Ishq Junoon - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

इश्क़ जुनून - 7






''सुनो ये मरना नही चाहिए अगर ये मर गया तो में तुम सबको मार दूंगी''
तभी मेरा स्कूल का दोस्त भवानी वह आ गया दूर से ही मेने उसे संध्या को बचाने के लिए कहा
वो समझ गया की में माया की पकड़ से संध्या को बचाने के लिए कह रहा हु संध्या को बचाने के लिए माया पर हमला करना होगा और वो भी पीछे से क्योंकि अगर सामने से हमला किया तो वो माया.. संध्या को जान से मार देंगी।
एक बड़ा सा पथ्थर लेकर वो धीरे धीरे से माया की नजरो से बचता हुवा उसके पीछे की और जा पहोचा
और मौका मिलते ही उसने
पीछे से ही माया के सर पर वो बड़ा सा पथ्थर दे मारा।
पर उस वक़्त उस माया की जगह मेरी संध्या नीचे गिरी.. तब मुजे पता चला की मेरे दोस्त भवानी जिसने मेरे साथ धोखा किया है.. माया के साथ मिलकर उसने मेरी संध्या को...
संध्या के गिरते ही.. में उसकी ओर दौड़ा...
प्र.. कृ... संध्या...
मेरे मुह से संध्या के लिए एक चींख निकल गई।

* * *
माया को पता चल गया की मुजे वो सब याद आ गया है जो सात साल पहले में भूल चुका था।
दो दिन बाद मुजे हॉस्पिटल से डिस्चार्ज किया।
में अपने घर पर ऊपर छत पर बैठा था। तभी मुजे मेरा फ्रेंड भवानी याद आया वही भवानी जिसने माया के साथ मिलकर मेरी संध्या को मार डाला..
नही.. मेरी संध्या नही मर सकती वो अभी भी जिंदा है... कही ना कही वो मेरे आने की राह देख रही है।
मुजे अब सबसे पहले संध्या को ढूंढना था। ओर उसकी तलाश भी मेने भवानी से ही की क्योकि मुजे यकीन था की संध्या कहा है ये सिर्फ भवानी ही जानता होगा।
मुजे लगता था की संध्या को भवानी ने मारा पर नही.. उस वक़्त हकीकत कुछ ओर ही थी। उसके बताने के मुताबिक उस वक़्त उस रात
भवानी के पैरो की आहट से
माया को पता चल गया की कोई उसे मारने के लिए उसके पीछे आ रहा है इसलिए वो पहले से ही सचेत हो गई..
उस पल जैसे ही भवानी ने उसे मारने के लिए पथ्थर उठाया
वो वह से हट गई और वो पथ्थर संध्या के सर पर लगा और संध्या उसकी जगह गिर गई..
"प्र...कृ...संध्या...."
उस वक़्त संध्या के गिरते ही में चींखकर उसकी और आगे बढ़ने ही वाला था की तभी मेरे पीछे किसीने मेरे सर पर कुछ मारा और में वही, उसी जगह उसी पल गिर पड़ा।
जब होश आया तो में सबकुछ भूल चुका था। अपनी संध्या को भी।,
उस वक़्त में अपनी छत पर बैठकर इन्ही ख्यालो में खोया हुवा था की पीछे से एक एक लड़की मीठी आवाज आई
''तुम्हारा प्यार जिंदा है वीर..''
मेने पीछे मुड़कर देखा तो मेरे सामने शादी के जोड़े में वही लड़की खड़ी थी जिससे में कई बार अपने सपने में देख चुका हु वही लड़की जो उस एक्सीडेंटवाली रात को अचानक से हमारी कार के सामने आ गई थी।
मेने हैरानी से उसे देखा
यु तो मेरी आंखों में रहे सारे सवालों का जवाब थी वो पर कोन थी वो..?
क्या रिश्ता था उसका ओर मेरा..? क्यु उसका गाना हरबार मेरे ही कानो में गूँजता रहता ?
उसने मेरे सवालो का जवाब देते हुवे कहा
''जानना चाहते हो में कोन हु..?'' तो सुनो...

