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त्रिलोक - एक अद्धभुत गाथा - 1

( उपन्यास )

1.
एक बहुत बढ़ा बंगला था बिलकुल एक आलीशान हवेली की तरह। उस बंगलाके आगे बड़े बड़े पोस्टर लगेहुवे थे। वो पोस्टर लड़कीकी थी जो की एक हीरोइन की है। उस पोस्टरके ठीक नीचेकी तरफ बड़े अक्षरोमे लिखागया था - (नंदनी हिंदुस्तानी)। उस आलीशान बंगलापर लिखा था -[The Film Set ]। सुबहके कुछ साढ़े चार बजेथे, बंगलाके आसपास ठंडी हवा चलरही थी।

एक ठंडी सी हवका झोका उसी बंगलाकि एक कमरे की खुलीहुई खिड़की के अंदर जाती है। उस कमरे के अंदर की लाइट बुझाहूवा था। उस कमरेमे सोई हुई लड़की अपनी हातोसे मुह्पे लागहुआ ब्लैंकट निकलती है। वो पोस्टरकी लड़की नंदनी थी। नंदनी उस हवा के कारण जाग जाती है। नंदनी - कितनी प्यारी सुबह है। अपनी आँखे खोलकर बेडसे बाहर निकलते हुवे बाथरूम मे जाती है। कुछ देर बाद निकलकर वो ड्रेस चुनती है। वो बाहर अपनी मनपसंद लाल घाघरा, सावल और सफ़ेद चोली पहनकर निकलती है। वो अपनी कमरेमे रखा हुआ आइना पर अपनी चेहरा देखती है। वो बहत खूबसूरत और प्यारी लगरही थी। फिर नंदनी अपनी कमरेकी साफसफाई करती है। नंदनी हमेसा काम फैशन के कपडे पेहेनना पसंद करती थी, वो कभी स्टाइलिश और छोटे कपडे नहीं पेहेनतिथि।

सिर्फ चौध सालोमे हीरोइन बनी हुई नंदनी एकदम अनाथ थी, इस दुनियामे उसके इंडस्ट्री के लोग के सिबा कोई नहीं है। वो इंडस्ट्री के सारे लोगोंको अपना मानती थी और वो लोग भी उससे बहत प्यार करते थे। नंदनी जॉब छोटी थी तब एक अनाथ आश्रम से नाटकके रोल करनेके लिए चुनी गयी थी। उसकी नसीब ने उसको वही इंडस्टी पे रखलिया। डायरेक्टर ने उसकी उम्रभर की पढ़ाई और सारी खर्चेकी जिम्मेदारी खुद लेली। डायरेक्टरने उसकी टैलेंट को प्रोफेशन मे बदलदिया। तबसे नंदनी डायरेक्टर को अपनी पापके तरह प्यार देती है। इंडस्ट्री के बहत लोगो को अपना भाई बहन मानती है। नंदनी अब चौध सालकी होगई पर फिरभी कभी उसके दिलमे ये खयाल नहीं आया की वो एक अनाथ लड़की है।

यही सब सोचकर नंदनी अपनी नित्या कर्म ख़तम करके कमरे से बाहर निकलती है। वो दूसरी कमरेमे जाती है जो की एक लिविंग रूम है। अनिल (इंडस्ट्री का राइटर ), दीपिका ( मेकअप आर्टिस्ट )और सूरज ( कैमरा वाला ) चाये पितेहुए सोफा पे बैठरहे थे।

नंदनी - "चलो चलो मन्दिरपे चलते है, पूजा की समय होगया है। वैसे डायरेक्टर साहब कहा है ?"

