञान तक न रहा मुझे

अब बन के आ जाओ तुम

धुवतारा

कराते रहना दिशा ज्ञान

ताकि बच सकूँ भटकने से

इस भटकन से, निजात तो मिले !!

एक लकीर

तुम्हारे हाथों से एक लकीर लेकर

मैंने अपनी हथेलियों पर खीचनी चाही

यह क्या ?

यहाँ तो तुम्हारे होने का सबूत पहले से है

हाँ तुम उकर आये हो

तुम्हारा दिल

उन पाषाण मूर्तियों की तरह

जो अजंता अलोरा की गुफाओं में उकरी है

कभी न मिटने वाली

मंदिरों, महलों पर उभरे भित्ति चित्रों की तरह

मैंने अपनी मुठ्ठी कस कर बंद कर ली

तुम कसमसाने लगे

उस कसमसाहट को महसूस किया खुद में

खोल दी मुट्ठी

तो भी क्या तुम अभी भी

मेरी हथेली में हो

मेरी तकदीर बनकर

मेरी किस्मत अब तुमसे जुड़ गयी है

नही जुदा कर सकता कोई

किस्मत भला किसी की जुदा हुई है कभी

वह हमसे आगे चलती है

पर हम साथ साथ चलेंगे हमेशा

क्योंकि अब तुम

मेरी हथेलियों में जो उकर आये हो !!

तुम ही बताओ हमे

सब कुछ कह कर भी लगे अभी कुछ कहा ही नही

इतना सुनकर भी लगे अभी कुछ सुना ही नही

जी भर कर रोये हम याद करके तुम्हारी

भीतर भरे सागर से एक गागर भर बहा नही

दिन भर तपाता कंदील सा आकाश में टंगा सूर्य

खुद अपने ही ताप से वह क्यों तपा नही

सब कुछ है मेरे पास, क्यों ये दर्द, घुटन, बैचेनी

इतना पाकर भी लगे कुछ पाया ही नही

क्या करें अब हम, तुम ही बताओ हमें

न जिया जाता है और मरा भी जाता नही!!

हम होते हैं प्यार में

जब हम होते है प्यार में

तब हम खुद के लिए नही जीते

उसके लिए जीते है

नाम लेने भर से आँखें भर आती है

अंदर कुछ टूटन सी होती है

आँखों में तस्वीर रहती है

हर जगह उसकी ही छवि नज़र आती है

न सुकून आता है न करार आता है

कभी रोना तो कभी हंसी आ जाती है

कभी बेतहाशा उदास कर जाती है

एक अनजाना सा बंधन बंध जाता है

जिसकी डोर उसके हांथों में दे दी जाती है

हम नाचते रहते है उसके इशारों पर

फिरकी जिस ओर घुमाये घूम जाती है

सुख दे या दुःख दे

सब कुछ भूलकर उसमे ही मगन हो जाते है !!

याद आते हो

जब कभी तुम शिद्दत से याद आ जाते हो

हुड़क उठती है सीने में

आंसू आँखों से छलक पड़ते है

बमुश्किल रोक लेती हूँ उन आसुओं को

सीने में घुटती सी स्वासें

तेज़ी से ऊपर नीचे चलने लगती है

तुम महसूस होने लगते हो

मेरी नस नस में

मेरी शिराओं में

मेरी धमनियों में

और बहने लगते हो

लहू के साथ साथ

मैंने तुम्हें अपने भीतर जो उतार लिया है

समुन्द्र की तरह

जैसे वह नदियों को समाँ लेता है अपने में !!

गुलाब

गुलाब कोमल, मुलायम, खुबसूरत

देख बढ़ा दिया हाथ तोड़ने को

पर यह क्या ?

चुभ गया कान्टा

दे गया दर्द

बहुत गहरा दर्द

पीर चेहरे पर उभर आई

निकल आया खून बूंद भर

इतनी कोमलता के बीच

इन सख्त, कठोर, दर्द भरे

काँटों का क्या काम ?

बड़े दर्दीले होते है ये !!

नेह की डोर

नेह की डोर से बंधी खिंची चली आती हूँ

बार बार उस रह पर मुड़ जाती हूँ

बिन परवाह किये चली आती हूँ

सावन का मेघ बन बरस बरस जाती हूँ

आँगन की तुलसी पर ओस बन टपक जाती हूँ

तेरे बाग में आम के पेड़ पर चिड़िया बन चह्चहाती हूँ

समुंद्र के किनारे सीपों में गिर जाती हूँ

एक सफ़ेद चमकती मोती बन जाती हूँ

तेरे कुरते का बटन बन सीने पर सज जाती हूँ

मदिरा की बोतल में बर्फ का टुकड़ा बन पिघलती हूँ

पी लेते हो शराब समझ कर मै मिट जाती हूँ

तुम्हें आबाद कर जाती हूँ आबाद कर जाती हूँ

नेह के नाम पर बार बार मिटती जाती हूँ बार बार मिट जाती हूँ !!

तेरा जहाँ आबाद रहे

सुन, तेरा जहाँ आबाद रहे

तू दूर रहे या पास रहे

बस मेरे दिल के पास रहे

जब कभी नाम लेकर पुकारूँ

हो यहीं पर बस ये अहसास रहे

जीतने को सारा जहाँ पड़ा है

खुद को हार कर तुझे पाया है

गम नही कुछ खुद को हारने का

बस तेरा ज़हां आबाद रहे !!

तुम्हारी बेचेनियाँ

कुछ कहती है

सब कुछ ही कह देती है

खीचने लगती हैं मुझे

चुम्बक की तरह

खिंच जाती हूँ

बिना दिशा ज्ञान के

उसी ओर!!

