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त्रीलोक - एक अद्धभुत गाथा - 3

त्रीलोक - एक अद्धभुत गाथा
(उपन्यास)
3
नंदनी के मन मे कई सारे सवाल थे। उसकी मन शान्त नहीं थी। उसकी माथे पर उसकी चिंता और परिसानी साफ झलक रही थी।
वो खुद को कई सवाल करती है - "मे राघव से प्यार कब से करने लगी?, मुझे तो ये भी नहीं पता की मे उससे प्यार करती हु या नहीं। मुझे उसके साथ रहेकर इतनी सुकून क्यों महसूस होती है? और जब वो खुश होता है तो मे इतना खुश क्यों होती हु? जब वो मुझसे गले लगा तो मेरी सारी चिंता गायब होकर मुझे सुकून क्यों महसूस हुआ? क्या मे उससे प्यार करती हु? मै उससे प्यार कैसे करसकती हु? मेरी शादी तो किसीके साथ तय होचुका है। नहीं मे उससे कभी प्यार नहीं करसकती। "
नंदनी कभी खुद पर ग़ुस्सा करती है तो कभी ये सोचती है - "मै राघव से प्यार करती भी हु या नहीं और अगर ये प्यार है तो मे भैरव को क्या जवाफ दूंगी जिससे मेरी शादी तय होचुकी है?"
नंदनी एक लम्बी स्वास लेती है और खुद को कहती है - "मुझे ठन्डे दिमाग़ से सोचना चाहिए। हा यही सही रहेगा की मे इसके बारेमे ज्यादा ना सोचकर सोजाना चाहिए रात बहत होगयी है, वैसे भी मुझे राघव से कोई प्यार नहीं है। और होगा भी नहीं।"
इतना कहकर नंदनी सोजती है।अगली सुबह वो थोड़ा जल्दी उठकर राघव से पेहेले नारायण की मंदिर पोहोचती है।
और नंदनी नम्रता पुर्बक कहती है - "हे नारायण अपने मुझे आपने इस धर्ती पर कभी अकेला महसूस होने नहीं दिया, आपने मुझे हर संकट और बिकट परिस्थिति मे लड़ने का हिम्मत दिया है। आज मेरे मन मे कई सवाल है मुझे इसका निवारण चाहिए नारायण। कृपया करके मुझे इस समस्या से छुटकारा दिलाइये, हे नारायण मुझे दर्सन दीजिये।"
तभी नारायण की काली मूर्ति से एक तेज रौशनी निकलती है। उस मूर्ति से इतनी तेज रौशनी निकलती है की नंदनी के आँखे उस रौशनी को सेहेन नहीं कर पाती। नंदनी अपनी हाथोंसे अपनी आंखे ढकती है। उस मूर्ति की रौशनी थोड़ी काम होती है। और उस काली मूर्ति धीरे धीरे एक इंसान का रूप धारण करता है। रौशनी थोड़ी काम होजाने की वजह से नंदनी अपनी हाथ हटाकर देखती है। उसके सामने नारायण की मनमोहक रूप थी, उनकी कमल जैसी आँखे, फूल के पंखुड़ियों से भी अति नरम त्वचा, उनके मुस्कुराता हुवा चेहरा और उनकी पूरी शरीर से निकलता हुवा ज्ञान और प्रेम का प्रकाश, ये देखकर नंदनी अपनी सारी चिंता भूल जाती है और वो नारायण को हाथ जोड़कर उनकी स्वरुप देखनेमें इतना मग्न होजाती है की वो तो ये तक भूल गयी की वो कहा है? उसकी नज़र बिना पलक झपककर बस नारायण पे ही टिकी हुवी थी।
भक्ति मे डुबी हुवी नंदनी को जगाकर नारायण अपनी सुमधुर आवाज से कहते है - "क्या हुवा नंदनी? तुमने मुझे किस कारण से याद किया?"
भगवान नारायण के आवाज सुनकर नंदनी जागती हैऔर कहती है - "हे नारायण मेरे मन मे कई सारे सवाल है जिसका निवारण आप ही करसकते है। कृपया करके मुझे उन सवालों के दलदल से निकालिये।"
भगवान नारायण - "बोलो नक्षत्रा कौन सी प्रश्न तुम्हारी मन को अशान्त कररही है?"
