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आघात - 50

आघात

डॉ. कविता त्यागी

50

ब्राहृमण भोज संपन्न हो चुका था । रणवीर की मौत पर सहानुभूति प्रकट करने के लिए आये हुए नाते-रिश्तेदार और परिचित लोग उसके बेटों की गिरफ्तारी होने के बाद धीरे-धीरे विदा हो रहे थे, परन्तु, पूजा को कोई सुध-बुध नहीं थी । वह पूर्णतया निश्चल-निष्क्रिय अपने बिस्तर पर लेटी रही । उस अवस्था में पूजा को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह अचेत पड़ी है ।

निश्चेष्ट अवस्था में पडे़-पडे़ पूजा को वह क्षण स्मरण हो आया, जब वह रणवीर के शव की पहचान करने के लिए गयी थी । वहाँ उसको शव के निकट पड़ी मिली कुछ वस्तुएँँ दिखायी गयी थी । उन वस्तुओं में प्रियांश और सुधंशु से सम्बन्धित वस्तुओं को देखकर उसके मस्तिष्क में उसी समय एक प्रश्न उठा था -

‘‘रणवीर के शव के निकट प्रियांश और सुधांशु की वस्तुएँ ?’’

उस समय यह प्रश्न अस्पष्ट-सा और क्षीण-सा था । उस समय पति की मृत्यु का विषय अपेक्षाकृत अधिक गम्भीर था, जो पूजा के हृदय और मस्तिष्क को हिला देने वाला था । रणवीर की हत्या किसने ? क्यों ? और कैसे की ? यह सोचने-विचारने की क्षमता वह पति का शव देखकर खो चुकी थी । परन्तु, आज यह प्रश्न स्पष्ट तथा प्रबल होकर उसके मस्तिष्क को झकझोर रहा था -

‘‘क्या सुधांशु और प्रियांश रणवीर के हत्यारे है ?’’

‘‘नहीं.! सुधांशु और प्रियांश कभी ऐसा नहीं कर सकते ! अपने पिता के साथ तो क्या, वे दोनों किसी के साथ भी, कभी भी ऐसा नहीं कर सकते ! इतनी निर्मम हत्या ! नहीं ! वे नहीं कर सकते ! वे मेरे बेटे हैं ! मैं उन्हें जानती हूँ ! भली-भाँति पहचानती हूँ !’’

पूजा के मस्तिष्क में उठने वाले प्रश्न की अपेक्षा उसके हृदय से आने वाला उत्तर अधिक प्रबल था । एक प्रश्नोत्तर के पश्चात उसके मनःमस्तिष्क में प्रश्नों तथा उनके उत्तरों की शृंखला बनने लगी -

‘‘तो फिर उन दोनों की वे वस्तुएँ रणवीर के शव के निकट कैसे पहुँची ? प्रियांश का मोबाइल और आई-कार्ड तथा सुधांशु की घड़ी उस निर्जन स्थान पर रणवीर के शव के निकट.....?’’

‘‘पूजा इस उम्र के बच्चों पर इतना अधिक विश्वास करना उचित नहीं है ! बचपन से तेरे दोनों बेटे अपनी माँ पर तथा स्वयं पर होते रहे पिता के अत्याचारों को सहन करके तनावग्रस्त रहे हैं ! एक सार्वजनिक स्थान पर अपनी माँ का अपमान देखकर उनके अन्दर का लावा ज्वालामुखी बनकर फूट सकता है और वे अपने ही पिता.........! उस रात ये दोनों घर भी देर से लौटे थे !’’

‘‘लेकिन यह दोनों रणवीर को उस निर्जन स्थान पर कैसे ले गये ? क्या अविनाश भी इनके साथ था ?’’

‘‘नहीं! यह कदापि नहीं हो सकता ! यदि अविनाश को इस विषय में लेशमात्र भी ज्ञात होता, तो वह इन्हें ऐसा नहीं करने देता ! न केवल वह ऐसा करने से इन्हें रोकने का प्रयास करता, बल्कि वह मुझे इसकी सूचना भी अवश्य देता !’’

