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त्रीलोक - एक अद्धभुत गाथा - 8

उपन्यास
त्रीलोक - एक अद्धभुत गाथा
8
नंदनी सभी लोगो को कहती है - "हा हा मे बताती हु की ये कौन है? क्यों है?, तो सुनिए सबसे पहले मे ये पूछना चाहूंगी की ये तोता आप लोगो को कैसा लगा?"
दीपिका - "ये तो बहत ही खूबसूरत है।"
अनिल - "वकेहि बहत खूबसूरत है।"
राघव - "तुम्हारा चॉइस अच्छा है।"
सूरज - "हा ये सचमुच बहत बढ़िया तोता है।"
डायरेक्टर साहब - "अब बता भी दो नंदनी की ये तोता आया कहा से?"
नंदनी - "आप सब को ये पसंद आया ये जानकर मुझे बहत खुशी हुई। वैसे मे तो ये आपलोगो के लिए सरप्राइज की तौर पे देना चाहती थी। कल जब मे बाजार घूमने जारही थी तो दुकान मे मुझे ये सुन्दर सा तोता दिखा और मुझे ये बहत पसंद आया। और हमारे यहाँ अभीतक कोई पेट नहीं है इसीलिए मैंने इस तोते को ख़रीदलिया।"
दीपिका - "हा ये कितना सुन्दर हैना?"
राघव - "हा और ये दूसरी चिड़िया की तरह नहीं लगता हम इसके इतने करीब जाकर बात कररहे है फिर भी ये अभीतक नहीं उड़ा।"
नंदनी तो ये भूल ही गयी थी की पंछी लोगो के सोर करने से भाग जाते है और ये तो बड़बोला है इसीलिए अभी तक नहीं उड़ा।
नंदनी असलियत छुपाते हुवे कहती है - "यही तो इसकी खासियत है की ये trained तोता है। इसे ट्रेनिंग दियागया है। ये कोई भी इंसान की बात समझ और सुनसकता है। और ये शान्त पंछी है, पर अगर इसे किसिपे घुस्सा आजाये तो ही ये चोंच मरता है।"
डायरेक्टर साहब - "तुम्हे तो बचपन से ही जानवर से प्यार और लागब थी। मुझे आज भी वो दिन याद है की जब तुम छे साल की थी तब तुमने एक कुत्ता ख़रीदा था जो भग्गया और तुम उसके लिए तीन दिन तक रोती रही।"
अनिल भी उस वक़्त को याद करके कहता है - "हा और मैंने और सूरज ने मिलकर तुम्हे खाना खिलाया था ये वादा करके की कल उसे दूसरी खरीद देंगे।"
सब उस घड़ी पल को याद कररहे थे उस पल की याद ने सबके चेहरे पर मुस्कुराहट लाई हुई थी।
डायरेक्टर साहब - "तो चलो चलते है एडवेंचर पर।"
सब लोग होटल से बाहर निकलते है। और एक जीप मे जंगल की तरफ चलते है। वो जंगल बहत बड़ा और घना था। लोगो को उस जंगल मे जाने केलिए परमिशन लेना पड़ता था। वो जंगल सिर्फ ट्रेकिंग, पिकनिक, रिसर्च, एडवेंचर और घूमने के लिए प्रयोग किया जाता था। नंदनी और उसकी टीम भी उस जंगल के ऑफिस पर पोहोचगये। जीप का ड्राइवर जीप रोकता है। गाड़ी रुकने के बाद सब लोग जीप से उतारते है।
अनिल गाड़ी से बाहर निकलकर देखता है की जंगल मे अच्छी धुप निकली है - "यार इतनी धुप, मे तो पिघल जाऊंगा।"
सूरज कश्मीर मे अच्छी धुप का मजा लेते हुवे कहता है - "अब ज्यादा मज़ाक मत करो, कश्मीर मे इतनी अच्छी धुप मिलना मुश्किल होता है वो भी ठंडी की मौसम मे।"
दीपिका - "होटल मे तो बर्फ की वजह से कितनी ठंड होती थी, बहत दिनों बाद अच्छी धुप आयी है।"
नंदनी और राघव भी पास मे ही थे।
राघव - "हमें जंगल जाने से पहले forest office का परमिशन ले आना चाहिए।"
नंदनी - "हा डायरेक्टर साहब लेने गए है, वो आते ही होंगे।"
राघव बड़बोला को देखकर - "नंदनी, तुमने अपनी तोते का नाम रखा?"