खामोशियों

खामोशियों से घिरे हम दोनों

बाते करने लगे अंतर्मन

धड़कने धडकें साथ साथ

जीने लगे तनहाइयों को

पीते हुए बेइंतहाँ कठोर दर्द

जीवन की गहराईयों

में डूबते हुए

जब एक आह भी आस

बंधा देती है !!

इतना प्यारा

कोई क्यों इतना प्यारा लगता है

अपनी जान से भी ज्यादा

क्यों मन में समाँ जाता है

जैसे दरियां में नदी

और झरने नदियों में

पर्वत श्रंखलायें सर उठाए ख़ड़ी है

पेड़ों की शाखों पर चिड़ियों ने

घोंसले बना लिए हैं

मन्दिर में प्रार्थनाएं होने लगी हैं

घंटों की धुन के साथ आरती हो रही है

ये मन क्यों डोल उठा

उसकी डांट में भी प्यार नज़र आने लगा

हर बात में हर जगह

तेरी छवि है

मुस्कुराती हुई

बोलती हुई सुनती हुई

मन में तरंगित होती हैं ध्वनियाँ

चाँद भी निकल आया है

देखो ये तुम हो

पर चाँदनी इसे साथ क्यों लाये

ये क्यों है तुम्हारे साथ

जाओ इससे अच्छा तो तुम

बादलों की ओट में छिप जाओ

मैं इंतज़ार कर लुंगी तुम्हारा

झेल लुंगी विरह, तड़प

उसमें तुम मेरे साथ तो होगे

विरह जहाँ होंगे हम तुम साथ साथ !!

ऋतुराज

जब कलियाँ करती आर्लिगन

पंखुड़ियों का हो मधुर मिलन

इन्द्रधनुष की लुकाछिपी

मंद मंद शीतल बयार

हिय में उठती ये कैसी पुकार

मयूर नृत्य सा नाच उठे मन

सिंदूरी हो उठते कपोल

नैनों का पल पल उठना गिरना

मानों स्वासों पर आया भूचाल

ऋतुराज तुम्हारे आने पर

ये मन कैसा होता हलकान !!

मन को छू जाये

न जाने कब क्या मन को छू जाये

तन मन को पुलकित कर जाये

रोम रोम में समां जाये सिहरन

होठों पर स्मित रेखा खिंच जाए

हवाओं में हो कुछ नया सा सुरूर

मौसम बदला बदला नज़र आये

चिड़ियों के चहकने से बज उठे जलतरंग

मन का मयूर नाच नाच जाये

सागर की धीरता हो जाये उचश्रन्खल

मन नदिया बन उफना उफना आये

बिजली चमके बादल गरज कर बरसे

मन की धरा भी अंकुरा आये

फुहारों से भिगो कर तन मन

सीधे तुम दिल में उतर आये

न जाने कब क्या मन को छू जाये

तुम्हारा प्यार ही जीने का भ्रम बन जाए

जीने का भ्रम बन जाए !!

ख्वाब

बुनती हूँ ख्वाब सुबह सवेरे

जब ओस की बूँद

पत्ती पर चमक रही होती है

घास कुछ गीली गीली होती है

किरणों ने पैर पसारे भी नही होते है

रात में रह गये कुछ आधे अधूरे सपने

जो करने होते है सुबह सबेरे पूरे!!!

अक्सर

मै अब उनसे अक्सर नाराज होती हूँ

ताने देती हूँ उलाहनों से नवाज़ देती हूँ

शक के घेरे में कैद कर लेती हूँ

उन पर अविश्वास करती हूँ

सब कुछ कह कर खाली हो लेती हूँ

फिर जी भरके प्यार उड़ेल देती हूँ

गुस्सा छोड़कर मुस्कुरा देती हूँ

कस कर अपने सीने से लगा लेती हूँ

सच्चा प्यार करती हूँ न

तुम पर अंधविश्वास करने लगती हूँ

खुद पर ही नही कर पाती कभी कभी !!

अंधकार

रात्रि के गहन अंधकार में

जागते स्वप्नों के बीच

इच्छाओं के परों को लगाकर

हो जाती है शुरू मेरी उड़ान

और सोंच लागू

मेरे भीतर के खालीपन को भरने

लगते हैं आसमान में चमकते

सितारे

शब्द चमकने लगते हैं

हीरे की तरह या पारदर्शी क्रिस्टल से

लिखने लगती हूँ भाग्य को

पर यह क्या?

यहाँ तुम उभर आये

शब्दों के बीच झांकते से

हाँ शायद अब तुमसे होकर ही

जाता है मेरा भाग्य

कोई सुगन्धित खुशबू आसपास

बिखर जाती है

निहारने लगती हूँ मैं तुम्हें

और गुजर जाती है रात

यूँ ही !!

सूखते होठों

मेरे सूखते जा रहे होंठों पर

नाम रहता तुम्हारा

सीने में धड़कन बन धडकते तुम

फिर पूरा ब्रह्माण्ड

बन जाते हो मेरे लिए

जहाँ पर्वत हैं नदियाँ हैं

सागर और झरने हैं

हरी भरी पृथ्वी है तो बंजर भी

रहस्यमयी आकाश है

गहराइयों को समेटे सागर है

पशु पक्छी हैं वो सब है

जो होना चाहिये

पर मेरे भीतर है खोखला सा अकेलापन

हमारा प्रेम जी रहा है

तो एसा क्यों ?

तुम्हें करना होगा मुझसे उतना ही प्रेम

ताकि ह्म कर सकें निर्माण

हो सकें भागीदार ईश्वर के बनाये

नियमों के

कर सकें हल उस

अबूझ पहेली को !!