पूजा के अन्तःकरण में कुछ क्षणों के लिए अपने पुत्रों के प्रति सन्देह उत्पन्न हो गया और वह उसके हृदय के विश्वास पर प्रभावी होने लगा था । उसी क्षण पूजा के मस्तिष्क में प्रश्न उठा -

‘‘प्रियांश और सुधांशु ने ऐसा क्यों किया ? क्या इसलिए कि उनके पिता ने उनकी माँ पर हाथ उठाया था ?’’

अपने इसी प्रश्न के उत्तर के साथ पूजा का अपने पुत्रों के प्रति विश्वास पुनः प्रगाढ़ होने लगा -

‘‘अपने बचपन से ही उन्होंने अपनी माँ को पिता की मार खाते देखा था । तब भी उनके हृदय में माँ के प्रति संवेदना होती थी और वे माँ की रक्षा करने के लिए आगे बढ़ते थे ! किन्तु हर बार माँ की आज्ञा से वे पीछे हटने के लिए विवश होते थे, क्योंकि वे जानते थे कि उनकी माँ उनके पिता को कितना प्रेम करती है ! वे जानते थे कि पुत्रों का पिता के विरोध में खड़ा होना उनकी माँ को अच्छा नहीं लगेगा ! इसलिए उन्होंने कभी भी अपने पिता को पलटकर जवाब नहीं दिया ! उस दिन रेस्टोरेन्ट में भी दोनों भाइयों को भली-भाँति अनुभव था कि माँ के मनःमस्तिष्क में आज भी उनके पिता का वही महत्व है, जो महत्व वे अपने बचपन से आँकते आये हैं ! उनकी आँखों में माँ के सुख-सन्तोष के लिए पिता के प्रति विनम्रता और क्षमा स्पष्ट दिखाई दे रही थी !... फिर ये दोनों पिता के प्रति इतने क्रूर कैसे हो सकते हैं ? नहीं ! यह आरोप झूठा है ! निराधर है ! मेरे बेटों के विरुद्ध किसी का पूर्वनियोजित षड्यन्त्र है ! षडयंत्र रचकर मेरे बच्चों पर हत्या का आरोप लगाकर उनके चरित्र पर धब्बा लगाने का प्रयास रचा किया जा रहा है ! पर मैं ऐसा नहीं होने दूँगी !"

विचारों की उठापटक के मानसिक द्वन्द्व में सारी रात बीत गयी। घर में आये सभी अतिथि रात होने तक विदा हो गये थे । पूजा का स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण और घर में उसकी देखरेख करने के लिए उसके बेटों अथवा किसी अन्य की उपस्थिति के अभाव में पूजा की बुआ-चित्रा वहीं पर रुक गयी थी । रात-भर पूजा को अशान्त और व्याकुल देखकर बुआ भी सारी रात सो नहीं पायी थी । एक ओर प्रियांश तथा सुधांशु की चिन्ता तथा दूसरी ओर पूजा के स्वास्थ्य की चिन्ता से बुआ की नींद उड़ी हुई थी ।

प्रातः काल बिस्तर छोडने के बाद दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर बुआ को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें ? केवल पूजा का स्वास्थ्य ठीक न होता, प्रियांश और सुधांशु घर में होते, तो बुआ उनके लिए खाने-पीने की व्यवस्था करने में जुट जाती । लेकिन आज प्रियांश और सुधाशु की अनुपस्थिति से घर सूना हो गया था । उन दोनों की अनुपस्थिति से घर का सूनापन काटने को दौड़ता था । ऐसी दशा में बुआ का साहस नहीं हो रहा था कि वे पूजा से कुछ कहें ! वह.कई बार कमरे में झाँक कर पूजा को बिस्तर पर बैठी देखकर जा चुकी थी, पर एक बार भी वह उसको उठने के लिए नहीं कह सकी थी ! न ही उस कमरे में प्रवेश करने का उनका साहस हुआ था ! बुआ एक बार बिस्तर से उठकर कमरे से बाहर गयी, तो वह पुनः अन्दर आने का साहस नहीं कर पायी । परन्तु कब तक बुआ ऐसा करने से बच पातीं ? दस बज गये थे, पूजा अभी तक उसी अवस्था में बैठी थी । न वह उठी और न ही दैनिक कार्यों से निवृत्त हुई ।

दस बजे बुआ ने कमरे में प्रवेश कर पूजा को उठाने का प्रयास करते हुए कहा -

‘‘पूजा ! उठ बेटा ! तू इतनी कमजोर नहीं है ! तुझे उठना ही पडे़गा मेरी बच्ची ! अपने दोनों बच्चों को सम्हालना पडे़गा ! उन्हें तेरा सहारा नहीं मिलेगा, तो वे अपराध की दुनिया में....! चल उठ जा !’’

