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आघात - 49

आघात

डॉ. कविता त्यागी

49

पूजा ने प्रातः काल उठकर घर का दरवाजा खोला, तो देखा, बाहर रणवीर की गाड़ी खड़ी थी । वह सोचने के लिए विवश हो गयी -

‘‘सुबह-सुबह रणवीर यहाँ क्यों आया है ? वह आज फिर कोई नया नाटक करने की तो नहीं सोच रहा हो ? पर अपनी गाड़ी यहाँ खड़ी करके वह कहाँ चला गया ? आस-पास कहीं दिखाई भी नहीं पड़ रहा है !’’

कुछेक मिनट दरवाजे पर खड़ी रहकर वह अपने प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयास करती रही । परन्तु वह सफलता प्राप्त न कर सकी । अन्त में उस विषय को वहीं पर छोड़कर वह घर के अन्दर वापिस चली गयी और घर के अपने कार्यों में व्यस्त हो गयी । घर के कार्यो में व्यस्त होने पर भी उसका चित्त रणवीर की कार के इर्द-गिर्द चक्कर काटता रहा । अपनी बेचैनी को वह अधिक समय तक बेटों से नहीं छिपा सकती थी । अतः उसने प्रियांश और सुधांशु को जगाकर बताया कि उनके पापा की गाड़ी घर के बाहर खड़ी है ! सम्भवतः वे भी यहीं- कहीं हैं ! माँ की बात सुनकर वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए प्रियांश तुरन्त घर से बाहर गया । कुछ ही समय पश्चात् वापिस घर लौटकर प्रियांश ने माँ को बताया कि उसने पूरे मौहल्ले में पिता की खोज की है, किन्तु कहीं पर उनकी उपस्थिति का अनुमान नहीं मिल सका !

दोपहर पश्चात् लगभग तीन बजे पूजा के घर की डोर-बेल बजी । पूजा ने दरवाजा खोला, सामने एक पुलिसमैन खड़ा था । दरवाजा खुलते ही पुलिसमैन ने रणवीर का वोटरकार्ड दिखाते हुए पूछा -

‘‘यह आदमी यहाँ रहता है ?’’

‘‘नहीं !’’

‘‘पता तो यहीं का लिखा है इस वोटर कार्ड पर !’’

‘‘पता यहाँ का लिखा है, पर यहाँ नहीं रहते हैं !’’ पूजा ने बात को समाप्त करने की मुद्रा में कहा ।

‘‘मैडम् ! यह साहब यहाँ रहते थे, तो क्या आप बताएँगी, यह आपके कौन लगते थे ? सिपाही ने जोर देकर पूछा ।

"लगते थे से आपके कहने का क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट शब्दों में कहिए !" पूजा ने सशंकित भाव से कहा ।

"हाईवे के किनारे जंगल में इन साहब की लाश मिली है ! मेरे साथ चलकर आप उनकी पहचान कर लीजिए !’’

‘‘क्या ? रणवीर की लाश ? रणवीर की लाश नहीं हो सकती !’’

‘‘मैडम ! लाश का चेहरा पूरी तरह से कुचला हआ है ! ठीक से पहचाना भी नहीं जा रहा है ! उस लाश की जेब में एक लाॅकेट और उसके पास पड़ी हुई कुछ वस्तुएँ मिली हैं, जिसके सहारे हम यहाँ तक पहुँच पाये हेै ! यह-वोटर कार्ड उन वस्तुओं में से एक है !’’

सिपाही द्वारा दी गयी सूचना पर पूजा को विश्वास तो नहीं हुआ था, किन्तु, उसका हृदय किसी अनहोनी से आशंकित अवश्य हो उठा था । अपने हृदय की आशंका के चलते उसने सिपाही को वापिस भेजते हुए उससे कह दिया कि वह शीघ्र ही अपने बेटे को लेकर वहाँ पहुँच जाएगी । सिपाही को वापिस भेजने के पश्चात् पूजा के मस्तिष्क में विचारों का तूफान उठने लगा । उसने एक बार फिर दरवाजा खोला और बाहर झाँककर देखा, रणवीर की कार अब भी उसी स्थान पर खड़ी थी । वह सोचने लगी -

‘‘यदि रणवीर की गाडी यहांँ खडी है, तो हाई-वे के किनारे उसकी लाश कैसे मिल सकती है ?’’

भाँति-भाँति के प्रश्नों के साथ ही उसके मस्तिष्क में सन्देह भी उठने लगा कि उस खाकी वर्दीधरी द्वारा दी गयी सूचना सत्य न होकर रणवीर की कोई छद्म-योजना भी हो सकती है ! इस संदेह के बावजूद भी उसके हृदय से रणवीर को लेकर किसी अनहोनी की आशंका दूर नहीं हुई थी । अतः उसने निश्चय किया कि एक बार सिपाही की सूचना के अनुसार हाई-वे के किनारे मिले हुए शव को देखने-पहचानने के लिए उसे अवश्य जाना चाहिए ! यही उचित होगा !