अनिल - "वो सायद आ नहीं पाएंगे। कुछ काम से बिजी है।"

दीपिका - "चलो चलतेहै, मेरा चाये भी ख़तम हो गया। सबलोग मंदिर की तरफ आगे बढ़ते है।"

उस बंगला मे एक ख़ास कमरेमे डिज़ाइन करके नारायणकी मंदिर बनाया हुवा था। चारो लोग मंदिर के कमरेके अंदर चलते है। कमरेके अंदर नारायणका बड़ा सा मूर्ति था। मूर्तिकी रंग तो काली थी पर वो बहत खूबसूरत था। आरती करनेके बाद नंदनी सबको प्रसाद देतीहै।

सूरज - "आज प्रसादमे तो मोतीचूर का लड्डू है, पेट भरगया पर मन नहीं भरा।"

दीपिका - "नंदनी एक बात मुझे समझमे नहीं आती, मैंने बहत सारी मुर्तिया देखि है पर तुमने पूजा के लिए ये काली मूर्ति ही क्यों चुना ? काली मूर्ति तो महाकाली की भी नहीं होती।"

नंदनी - "मैंने काली रंग इसलिए चुना क्युकी भगवान का कोही भी रंग हो, वो पबित्र तथा एक सामान ही होता है। और वैसे भी आजतक कोई शक्ति पैदा नहीं हुआ जो नारायण की रूप और रंग का बर्णन करें।"

अनिल - "सही बात है।"

थोड़ी देर बाद अनिल के मोबाइल पे एक मैसेज आती है।

नंदनी - "क्या हुवा किसकी मैसेज है।"

अनिल - "डायरेक्टर साहबने मैसेज भेजा है की वो हमें एक सरप्राइज देने वाले है।"

दीपिका, सूरज और नंदनी - "क्या ? सचमे ?"

अनिल - "उन्होंने ये भी लिखा है की आज का दिन हमारी इंडस्ट्री केलिए एक खास दिन सभीत होगा।"

नंदनी - "ऐसा क्या सरप्राइज है जो इतनी खास है।"

दीपिका - "वो तो वही पर जाकर पता चलेगा। चलो।"

चारो लोग बंगला के बाहर इंतजार करते है। बंगला के बाहर एक खूबसूरत और मनमोहक बगीचा है, जिसके बीचमे से एक बडासा पानी का फवारा निकलता है। सबलोग उसी बगीचा पर सरप्राइज का इंतजार करते है। कुछ चार पांच मिनट बाद एक काली गाडी आती है। वो काली होंडा कार डायरेक्टर साहब का था। सबलोग पेहचांगाये और सोचने लगे की सरप्राइज उनलोगो की बहत नजदीक है। उस कार की रुकनेके बाद कार के ड्राइवर सीट से डायरेक्टर साहब निकलते है। उन्हें देखकर सबलोगो की आंखोमे उताबलापन दीखता है।

डायरेक्टर साहब - "तुम सबको तो पता ही है की हमारी इंडस्ट्री बहत पुरानी और नाम चला हवा है। आज तक हमारी एक भी शूटिंग फ्लॉप नहीं हुई। दर्सक ने भी हमें बहत सारा प्यार और भरोसा दिया है। इसीलिए हमने एक एग्रीमेंट तैयार किया था। हम सब को वो दिन अच्छी तरह से याद है।"

नंदनी - "हां पर उस को सिग्नेचर किया हुवा तो बहत सालो होगये। फिर आप इस बात को फिर क्यों दोहरारहेहै ?"

डायरेक्टर साहब - "मैं जनता हु। उस एग्रीमेंट पर जो भी सिग्नेचर करता है, वो लाइफ टाइम हमारे इंडस्ट्री मे ही काम करेगा। और तुमसाब्ने ये एग्रीमेंट सिग्नेचर करके भरोसा जताया है। इसलिए मे तुमसबका मै शुक्रगुजार हु। नंदनी, सूरज, अनिल और दीपिका सुक्रिया इस भरोसे केलिए, तुम सबने एक टीम की तरह काम किया।"

नंदनी - "आप ये सब क्यों केहे रहेहै ? वो तो हमारा फर्ज़ बनता है।"

डायरेक्टर साहब मुस्कुराकर कहते है - "और तुमसबको ये बताना चाहता हु की आज हमारे टीम मे कोई और भी जुड़ने वाला है। हमें हमेसा से तलाश थी एक लड़का जो हीरो का रोले प्ले करेगा। और आज हमें वो लड़का मिलगया।" "Surprise "

और उसी वक्त कार की दूसरा दरवाजा खुलता है। उसमेसे कोई निकलता है। तभी अचानक काले बदल मडराते है, और जोर का हवा चलकर बरसात होती है।