बुआ की बात सुनकर पूजा एक झटके से उठकर खड़ी हो गयी। उसमें यकायक एक अद्भुत शक्ति का संचार हो गया था । अब उसको देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह कभी अस्वस्थ थी ही नहीं । एक झटके के साथ खड़ी होकर उसने कहा -

‘‘हाँ, बुआ जी ! खड़ा होना ही पड़ेगा और अपने बच्चों को बचाना भी पड़ेगा ! आज उन दोनों को मेरी इतनी जरूरत है, जितनी पहले कभी नहीं थी ! बुआ जी, क्या आपको भी लगता है कि उन पर लगा आरोप सत्य है ?’’

‘‘पूजा, मुझे नहीं लगता कि वे ऐसा कुछ कर सकते हैं ! पर इस उम्र के बच्चों के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है ! पुलिस को मिले साक्ष्य तो कुछ ऐसा ही संकेत कर रहे हैं कि उन दोनों ने ही....!’’

‘‘नहीं, बुआ जी ! मेरे बेटे निर्दोष हैं ! सारे साक्ष्य झूठे है !’’

इतना कहकर पूजा ने अपने कपडे़ बदले और बुआ से यह कहते हुए घर के बाहर निकल गयी कि वह अपने बेटों के पास जा रही है । बुआ ने उसे रोकने का प्रयास किया, परन्तु वह तब तक घर से निकल चुकी थी।

घर से निकलकर पूजा सीधी थाने में पहुँची । वहाँ पहुँचकर उसने दरोगा से निवेदन किया कि उसके बेटे निर्दोष हैं, इसलिए उन्हें तुरन्त छोड़ दिया जाए ! पूजा के निवेदन से दरोगा एक बार हँसा और फिर कठोर स्वर में अविनाश को लेकर पूजा के चरित्र पर लांछन लगाते हुए बोला -

तुम्हारे बेटों ने अपने बाप की हत्या नहीं की है, तो अवश्य ही अपने प्रेमी के साथ मिलकर हत्या तुमने की है !’’

दरोगा ने पूजा को बताया कि उसके पड़ोसियों से तथा रेस्टोरेन्ट की घटना के प्रत्यक्षदर्शियों से मिली जानकारी के आधर पर वे रणवीर की हत्या के विषय में अनेकशः दृष्टिकोणों से विचार कर रहे हैं, जिनमें से एक मुख्य दृष्टिकोण अविनाश की पूजा के साथ बढ़ती हुई प्रगाढ़ता है । दरोगा ने यह भी बताया कि जिस दिन रणवीर की हत्या हुई थी, उसी दिन से अविनाश देश से बाहर है, जो उनके दृष्टिकोण को पुष्ट करने में सहायक सिद्ध होता है ।

दरोगा के आरोपों से पूजा बौखला उठी । वह अपने पक्ष में जितना स्पष्टीकरण दे रही थी, दरोगा उतने ही कठोर, अपमानजनक और भद्दे शब्दों का प्रयोग करके उसको आरोपी सिद्ध करने का प्रयत्न कर रहा था । दरोगा के व्यवहार से पूजा को अनुभव हो गया कि अपने बेटों के साथ-साथ वह स्वयं भी पति की हत्या के आरोप में फँसने जा रही है । अतः उसने शीघ्र ही अपनी बौखलाहट पर नियन्त्रण करके दरोगा से निवेदन किया कि वह अपने बेटों से भेंट करना चाहती है, उनसे भेंट करने के पश्चात् वह रणवीर के हत्यारे के विषय में अवश्य ही किसी निष्कर्ष पर पहुँच सकती है । पूजा ने दरोगा से कहा -

"यदि मेरे पति की हत्या मेरे बेटों ने की है, तो मैं स्वयं उन्हें कठोरतम दण्ड दिलाने में पुलिस का सहयोग करूँगी ! यदि वह स्वयं हत्या की दोषी पायी जाती हूँ,, तो मैं भी दण्ड भोगने के लिए तैयार हूँ ! किन्तु, यदि रणवीर का हत्यारा कोई अन्य है, जिसने उसकी हत्या करके मेरे बेटों को हत्या के आरोप में फँसाने का पूर्वनियोजित षडयंत्र रचा है, तो उसे ढूँढने में पुलिस को हमारा साथ देना चाहिए !"