बांसुरी

जब तू बांसुरी बजता है न

मैं सुध बुध भुला के

दौड़ी चली आती हूँ

मुझे कुछ नज़र ही नही आता

नदी नाले वे सब भी नही दीखते

ओ कान्हाँ तूने येसा

कौन सा जादू किया है

जो मै तेरी हो गयी हूँ

तू भी मेरा है

सदियों से जन्म जन्मांतरों से

तू भी जानता है

मै भी जानती हूँ

तो ये धुन क्यों छेड़ देता है

मैं तेरे दिल में बसी हूँ

और तू मेरे दिल में

तो यह इतनी बेचेनी क्यों?

तड़प क्यों ?

ये कैसा दर्द है

कान्हा, तू मेरा है मैं तेरी हूँ !!

महसूस

ये कैसा महसूस होता है

न जाने क्यों दिल रोता है

अजीब सी बेचैनी चैन नही लेने देती

हिचकी साँस नही लेने देती

न खाने का मन न सोने का

क्या हुआ है

कोई जादू किया है जैसे किसी ने

हुड़क उठती है

शरीर बेजान सा

कोई चुम्बक सा मुझे खींचता है

खुद पर कोई वश ही नही

वेवश सी मै

भटकती इधर उधर

कोई राह नज़र ही नही आती

लोंट आती फिर से उसी चाहरदीवारी में

अपने से लडती जूझती मैं !!

तलाशती खुद को

रात के अंधेरों में तलाशती खुद को

लिखती एक प्रेमकविता

तुम गुनगुनाओं उसे अपने होठों से

समझूंगी स्पर्श किया मुझे

बन जाउंगी नदी

समेट लेना सीने में

बह उठूंगी तरंगित होकर

अविरल धारा से !!

रातें करती हैं मुझसे

रातें करती हैं मुझसे

हर रोज कई सवाल

तुम सोती क्यों नही

क्यों घबराई रहती हो

बैचैन हो इधर उधर

मचलती हो

हाँ तुम रहो सकूँ से

है कोई जो

फ़िक्र करता है तुम्हारी

यादों में बसा कर रखता है

दिल में छुपा कर रखता है

हर पल बैचैन होता है

तुम्हें पाने को

शायद यही जवाब है

मेरी जागती रातों का !!

वसंत मेरे भीतर उतर आया है

कोयल की कूक सा कुहुँकता हुआ वसंत

मेरे मन के भीतर उतर आया है

जबसे तुम्‍हारे होने के अहसास ने

मेरे आसपास पडाव बना लिया है

शहद सा झडता है मेरी ऑंखों से

कच्‍चे टेसू के रंग से मेरी हथेलियॉं रंग गयी हैं

पीले फूलों सी तितली तुम्‍हारी स्‍मृतियॉं सहेजे मंडरा रही है

सौंधी सी खुशबू मेरे मन की धरा पर बिखर गई है

उमंगो के कचनार खिल उठे हैं

मेरा दिल धडकते हुए मचल उठा है

तुम बदलते मौसम की तरह

चुपचाप मेरे मन की बगिया में आकर ठिठक गये हो

मुझमें ही उलझते हुए से

तुम्‍हारे आते ही मन में सारे मौसम

रंग बिखेरने लगे हैं

यह पीला वसंत और भी वासंती हो गया है

सपने में भी, पल भर को, तुमसे दूर जाने का अहसास

मेरी पलकों को गीली कर देता है

और ढुलकने लगता है गालों पर

हे बहती हुई पुरवाई! जरा ध्‍यान से सुन ले

मैं उस नेह की डोर से बंधी मुस्‍कुरा उठी हूं तो

तुम जरा हौले से चलो

कहीं जमाने की नजर न लग जाये

पीले फूलों सा खिलता वसंत

अब हर मौसम में

मुझ में ही मिल जायेगा

क्‍योंकि वसंत मेरे मन के भीतर उतर आया है।

अनजान अँधेरी राह

वह अनजान अँधेरी राह

जिस पर चली अकेली

मिल गए अचानक

और पकड़ कर हाथ

बैठा लिया साथ में

कर दिया सफर आसां

नही रही अब अकेली!!

रातें कोरी भक्क सफ़ेद,

रातें कोरी भक्क सफ़ेद,

यादें रंगबिरंगी

बातें रंगबिरंगी

अंधकार दिन भर रहता,

किरने करती राग विराग

दूर कहीं बैठा जादूगर

घिसता रहता जादुई चिराग

जिन्न प्रकट होता जैसे ही

भेज उसे खुद होता निहाल

सर पर चढ़ा भूत सा कोई

मन बिचलित, तन बेकार

रातें कोरी भक्क सफ़ेद,

यादें रंगबिरंगी

बातें रंगबिरंगी !!

मेरी चाह

आकाश की ऊंचाईयों तक

पहुचते तुम

खुले गगन में छितिज तक

टकराते मेरे हाथ

सागर की गहराईयों में डूबते तुम

मैं किनारों में खोजती खुद को

कोई राग गुनगुनाते

मैं शब्दों में ढलती

गिरते फिसलते सम्भलते

उन राहों पर

हाथों में हाथ

हरदम साथ साथ

मेरी चाह !!

फनकार

आकाश की ऊंचाईयों तक

पहुचते तुम

खुले गगन में छितिज तक

टकराते मेरे हाथ

सागर की गहराईयों में डूबते तुम

मैं किनारों में खोजती खुद को

कोई राग गुनगुनाते

मैं शब्दों में ढलती

गिरते फिसलते सम्भलते

उन राहों पर

हाथों में हाथ

हरदम साथ साथ

मेरी चाह !!

