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त्रीलोक - एक अद्धभुत गाथा - 2

(उपन्यास)
2.
नंदनी अपनी मनको शांत करते हुवे सोचती है - "मुझे इसके बारेमे ज्यादा नहीं सोचना चाहिए। अगर ये प्रकृति मुझसे कुछ कहना चाहती भी हो तो वो केहेदेगी, गुरूजी ठीक ही केहे रहेहै।"
नंदनी सोजती है। अगली सुबह नंदनी अपनी कुछ काम ख़तम करके पूजा की थाली तैयार करती है। पीतल की थाली मे फूलो से सजाकर बीचमे आरती की दिया रखती है। नंदनी ज्यादातर अकेले ही मंदिर जाया करती थी। इंडस्ट्री के बाकि के लोग मंदिर और पूजा मे उतना ध्यान नहीं देते थे। थे। एक नंदनी ही थी जो रोज सुबह पूजा करती थी।
वो बचपन से ही नारायण की भक्त थी। जब भी कोई दुख, सुख और समस्या की वक़्त आती थी तब वो नारायण से बात करके अपना मन हल्का करती थी। नंदनी अपनी दिनचर्या सुरु करने से पेहेले मंदिर जाकर पूजा करती थी। उसकी भक्ति इतनी गहरी थी की उसने नारायण का दर्सन प्राप्त किया था। हर दिन की तरह वो इस दिन भी मंदिर की ओर आगे बढ़ती है। वो देखती है की उसके पहले ही कोही मंदिर की घंटी बजारहा है। वो और भी नजदीक से देखती है। वो तो राघव है।
नंदनी - "तुम यहाँ पर।"
राघव - "लगता है यहाँ आना मना है।"
नंदनी मुस्कुराकर बोलती है - "नहीं। इंडस्ट्री के सारे लोग देर से उठते है। मै हमेसा मंदिर आती हु पर यहाँ बहत कम लोग आते है। तुम रोज मंदिर जाते हो?"
राघव - "हा। किसी महान आदमी ने कहा है की जो तुम्हे मिला है उसका तुम्हे शुक्रगुजार होना चाहिए। और नारायण ने मुझे जिंदगी मे सब कुछ दिया है, तो मै उनका शुक्रगुजार रहना कैसे भूल सकता हु।"
नंदनी - "वो महान आदमी वकेहि बहत महान है।"
दोनों मिलकर पूजा करते है। आरती के बाद नंदनी प्रसाद की थाली से एक लड्डू निकलकर नारायण की चरणों मे रखती है। प्रसाद बाटने के लिए राघव और नंदनी मंदिर के कमरे से निकलकर लिविंग रूम मे जाते है। तभी नारायण की चरण मे रखा हुवा लड्डू गायब होजाता है।
नंदनी पलट कर देखती है और मुस्कुराते हुवे सोचती है - "मुझे पता था आप को लड्डू जरूर पसंद आएगा नारायण।"
राघव और नंदनी लिविंग रूम मे जाकर प्रसाद बाटते है।
सूरज - "अरे वाह मैंने पहेली बार ऐसे मर्द को देखा है जो सुबह सुबह उठकर मंदिर जाता है।"
अनिल - "क्यों लड़के मंदिर नहीं आसकते क्या? वैसे नंदनी को एक दोस्त भी मिलगया मंदिर जाने के लिए।"
तभी डायरेक्टर साहब आते है।
डायरेक्टर साहब सबकी हसीं देखकर सोचते है - "सब लोग ऐसे ही हमेसा ख़ुश रहे।"
डायरेक्टर साहब - "चलो शूटिंग सेट रेडी है।"
सब लोग अपनी सर हिलाकर हा केहेनेका इसारा देते है। सारे लोग सेट पर जाते है। और सब अपनी जगा पे रेडी होते है। शूटिंग का कुछ एपिसोड ख़तम करके सब लोग आराम करते है। नंदनी और डायरेक्टर साहब बातचीत कर रहे थे।
डायरेक्टर साहब - "नंदनी तुम यहाँ पर बचपन से काम करती हो पर राघव इंडस्ट्री के लोग से अनजान है। इसीलिए मैं चाहता हु की तुम उसको यहाँ की हर लोगो से मिलाओ और उसे यहाँ एडजस्ट करवाओ।"
नंदनी - "ठीक है।"
