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जननम - 13

जननम

अध्याय 13

शोक्कलिंगम को 'सेरीब्रेल हेमरेज' हो गया उसने निश्चय किया। इसके अलावा भी उनको अनेकों बीमारियां हैं। इससे वे छूट जाए ये बहुत मुश्किल की बात नजर आती है।

नियंत्रण में रहकर 100 साल जीने के बदले सब कुछ भोग कर 65 साल में मर जाना ठीक मानते हैं......"

उनके इस अनुभव ने सिर्फ उन्हीं को नहीं प्रभावित किया परंतु उनके आंख बंद करने से औरों को कितनी समस्या होगी उन्होंने नहीं सोचा। उन्होंने जो कड़वाहट पैदा की उसी के फलस्वरूप कडवाहट में उनका लड़का है | उसकी इच्छाएं, उसका जीवन, उसका कार्यक्रम सब कुछ इस कड़वाहट के कारण..........

अस्पताल में उनका परीक्षण कर, उन्हें जो दवाइयां देनी थी चिकित्सा करनी थी सब करके वह अपने घर के लिए रवाना हुआ। गाड़ी नहीं है उसे याद आया वह पैदल ही चलने लगा।

लावण्या के घर को पार कर ही जाना है। आज पूरे दिन लावण्या को नहीं देखा उसे याद आया। इसीलिए ही आज मन में एक उदासी छाई है। ओफ.. किस तरह के मानसिक तनाव में फंसा हूं ? अपने नजर को कहीं और ना दौड़ाकर सीधे चलने लगा।

"आनंद !"

वह हारे हुए जैसे लौटा लावण्या घर के जाली के दरवाजे को पकड़े हुए खड़ी थी।

"हेलो !" धीरे से मुस्कुरा कर वह बोला।

चांद की रोशनी मध्यम थी। उसके साथ सड़क पर जलती मध्यम रोशनी में उसने लावण्या को घूर कर देखते हुए पाया।

हेलो का जवाब ना देकर सीधे ही उसने पूछा "आज आप क्यों नहीं आए ?"

उसकी नजरों में उसके प्रश्न में अपनत्व और लालसा दिखाई दी उससे उसे कपकपी हुई।

"आज बहुत काम था लावण्या। इसीलए इस ठंड में गेट के पास खड़ी हो ?"

वह मौन रहकर मुस्कुराई। "मुझे पता नहीं आनंद। आपको देखे बिना आज मुझे घर के अंदर मन ही नहीं लगा।"

उसकी छाती की धड़कन बढ़ गई। माथे पर पसीना आया।

कह दूं क्या ?

"आप बिना बोले अहमदाबाद कॉन्फ्रेंस के लिए चले गए क्या मैंने सोचा।"

"कॉन्फ्रेंस के लिए नहीं गया !"

"हाऊ नाइस !"

उसकी आवाज में खुशी बाहर से दिखाई दे रही थी।

"वह रघुपति यहां आएंगे ऐसा सोचता हूं ।"

"कब ?"

"पता नहीं। पत्र का इंतजार कर रहा हूं।"

"अच्छी बात है। मैं सोच रही थी आप चले जाएंगे तो मैं क्या करूंगी।"

वह क्या जवाब दूं सोचता रहा।

"आनंद ! दो दिन से आप बहुत अलग से लग रहे हो ?"

"नहीं तो !"

"हां । आप मुझसे कुछ दूर चले गए ऐसा लग रहा है।"

"यह तुम्हारी कल्पना है लावण्या।"

"नहीं, आई कैन फील इट्। अचानक दो दिन से आपको क्या हो गया मैं सोच रही हूं पर समझ में नहीं आया। मुझ में अतृप्ति कोई और बात है समझ में नहीं आ रहा । यह मुझे कितना परेशान कर रहा है आपके समझ में आए तो आपको भी आश्चर्य होगा ।"

हे ! भगवान ! इसको कैसे बताऊं ? कब बताऊं ?

अभी इस चंद्रमा की चांदनी में यह ठीक से समझ ना पाए इस समय कह दूं तो क्या है ?