बात नदी से

आज एक नदी से मुलाकात हो गयी

मैं जानने को उत्‍सुक हो गयी

कि तुम कैसे निरन्‍तरता बनाये रख्‍ती हो

न कभी थकती हो

न कभी विश्राम

घाट किनारे सब सो जाते हैं

पर तुम नही सोती

शान्‍त, निश्‍चल, निर्बाध

बहती रहती हो

अपनी ही गति से

मेरी बात सुन नदी हौले से मुस्‍काई

और अपनी गति में तनिक भी व्यवधान न डाल बोली----

मैं भी बिचलित होती हॅूं

मुझ में भी उथल पुथल मच जाती है

जब कोई मनचला खिलंदणा

एक पत्‍थर उछाल देता है मेरी ओर

और हलचल मचा देता है

मेरी शांत धारा में

तो कुछ पलों को भावनाओं के ज्वार में बहने लगती हूँ

फिर उस पत्‍थर को अपनी मजबूती बना

दुगुने प्रवाह से बह उठती हूँ

अपनी मंजिल की ओर

क्‍योंकि रूकना या थमना मैने नही सीखा

मैं तो नदी हूँ

मेरा काम है बहना

निरंतरता और सम गति

कुछेक पल मैं बेशक थम जाती हूँ

तो उन पलों में मैं कुछ और

मजबूत हो जाती हूँ

नदी की बातें सुन मैं सब जान और

समझ गयी थी

रूकना या थमना जिंदगी नही !!

दुनियां देखना चाहती हूँ

वह दुनियां जिसे मै देखना चाहती हूँ

जानना, समझना चाहती हूँ

उसकी भागोलिक परिस्थितियों को

उसके गूढ़ रहस्यों को

गुफा के एक छोर से दुसरे तक

पहाड़ की चोटी पर उगे उस वृक्ष को

या तराई में बहती नदी को

नदी पर बने बांधों को

उसकी छाती पर बने पुलों को

समुन्द्र में उठती लहरों को

या उसमे उठते ज्वार भाटे को

प्रथ्वी की हरीतिमा को

बर्फ से आच्छादित हिम चोटियों को

धरती की गोलाई को

कंक्रीट के जंगलों को

मासूम बच्चों की किलकारियों को

लाठी टेकते बृधों को

उनकी मानसिकता को,

उनकी भावनाओं को

बनते बिगड़ते रिश्तों को

युवा मन के सपनों को

साहित्यकार की कलम से निकले शब्दों को

अपनी बेचैनी को

मन में उठते बवंडर को

भीतर उठती दावानल जैसी अग्नि को

शांत कर लेना चाहती हूँ

तुम्हारी जानी परखी नजरों से

परिपक्व विचारों से

जान समझ कर

इस दुनियां में चंद रोज चैन से

जी लेना चाहती हूँ !!

महसूस

कहाँ जताया जाता है हर वक्त

जरुरत भी कहाँ होती है

जताने की बताने की

सुनाने की

जब समझ लेते हो बिन कहे ही

सबकुछ

हम तो महसूस ही कर लेते है

तुम्हे हर पल अपने आसपास

हर आती जाती स्वांस के साथ

रोम रोम में सिहरन के साथ

नीद में हर ख्वाब के साथ

जागते ही अपनी हथेलियों

को चूम कर

दिल में छुपा लेती हूँ

जब भी मन बेचैन होता है

एक नज़र झांक कर देख लेती हूँ

यूँ ही दिनभर तुम्हे महसूस करते हुए

अपनी पलकों में सहेज लेती हूँ

एक ख्वाब की तरह सजाकर !!

बाबरे मन

बाबरे मन तू ठहर जरा

अम्बर सा सुना होता क्यों

तू देख जरा जग की माया

फल, फूल और घने जंगल

समझ जरा नदियों को तू

सागर सा उफनाता क्यों

राही बन क्यों भटक रहा

जगी कौन सी प्यास तुझे मन

मंदिर, मज्जिद पर टेक कर माथा

फंसा है ऐसे मोहजाल में क्यों

देता कौन तुझे आमंत्रण

मादक नयनोँ के भ्रमजल में तू

ऐसे गिरा है जैसे टूटी शाखा

वहां पर नीड़ बनाया क्यों !!

टूटा दिल

इन्तहां हो गयी, पार हद से र

इंसान कितना गिर गया

खेल समझता है दूसरों के जीवन को

और खिलौना दिल को

वो भी मिटटी का

जब तक मन किया खेला

फिर तोडकर फ़ेंक दिया

टूट गया दिल, बिना आवाज

मिल गया मिटटी में

बिखर गया चारों ओर

आँखे झर झर झरने लगी

सावन की बदरी सी

बरखा आई बादल गरजे

बरस गए झमाझम

पूरी धरा महक उठी

सोंधी सोंधी गंध से

अंकुरित हो आई धरती

टूट कर बिखरे दिल पर भी

फूटे अंकुर

वहां पड़े थे बीज

दर्द और आह के

तड़प और बैचेनी के भी थे कुछ

एक दिन गुज़र गया अनजाने मे

वह बेबफा प्रेमी उन राहों से

चुभ गए वे अंकुरण जूते पहने पांव के भीतर तक

एक हुक सी उठी उसके सीने में

बहने लगे आंसू

कुछ बेचैनी और तड़प महसूस की

बैठ गया पेड़ की छांव तले

एक मदमस्त हवा का झोंका आया

निकल गया सहलाते हुए बालों को

सच्चे प्यार का दर्द आज महसूसा था

टूटे दिल के अंकुरण उसे

सच्चे प्यार का अहसास करा गये थे

अब कुछ नही बचा था

टूट कर सब बिखर चूका था

बचा था तो

खाली हाथ और सुना दिल!!

तन्हाई

जब तन्हाई छा जाती है

नींद कहीं दूर उड़ जाती है

वक्त की धुरी लगातार बढती जाती है

सज जाती है यादों की महफ़िल

जो सुख दुःख, धुप छांव सी

मन को सहलाती है

याद कभी बादल बन बरसती है

कभी धूप बन होठों पर खिल आती है

खुद से ही हंसना, रोना , गाना और बतियाना

यादों की लम्बी सैर पर निकल जाना

रात का सन्नाटा भीतर भर जाता है

जब तन्हाई आती है

बहुत रुलाती सताती

और तडपाती है !!