नंदनी - "मेरे मन मे कई सारे सवाल है नारायण। गुरूजी मुझसे मिलने आये थे, और उन्हें ये लगता है की मे राघव से प्यार करती हु। पर मे उस प्यार को महसूस क्यों नहीं करपाइ। और मेरा ये मानना है की ये प्यार नहीं है। पर मेरे दिल अब्भी ये सवालमे उलझ रहाहै की मे उससे प्यार करती हु या नहीं? राघव से मुझे कोई प्यार नहीं है फिर मेरा मन अब्भी उन सवालों मे क्यों उलझ रहीहै?"
भगवान नारायण - "अगर तुम्हारे गुरु बोधनरेश ने कहा हे तो सत्य ही होगा, वो तुम्हे तुम से ज्यादा जानते है। और रही बात उन सवालों का तो सायद तुमने दिल से नहीं दिमाग़ से फैसला लिया होगा। अगर मन की जगह दिमाग़ गलत फैसला लेता है तो मन मे कई सारे सवाल के उलझन पैदा करती है।"
नंदनी - "पर मुझे तो कभी राघव से प्यार महसूस हुई ही नहीं तो आप कैसे कहसकते है की राघव को ना चुनकर भैरव को चुनने का फैसला गलत है।"
भगवान नारायण - "तुम्हारा फैसला गलत था इसीलिए तो तुम्हारी मन मे अब्भी वही सवालों का उलझन है।"
नंदनी - "अगर ऐसा है तो मुझे अभी तक राघव से प्यार महसूस क्यों नहीं हुआ?"
भगवान नारायण - "जब प्रेम होता है तो उसका महसूस होने मे देर नहीं लगता, समय आएगा जब तुम्हारी मन की सारे सवालों का जवाफ तुम्हे खुद मन ही बताएगा।"
नंदनी - "हे नारायण मे इसके लिए सब्र नहीं कर सकती। मुझे जल्द से जल्द फैसला लेना ही होगा। आप कोई ऐसी उपाय बताइये जिससे ये तय होजाये की मेरे मन मे उसके लिए क्या जगह है।"
भगवान नारायण - "ठीक है, मे वो उपाय तुम्हे दूंगा। पर एक बात का हमेशा स्मरण रखना की तुम्हारे गुरु बोधनरेश तुम्हारे बारेमे कभी गलत नहीं होसकते।"
भगवान नारायण अपनी हाथोंसे नंदनी को एक पर्ची देते है। और कहते है - "इस पत्रमे वो उपाय है। मुझे लगता है तुम्हारी मन इस जवाफ से संतुष्ट है।"
नंदनी - "आपका बहत बहत सुक्रिया नारायण।"
भगवान नारायण - "कल्याण हो।"
नंदनी के उलझन को मिटाकर नारायण पुनः अपनी रूप बदलकर काली मूर्ति का रूप लेते है।
नंदनी अपने मन मे सोचती है - "ये उपाय अपनाकर मे जल्दी तय कर पाऊँगी की मुझे किसे चुनना है। राघव को या भैरव को?"
तभी राघव मंदिर मे पोहोचता है और नंदनी को देखकर सोचता है - "नंदनी का मंदिर आने का टाइम तो ये नहीं है फिर वो यहाँ इतनी जल्दी क्या करने आई है?"
नंदनी पर्ची पकड़कर पीछे मुड़ती है और वो राघव को देखती है। वो राघव को देखते ही हड़बड़ाकर कहती है - "तुम यहाँ.... इतनी जल्दी?"
राघव - "इतनी जल्दी तो तुम यहाँ आई हो। क्या सब कुछ ठीक है?"
नंदनी हाथ मे पकड़ी हुई पर्ची छुपाती है और कहती है - "नहीं ऐसी बात नहीं है, दरअसल मे आज थोड़ी जल्दी जाग गयी तो मेने सोचा की उठकर नारायण की पूजा करलु इसीलिए मे आज जल्दी मंदिर आगयी।"
राघव - "चलो नारायण को भोग लगाते है।"
नंदनी लम्बी सास लेकर कहती है - "हा चलो।"
नंदनी लड्डू की थाली चढाती है। राघव भोग लगाने के बाद अपने कमरेमे जाता है। नंदनी भी मंदिर के बाद डायरेक्टर साहब की ऑफिस जाती है। बंगला के एक कमरा मे डायरेक्टर साहब का ऑफिस था। नंदनी ऑफिस के अंदर जाती है।
डायरेक्टर साहब नंदनी को देखकर कहते है - "मुझे माफ करना, आज मे शूटिंग मे नहीं आसकता क्यों की मे बहत थक गया हु।"
नंदनी डायरेक्टर साहब को छुट्टी के लिए बहाना बनाने की कोसिस करते हुवे कहती है - "डायरेक्टर साहब आप भी बहुत थक गए है और हमारी टीम भी। आपको नहीं लगता की हमें कुछ हप्ते की छुट्टी लेनी चाहिए?"