जिस समय वह सिपाही सूचना देने के लिए आया था, उस समय प्रियांश और सुधांशु घर पर नहीं थे । पूजा ने तुरन्त मोबाइल पर कॉल करके उन दोनों को घर बुलाकर उस सूचना से अवगत कराया । दोनों बेटे माँ की मनोदशा समझते थे । अतः माँ की आज्ञा का पालन करते हुए वे दोनों तत्काल माँ को लेकर उस स्थान पर पहुँच गये, जिस स्थान पर उन्हें शव होने की सूचना मिली थी ।

शव को देखकर तीनों माँ-बेटे असमंजस में पड़ गये, क्योंकि शव का चेहरा पूर्णरूपेण कुचला हुआ था । इतना कुचला हुआ कि उसकी पहचान करना कठिन ही नहीं, असम्भव प्रतीत होता था । उस लाश की पहचान करने का एक क्षीण-सा विकल्प शव के कपडे थे, जिनसे उसके परिजन उसकी पहचान करने का प्रयास कर सकते थे । किन्तु, पूजा के लिए यह विकल्प भी सारहीन था । लम्बे समय से रणवीर के अपने परिवार से दूर रहने के कारण पूजा और उसके बेटों को यह ज्ञात ही नहीं था कि रणवीर ने किस प्रकार के कौन-से वस्त्र पहने हुए थे । अन्ततः रणवीर के वोटर कार्ड तथा शव के पास मिले कुछ अन्य सामान को देखकर पूजा उस शव को रणवीर का शव स्वीकार कर लिया और अगले दिन शव का पोस्टमार्टम के पश्चात उसे अपने पति रणवीर का शव मानकर घर ले आयी और यथोचित रीति से उसका अन्तिम संस्कार कर दिया ।

रणवीर की चिता की राख ठंडी भी नहीं हो पायी थी, तभी रणवीर के हत्यारों की छानबीन करने के लिए पूजा के घर पुलिस आ धमकी । पुलिस को देखकर पूजा के होेंठ अनायास ही बडबड़ा उठे -

‘‘अपने जीते-जी उसने सदैव मेरे जीवन को नर्क बनाये रखा, कभी कोई सुख नहीं दिया था, मरने के बाद भी नये-नये कष्ट दे रहा है !’’

यद्यपि पूजा को आने वाले नये कष्ट के विषय में अभी तक कोई सूचना नहीं मिली थी, तथापि उसको अपने अन्तःकरण से अस्पष्ट-सा संकेत मिल रहा था कि वह एक और किसी नयी विपत्ति में फँसने वाली है ।

पूजा किसी नयी समस्या को सहन करने की स्थिति में नहीं थी, इसलिए उसको ऐसी कोई भी सूचना देने से बचने का प्रयास किया जा रहा था, जिससे उसे गहरा आघात लगने की आशंका थी । जब से उसे रणवीर की मृत्यु की सूचना मिली थी, वह अत्यधिक असामान्य हो गयी थी । तब से वह एकदम चुप गुमसुम बैठी थी ! आँखों में एक भी आँसू नहीं आया था और होंठों पर एक भी शब्द नहीं आया था। पुलिस द्वारा दिखाये गये शव को रणवीर के शव के रूप में स्वीकार करने के पश्चात् उसके मुख से निकले हुए ये पहले शब्द थे । शोक व्यक्त करने के लिए आने वाले कुछ परिचित और रिश्तेदार कह रहे थे -

"पूजा को गहरा आघात लगा है ! यदि उसे किसी भी प्रकार से रुलाया जा सके, तो वह सामान्य हो सकती है !"

अतः पूजा को रुलाने के लिए वहाँ पर उपस्थित सभी लोग अपनी-अपनी युक्तियों को प्रयोग में ला रहे थे ! किन्तु, पूजा के भावशून्य हृदय पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था । उसे देखकर ऐसा लगता था कि रणवीर की आकस्मिक मृत्यु से जीवन में आयी रिक्तता के तनाव से वह अपने शरीर की और बाहरी परिवेश की सुध-बुध खो बैठी है । परन्तु, रणवीर की मृत्यु का शोक प्रकट करने के लिए आये उसके परिजनों में परस्पर चर्चा का विषय इससे भिन्न था। दबी जुबान में पूजा की सास और देवरानी कह रही थी -

‘‘इसने तो उसे कई साल पहले ही मरा हुआ मान लिया था ! अब उसकी मौत के सदमें का नाटक दिखाकर आने-जाने वालों की खूब सहानुभूति बटोर रही है सजनी !’’

