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परियों का पेड़ - 6

परियों का पेड़

(6)

परी माँ से भेंट

काफी सोच विचार के बाद भी जब राजू प्रति-उत्तर नही दे पाया तो फिर एक प्रतिप्रश्न दोहरा बैठा – “वैसे लगता तो नहीं, लेकिन क्या तुम मेरी माँ हो ?”

यह आकस्मिक सवाल सुनते उस देवी के चेहरे पर एक साथ आश्चर्य के कई भाव आकार गुजर गए | कुछ पल के लिए वह सन्नाटे में ही खड़ी रह गयी |

उस दिव्य स्त्री ने थोड़ी देर बाद राजू के चेहरे पर दृष्टि गड़ाते हुए पूछा – “भला तुम्हें ऐसा क्यों लगा ?”

“मुझे अच्छी तरह है | मेरी माँ के पास इतने मंहगे कपड़े और गहने तो नहीं थे किन्तु वह सुंदर तो थी ही | बिलकुल तुम्हारे जैसी ही | बापू बताया करते हैं कि वह जहाँ भी जाती थी, तुम्हारी तरह उजाला फैला देती थी | वह मुझे बहुत प्यार करती थी | लेकिन पता नहीं क्यों? वह मुझसे बहुत दूर चली गई | मैं तो अपनी माँ को ही सबसे ज्यादा याद किया करता था | अब भी उनके बारे में ही सोचता रहता हूँ |”

“अच्छा ? .....और क्या – क्या बताते हैं तुम्हारे बापू उनके बारे में ?” – उस दिव्य स्त्री ने आश्चर्य से पूछा |

“बापू कहते हैं कि मेरी माँ को भगवान ने अपने पास बुला लिया है | वह भी इस धरती से बहुत दूर, उन्हीं चाँद - सितारों की दुनिया के बीच कहीं स्थित, भगवान के घर में रहती हैं |”

- “अच्छा....? तभी तुमने अंदाजा लगाया कि मैं तुम्हारी माँ हो सकती हूँ |”

- “हाँ, मुझे भी पूरी आशा थी कि वो कभी न कभी मुझसे मिलने जरूर आएँगी ? शायद ऐसे ही सुन्दर और दिव्य रूप में |” राजू ने बड़ी मासूमियत से रूआँसे स्वर में जवाब दिया था |

माँ की चर्चा मात्र से उसका गला और आँखें भर आयी थी | लग रहा था कि वह अब रोया कि तब रोया | कभी भी उसकी आँखों से ममता और दुख का मिला जुला सावन– भादों बरस सकता था |

राजू की ऐसी बातें सुनते ही वह दिव्य स्त्री भी ममता और प्रेम से भीग गयी | उसने राजू की ओर अपने दाहिने हाथ की एक उंगली बढ़ाई | फिर बिस्तर से ऊपर उठने का संकेत किया | जैसे एक माँ अपने बालक को उँगली पकड़ कर पास आने को बुला रही हो |

राजू लेटे ही लेटे सम्मोहित सा बिस्तर पर सीधा उठता चला गया | बिलकुल सीधा खड़ा हो गया | मानो किसी ने बिस्तर पर पड़े हुए मोम के पुतले को उँगली में बंधे किसी धागेकी सहायता से खींच तान कर सीधा खड़ा कर दिया हो | राजू बिना प्रयास ही उस देवी की उँगली पकड़ने के लिये क्षण भर में उसके बराबर में पहुँच गया था | उसके सामने, उसके एकदम पास खड़ा गया था | फिर ममता से सम्मोहित राजू का दाहिना हाथ मानो अपने आप ही आगे बढ़ा | उसकी उँगलियाँ लरजते हुए उस दिव्य स्त्री की उँगलियों से टकरायी | फिर एक दूसरे से लिपटती चली गयी |

उस दिव्य स्त्री के शरीर का स्पर्श होते ही एक बिजली सी कौंधीं थी राजू के शरीर में | उसको अपना शरीर एकदम हल्का प्रतीत होने लगा था | राजू को ऐसा लग रहा था, मानो वह बीच हवा में तैर रहा हो | ......जमीन से ऊपर खड़े – खड़े ही उड़ रहा हो |

