Ishq Junoon - 12 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

इश्क़ जुनून - 12 - अंतिम भाग





साथ ही हवावो ने अपना रुख बदला ओर उन हवावो में सरो के गाने की वो दर्दभरी आवाज लहराई..
हो..ओ..तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडना
हो..ओ..तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडना
चाहे तेरे पीछे जग पड़े छोड़ना..
तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडनानहीं तोडना
हो..ओ..
तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडना
आ… ओ…..तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडना..
चाहे तेरे पीछे जग पड़े छोड़नाओ…..
तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडना..
ये गाना सुनकर माया काफी हद तक डर गई। उसका डर देखकर में समझ गया की सरो आ गई..अब कावेरी यानी की ये माया नही बचेगी।
मांग मेरी शबनम ने मोती भरे
और नज़रों ने मेहंदी लगाई..
मांग मेरी शबनम ने मोती भरे
और नज़रों ने मेहंदी लगाई..
नाचे बिन ही पायलिया छलकने लगी
बिन हवा के ही चुनरी लहराई..
चुनरी लहराई..
आज दिल से हैं दिल आ जोडना हो..
तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडना..

इस गाने के एक एक शब्द सुनकर मानो माया का सर चक्कराने लगा..उसे अपने अतीत की वो सारी घटनाए अपनी आँखों के सामने घूमती नजर आने लगी..
आँख बनके तुझे देखती ही रहूं
प्यार की ऐसी तस्वीर बन जा..
आँख बनके तुझे देखती ही रहूं
प्यार की ऐसी तस्वीर बन जा..
तेरी बाहों की छाँव से लिपटी रहू
मेरी साँसों की तक़दीर बन जा..
तक़दीर बन जा..
तेरे साथ वादा किया नहीं तोडना..
हो तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडना..

उसी वक़्त हवा में लाल रंग के शादी के जोड़े में खुलेबालो वाली एक लड़की आत्मास्वरूप मंदिर के बहार हमारे सामने प्रगट हुई।
हवा में लहराते खुले बाल, भयानक सी श्वेत रंग की आँखोंवाली वो लड़की गुस्से में अपने सामने खड़ी माया को ही देखे जा रही थी। उसकी भयानक आँखों मे प्रतिशोध की ज्वालाएं साफ नजर आ रही थी। मानो उसके प्रतिशोध की ये ज्वालाएं माया को अभी जलाकर राख कर देगी।
वो मेरी सरस्वती थी। वही सरस्वती जिसको पिछले जन्म में उसीकी बहन कावेरी ने मुझसे अलग किया था। कावेरी ने मेरे प्यार को पाने के लिए.. कितनो की जान ली थी। सरस्वती के हाथो मरकर आज उन सबका उसे हिसाब चुकाना था।
सरस्वती का ये भयानक सा रूप देखकर माया एकदम से घबरा गई..उसे लगा की आज सरस्वती उसे जान से मार देगी..उससे बचने के लिए वो पीछे पीछे हटने लगी..
उस माया यानी की कावेरी को देखकर गुस्से में उसे मारने के लिए हवा में ही वो आगे बढ़ी...
लेकिन वो शिव के उस पवित्र मंदिर की वो चोंखट नही लांघ शकी। उसने जैसे ही मंदिर के अंदर प्रवेश करने की कोशिश की बहार चोंखट पर ही उसे मानो एक झटका सा लगा और वो पिछह हट गई..उसने दूसरी बार कोशिश की पर दूसरी बार भी वो भी माया को मारने में नाकामयाब रही..आखिर में वो गुस्से में वहाँ से कही अदृश्य हो गई..
उसके जाते ही माया जोरशोर से हँसने लगी..
''हा.. हा.. आ..''
''देखा वीर, मुझे कोई नही मार शकता''
मेने देखा की वातावरण फिर से पहले जैसा हो गया।
मेने आश्मान की ओर देखते हुवे कहा,
''नही मेरी सरो ऐसे हार नही सकती उसे इस कावेरी को मारना ही होगा।''
''आवो सरो.. आवो..''
में सरो को बुलाने के लिए मंदिर से बाहर निकला ओर नीचे की और सीडिया उतरते हुए.. में अपनी सरो को फिर से बुलाने लगा..
''सरो..सरो.... सरो कहा हो तुम..''
मुजे नीचे उतरते देख मेरे पीछे पीछे माया भी मंदिर से बाहर आई..
''वीर, रुको..अब वो वापस कभी नही आएगी..वीर..''
उसने मुजे बुलाते हुए कहा..
पर वो नही जानती थी की मंदिर के बाहर निकलकर उसने अपनी मौत को बुलाया है। मौत यानी की सरस्वती अभी भी उसके आसपास ही थी।
* * *

