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कुछ दूर तलक

कुछ दूर तलक आज यूं ही निकल पड़ी थी
थोड़ी देर बाद में रुकी
पिंछे मुड़कर देखा तो,
वहां कोई नहीं था।
कोई भी नहीं।
कहा चले गए वो सब लोग?
जिन्हे में जानती थी
यहां तो कोई भी नहीं है!
में थोड़ी देर और रुकी रही
शायद कोई पींछे आ रहा हो।
फिर में क्या करती थोड़ी और आगे बढ़ चली
रुकना, ठहरना, किसिकी राह देखना
ये सब मुझे कभी गंवारा नहीं था
आज भी नहीं है।
अकेली ही चल पड़ी हूं अनजान राहो पर
पता है इसमें मजे की बात क्या है?
में खुश हूं!
एक नन्ही सी तितली और कुछ जंगली फूल
ये मुझे घुरे जा रहे है
मानो उन्हें यकीन नहीं हो रहा
आज भी कोई इन्हे प्यार से देखा रहा है।
हवा मे फैली एक खुशबू मुझे खिंचे जा रही है...
कुछ सामने दिखाई पड़ रहा है
एक लड़का और लड़की आपस में बाते कर रहे हैं
में उन्हें सुन रही हूं, देख रही हूं
वो भी मुझे देख रहे है पर उनके लिए जैसे में हूं ही नहीं
ओह... ये तो वो किरदार है।
मेरी कहानी में जो मैने सोचे थे
अब में बैठ गई हूं एक घने पेड़ के तले
उन्हें देख रही हूं, सुन रही हूं और लिख रही हूं
में खुश हूं यहां।
कोई मुझे पुकारना चाहे तो जरा जोर से आवाज देना
शायद में खोई रहू और सुन ना पाऊ
वो तितली मेरे और करीब आती है
मेरे सर पर उड़ना उसे अच्छा लगता है
शायद मुझे भी, तितली सर पर बोझ नहीं है।
वो सारे फुलभी अब मुजे जानने लगे है
मेरे सामने देख मीठा हस रहे है
वो भी मुझे प्यारे लगने लगते है
वो मुझ पर नहीं हस रहे।
में सुन रही हूं, देख रही हूं
उस लड़के और लड़की को केद कर रही हूं
हां में उन्हें केद कर रही हूं, कहानी में।
अरे ये भारी सी डरावनी आवाज कहां से आई?
“आज ऑफिस नहीं जाना है क्या?"
“कब तक यूंही बैठी रहोंगी?"
में जैसे एक सपने में से जाग जाती हूं
अपने आप को किसी सुंदर वनमे नहीं अपने घर में पाती हूं
हा ये है तो मेरा ही घर पर कुछ अनजाना सा लगता है।
में घरकी सफाई करने लगती हूं,
सब के मेले कपड़े बटोरती हूं और उन्हें मशीन में डालती हूं,
खाना भी तो पकाना है, में फ्रिज से सब्जियां निकाल लाती हूं
भिंडी लड़की को पसंद है, फूलगोभी लड़के को
पति महाशय करेला नहीं खाएंगे।
मुझे क्या पसंद है, क्या नहीं पसंद?
ये बाते तो बचपन में साथ थी
अब तो वो भी छूट गई।
खुद ही पकाना है, खुद ही खाना
पसंद नापसंद कौन सोचता है भला।
में भिंडी काट रही हूं कि वही उसमे दिखाई पड़ा
एक छोटा सा कीड़ा, हरे रंग का कीड़ा!
मानो मुझ से अपनी जान बचाना चाहता हो
मुझे याद आ गई वो तितली फिर से
में रोटियां बेल रही हूं।
गरम गरम रोटियां पति को परोस रही हूं
बाद में अपने लिए तीनों रोटियां एक साथ बेल लेती हूं
उस मोटी सी रोटी पर मुझे दिखाई पड़े
वो लड़का लड़की, मेरी कहानी के किरदार!
जी चाहता है फिर से लिखने लगु।
अपनी कहानी थोड़ी और आगे बढ़ालूं
पर अब समय नहीं है, ऑफिस जाना है, देर हो रही है।
शाम को घर लौट के फिर रसोई, फिर सफाई, बरतन
रात को पतिदेव पास बुलाते हैं
में दौड़ी चली जाती हूं,
चलो उन्हें अब मेरे लिए फुरसत मिली।
में उन्हें अपनी नई कहानी के बारे में बताना चाहती हूं
वो तितली, वो फूल, वो लड़का लड़की
पर में कुछ बोल ही नहीं पाती।
कुछ टूट सा जाता है मेरे मन के भीतर
पर किसी को उसकी परवा ही नहीं।
दूसरे दिन में सुबह जलदी उठ जाती हूं
नींद ही कहा आती है
सब लोग सो रहे है
अभी थोड़ा सा समय है मेरे पास
मेरे अपने लिए थोड़ा सा समय।
में यूहीं निकल जाती हूं दूर तक
कुछ देर बाद रुकती हूं
पिछे कोई नहीं आ रहा, कोई आएगा भी नहीं
पता है इन रास्तों पर अकेले ही भटकना होगा
और में भटकती रहूंगी
में खुश हूं यहां
मेरी कहानी के भीतर!
नियती कापड़िया