डायरेक्टर साहब ये समझ जाते है की नंदनी छुट्टी लेना चाहती है। वो उसके हा मे हा मिलाकर कहते है - "हा क्यों नहीं, हम जरूर जायेंगे। इस खबर से सब लोग खुश होंगे। जाओ सबको जाकर केहेदो की आज हम पैकिंग करके घूमने के लिए कश्मीर जायेंगे।"
नंदनी ये बात सुनकर बहत खुश होती है। वो खुशी से कहती है - "क्या कश्मीर? यकीन नहीं होता की हम कश्मीर जायेंगे। आप सचमे बहत अच्छे है।"
नंदनी इतना कहकर डायरेक्टर साहब से गले लगती है। डायरेक्टर साहब नंदनी के शर पर हाथ रखकर कहते है - "मुझे पता नहीं है क्या की हमारी नंदनी क्या चाहती है?"
नंदनी खुशी से लिविंग रूम की तरफ चलती है। लिविंग रूम मे दीपिका, सूरज, राघव, और अनिल चारो लोग गेम खेल रहे थे।
नंदनी सब के सामने जाकर कहती है - "तुम सब क्या खेल रहे हो?"
दीपिका - "हम जोक्स चैंपियन खेल रहेहै।"
नंदनी - "जोक्स चैंपियन? ये कैसा गेम है?"
सूरज - "इस गेम मे सबको बारी बारी से एक जोक्स सुननी है और सबकी जोक्स का मजा लेना है।"
अनिल - "ये बहत ही मजेदार गेम है। आओ तुम भी खेलो।"
नंदनी - "मे तो इससे भी मजेदार खबर सुनाने आई हु।"
राघव - "क्या? इससे भी मजेदार चीज? बताओ क्या खबर है?"
नंदनी खुशी से कहती है - "तुम लोगो को पता है, डायरेक्टर साहब ने हमें छुट्टी पर जाने की अनुमति दिया है। हम लोग दो तीन हफ्ते के लिए छुट्टी पर जारहे है।"
सब लोग इस खबर को सुनकर बहत खुश होते है। दीपिका - "बताओ ना हम कहा जारहे है?"
नंदनी - "हम लोग कश्मीर जारहे है। वहा की शानदार और खूबसूरत जगह, ठंडी हवा, मुझसे तो सब्र ही नहीं होरहा है।"
सब लोग खुशी से पैकिंग करना सुरु करते है। नंदनी भी अपनी सारी सामान पैक करती है। नंदनी भी कश्मीर जाने के लिए बहत खुश थी। दरअसल उसे कश्मीर घूमने के लिए नहीं वक़्त के लिए जारही थी। उसे कश्मीर मे पूरी वक़्त मिलता ये जानने के लिए की राघव के लिए उसके दिल मे क्या जगा है? नंदनी थोड़ी परिसान थी। उसे इस बात की परिसानी थी की कही अगर उसके दिल मे राघव के लिए प्यार हुवा तो वो क्या करेंगी? पर वो कभी नहीं चाहती थी की वो राघव से प्यार करें। यही परिसानियो को याद करके नंदनी पैकिंग कर रही थी। तभी उसके गुरुजी उसके सामने प्रकट होते है।
नंदनी - "प्रणाम गुरूजी।"
गुरूजी - "तुम्हे अपनी सवालों का जवाफ जरूर मिले।"
नंदनी - "आशा तो यही है की मे राघव से प्यार ना करू।"
गुरूजी उसकी निराशा को आशा मे बदलकर कहते है - "तुम्हे अपनी जिम्मेदारी को निभाना अच्छी तरह से आता है। इसीलिए मुझे यकीन है की तुम्हारा फैसला सही होगा।"
नंदनी को हौसला देकर गुरूजी अदृश्य होते है। नंदनी अपनी सारी पैकिंग ख़तम करती है। वो अपनी सारी परिसानी भूलकर कश्मीर जाने के लिए अच्छा मूड बनाकर अपने कमरे से बाहर निकलती है। बंगला की लिविंग रूम मे सब तैयार थे। सब लोग कश्मीर जाने के लिए खुश, तैयार और उताबले होरहे थे। और सब लोग एयरपोर्ट जाने के लिए बंगला के बाहर निकलते है। डायरेक्टर साहब ने आर्डर किया हुवा दो टैक्सी आती है। नंदनी और सारे लोग टैक्सी पे चढ़कर एयरपोर्ट के लिए निकलते है।
क्रमशः................