उदास नज़्म

जब कभी उकेर लेती हूँ तुम्हे

अपनी नज्मों में !

आसुओं से भीगे

गीले, अधसूखे शब्दों से !!

सूख जायेंगी गर कभी

वे उदास नज़्मे!

सबसे पहले सुनाउंगी

या दिखाउंगी !!

सच में गीली है

अभी तो !

वाकई बहुत भीगी भीगी सी

न जाने कैसे सूखेंगी ???

इस गीले मौसम को भी

अभी ही आना था ? !!!!!

नही थे तुम

होना तुम्हारा मेरे जीवन में

एक गुदगुदाता मीठा अहसास

हरदम आसपास

समय बदला

वह अहसास भी बदला

एक घुटन भरी पीड़ा में

तुम्हारा होना भी,

न होना, बन गया था मेरे अस्तित्व में

लगता, मै छली गयी , मै ठगी गयी!!

जब जग जाती रात को गहरी नींद से

उस वक्त मेरे नयन रेगिस्तान की तपती रेत की मानिंद

दहक उठते

तब मैं तुम्हारे शीतल स्पर्श को पाना चाहती

पर नही होते तुम !!

उस वक्त वहती हुई मेरे पलकों के कोरों पर

अनगिनत आसुओं की धार को

तुम्हारे भागीरथ बन जाने की जरुरत होती है

ताकि मुझ गंगोत्री को

अपने अन्तास्थल में समां लो

पर नही होते तुम !!

वक्त के भयंकर तुफानों के बीच

जब मै अकेले लडखडा जाती हूँ , संघर्षों से घबरा जाती हूँ

तब जरूरत होती है मेरे माथे को

तुम्हारे मजबूत कन्धों की

पर नही होते तुम !!

जलती हुई आग के सामान इस विरह में

मेरे महकते बदन को

तुम्हारे भुजपाश की जरुरत होती है

पर नही होते तुम !!

मुझे जरूरत होती है तुम्हारे सर्वांग

ताकि मैं अहिल्या तेरे राम नामी

स्पर्श से तर जाऊं

पर नही होते तुम !!

क्यों ? आखिर क्यों ??

क्यों नही हम साथ हैं?

साथ साथ पूरी दुनियां को देखने का वादा

अब सपना बन, मेरी हथेली की बंद मुठ्ठी से

रेत की तरह सरक रहा है

तुम्हारा होकर भी न होना, मेरे जीवन को छल रहा है

तो अब लौट आओ ......

नजर उतारें अपने प्यार की

और जी लें वही प्यारे पल !!!!

वे दरख़्त

उन दरख्तों का तिलिस्मी साया

जकड लेता है अपनी छाँव तले

भर देता है अहसास

सुस्ताने का कुछ पल ठिठक जाने का

बिछा देता है नर्म मुलायम कोमल पत्तियां

प्रेम की सलाखों पर चले पावों के नीचे

उसूल गुरुर को तोडकर

काल्पनिक स्वप्निल हयात में विचरते हुए

दुआओं को उठ जाते है हाथ

उनकी सलामती को

संतुष्टि को खुशहाली को!!

दिन ढल गया

दिन ढल गया

साँझ घिर आई

सिंदूरी आकाश ने

खुद को अन्धकार में घेरने की

तैयारी कर ली

व्याकुलता से मेरी आखों से

कुछ बूंदें आसुओं की

टपक कर गालों पर

ढुलक आयीं

तुम्हारे इंतजार में !!

पुकार दिल की

रोज सोचती हूँ अब तुमसे बात नही करुँगी

फिर मन नही मानता और बात करने लगती हूँ

जानती हूँ तुम अहम में डूबे हो

तो मेरे मन में यह कैसी अगन जली रहती है

सुना था मन को मन से और दिल को दिल से राह होती है

तो यह मेरे दिल की पुकार

तुम्हारे दिल तक क्यों नही पहुँचती

मन रोता है गुहार लगाता है मन ही मन

क्या तुम्हारा मन नही सुन पाता

अगर हाँ कुछ नही है मन में तुम्हारे

तो हर बार मिलने की बात क्यों करते हो

आ गयी अगर तुमसे मिलने

पहुँचा दी फिर मेरे आत्म सम्मान को चोट

तो मै मरकर भी जी नही पाऊँगी

मैं बिन तुम्हारे अब जी नही पाऊँगी!!

अज़ीज़ दोस्ती

बहुत अज़ीज़ है यार तेरी दोस्ती

मक्खन सी पिघलती है तेरी दोस्ती

आदर मान सम्मान है मन में भरा

शीतल सुगन्धित हवा सी है तेरी दोस्ती

न जाने किस भरम में जी रही हूँ मै आजकल

ये सच है या सिर्फ भ्रम ये भी नही जानती

अकेले होकर भी अकेले नही हूँ

संग हो हरदम परछाई बन कर

साथ रहते हो मेरे कदम दर कदम

आँखों में रहने लगा है कोई सैलाब

हरदम बहने को तत्पर और

सीने में दबा है तूफान

भरे हैं हजारों सपने आँखों में

नीद कैसे आये

हिचकियाँ स्वांस नही लेने देती

दम घुट रहा है

यकीं नही रहा खुद पर

कि कैसे करूँ यकीं तुम पर !!