आत्मविश्वास से परिपूर्ण पूजा की बातों से दरोगा अत्यन्त प्रभावित हुआ था । दरोगा को उसकी बातों में सत्य का आभास हो रहा था और वह उन ठोस तथ्यों पर विचार कर रहा था, जो पूजा की बातों से निकल रहे थे ।

दरोगा से अनुमति पाकर पूजा ने प्रियांश और सुधांशु से भेंट की । उस भेंट में पूजा ने अपने बेटों से पहला संवाद इसी प्रश्न से किया कि उनकी घड़ी, मोबाइल, आईकार्ड आदि वस्तुएँ रणवीर के शव के निकट उस निर्जन स्थान पर कैसे पहुँची ? क्या वे दोनों भाई अपने पिता की हत्या में लिप्त थे ? पूजा का प्रश्न सुनते ही उसके दोनों बेटे एक स्वर में चीख उठे -

‘‘मम्मी जी ! यह आप क्या कह रही हैं ? आप ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं ?’’

‘‘मेरा प्रश्न है कि तुम्हारा मोबाइल, आईकार्ड और तुम्हारी घड़ी उनके शव के निकट कैसे पहंँची ? अपने आप चलकर ?’’

पूजा ने दोनों बेटों का मस्तिष्क झकझोर दिया था । वे सोचने के लिए विवश हो गये कि आखिर उनकी वस्तुएँ उनके पिता के शव के निकट कैसे पहुँची ? कुछ क्षणों तक अपनी स्मृति पर बल देकर प्रियांश ने माँ को बताया -

पापा जी की हत्या के एक दिन पूर्व राह चलते एक अजनबी से मेरी टक्कर हो गयी थी । टक्कर होने के पश्चात् अकारण ही वह अजनबी हाथापाई पर उतर आया, जिससे मेरा मोबाइल सड़क पर गिर गया था और उसकी स्क्रीन टूट गयी थी । मोबाइल की स्क्रीन ठीक कराने के लिए मैंने उसी दुकान पर दे दिया था, जहाँ से मैंने वह खरीदा गया था । सम्भवतः उसी हाथापाई में आई-कार्ड भी वहीं गिर गया हो, जिस पर मेरी दृष्टि नहीं पड़ी !"

प्रियांश की बातें सुनकर पूजा ने तुरन्त अनुमान लगा लिया कि उसका आई-कार्ड कहीं गिरा नहीं था, किसी पूर्वनियोजित षड़यंत्र को आगे बढ़ाने के लिए गिराया गया था । तत्पशचात् सुधांशु ने माँ को बताया कि उसकी घड़ी उसके एक मित्र ने एक दिन के लिए माँगी थी । एक दिन बाद उसने बताया कि उसकी घड़ी चोरी हो गयी है, इसलिए दण्डस्वरूप वह उस घड़ी के बदले यथोचित धनराशि देने के लिए तैयार है।

पूजा ने प्रियांश से उस मोबाइल रिपयेर करने वाले का पता ले लिया, जिसको उसने अपना मोबाइल ठीक करने के लिए दिया था और सुधंशु से उसके उस मित्र के घर का पता लिया, जिसको उसने अपनी घड़ी दी थी । पूजा को पूर्ण विश्वास था कि सुधांशु के मित्र से और मोबाइल रिपेयर करने वाले व्यक्ति से रणवीर के हत्यारे के विषय में कोई न कोई जानकारी अवश्य मिलेगी । अतः पूजा ने उन दोनों का पता लिखा हुआ कागज को दरोगा को देते हुए कहा -

‘‘भैया ! आप मुझ पर और मेरे बेटों पर सन्देह कर रहे हैं ! इस विषय में मैं आपसे अब कुछ नहीं कहूँगी, क्योंकि हत्यारे तक पहुँचने के लिए आपको अनेक पहलुओं पर सोचना पड़ता है और सोचना भी चाहिए ! पर प्लीज ! वास्तविक हत्यारे तक पहुँचने के लिए मेरी यह प्रार्थना है, आप मेरे साथ चलकर इन दो व्यक्तियों से पूछताछ करें ! ये दोनों ही हमें हत्यारों तक पहुँचाएँगे !’’