नंदनी सोचती है - "अभी तक तो आसमान साफ था, और अचानक बारिस होगया। लगता है प्रकृति कुछ कहना चाहते है।"

वो लड़का बाहर निकलते ही बारिस होजाती है। कार के बाहर निकलतेहि भीगगया। लड़का दीखनेमे बहत अच्छा था। सभी लोग बारिश की वजह से बंगला के अंदर चलते है।

डायरेक्टर साहब टेबल पे बैठके - "मिलो इससे, ये है राघव ये बहत जगह अपने काम से मशहूर होचुका है। और ये अपना काम बहत अच्छी तरह से निभाता है।"

ऐसे ही बहत बाते होती है। राघव उसी दिन सबका अच्छा दोस्त बनजाता है। डीनर ख़तम होने के बाद सब अपने कमरेमे जाते है। पर नंदनी थोड़ी परिसान दिखती है।

राघव नंदनी को परीशान देखकर - "क्या आपको पता है अगर लड़किया ज्यादा परिसान होतो उनकी उम्र घट जाती है।"

नंदनी चहरे पे थोड़ा सा हसीं लाकर - "अच्छा मज़ाक था।"

राघव नंदनी को हसकर वहा से चलाजाता है। नंदनी डूबती हुई सूरज को देखती है। नंदनी के चेहरा पे परिसानी और उत्सुकता साफ झलक रहा था। तभी सूरज ना डूबकर और भी चमकदार होकर सारी रौशनी नंदनी के ऊपर पडती है।

सूरज अचानक तेज होकर एक खास रूप लेता है और वो नंदनी को देखकर - "तुम थोड़ा परिसान लगती हो। क्या हुवा तुम्हे ?"

नंदनी जलती हुई सूरज को प्रणाम करके - "नहीं ऐसा कुछ नहीं है पर मनमे एक सवाल है सूर्य देव।"

सूर्य देव - "सवाल, कैसा सवाल ? सब कुछ ठीक तो है ना नक्षत्रा ?"

नंदनी - "आज मुझे बहत अजीब महसूस हुवा। आज जब अचानक काले बदल मडराते हुए बारिश हुई और हवा चलने लगी, तब मुझे लगा की प्रकृति मुझसे कुछ कहना चाहती है।"

सूर्य देव - "अगर उन्हें कुछ कहना होता तो वो केहेदेति।"

नंदनी - "हाँ।"

सूर्य देव सूरज के रूपमे फिरसे परिणत हो जाते है। तभी नंदनीको कुछ आभास होता है, उसे ऐसा लगरहा था की कोई उसके पीछे है। वो पीछे पलटती है। वो देख ही रही थी की उसके कमरेमे एक नीला हवा जैसा कुछ पदार्थ घूम रहा था। वो नीली हवा एक इंसान का मूर्ति का रूप लेता है। और वो धीरे धीरे से असली इंसान बनजाता है। उस इंसान के सफ़ेद बाल थे, हाथ मे जाप मला थी, नीली आंखे और उन आंखोमे ज्ञान की ज्योति समाया हुआ था। उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा उसे शांति का प्रतिक केहे रहा था। वो इंसानने एक संत की तरह कपडे पहने हुवे थे। नंदनी संत को देखते ही उनका चरण स्पर्श करती है।

नंदनी - "प्रणाम गुरूजी। आपको ज्ञात है ? आज क्या हुवा ?"

गुरूजी - "हां, मुझे सब ज्ञात है। आज तुम्हे अजीब सी एहसास हुआ हैना ?"

नंदनी - "हाँ, प्रकृति मुझसे..."

गुरूजी - "अगर वो तुमसे कुछ छुपाती भी है तो उसका भी कोई अच्छा कारण होगा, और अगर ऐसा है तो वो समय आने पर बता देंगे।"

नंदनी एकदम चिंतित थी।


गुरूजी अपने मनमे बिचार करते है - "हा नक्षत्रा, तुम्हारी जीबन चक्र मे एक ऐसा पल आरम्भ होने जारहा है जो, समय आने पर तुम्हे स्वयं ही ज्ञात होजायेगा।"

फिर वो संत अपनी इंसानी रूप से नीली हवा बनकर अदृश्य होजाते है।

क्रमशः......