इन्द्रधनुषी रंग

गुलाबी हरा नीला पीला और

जलते हुए आग के गोले सा नारंगी

जब वे रंग समां जाते है खुद में

या खुद समां जाते है उन रंगों में

आकंठ डूब ही जाते है उन रंगों में

ये रंगों का समंदर क्यों खिचता है

दिग्भ्रमित करता है

मन को उल्लासित करता है

कुछ पल की हरियाली वाला

ये रंग हरा

क्यों हरा भरा कर देता है

फिर सारे रंग गडमड से होने लगते है

कुछ फर्क ही नही कर पाता है मन

उन रंगों को मिटा

गहन अंधकार सा काला रंग

ज़माने लगता है अपना वर्चस्व

तब कहीं दूर देश से

उड़कर आ जाती है

कोई तितली

अपने रंग भरे पन्खों के सहारे

निकालने का भरसक प्रयत्न करती है

और उबार ले जाती है

काले रंग के बवंडर से

इंद्र धनुष में कभी कभी

काला रंग भी आ जाता है न !!!!!

भूख

वो भूखी थी

कई दिनों से भूखी

अन्न का एक दाना तक

पेट में नही गया था

और वे नज़रें भी भूखी थी

जो उसकी भूख मिटाना चाहती थी

अपनी भूखी नज़रों की भूख मिटाकर

नही मंज़ूर था

समझौता उसे

भूख से भूख का

इसीलिए वह भूखी थी

कई दिनों से

न जाने कब तक भूखी रहेगी

दूसरों की भूख को मारकर

या मिटा लेगी भूख अपनी

उन सबकी भूख को मिटा कर !!

सो जाएँ रातें

सो जाएँ रातें

सपनें जागते रहे

मुस्कुराएँ प्रेम में

या कभी रोने लगें

इच्छाशक्ति चिड़ियों सी

आकाश में भरें ऊँची उड़ानें

कभी बालकनी में आकर चहचहानें लगें

न कोई नियमों का बंधन हो

न किसी भेद का डर

ईश्वरीय शक्ति मनप्राण में

बसी सी है

जीवन में सच्चे प्रेम को पाना

मुश्किल है

नेकनीयत से मिल ही जाती है !!

प्रेम में

मुस्कुराएँ प्रेम में

या कभी रोने लगें

इच्छाशक्ति चिड़ियों सी

आकाश में भरें ऊँची उड़ानें

कभी बालकनी में आकर चहचहानें लगें

न कोई नियमों का बंधन हो

न किसी भेद का डर

ईश्वरीय शक्ति मनप्राण में

बसी सी है

जीवन में सच्चे प्रेम को पाना

मुश्किल है

नेकनीयत से मिल ही जाता है !!

सोचती हूँ

सोचती हूँ न होते तुम

तो कैसे कटते रास्ते

कैसे होता ये सफ़र पूरा

पथरीली, ऊँची नीची

काँटों भरी

प्रज्वलित अग्नि

जैसी राह पर चलती मैं

तुमने डाल दी

पूरी प्रथ्वी की हरियाली

और समस्त प्रक्रति मेरी गोद में !!

उनका निर्वासन

वे निर्वासित हो रही थी जीते जी

खुद से जीवन से या घर से

उनके लिए खींच दी थी

रेखाएं

अब उन्हें जाना ही होगा

इस घर से

जहाँ वे आई थी दुल्हन बन

लाल जोड़े में लिपटी हुई

डोली पर चढ़ कर

पति के कन्धों पर

अर्थी के उपर विदा होने का ख्वाब लिए

बेटों ने तय कर दिए थे

अब उनके दायरे

हाँ दायरे में ही तो लिपटी रही थी

वे आज तक

पिता, भाई, पति और अब बेटा

उन्हें चलना ही होगा

उन दायरों में सिमट कर

यही तो उनकी नियति है

लेकिन ये निर्वासन झेलना मुश्किल लगा

इस उम्र में

सब कुछ पीछे छूटना

नही सह पाई वे

और हो गयी

निर्वासित खुद के जिस्म से

हमेशा के लिए

वे अमर थी आत्मा से

निर्वासित हुई थी

केवल घर से , रिश्तों से ओर दायरों से !!

गीत

एक हवा का झोंका आया

कानों में कुछ बुदबुदाया

हुई मन में खलबली सी

स्पर्श तेरा याद आया

वे बीते हुए से पल

जो जिए थे हमने संग

खुशबु से भिगोकर के

तन मन को महकाया

एक .......................

दूर गए जबसे तुम

मै विरहन बन तड़पुं

जब देखूं दर्पण में

तेरा चेहरा नजर आया

एक...........................

एक पीर उठे दिल में

न चैन कहीं आये

नैनों से बरसे सावन

मन पे बदरा घिर आया

एक.........................

अकुलाहट है_________________________________________________

ये जाने कैसी अकुलाहट है

मन ही मन घबराहट है

लगता पीछे कुछ छूट रहा

आगे की अब आहट है

रात अन्धेरी फैली है

तारों ने रौशनी बिखेरी है

धड़कन देखो बढती जाती

होठों पर बैठी पहरेदारी

भोर की लाली फूट रही

रात अभी जाने वाली

तम का कालापन निखरा

नई सुबह आने वाली

ये प्रेम प्रीत के बंधन भी

न जाने कब बंध जाते हैं

किरनें अब तो महक उठी

और पक्छी गाते जाते हैं !!

एक रंग

एक रंग में रंग जाएँ चलो हम दोनों

दूध और पानी सा मिल जाएँ हम दोनों

बहें जब भी हवाएं आये उनसे खुशबु तेरी

फूल और खुशबु सा रम जाएँ हम दोनों

मुझ पत्थर को छूकर पारस कर दे

जन्नत में जीने लगें हम दोनों

हारी मैं जीत गये तुम न कोई सौदेबाजी

जीत हार का जश्न मनाएं हम दोनों

भीग जाऊ मैं कितना भी डूब न पाऊं

लहर और सागर सा बन जाएँ हम दोनों

बुना जो ख्वाब मैंने संग तुम्हारे

हाथों में डाल हाथ जी जाएँ हम दोनों !!