‘‘कौन हैं ये दोनों ?’’ दरोगा ने कागज पर लिखे पते को पढ़कर पूछा ।

‘‘ये वे दो व्यक्ति हैं, जिन्होंने हत्यारे तक मेरे बेटों की घड़ी, मोबाइल और आई-कार्ड आदि वस्तुएँ पहुँचायी हैं !"

पूजा के कथन की सत्यता का आभास दरोगा को पहले ही हो चुका था । अतः वह उसी समय पूजा के साथ चलने के लिए तैयार हो गया । पूजा के साथ जाकर दरोगा ने मोबाइल की उस दुकान पर पूछताछ की, जिस पर प्रियांश ने अपना मोबाइल दिया था ।

दुकानदार ने एक बार पूछने पर ही सब कुछ सत्य बता दिया कि उस मोबाइल को लेने के लिए प्रियांश के जाने के कुछ क्षणोपरान्त ही एक महिला आयी थी । उस महिला ने दस हजार रुपये देकर वह मोबाइल खरीद लिया, जबकि प्रियांश का मोबाइल अपनी नयी हालत में भी मात्र साढे़ तीन हजार का था । दुकानदार ने बताया कि वह लालच में आ गया था, इसलिए सोचा कि प्रियांश को दूसरा नया मोबाइल देकर भी उसको छः-सात हजार की बचत हो जाएगी । दुकानदार की सत्यता पर सन्देह करने की गुंजाइश नहीं थी । उसके हाव-भाव बता रहे थे, वह सत्य बोल रहा था । यह पूछने पर कि वह महिला कौन थी, दुकानदार ने बताया कि वह उस महिला से पूर्णपरिचित तो नहीं है, किन्तु उसे देखकर अवश्य पहचान सकता है, क्योंकि वह अक्सर उसकी दुकान पर आती-जाती रहती है । पूजा के द्वारा उस महिला का हुलिया पूछने पर दुकानदार ने जो कुछ बताया, उससे उसे तत्क्षण अनुमान हो गया कि इस षडयंत्र के पीछे का माटर माइंड कौन है ? वह बोली -

‘‘दरोगा जी, मैं उस महिला को पहचानती भी हूँ और उसको भली-भाँति जानती भी हूँ !’’

‘‘कौन है वह ? मुझे उसका नाम पता बताइये, मैं पूछताछ करूँगा !’’

‘‘उसका नाम वाणी है ! मेरे पति की उसके साथ इतनी अधिक घनिष्ठता थी, जितनी मेरे साथ भी नहीं थी । मैं विस्तार से आपको बताती हूँ !"

पूजा ने दरोगा को रणवीर के साथ अपने सम्बन्धों की कटुता के विषय में बताते हुए वाणी के विषय में विस्तारपूर्वक बताया और शंका व्यक्त की रणवीर की कि हत्या के षड्यन्त्र में वाणी लिप्त हो सकती है ! पूजा का वृत्तान्त सुनकर दरोगा ने सकारात्मक संकेत में सिर हिलाया और कहा -

‘‘लेकिन, मैडम ! इतना कहने से किसी को हत्यारा सिद्ध नहीं किया जा सकता है ! किसी को हत्यारा सिद्ध करने के लिए ठोस सबूत भी होने जरूरी हैं, जो आपके बेटों के विरुद्ध हैं, वाणी के विरुद्ध नहीं हैं !’’

‘‘दरोगा साहब, आप वास्तविक हत्यारे तक पहुँच जाएँगे, तो सबूत भी ढूँढ ही लेंगे ! आप मेरे निर्दोष बच्चों को हत्यारा मत कहिए ! प्लीज ! ! !’’

पूजा की प्रार्थना से दरोगा का हृदय द्रवित हो गया । उसने पूजा को आश्वस्त किया कि पुलिस निर्दोषों की रक्षा करती है, यदि उसके बेटे निर्दोष हैं, तो उनकी भी अवश्य करेगी !

डॉ. कविता त्यागी

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