नंदनी राघवको इंडस्ट्री के सभी लोग से मिलवाती है। राघव को नंदनी कभी कभी शूटिंग मे मदत भी करती थी। इस तरह नंदनी और राघव एक अच्छे दोस्त भी बनगए थे। वो दोनों अपनी अपनी एक्टिंग को और निखारने की कोसिस करते थे। और कड़ी मेहनत के बाद एक दिन उनहे उसका मीठा फल भी मिलगया। उस दिन सभी लोग अपने अपने काम से ब्यस्त थे। तभी सूरज दौड़कर अख़बार ले आता है।
सूरज खुशी से कहता है - "देखो आज अख़बार मे क्या छपा है।"
सूरज सब लोगो की ध्यान को खींचकर अख़बार की तरफ बढ़ता है। सब लोग आकर अख़बार को देखते है।
सूरज एक टॉपिक पर केंद्रित होकर पढता है - "(Filmy Duniya) आज फिल्मी दुनिया मे एक बहत बड़ी कामयाबी हुई है। जाने मैने एक्टर नंदनी हिंदुस्तानी और राघव गाँधी दर्सकोके सबसे पसंदीदा एक्टर है। ये चर्चित और मशहूर एक्टर "ये कैसी दुनिया" सीरियल के पात्र है जो आज पुरे भारत मे मशहूर होता जारहा है। ये दोनों एक्टर ने आज तक दस से भी ज्यादा सीरियल लॉन्च किया जो की दर्सको के प्रिय है।"
सूरज खुशी से सारी खबर पढ़ता है। ये खबर सुनकर सब लोग ख़ुश होजाते है। नंदनी और राघव के आंखोमे खुशी और गर्ब साफ झलकरहाथा।
नंदनी - "मुझे पता था हमारा मेहनत बेकार नहीं जायेगा।"
राघव - "हा, आखिर हमने इतना मेहनत जो किया था। आज मे बहत ख़ुश हु। पता है मुझे यहाँ पर अपनापन महसूस होता है। जैसे ये सब मेरे अपने है और मे इनका, मुझे लगता है की इसीलिए यहा की सीरियल इतना मशहूर होता है क्यों की यहाँ सब मन लगाकर और भरोसा कायम रखते हुवे काम करते है।"
नंदनी - "हा। मै यहाँ १२ सालोंसे रहेरहीहु, फिर भी आजतक यहाँ कोई झगड़ा नहीं हुआ। अरे तुमने अपने बारे मे तो बताया ही नहीं, तुम इस मुकाम तक कैंसे पोहोचे? तुमने अपनी मम्मी पप्पा के बारेमे बताया ही नहीं!"
राघव थोड़ा हड़बड़ाकर और धीमी आवाज मे कहता है - "वो.... वो दरअसल मेरे मम्मी पप्पा नहीं है।"
नंदनी - "माफ़ करना, मुझे नहीं पता था की तुम्हारे माँ पापा नहीं है। तो इस मुकाम तक तुम पोहोचे कैसे?"
राघव - "आज सोचने मे सपना जैसा लग रहा है। मै बचपन मे काम के लिए भटकता था। एक दिन मुझे मेरा किस्मत एक घर के अंदर ले आया। मे वहा काम के लिए आया था। उस घर के मालिक एक शो चलाते थे। उन्होंने मुझे काम पे रखलिया, वहा मे प्ले करता था। कभी कभी मे सर्कस में काम करता था। ऐसे ही मे अलग अलग प्ले करने लगा और एक्टिंग के फील्ड पर आगया। और मे आज यहाँ इस मुकाम पर हु। जो बच्चा सडक पे घूमकर पैसे की तलाश करता था वो आज सडक के बाहर निकलते ही लोगो की भीड़ जमा होजाती है उस बच्चे को देखने के लिए।आज भी ये बात को सोचकर मे हैरान होता हु की मेरे किस्मत ने मुझे यहाँ इस मुकाम तक ले आया।"
अपनी अतीत कहते कहते वो भावनाओ मे खो जाता है। वो उन दिनों को याद करता है, जो उसके लिए बहत खास और सफलता का प्रतिक था। इतने मे ही कब उसकी आंखोसे आंसू की बुँदे आजाती है, उसे पता ही नहीं चलता। नंदनी भी राघव के अतीत को सुनकर अपनी अतीत को याद करती है।