प्यार हो गया

हाँ मुझसे गुनाह हो गया

या रब मुझे माफ़ करना

हाँ मुझे प्यार हो गया

मुझे कुबूल है मेरा गुनाह

जो चाहें सज़ा दे दे

बस मुझे मेरे प्यार से मिला दे

मुझे मेरे प्यार से मिला दे

हल्दी और चुने सा मिला दे

जैसे इन दोनों को मिलाकर बनता है

रंग केसरिया

वैसे ही मेरे प्यार में रंग भर दे

महका दे मेरा दामन

महकती कलियों से खिला दे फूल

मेरे प्यार के चमन में

या रब मुझे मेरे प्यार से मिला दे !!

ऐसा लगता है


अपना सब कुछ्
तुझ पर बार दूँ !
................
कभी नज़र उतारूँ
कभी जी भरके बालाएं लूँ !
....................
माथे पर लगा कर रोचना
तेरी आरती उतार लूँ !
...............
बाँध दूँ धागा
मन्नतों का
हर मन्नत पूरी करा लूं!
..........
गले में डाल के गलबहियां
तुझे आँचल में छिपा लूँ !
................
सारी दुनियाँ की खुशियाँ
तेरी पलकों पर सजा दूँ!
............
मिटाके खुदी को
तुझे खुशियाँ का उपहार दूँ!
...............
लाड, प्यार, उपहार से
तेरा सारा जीवन सवार दूँ !!
तेरा सारा जीवन सवार दूँ !!

एक झलक

उनकी एक झलक येसा असर कर गयी

रात कटती नहीं नींद भी ले गयी

मुस्कुराता चेहरा मुस्कुराहट बिखेरे

होठों की हंसी दिल का सुकून ले गयी

हाथ बढाकर मै छू भी न सकी

मुझको मुझी से दूर कर गयी

उनकी आँखों में झांकने से पहले

मोजूदगी भी उनकी दूर हो गयी

समझने बताने को कुछ भी बचा न

ये हालत मुझे इतना दर्द दे गयी

क्या होगा इस दर्द ए गम का

कोई दवा मुझपे न असर कर गयी !!

मीठे तराने

हवाओं ने छेड़ें कुछ मीठे तराने

फिज़ायें लगी गीत गुनगुनाने

हर स्वांस में बसती खुशबु तेरी

हर छण कोई याद करता मेरी

महसूस होता है अहसास बनकर

दिल में रहता है प्यास बनकर

मीठे शब्दों का कुछ भण्डार खोलो

नाजुक है दिल मेरा येसे न तोड़ो

चोट गहरी है दर्द होता बहुत

हँसता है कम दिल रोता बहुत

सहा जाता नही पके फल का बोझ देखो

पेड़ भी कैसे थोडा नीचे झुक आया देखो !!

ये दिल

ये दिल, तोड़ न इस कदर

कि कोई दुआ काम न आये

मत ले इत्ती बददुआयें

की कोई जोड़ न पाए

ये दिल, चलती थी जिंदगी

तेरे नाम से जो

मत भर खौफ इतना

कि जी नही पाये

ये दिल दिखा दे राह

उस भटके परिंदे को

जो घर में रहकर भी

राह भूल भूल जाये

ये दिल, लौटा वही सपने

मेरी आँखों में तू

मौसम का रुख भी

मुड़ मुड़ के आये

ये दिल, है खुला दर

तेरे लिए अब भी

की ऊँची उडान से भी

परिंदा लौट कर आये !!

आस का दीप

आस का एक दीप जलाती हूँ

और पलकों की ओट कर लेती हूँ

कोरों की ओर से फूंक मार के

जब बुझा देते हो

घिर आता है अँधेरा

जीवन की लताएँ मुरझाने लगती हैं

न कोई कली न कोई फूल

बचता है उसपर

मैं असहाय सी पुकार उठती हूँ

तभी कहीं से बासुरी की धुन

कानों में गूंज जाती है

मैं इस कलियुग में भी

तुम्हें अपने करीब पा लेती हूँ

क्यूंकि सच में ही ईश्वर का निवास

होता है !!

उदासियों के बादल

उदासियों के बादलों से घिरा मन

चीत्कार कर उठता है

भर जाता है आर्तनाद से

मुक्त होने की छटपटाहट

इस पिंजर से

कुछ कदम उठाने को बेताब हो उठता है

उसी छन अपनी बाजुओं में समेट

सीने से लगा लेते हो

समा जाते हो मेरे ह्रदय में

शीतलता से भर जाती हूँ

तृप्त होकर मुस्कुराती मैं

उदासियों के दायरे से निकल आती हूँ !!

कच्ची मिटटी

कच्ची मिटटी से बनी मै

तराशकर करिश्माई हाथों से

देवी बना दिया

रंग रूप निखारा

वह फरिश्ता नज़र आने लगा

कितने अरमान भरे मन में

कितने दीप जलाये

बस इतना और करना

मजबूत करके इतना पका देना

जब कभी भी टूटू तो

बिखर कर मिटटी में न मिल पाऊं !!