अचानक से वातावरण फिर से पहले की तरह डरावना हो गया। ये संकेत था की सरस्वती वापस आ गई..
घबराहट में माया मंदिर की और भागी लेकिन मंदिर के अंदर प्रवेश कर पाती इसे पहले ही किसी साये ने उसे पीछे की ओर खींचा..
इस बार उसे उसका भगवान भी उसे नही बचानेवाले। उसने काम ही ऐसे किए थे सजा तो मिलनी ही थी।
अचानक सरस्वती की आत्मा फिर से उसके सामने आ गई।
उसके चहेरे का वो भयानक गुस्सा मानो इस वक़्त माया को जिंदा खा जाएगा।
उसने ने चिल्लाकर कहा,
''कावेरी, तेरी वजह से आजतक कितनो की जाने गई है..आज तेरी जान जाएगी..''
ओर एक हाथ से उसका गला पकड़े हुए उसने माया हवाओ में उठा लिया
सरस्वती से अपनी जान की भीख मांगने के अलावा वो माया इस वक़्त कुछ नही कर सकती थी,
''सरस्वती, प्लीज़ मुजे छोड़ दे में तुम्हारी बहेन हु..''
उसके सामने सरस्वती की भयानक हँसी चारोओर गूँजेने लगी।
उसने अपने आप को बचाने के लिए कहा,
''तुम्हे लगता है की मेने तुम्हे मारा था पर नही सच कहु तो उस मोहिनी की वजह से तुम मरी थी.. वो ही तुम्हे उस कमरे में...''
वो अपने बचाव में बोलती गई पर सरो ने उसकी एक नही सुनी.. कुछ पल बाद चारो ओर काले रंग का धुवा सा छा गया।
वहाँ क्या हो रहा था कुछ दिखाई नही दिया बस सरस्वती की वो खतरनाक हँसी ओर माया की दर्दनाक चींखें मानो उन हवाओ गूंज रही।
कुछदेर बाद सब एकदम से नॉर्मल सा हो गया मेने देखा तो वह पर कोई नही था ना सरस्वती की रूह ना माया ओर ना ही माया की लाश।

में फ़ौरन अपनी बाइक लेकर वहां से संजीवनी हॉस्पिटल की ओर भागा
जैसे ही में हॉस्पिटल के सेकेंड फ्लोर पर सात नंबर वाले कमरे में गया तो..
मानो में खुशी से पागल हो गया। क्योंकी मेरी संध्या को होश जो आ गया था। वो अपने बेड पर मेरे सामने बैठी थी।

में जाकर प्रकुति के गले लग गया।
मानो कुछ हुवा ही न हो वैसी मासूमियत से उसने मुझसे पूछा,
''वीरेन, तुम कहा रह गए थे..? पता है मेने तुम्हे कितना याद किया..?''
मेने कहा..
''सोरी संध्या, पर अब में तुम्हे छोड़कर कभी नही जाउँगा''
उसने मेरा हाथ पकड़ते हुवे कहा..
''मुझसे वादा करो..''
उसकी ओर देखकर उसका माथा चूमते हुवे कहा
''वादा, में तुम्हे छोड़कर कही नही जाउँगा..''
हमारा वो प्यार देखकर वो आज बहुत खुश थी। उसने मुझे मेरी संध्या से मिलवा दिया।

शायद वो जानती थी की मोहिनी भी वीर से प्यार करती थी। कावेरी की तरह वो भी अगर चाहती तो उससे उसका प्यार छीन सकती थी। पर नही उसने ऐसा नही किया..बल्कि
उसने अपनी दोस्ती के खातिर अपने प्यार को कुरबान कर दिया प्यार का दूसरा नाम ही तो है त्याग।
जाते जाते सरो ने मुझसे एक वादा लिया,
''वीर, मुझसे वादा करो की मेरी दोस्त मोहिनी का हमेशां ख्याल रखोगे''
मेने उसे वादा किया ओर आखिर में वो मुजे ओर संध्या को अपना प्यार देकर चली गई शायद, हमेशां के लिए।
आज जब भी ये गाना सुनता हूं ऐसा ही लगता है की वो मेरे आसपास ही है जैसे आज भी वो मेरे सामने बैठकर अपनी ही सुरीली आवाज में वैसे ही गा रही है।
तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडना
हो..ओ..तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडना
चाहे तेरे पीछे जग पड़े छोड़ना..
तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडना
हो..ओ.. तेरे संग प्यार मैं नहीं तोडना

The-End
©Paresh Makwana
Mo.7383155936