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त्रीलोक - एक अद्धभुत गाथा - 7

त्रीलोक - एक अद्धभुत गाथा
( उपन्यास )
7
सब लोग adventure पे जाने के लिए उताबले होरहे थे। लगभग सारी तयारिया होचुकी थी। सब लोग इस एडवेंचर की प्लान से बहत खुश थे। बहत दिनों बाद उनलोगो ने इंडस्ट्री से बाहर छुट्टियां बिताने का मौका मिलरहा था। दीपिका, अनिल, सूरज, राघव, नंदनी, और डायरेक्टर साहब अपनी अपनी पैकिंग ख़तम करते है। और साथ मे एडवेंचर पे काम आने वाली सारी सामान का बंदोबस्त करते है।
उसके बाद डायरेक्टर साहब के कमरेमे सबलोग आकर डिसकस करते है। डायरेक्टर साहब - "सारी तैयारियां होचुकी है। अब हमें सिर्फ यही तय करना है की हम कब जायेंगे।"
सूरज - "हा मैंने जगह की बारेमे पता किया है, यहाँ पास ही मे एक जंगल है जहा पर हम एडवेंचर के लिए जासकते है।"
डायरेक्टर साहब - "तो हमें कब इस एडवेंचर के लिए निकलना होगा?"
नंदनी - "सारी तैयारियां तो होगयी। मुझे लगता है आज रेस्ट करके हमें कल सुबह जाना चाहिए। पैकिंग करते करते सब लोग थकगए है।"
दीपिका - "हा सुबह जंगल जाने मे मजा ही कुछ अलग होगा।"
डायरेक्टर साहब - "तो तय रहा हम कल सुबह जायेंगे।"
सब लोग अपनी अपनी कमरे मे जाते है। इधर नंदनी भी अपनी कमरेमे जाते है। बड़बोला नंदनी के कमरे मे कुछ अकेले मे बात कररहा था।
बड़बोला अकेले अकेले - "मुझे कैसे पूछना चाहिए? कैसे कैसे?"
बड़बोला थोड़ा खुश होकर कहता है - "हा मुझे नंदनी से हाथ जोड़कर कहना होगा।"
बड़बोला को अभी तक नहीं पता था की नंदनी रूम मे आगयी है नंदनी सबकुछ चुपचाप देखरही थी।
बड़बोला अपनी ही धुन मे हाथ जोड़कर कहता है - "नंदनी तुम्हारी मदत के लिए मुझे तुम्हारे साथ आना होगा, और वैसे भी तुम्हे मेरी जरुरत तो पड़ेगी ही, हा अगर मे ऐसे कहूंगा तो नंदनी मुझे अपने साथ जंगल जरूर लजायेगी।"
नंदनी बड़बोला के पास जाती है और ऐसा ब्यबहार करती है की उसे कुछ नहीं पता है।
नंदनी - "बड़बोला, तुम किस्से क्या बाते कररहे हो?"
बड़बोला जंगल मे घूमने जाने की इच्छा छुपाकर कहेता है - "कुछ भी तो नहीं? क्या कहा मैंने? बस युही, तुम नहीं थी ना इसीलिए खुद से बात करहा हु।"
नंदनी बाते बनाकर - "वैसे मे सोचरही थी की तुम भी मेरे साथ जंगल पे चलो...."
बड़बोला अंदर ही अंदर खुश होकर अपना सपना साकार होता हुवा देख उसके मनमे लड्डू फुटराहे थे।
नंदनी थोड़ी मायूसीपन दिखाकर कहती है - "लेकिन...."
बड़बोला थोड़ा घबराकर - "लेकिन क्या...."
नंदनी - "लेकिन तुम वहा जाओगे कैसे? तुम तो एक पर्ची के रूप मे हो, और मेरे साथ चलना है तो कोई जीव का रूप होना चाहिए ना।"
बड़बोला नंदनी का मज़ाक समझनही पारहा था।
वो कहता है - "हा ये भी सही है। मुझे तुम्हारे साथ कोई जीब का रूप लेकर आना होगा।"
बड़बोला को एक उपाय सूझता है - "अरे हा, इसका तोड़ है मेरे पास, तुम चाहती थी ना की मे कोई जीब का रूप मे आउ? ये तो चुटकी मे होजायेगा।"
बड़बोला अपनी जादुका प्रयोग करके अपनी पर्ची वाली रूप से एक सुन्दर सा कुत्ते का बच्चा का रूप लेता है।
बड़बोला - "लडकियोंको कुत्ते का बच्चा बहत पसंद होता है, तुम अपने दोस्तों को ये कहना की तुमने एक कुत्ता ख़रीदा है।"
नंदनी - "तुम तो बहत छोटे हो, ऐसेमे तुम चल भी नहीं पाओगे तो मे तुम्हे जंगल कैसे लेकर जाउंगी।"
बड़बोला बहत भोला था।
बड़बोला - "अरे हा इस तरह तो मे इस शरीर से ज्यादा चल नहीं पाउँगा। एक काम करता हु, मे कोई दूसरा रूप लेता हु।"
बड़बोला फिरसे अपनी जादुई शक्तियो के मदत से एक खूबसूरत तोता का रूप लेता है।
बड़बोला - "अब कैसा है?"