'लावण्या, तुम शादीशुदा हो, तुम्हारा एक पति है। जीवित है जो तुम्हारे लिए परेशान हो रहा है तुम्हारा पति-अमेरिका की नौकरी को छोड़ कर चार महीने से तुम्हारे लिए भारत में घूम रहा है ।'

कुछ है जिसने उसे ऐसा करने के लिए रोका । वह अपने सामने सदमे में आ जाऐ। वह टूट जाए उसे टूटा हुआ देखने की मुझमें शक्ति नहीं है ऐसा लगता है। 'रघुपति की पत्नी है यह पक्का मालूम होने के पहले इसको क्यों कहना चाहिए ?' वह अपने अंदर ही जल्दी से सोच लिया। पहले वह वेदनायकम आकर 'यह हमारी राधा नहीं है' कहकर मुंह लटका कर चला गया वैसे ही इस बार रघुपति आकर 'यह मेरी उमा नहीं है' कहकर नहीं चला जाएगा क्या ? उसके पहले मैं क्यों जल्दबाजी कर इसके मन में एक असमंजस पैदा करूं ?

परंतु जब तक, रघुपति यहाँ आ जाएं तब तक इससे मैं साधारण ढंग से बातचीत कर सकूंगा क्या ऐसा उसे संदेह हुआ। साधारण ढंग से कैसे रहूं उसकी समझ में नहीं आया। उसे देखते समय मन में जो भावनाओं का उभार आता है उसको कैसे दबाऊँ उसके समझ में नहीं आया।

"तुम जो नहीं है उन बातों को सोच कर अपने आप को कष्ट क्यों दे रही हो ? दो दिन से मुझे अस्पताल में बहुत काम था। मेरी तबीयत थोड़ी सी खराब है...."

वह जल्दी से उसके पास आकर खड़ी हुई।

"क्या हुआ ? इसीलिए आपका चेहरा उतरा हुआ है। बुखार तो नहीं है ?"

उसके नरम हाथ उसके शरीर पर पड़ते ही उसका शरीर गर्म हो गया। उसे जोर से आलिंगन करने का वेग उत्पन्न हुआ। 'रघुपति, जल्दी से आकर लेकर चले जाओ। मैं अपनी सभ्यता को छोड़ दूं उसके पहले लेकर चले जाओ.....'उसने धीरे से उसके हाथ को दूर किया।

"बुखार नहीं है। तुम कितनी जल्दी परेशान हो जाती हो लावण्या !"

वह हंसने लगी।

"जिसे प्रेम करते हैं उसकी तबीयत ठीक नहीं तो परेशान तो होंगे ही ।

हे भगवान !

"मैं सब बातों के लिए ऐसे घबराती नहीं हूं। कल क्या हुआ पता है ? कल वह शोक्कलिंगम फिर से आ गए। खूब पिए हुए थे। वह डॉक्टर की मां तुम्हें सीता बोलती है, तुम किस तरह की हो मैं देखता हूं। ऐसा गंदे ढंग से बात की। मैं और मरकदम दोनों ने जैसे तैसे मुश्किल से भगाया।"

सदमें के साथ उसने उसको देखा। उस दिन उनको इतनी बुरी तरह से डांटने के बाद भी अपना पूंछ हिलाना नहीं छोड़ा उसको बहुत तेज गुस्सा आया। दादाजी उसके बारे में चोर, बदमाश आदि बोलते थे उसके कारण थे अब समझ में आया। एक पैर श्मशान में रखकर भी यह कैसी इच्छाएं हैं ?

"अब तुम्हें उनके बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं। वे मरणासन्न अवस्था में बिस्तर पर पड़े हैं।"

उसने आंखें फाड़कर देखीं।

"क्या ?"

"पैरालिटिक स्ट्रोक आने के कारण अस्पताल में बेसुध पड़े हैं। उनको अस्पताल में एडमिट करने के बाद ही आ रहा हूं। अचानक हो गया।"

"अरे बाप रे ! बेचारा!"

"क्यों बेचारा ?"

"नहीं फिर ? मनुष्य को किस समय क्या हो जाएगा पता नहीं होने के कारण ही इतना खेल खेलता है।"

"इतने सपने और निराशाएं भी !"

उसने जल्दी से उसे देखा।

"किसे ?"

"तुम्हें और मुझको !"

"आनंद, सबको आपने वेदांत में बदल दिया !"