अब राजू को पास खींच कर उस दिव्य स्त्री ने उस के चारों ओर अपनी बाहें भी लपेट दी | फिर उसे तेजी से अपने हृदय से चिपटा लिया | गले से लगाकर चूमने – सहलाने लगी | ऐसे प्यार करने लगी जैसे सचमुच उसे अपना कोई वर्षों से बिछुड़ा हुआ बेटा मिल गया हो | राजू को भी लगा कि उसे साक्षात ममता की देवी मिल गयी है, जो उसे भरपूर प्यार कर रही है | अपनी सारी ममता उस बिन माँ के बच्चे पर लुटाये दे रही है |

राजू का रोम – रोम पुलकित हो उठा | राजू भी उस देवी से खूब अच्छी तरह लिपट गया था | ठीक उसी तरह, जैसे वह अपनी माँ से लिपट जाया करता था | माँ की मौत के वर्षों बाद अचानक ही उसको इस तरह का प्रेम प्राप्त हुआ था | अतः राजू भी प्यार - दुलार के उन अमूल्य क्षणों में डूबता चला गया |

राजू कब तक उसकी गोद में इस तरह खोया रहा, उसे कुछ होश नहीं था | काफी देर बाद जब उसकी तंद्रा जागी तो उसने चेहरा उठाकर ऊपर की ओर देखा |

तब वह दिव्य स्त्री राजू से बोली – “इतना प्यार करते थे अपनी माँ से ?”

“हाँ, शायद इससे भी ज्यादा | ढेर सारा प्यार करता था उनसे | बल्कि अब भी करता हूँ | इतना प्यार करता हूँ, जितना उनसे भगवान भी नहीं करते होंगे |”

लेकिन अचानक ही जैसे राजू को फिर कुछ याद आया |

पलट कर पूछ बैठा – “लेकिन तुमने बताया नहीं, क्या सचमुच तुम्हीं मेरी माँ हो ? आखिर तुम्हें किस सम्बोधन से पुकारूँ ? मुझे बार – बार ‘तुम’ कहना अच्छा नहीं लगता |”

प्रत्युत्तर में वह देवी कुछ देर तक सोच में डूबी रही | फिर उसे प्यार करते हुए बोली – “राजू ! मैं तुम्हारी असली माँ नहीं, बल्कि एक परी माँ हूँ | लेकिन मैं भी वहीं से आयी हूँ, जहाँ तुम्हारी माँ रहती है | उसी ने मुझसे कहा था कि मैं तुम्हारे घर आकर तुम्हें प्यार करूँ |”

-“ओह ! क्या सचमुच ?”

“हाँ , सचमुच ! ....क्योंकि तुम अपनी माँ के साथ ही आजकल मुझ जैसी परियों के बारे में भी तो खूब सोचा करते हो | हमारी कहानियाँ सुनकर हमें याद भी करते रहते हो | है न ? इसलिए तुम चाहो तो मुझे “परी माँ” कहकर पुकार सकते हो |”

“ओह...तो तुम परी माँ हो | इसीलिए तुम भी इतनी सुंदर और ममतामयी हो |”- राजू विहंस उठा |

“हाँ राजू |” – परी भी भाव विह्वल हो उठी थी |

“पिताजी मुझे अक्सर परियों की कहानियाँ सुनाया करते हैं | वह कहते हैं कि भगवान के बुलावे पर अचानक उनके पास जाने वाली, मेरे जैसे बच्चों की माँ आप जैसी परियों के रूप में दोबारा धरती पर आती रहती हैं | ” – अब राजू का संशय मानो खत्म हो चुका था | वह सामान्य होकर बातें कर ता जा रहा था, फिर अचानक ही बोलते – बोलते ठिठक गया - “लेकिन .....?”

- “लेकिन क्या राजू ?”

“लेकिन परी माँ ! मेरी अपनी माँ क्यों नहीं आयी ?” - राजू ने फिर से बच्चों की तरह जिद भरा सवाल पूछते हुए, उदासी पूर्वक एक ठंडी आह भरी |

“वो इसलिए .....? वो इसलिए कि.......?” – परी माँ क्षणभर के लिये थोड़ा सा हिचकिचाई |

“हाँ …हाँ बोलिए, किस लिए ?” – राजू उत्साहित हो उठा |

“वो इसलिए कि .....वहाँ ...?.....वहाँ उन्हें बहुत काम है | भगवान जी के घर में बहुत काम करना पड़ता है न उनको |” – मानो बड़े सोच -विचार के बाद यह उत्तर निकला था परीमाँ के मुँह से |

“हुंहssss? भला भगवान जी के घर में उन्हें कौन सा काम है ? लोग तो कहते हैं कि भगवान के घर में आराम ही आराम और भरपूर सुख चैन होता है |” राजू ने आश्चर्य से आँखें फैलाते हुए कहा |