थम गयी हूँ

कुछ थम गयी हूँ

ठिठक सी गयी हूँ

सब कुछ रुका रुका सा है

न हवा बह रही है

न चाँद, तारे, सूरज दिख रहे हैं

न सुख महसूस हो रहा न दुःख

न कुछ मेरा न कुछ तेरा

न रौशनी न आवाजें

बस एक अंधकार

सिर्फ मौन

सब कुछ शांत

क्या मै जीवित होते हुए भी

जीवित नही हूँ

या शायद स्व में लीन हो गयी हूँ

जहाँ सिर्फ एक छवि दिखती है

नही ये मैं तो नही

हाँ मेरे जैसा ही कोई

मेरे विचारों जैसा भावों जैसा

लेकिन वो मेरा नही

मैं उसकी नही

फिर क्यों है

वो छवि मन में

क्यों भारी है मन

क्यों रोती हैं आँखें

बहाती रहती हैं आंसू

क्यों धडकने इतनी तेज़ है

जो प्राण हलक में अटका देती हैं

क्यों ये आग सी जलती है

जो मुझे भस्म कर रही है

मैं मिट रही हूँ

सब कुछ तो बैसा ही है

फिर क्यों मुझे सब कुछ बदला बदला लगता है

नया नया सा अजनबी सा

क्या मैं किसी दूसरे देश में हूँ

परदेस में हूँ

मै खुद को क्यों भूल रही हूँ

मेरी पहचान क्यों खो रही है

मै शून्य में क्यों जा रही हूँ

मौत मुझे करीब से क्यों दिख रही है

मैं क्यों घुट रही हूँ

क्या मैं स्वार्थी हो गयी हूँ

क्या मै कीचड मै धंस गयी हूँ

क्या कोई समझ सकता है मेरी पीड़ा

दूर कर सकता है मेरे दर्द !!

सन्नाटा

चारो ओर सन्नाटा

गहन अन्धकार

कोई ध्वनी प्रतिध्वनी नही

किसी सपने को पूरा करने का

स्वप्न लिए

बेतहाशा धडकता दिल

किसी अनजानी आशंका से

नदियाँ ढूढ़ रही रास्ता

फूल रंग और खुशबु की तलाश में

आशाओं की किरण का फूटना

छोटे से दीपक के सहारे

जब नदियों को मिल जायेगी

राह

फूलों को रंग भरी खुशबु

धडकते दिल की घबराहट को सुकूं

होगी पूर्ण अनंत प्रतीछा!!

अनजाना सा

जो जन्मा सीने में

अनजाना सा

संगीत की स्वरलहरिओं सा

कोई शब्द बनकर

या कोई अटूट बंधन

अनचीन्हा सा

बेचैनी से स्वासों को लेता समुन्द्र सा

बौराए उजले दिन की तरह

या रात की गहन अँधेरी रात सा

जब एक जुगनू की चमक

भी बिखेर देती है रौशनी

मेरे होठों पर घिर आये

पुरातन मौन सा

जो कर रहा है

जीवन से या खुद से बार्तालाप

या मिलन आत्मा से परमात्मा का

हाँ अब यही सच है मेरे होने का

या तुम सा हो जाने का !!

मन के कागज पर

मन के कोरे कागज पर

एक हर्फ़ लिखा प्रेम

और भूल गयी

सारे आडम्बर दुनियां के

उंच नीच भेदभाव

जाति पांत रीति रिवाज

प्रेम सुधा से ओतप्रोत होकर

जीवन को अमृत बना लिया

डूब गयी आकंठ

दर्द के सागर में

अमावस से गहन अन्धकार में

उदासियों के बादल में

भिगोती रही खुद को आँसुओं में

और लिख लिया भाग्य में विरह

जीने लगी आँखों के बीच छुपी

गहरी नीली झील के साथ

मन में बहते निर्झर झरने के साथ

ख्वाबों के छितिज पर बैठी रहती

अपने प्रेम के साथ

लिखती रहती अपनी रक्तिम हथेलिओं

पर उसका नाम

चूमती और माथे से लगाकर बंद लेती मुठ्ठी में

थिरक उठते पॉव

प्रेम की मधुर

बजती बासुरी पर

गुनगुना उठते होंठ

तुम्हारे लिखे गीतों को

वासना कामनाओं से परे मेरा प्रेम

संवल है जीने का

आत्मविश्वास है जीवन का

जिसमें कोई चाह नही

पाने की लालसा नही

ये दिल की सच्चाइओं में बसा है

क्यूंकि मैंने लिख लिया एक हर्फ़

मन के कोरे कागज पर

प्रेम !!

सीमा असीम

ये चाँद

ये चाँद जब तुम आ जाते हो

अपने पूरे तेज़ के साथ

चमकने लगते हो

आकाश में

चांदनी मुस्कुरा के

बिखर जाती है

तुम्हारी ओट में

समेट लेती है

अपनी बाँहों में

आर्लिंगन करके

तुम्हारे डूबने तक

रखे रहती है

तुम्हारा सर

अपने बक्ष पर

सुला लेती है अपने गर्म आगोश में

खुद जागती रहती है

रात भर

वैसे भी उसने

इंतज़ार में जागने को ही अपनी

किस्मत जो बना लिया है

कहाँ करती है कोई शिकवा

वो तो अपने कुंवारे ख्वाबों

में सदियों से

तुम्हें ही सजाए हुए थी

भूल जाती है

नक्षत्रों के तकती घूरती निगाहों को

नही करती परवाह

वो उनकी

क्यूंकि उसकी ख्वाहिशों में ये चाँद

बस तुम ही

शामिल हो!!

यादें

अँधेरी रात में

कुछ देर को निकल आया था चाँद

बिखरा गया चांदनी

उसी के साथ ही बिखर गयी

यादें, एक सिलसिला सा बनाती हुई

जो चलती रही सारी रात

बहती रही नदी की तरह

पहाड़ों से उतर कर मैदान तक

संग संग

हवा में घुली खुशबु

बिखरती रही

देर तलक

महकाती रही

लिपटा रहा कोई जाल

संग में

चलता रहा चलचित्र

करता रहा भावशून्य

नम नम सा अहसास

भिगोता रहा मन को

पलकों के दरवाजे पर ठहर गये

वे ख्वाब नींद को दूर कर

होना पलभर का मुझ में

सदियों तक यादें बन

पा लेना या सहेजना

सवरना जीवन का या बिखर जाना

टुकड़ों में

स्व में लीन हो जब दिखे सिर्फ आसमां

और एक गहरी श्वांस!!

सीमा सक्सेना ,, बरेली

09458606469