नंदनी - "हा रखा हैना। बड़बोला "
राघव - "बड़बोला, ये तो बहत अच्छा नाम है।"
बड़बोला नंदनी के कंधे बैठा हुवा था वो उड़कर राघव के कंधे के ऊपर चला जाता है।
बड़बोला सोचता है - "अगर मे इस लड़के के पास रहूँगा तो मुझे इसकी भी दिलकी बात पताचल जाएगी। हा इसीलिए यही ठीक होगा की मे इसके पास रहेकर इसके ऊपर निगरानी रखु।"
राघव बड़बोला को अपने कंधे पर देखकर कहता है - "अरे ये तो मेरे पास आगया।"
नंदनी थोड़ा मुस्कुराते हुवे कहती है - "लगता है तुम्हारे तारीफ से ये खुश हुवा।"
बड़बोला अपनी आवाज मे बोलता है - "मे इसकी बातोंमे फिसलने वालो मे से नहीं हु। मे तो इसकी जासूसी करने केलिए पास बैठा हु।"
नंदनी को बड़बोला की बाते साफ साफ समझमे आती थी पर राघव को बड़बोला का आवाज एक तोते का आवाज लगा।
राघव बड़बोला को बोलते हुवे देख - "ये बड़बोला क्या केहरहा है?"
नंदनी - "अरे ये तो बेज़ुबान पंछी है। इसकी बाते कौन समझ सकता है।"
बड़बोला ये देखकर हैरान होता है की नंदनी के अलावा किसी और को उसके बाते क्यों समझ नहीं आरही?
बड़बोला उड़कर नंदनी के कंधो पे बैठता है और उसके कान मे कहता है - "ये लोग मेरी बाते क्यों नहीं समझ रहे?"
नंदनी भी उसे धीमे आवाज मे कहती है - "ये सब उस लड्डू का कमल है।"
बड़बोला आश्चर्य होकर - "उस लड्डू पर जादू था।"
नंदनी अपनी चलाखी वाली बाते करती है - "hmm तुमने बिलकुल सही पेहचाना। उस लड्डू पर जादू था। और जब तक तुम ना चाहो तब तक तुम्हारी बाते किसीको भी समझ मे नहीं आएगी। और एक बात, तुम्हारी आवाज किसीको समझ मे आयी तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"
बड़बोला - "हा हा मे यहाँ किसीसे भी बात नहीं करूँगा। धर्ती के लोग चिड़िया को बोलते हुवे देखेंगे तो डर जायेंगे।"
राघव डायरेक्टर साहब को अपनी ओर आते हुवे देखता है और नंदनी से कहता है - "लो अब डायरेक्टर साहब भी आगये।"
राघव के बात सुनने के बाद नंदनी का ध्यान उस तरफ जाता है और कहती है - "लगता है हमें अंदर जाने की परमिशन मिलगई।"
उन दोनों की बाते सुनकर दीपिका, सूरज और अनिल भी उसी तरफ देखने लगे। डायरेक्टर साहब उनके पास आकर कहते है - "चलो बच्चों अब हमें अंदर जाने की परमिशन मिलगई है। पर यहाँ के भी कुछ नियम कायदे होते है। और मे नहीं चाहूंगा की कोई भी इस कायदे को तोड़दे। अब ध्यान से सुनो यहाँ पर किसी भी प्रकार की जीब जंतु को मरना मना है। ये खूबसूरत जंगल है यहाँ पर गन्दगी नहीं फैलाना है। यहाँ पर ख़तरनाक जानवर नहीं है इसीलिए यहाँ पर हतियार लाना मना है। और भी बहत सारे नियम है। हमारी टीम की लीडर नंदनी है तो मे उसे उसकी जिम्मेदारी देना चाहूंगा। अब से नंदनी के लीडिंग मे ही सारे काम होंगे। और नंदनी तुम ये जिम्मेदारी भी लोगी की यहाकि कोई भी नियम नहीं तोड़ी जाएगी।"
नंदनी अपना सर हिलाकर अपनी जिम्मेदारी लेनेका इसरा करती है। नंदनी सबसे आगे चलती है और बाकि सारे लोग उसके पीछे पीछे आते है। नंदनी जंगल अंदर जाने का गेट खोलती है।
नंदनी अपने आप और सबसे कहती है - "Let's rock and roll."
क्रमशः............
प्रणाम जी 🙏🙏🙏