नंदनी राघव का दर्द को समझकर उसे समझते हुवे कहती है - "अपने आप को सम्हालो राघव, मै तुम्हारे दर्द समझ सकती हु। खुद को तुम अकेला मत समझो यहाँ सब तुम्हारे है। तुम बहत खुसनसीब हो जो ऐसा परिवार तुम्हे मिला। इस परिवार ने मुझे कभी अकेला महसूस नहीं करवाया। बीती हुवी बातो को भूलजावो, देखो आज तुम्हारे पास क्या है। एक परिवार और खुशहाल से भरी हुवी पूरी जिंदगी है तुम्हारे पास।"
राघव अपनी हिम्मत जागकर कहता है - "तुम बिलकुल सही हो। मुझे अपनी अतीत को सोचकर हर नहीं मानना चाहिए।"
दोनों की चहरे पर खुशहाली के मुस्कुराहट छा जाती है।
इतना कहकर वो दोनों अपने अपने कमरेमे जाते है। नंदनी अपनी कमरे के अंदर जाती है और अचानक दरवाजा अपने आप बंद होजाता है। और एक नीली हवा जैसा पदार्थ घूमकर नंदनी के ठीक सामने अति है। वो नीली हवा इंसान की मूर्ति का रूप लेता है और वो मूर्ति धीरे धीरे असली इंसान का रूप लेता है। और वो इंसान नंदनी के गुरूजी होते है।
गुरूजी को देखकर नंदनी बोलती है - "प्रणाम गुरूजी। आप यहाँ अचानक...।"
गुरूजी - "हा मे यहाँ तुम्हे कुछ स्मरण दिलाने आया हु।"
नंदनी - "आप मुझे क्या याद दिलाने आये है? ऐसी कौन सी चीज मुझे याद नहीं है।"
गुरूजी - "तुम्हे तो ज्ञात है की तुम्हारा दो रूप है। या वो भी भूल गयी।"
नंदनी - "नहीं गुरूजी मै कैसे भूल सकती हु की मेरे दो रूप है, इस पृथ्वी पर नंदनीके नाम से एक एक्ट्रेस की रूप। और दूसरा लोक पर नक्षत्रा के नाम से एक राजकुमारी का रूप।"
गुरूजी गंभीरता के साथ प्रश्न पूछते है - "कही तुम उस लड़के को सलहा देते देते अपनी अतीत तो नहीं भूलगायी?"
नंदनी - "आप राघव की बात कर रहेहै?"
गुरूजी - "हा। वही राघव जिसको तुमने अतीत भुलानेका सुझाव दिया था।"
नंदनी - "मै अपनी अतीत को कैसे भूल सकती हु। मै उसे चाहकर भी भूल नहीं सकती।"
गुरूजी - "अगर तुम्हे अपनी अतीत याद है तो एक बात का स्मरण तुम्हे करवादु की तुम एक राजकुमारी हो और तुम्हारी मिलन भबिस्य बाणी के अनुसार किसीके साथ तय होचुका है, जो होकर रहेगी।"
गुरूजी और भी नम्र होकर बोलते है - "नक्षत्रा मै सब जनता हु, मुझसे कुछ नहीं छुपता की तुम उस लड़के से प्रेम करने लगी हो। तुम्हारे हित इसी मे होगा की तुम उससे प्रेम ना करो।"
नंदनी - "आप ये क्या केहेराहे है, मै उससे प्यार कैसे करसकती हु?"
गुरूजी - "ये मे नहीं तुम्हारा मन केहेरहा है बस तुम्हे उसका ज्ञात होना बाकी है।"
नंदनी - "पर मे कैसे......।"
नंदनी का दिमाख उन सवालोमे उलझने लगता है की वो राघव से कैसे प्यार करसकती है। गुरूजी अपनी शक्ति से नीली हवा की रूपमे अदृश्य होते है। पर नंदनी वही सवाल मे उलझती है।
तभी राघव आता है और वो कहता है - "तुम्हारा बहत बहत सुक्रिया। तुमने मुझे जिंदगी के एक मुश्किल हिस्से मे जीने की सिख दी है।"
पर नंदनी को उन बातो का कोई असर नहीं होरहा था वो अब्भी कुछ सोचरही थी। और अचानक राघव उससे गले लग जाता है।
राघव - "बहत बहत सुक्रिया।"
एक ओर राघव मुस्कुराकर गले लगता है और दूसरी ओर नंदनी सोचती है - "मुझे राघव से गले लगकर इतना खूसी क्यों महसूस होरही है? नहीं मे उससे प्यार नहीं कर सकती।"
राघव ख़ुश होकर अपनी कमरे की ओर चलता है।
नंदनी अपनी मन को ना सुनकर ये सोचती है - "मै उससे कभी प्यार नहीं कर सकती चाहे जो भी हो। कभी नहीं।"

क्रमशः.........