"यह वेदांत है समय पर मदद करता है लावण्या...... मैं आता हूं । अम्मा मेरा इंतजार कर रही होगी....."

उससे वह और कुछ भी उम्मीद करती हुई सी खड़ी रही।

"लावण्या, प्लीज !"

बस इतना सा जैसा एक नजर डाल गाल में गड्ढे पड़े जैसे हंसी....

"ओके गुड नाइट !"

"गुड नाइट....!"

फिर से चलते समय मन के साथ शरीर भी भारी हो गया, उसको चलने में ही तकलीफ होने लगी। अब उस रघुपति को ही अधिक कष्ट होगा लगता है। एक दूसरे पुरुष को अपना मन सौंपने वाली पत्नी को वह कैसे संभाल पाएगा ? इस सदमे को वह कैसे बर्दाश्त करेगा ? हे भगवान ! वह रघुपति इसका पति नहीं होना चाहिए। क्या यह संभव है? लावण्या के अंग-अंग का उसने वर्णन किया है ! गलत होगा क्या ?

हो सकता है-

होगा-

होना चाहिए-

उसे स्वयं को ही सेरीब्रल हेमरेज हो जाएगा ऐसा लगा। सर बहुत गर्म होकर सचमुच में सर बहुत दर्द होने लगा।

अम्मा को उसने शोक्कलिंगम के बारे में बताया।

"हे राम ! इतना नीच वह आदमी , वही शाश्वत हो जैसे ?"

'अब सब के मुंह से इस तरह की बात ही आएगी' उसने ऐसा सोचा। कौन नहीं सोचता कि मैं शाश्वत नहीं हूं ? मैं भी ऐसे कुछ सोचता हुआ ही लावण्या के प्रेम में पड़ा।

नहीं, फिर-फिर उसके बारे में नहीं सोचना चाहिए। बाद में बुद्धि खराब हो जाएगी...... उसने सोने के पहले दो कंपोज की गोलियां लेकर जबरदस्ती सोने की कोशिश की।

अगले दिन सुबह उठते ही उसका सर थोड़ा भारी था। कंपोज की वजह से नकली नींद के कारण उसकी दोनों आंखों के नीचे दो थैली लटक रही थी। अम्मा की निगाहें उसे ही देख रही थी। “आज क्यों अजीब से लग रहे हो” ठीक है उन्होंने नहीं पूछा। आज, कोई भी कुछ पूछ ले, तो मैं कहीं फट न पड़ूं इसका उसे डर लग रहा था। वह अपने चेहरे को खूब ठंडे पानी से छपाक-छपाक करके साफ कर कॉफी पी रहा था तब एक फोन आया।

"शोक्कलिंगम बहुत सीरियस है डॉक्टर।"

उसने कुछ ज्यादा नहीं पूछा तुरंत रवाना हो गया।

"वे चले जाएंगे क्या आनंद ?" पूछे मां को उसने जीभ को पिचका कर मना कर सिर हिला दिया।

जब वह अस्पताल गया तो शोक्कलिंगम अपने जीवन के आखिर क्षण में थे। अच्छा हुआ उनका अंत जल्दी हो गया उसने सोचा। बात भी ना कर सके और सब अवयव भी काम करना बंद कर दिया तो दूसरों के अधीन रहकर उससे नफरत करने वाले बेटे की दया में रहे-उनके अच्छे दिन थे जो वे इससे बच गए।

उनके शवयात्रा में पूरे गांव ही आया हुआ था। इंस्पेक्टर धरमराजन यूनिफॉर्म में आए हुए थे।

"फटे हुए कपड़े को सी-सी कर पहनने जैसे यह आदमी बेचारा अस्पताल में आकर अपने शरीर को रिपेयर करके जाता था। कितने दिन चलता ?"

"उस आदमी में इतनी इ इतनी शौक बहुत ज्यादा इच्छा ...."

अप्पा के जाने का मुझे कोई बहुत बड़ा दुख नहीं है इस भाव से उनका लड़का कामों को कर रहा था।

"उस बस दुर्घटना के बाद यही बहुत बड़ी घटना है इस गांव में" ऐसा कोई कह रहा था।

सचमुच में है आज एक बहुत बड़ा कार्य हो गया ऐसा उसको आभास हो रहा था।

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क्रमश...