नंदनी - "अब ठीक है। मुझे तुम्हे लेजानेमे कोई तक़लीफ़ी नहीं होंगी।"
बड़बोला - "समय आने पर नारायण का रूप परिवर्तन वाला ये बरदान काम आगया। अब मे कल जाऊंगा, जंगल घूमने जाऊंगा, अब मे उड़ पाऊँगा, अब मे जंगल जाऊंगा।"
नंदनी उसकी बातोसे परिसान होकर - "अच्छा ठीक है, अब सोजाओ। हम कल जारहेहै।"
बड़बोला जंगल जाने के लिए उताबला होरहा था।
बड़बोला - "पता नहीं ये कल कब आएगा।"
बड़बोला कल की बारे मे सोचते सोचते सुजाता है। नंदनी को भी पैकिंग करते करते थकान महसूस हुवा था और उसकी भी आंख लगगयी। और अगली सुबह नंदनी उठकर अपनी खिड़की की पर्दा खोलती है। सुबह की मनमोहक उगता हुवा सूरज को देखकर अपनी दिन की शुरुआत करने के लिए फ्रेश होती है। उसके बाद वो अपना पैक किया हुवा सामान रेडी करके एक जगह तैयार करती है। तभी उसको बड़बोला का याद आता है। उसके रूम की टेबल पर बड़बोला सोराहा था।
जब नंदनी उसको देखती है तो कहती है - "ये बड़बोला भी ना। रातभर केहरहा था की वो जंगल ऐसे घूमेगा, वैसे घूमेगा, ये करेगा, वो करेगा। अब देखो घोड़े बेचकर सोरहा है।"
नंदनी उसको उठानेकी कोसिस करती है तभी बड़बोला नींद मे बड़बड़ाता है।
बड़बोला अजीब तरह से बड़बड़ाता है - "ये जंगल कितना खूबसूरत हैना? यहाँ की पेड़, पौधे, मन करता है की बस इसे ही देखता रहु.....।"
नंदनी बड़बोला कों उठाते हुवे कहती है - "अरे बड़बोला उठो, हम अभी तक यही पर है कही नहीं गए।"
नंदनी पास मे रखा हुवा बोतल से पानी लेकर बड़बोला पर पानी छिड़कती है। तभी बड़बोला जगता है।
बड़बोला छटपटाकर - "अरे हम कहा है? मे तो जंगल मे था ना, मुझे यहाँ पर किसने लाया?"
नंदनी बड़बोला को शांति से समझाती है - "बड़बोला शान्त होजाओ। हम अभी तक यही पर है। हमें अभी जंगल केलिए निकलना है।"
बड़बोला - "अच्छा, चलो चलते है।"
नंदनी बड़बोला को रोककर कहती है - "अरे रुको बड़बोला, तुमने कुछ खाया नहीं है। तुम ये खाओ।"
नंदनी बड़बोला कों एक लड्डू देती है। बड़बोला वो लड्डू ख़तम करता है। बड़बोला एक तोता के रूप मे नंदनी के कंधे पर बैठ जाता है।
बड़बोला - "चलो अब चले।"
नंदनी अपना सामान लेकर डायरेक्टर साहब की रूम मे चलती है। वहा पर सब इकठा हुवे थे। सब लोग नंदनी के कंधे पर बैठा हुवा तोता को देख रहे थे। सब लोग एक के बाद एक करके नंदनी को पूछते है की ये तोता कौन है? और उसके साथ कटु है?
दीपिका - "तुम अपने साथ किसे लायी हो?"
दीपिका बड़बोला को नजदीक से देखती है - "ओ.. कितना प्यारा तोता है। ये काटता तो नहीं ना?"
सूरज - "कैसी बात कररही हो दीपिका? तुम्हे पहाड़ी पर चढ़ने डर नहीं लगता और एक तोते से डर लगता है।"
उधर अनिल अपने धुन मे फोटो खींच रहा था।
अनिल तोते की खूबसूरती देखते हुवे कहता है - "वाओ ये तो एकदम नया तोता है। मैंने तो आज तक इस स्पीशीज की तोता देखा ही नहीं। सचमे अनोखा है।"
राघव अनिल के हा मे हा मिलाकर - "ये तो सचमे खूबसूरत है। इसके रंग तो देखो बहत अलग और सुन्दर है।"
डायरेक्टर साहब - "नंदनी तुम इस तोते को यहाँ क्यों ले आयी?"
सब लोग बड़बोला को घूरकर उसके नजदीक जाकर बहत सारे बात कररहे थे और ये सब देखकर बड़बोला डर जाता है।
बड़बोला अपनी मन के माध्यम से नंदनी को कहता है - "ये लोग तो मुझे ऐसे देखरहे है जैसे की ये मुझे खाने वाले है। ये मुझे कुछ कर ना दे। नंदनी मुझे बचालो।"
नंदनी अपनी मन के माध्यम से बड़बोला को कहती है - "शान्त होजाओ बड़बोला, ये तुम्हे पहली बार देखरहे है तो इसीलिए तुम्हे निहारकर देखरहे है। डरो मत।"
नंदनी और बड़बोला के पास शक्तिया थी जिनके मदत से वो मन से बात करसकते थे जिसके कारण किसीको उनका आवाज भी सुनाई नहीं देता था।
क्रमशः......... .
प्रणाम जी 🙏🙏🙏🙏