* * *


आज से पच्चीस साल पहले इसी शहर में बीचो बीच एक बहुत बड़ी हवेली हुवा करती थी। ठाकुर प्रतापसिंह की हवेली, ठाकुर साहेब इतने अच्छे और दयालु थे की पूरा शहर उनकी बहुत इज्जत करता था।
उन्हें दो बेटियां भी थी बड़ीवाली का नाम था कावेरी ओर छोटी का नाम था सरस्वती।
बचपन से ही कावेरी एक प्रतिष्ठित गायिका बनना चाहती थी, इसके लिए वो कई सालों से काफी महेनत भी करती थी। वैसे तो वो बचपन से ही बहुत जिद्दी थी। एकदम अपनी माँ की तरह उसे जो चाहिए था वो उसे पाकर ही रहती ओर ना मिले तो वो उसे छीन लेती थी।
पर सरस्वती मानो एकदम देवी सरस्वती जैसी अपने बापू की तरह वो भी एकदम सीधी सादी। जो मिले उसे ईश्वर की मरजी मानकर उसीमे खुश रहनेवाली। वैसे तो उसे भी कावेरी की तरह बचपन से ही गाने का बहुत शोख था। वो गाती भी इतना अच्छा की उसकी सुरीली आवाज मानो हरकोई सुनने को बेताब रहता।
एक दिन उसीके स्कूल में एक सांकृतिक कार्यक्रम के में गाने की एक प्रतियोगिता हुई उसमे कावेरी ओर सरस्वती के साथ सरस्वती की खास सहेली मोहिनी ने भी भाग लीया।
प्रतियोगिता आरम्भ हुई और पहेली बारी कावेरी की आई। उसने उस अपने गाने के पीछे अभ्यास तो बहुत किया था पर फिर भी।
गाने के दौरान वो अपनी आवाज में मार खा गई उसने जो गाना गाया वो मानो वहाँ बैठे सबको इतना बेसुरा लगा। सबलोग जोरशोर उसपर हसने लगे। वो सबके बीच मज़ाक का विषय बन गई। उसके बाद स्कूल के सारे बच्चे जैसे उसे बेसुरी के नाम से चिढ़ा रहे थे।
दूसरी बारी आई सबकी प्यारी सरस्वती की।
स्कूल के सफेद यूनिफॉर्म में दो चोटीवाली सरस्वती बड़ी विनम्रता से स्टेज पर गई और हाथ मे माइक लेकर अपनी सुरीली ओर मधुमीठी आवाज में उस वक़्त का सबसे लोकप्रिय नागिन फ़िल्म का एक गाना अपने दर्दभरे भावो के साथ रजु किया।
हो..ओ..
तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडना हो..
तेरे संग प्यार में नही तोड़ना..
चाहे तेरे पीछे जग पड़े छोड़ना..
तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडना नहीं तोडना
हो..तेरे संग प्यार में नही तोड़ना..हो..
तेरे संग प्यार में नही तोड़ना..
आ… ओ…..तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडना
चाहे तेरे पीछे जग पड़े छोड़नाओ…..
तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडना हो..
तेरे संग प्यार में नही तोड़ना..
उस वक़्त स्कूल के उस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण रेडियो पर भी हो रहा था। इसीलिए सरस्वती की वो आवाज मानो पूरा शहर सुन रहा था उसकी आवाज का वो सुरीलापन, उसका वो गहरा दर्द मानो सुननेवाले को ना चाहकर भी सुनने पर मजबूर कर दे।
मांग मेरी शबनम ने मोती भरे
और नज़रों ने मेहंदी लगाई..
मांग मेरी शबनम ने मोती भरे
और नज़रों ने मेहंदी लगाई...
नाचे बिन ही पायलिया छलकने लगी
बिन हवा के ही चुनरी लहराई...
आज दिल से हैं दिल आ जोडना..
हो तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडना..
उस वक़्त पूरे शहर के साथ वहाँ उसी स्कूल के मैदान में कोई ऐसा भी था जो सरस्वती की इतनी सुरीली आवाज सुनकर उस पर अपना दिल हार गया। स्कूल के अन्य विद्यार्थीओ संग अपने दोस्तों के बीच व्हाइट शर्ट और ग्रे पेंट में बैठा वो क्लीनसेव और हल्के से बड़ेबालो वाला लड़का कबसे न जाने स्टेज पर खड़ी सरस्वती को ही घुरे जा रहा था। सरस्वती की वो सुरीली आवाज मानो उसवक़्त उसपल सीधी उसके दिल तक पहोच रही थी।
वो ओर कोई नही कावेरी के क्लास का लड़का वीरा था।

क्रमशः