पूजा के कानों में भी सास के ये शब्द पड़ चुके थे । इस समय वह पलटकर उनका जवाब देना न तो आवश्यक मानती थी, न उचित ही मानती थी । उसने अपने स्वभाव के अनुरूप आज भी उसी प्रकार चुप्पी साधे रखी, जिस प्रकार वह अपनी समान्य अवस्था में आज तक उनकी प्रत्येक कटु बात को सुनकर चुप रहती थी । जबकि आज तो समय भी और उसकी मानसिक स्थिति भी किसी की कटु बात का कटु उत्तर देने के अनुकूल नहीं थी । भले ही पूजा ने उस चर्चा का कोई प्रतिवाद नहीं किया था, कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया था, पर आज उन कटु बातों ने पूजा के हृदय में इतना गहरा घाव किया था, जितना आज से पहले कभी नहीं किया था।

यह सत्य था कि रणवीर के जीवित रहते हुए भी पिछले कई वर्षों से पूजा पति के सुख से वंचित रही थी । पिछले कई वर्षों से तो रणवीर उससे अलग ही रह रहा था । परन्तु जब वह पूजा के साथ रहता था, तब भी पूजा को वांछित सुख की अपेक्षा पति के अत्याचार और उपेक्षापूर्ण व्यवहार ही अधिक मिलते थे । अवांछित व्यवहारों से उस समय पूजा का जीवन तनावग्रस्त व्यतीत होता था और धीरे-धीरे उसका तनाव इतना बढ़ गया था कि रणवीर और पूजा में टकराव बढ़ता चला गया और वे दोनों एक दूसरे से दूर होते चले गये । दोनों में टकराव इतना बढ़ा कि विवाह -विच्छेद की के लिए न्यायालय की शरण में पहुँच गये । दोनों को ऐसा अनुभव होने लगा था कि एक-दूसरे से अलग दूर रहकर ही वे अपेक्षाकृत अधिक प्रसन्न और सुखी रह सकते हैं ! अपनी इसी सोच से प्रेरित होकर वे दोनों अलग- अलग रहने लगे ।

रणवीर के अलग रहने के बावजूद पूजा को अपने जीवन में आज तक पति के अभाव से उत्पन्न रिक्तता की इतनी गंभीर-भयावह अनुभूति नहीं हुई थी, जितनी रणवीर के समाचार से ! उसकी मृत्यु ने उसको एक नया अनुभव कराया था । रणवीर की मृत्यु के पश्चात् ज्यों-ज्यों समय बीतता जा रहा था, त्यों-त्यों पूजा के जीवन और हृदय में एक अनबूझ रिक्तता और व्याकुलता बढ़ती जा रही थी । नित्य-प्रति पुलिस के आगमन से भी पूजा की बेचैनी में वृद्धि हो रही थी । पूजा की आँखों में पुलिस के प्रति भय, आशंका और असन्तोष भाँपकर उससे यह कह दिया जाता था कि पुलिस अपने स्तर से छानबीन कर रही है और अपनी जाँंच में सहयेग लेने के लिए पुलिस का आना आवश्यक है । ऐसा इसलिए कहा जाता था, क्योंकि घर में पुलिस के आने का यथार्थ कारण पूजा के समक्ष प्रकट करना उसके किसी भी शुभचिन्तक को उचित भी नहीं लगता था ।

पति की मृत्यु से हृदय के अबूझ खालीपन और शोक प्रकट करने के लिए आयी हुई सास के तानों के साथ धीरे-धीरे पूजा के तेरह दिन बीत चुके थे । उस दिन रणवीर की तेरहवीं का मुहुर्त होने के कारण घर में ब्राह्मणभोज का आयोजन किया गया था ।

तेरहवीं के ब्राह्मणभोज के लगभग दो घण्टे पश्चात् पूजा को सूचना मिली कि प्रियांश और सुधांशु को पिता की हत्या के आरोप में पुलिस ने अरेस्ट कर लिया है । पूजा को तभी यह भी बताया गया कि रणवीर की हत्या के दिन से नित्य-प्रति पुलिस उन दोनों को अरेस्ट करने के लिए ही आती रही थी, किन्तु उनके पिता की तेरहवीं तक उन्हें अरेस्ट न करने की प्रार्थना पर पुलिस अब तक चुप थी । पहले तो पति की हत्या से और अब उसकी हत्या के आरोप में बेटों की गिरफ्तारी की सूचना से पूजा बहुत अधिक टूट गयी । उसको अनुभव हो रहा था कि उसकी गृहस्थी के दो स्तम्भ थे - उसका पति और उसकी सन्तान । उनमें से एक स्तम्भ तो पहले से ही जर्जर था, जिसका कोई भरोसा नहीं था कि कब अपने नियत स्थान से हटकर गृहस्थी को टूटने-बिखरने के लिए छोड़ दे ! रणवीर की अप्रत्याशित मृत्यु से पूजा की गृहस्थी का वही जर्जर स्तम्भ टूट चुका था ! बेटों के रूप में अपनी गृहस्थी के दूसरे स्तम्भ पर पूजा का दृढ़ विश्वास था, परन्तु आज उसका वह विश्वास भी टूट रहा था !

अपने बेटों की गिरफ्तारी की सूचना से पूजा अर्द्धर्चेतना की अवस्था में आ गयी थी । किसी की कोई बात सुनना या किसी बात का उत्तर देना अब उसको रुचिकर नहीं था । वह न कुछ खाना-पीना चाहती थी, न किसी से अपने बेटों के विषय में या पति के विषय में चर्चा करना चाहती थी । वह अपने कमरे में अकेली रहना चाहती थी ।

डॉ. कविता त्यागी

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