-“हाँ हाँ, होता है न | आराम होता है और सुख – चैन भी होता है | लेकिन तुम्हारी माँ इतनी अच्छी है कि वह अधिक आराम करना ही नहीं चाहती | इसलिए उनको भगवान जी ने बहुत सी परियों को बच्चों से प्यार करने का तरीका सिखाने का काम दे रखा है | यह काम उनकी पसन्द का ही है इसलिए अब उन्हें कभी फुर्सत ही नहीं मिलती | इस काम से वीएच ऊबती भी नहीं |” – परी ने बड़े संकोच के साथ मुस्कुराने की कोशिश भी किया |

राजू ने फिर पूछा – “अच्छा ! एक बात बताइये | माँ नहीं आ सकती तो क्या हुआ ? अब मैं तो आपके साथ उनके पास जा सकता हूँ न ?”

अचानक हुए इस सवाल से परी हड़बड़ा गयी | फिर अटक – अटक कर जल्दी से बोली – “अरे नहीं, नहीं | तुम अभी अपनी माँ के पास नहीं जा सकते |”

“भला क्यों नहीं जा सकता ?”- राजू ने मानो जिद किया |

अब परी को थोड़ा सोच कर जवाब देना पड़ा – “वो क्या है राजू कि अभी तुम्हें पढ़ लिख कर एक बड़ा और अच्छा इंसान बनना है | दुनिया में ऐसे बहुत से बच्चे हैं जिनकी माँ नहीं है | तुम्हें उनके लिए भी बहुत कुछ करना है | बिन माँ के बच्चों को भी समझाना और धैर्य बंधाना है | ....और हाँ, अपनी माँ के न रहने पर अपने पिताजी का सहारा भी तो बनना है न ?”

“हाँ सो तो है | लेकिन इसका मतलब यह हुआ कि मैं अपनी माँ से अब भी नहीं मिल पाऊँगा ?” – राजू फिर से दुखी हो गया था |

परी माँ ने उसे पुचकारते हुए कहा – “हाँ, फिलहाल तो तुम उनसे नहीं मिल सकते | लेकिन …….?”

-“लेकिन क्या ? इसका कोई अन्य विकल्प शेष है क्या ?”

“राजू ! तुम चाँद – सितारों की उस दुनिया का अहसास करने के लिए इस परी माँ के साथ मेरी अस्थायी दुनिया में चल सकते हो | वैसे तो ये इसी धरती पर है | किन्तु ये भी ठीक वैसी ही बेहद सुंदर दुनिया है |”

“क्या कहा ? मैं सचमुच आपकी परियों वाली दुनिया में जा सकता हूँ? वहाँ घूम फिर सकता हूँ?” – राजू इस कल्पना से ही गदगद हो उठा |

“हाँ, तुम सचमुच हमारे परीलोक में जा सकते हो | तुम वहाँ अच्छे – अच्छे खिलौनों से खेल सकते हो | सोने – चाँदी के बर्तनों में सैकड़ों प्रकार के स्वादिष्ट पकवान खा सकते हो | चाँद के झूले पर झूलने का आनंद ले सकते हो | बादलों को अपने हाथों से पकड़ सकते हो | आसमान की हवाई सैर कर सकते हो | रंग – बिरंगे और सुगंधित फूलों से भरी वाटिका में घूम सकते हो | तितलियों जैसी परियों के साथ इठला सकते हो, मचल सकते हो | घने कोहरे से बने मुलायम बिस्तर में मीठी – मीठी नींद ले सकते हो | ....और भी बहुत कुछ वहाँ है, जो अब तक तुमने सिर्फ कहानियों में ही सुना होगा |” – परी माँ ने विस्तार से राजू को परीलोक के बारे में बताया, जो सचमुच राजू के सपने सच होने जैसा था |

“अच्छा ! मैं कब वहाँ चल सकता हूँ ?” – प्रसन्नचित्त राजू मंत्रमुग्ध सा पूछता चला गया |

-“तुम जब चाहो |”

- “कभी भी ? अभी भी ? हाँ ??”

“हाँ, कभी भी, अभी भी |” – परी के जवाब से राजू की खुशियों को मानो पंख लग गये थे | वह खुशी से नाच उठा |

“लेकिन कैसे ?” – तब बेचैन राजू के इस सवाल के जवाब में जो उत्तर मिला, उसने कई रहस्यों की परतें उधेड़ दी |

---------------क्रमशः