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त्रीलोक - एक अद्धभुत गाथा - 5

त्रीलोक - एक अद्धभुत गाथा
(उपन्यास)
5
नंदनी अपना दरवाजा लक करके खाना खाने के लिए दीपिका के साथ होटल की एक हॉल की तरफ चलती है। हॉल के अंदर कई सारे टेबल और चेयर थे जिनकी डिज़ाइन भी बहत एंटीक थी। वहा की माहौल राजा महाराजा की साही दावत जैसी थी। हॉल के सीलिंग मे शेर का बड़ा सा डिज़ाइन बनाया हुआ था। दीपिका नंदनी को एक टेबल पे लेचलती है जहा पर पेहेले से ही सब पोहोचगये थे। सब लोग डिनर करने लगते है पर नंदनी को कुछ कमी महसूस होती है। नंदनी इधर उधर देखती है और उसे ये पता चलता है की राघव वहा पर नहीं है।
वो सोचती है - "राघव अभी तक आया क्यों नहीं? उसे तो यहाँ पर होना चाहिए था।"
नंदनी पूछती है - "राघव कहा है?"
नंदनी के कहने के बाद सबको भनक लगता है की राघव वहा पर नहीं है।
दीपिका - "अरे मैंने उसे बुलाया तो था, अभी कुछ देर पेहेले, वो आया क्यों नहीं?"
डायरेक्टर साहब - "तुम लोगो को कुछ पता है?"
सूरज - "अरे हा, मे भूल गया था। राघव मुझे थोड़ी ही देर पेहेले मिला था। उसने मुझसे कहा की वो आज डिनर पर नहीं आएगा।"
नंदनी को थोड़ी कौतुहल होती है और वो दुबारा पूछती है - "लेकिन क्यों?"
सूरज - "उसने कहा की उसे भूक नहीं है। मैंने उसे बाद मे आकर खाना खाने के लिए कहा।"
दीपिका - "हमें उसके लिए कुछ आर्डर करना चाहिए।"
डायरेक्टर साहब उसके लिए कुछ खाने की चीजे आर्डर करते है और वेटर से कहते है - "ये सब रूम 202 पर पोहोचादेना। वहा पर जो गेस्ट ठहरे है वो हमारे साथ आये है।"
वेटर - "ठीक है सर।"
सब लोग खाना खाने लगते है पर नंदनी ने अभी तक एक निवाला नहीं खाया है। उसके मन मे अंदर अंदर से चिंता होने लगी की राघव क्यों नहीं आया। इस चिंता की कारण उसकी भूक वही मिटगई थी। उसकी चिंता और परिसानी और बढ़ती जाती है।
नंदनी को राघव से पूछकर आने का मन करता है और उसकी करीब बैठी हुई दीपिकाको कहती है - "मे अभी आयी। तुम डिनर करके रूम मे चलेजाना, मुझे कुछ काम है।"
दीपिका - "ठीक है लेकिन जल्दी आना।"
नंदनी उस हॉल से निकलकर दूसरी फ्लोर की कमरा नंबर 202 खटखटाती है। राघव अपने कमरे का दरवाजा खोलता है। राघव दखता है की दरवाजा मे नंदनी खड़ी हुई थी।
राघव - "तुम यहाँ, तुमने डिनर किया?"
नंदनी थोड़ी सख्त होकर कहती है - "तुमने किया?"
राघव - "मैंने सूरज को बताया था... "
तभी नंदनी हाथ दिखाकर राघव को रोकती है और कहती है - "मे सूरज नहीं हु जो तुम्हारे बातोंमे आजाऊंगी। तुमने उससे झूठ बोला हैना।"
राघव आश्चर्य मानते हुए - "तुम्हे कैसे पता?"
नंदनी नम्र होकर कहती है - "मे किसीकी भी झूठ पकड़ सकती हु। क्या सबकुछ ठीक है? तुम निचे हॉल मे क्यों नहीं आये?"
राघव - "वो मेरी तबीयत ठीक नहीं थी, इसी वजह से मुझे भूक नहीं लगरही थी।"
नंदनी - "तुम्हे देखकर तो नहीं लगता की तुम्हारी तबीयत ख़राब है।"
राघव अपना झूठ छुपानेके लिए हड़बड़ी मे कहता है - "वो मैंने..... वो मैंने आइस बैग शर पर लगाया था। इसीलिए तबीयत थोड़ा ठीक होगया।"
नंदनी राघव की झूठ को पकड़लेति है और कहती है - "वो तो दिखरहा है की तुम्हारी तबीयत कैसी है?"
नंदनी नम्र होकर कहती है - "क्या हुवा तुम बहत परीशान दिखराहे हो? सबकुछ ठीक तो हैना?"
राघव अपनी परिसानी कहता है - "वो दरअसल मेरी तबियत कुछ दिनों से ख़राब है। मुझे अंदर ही अंदर गर्मी महसूस होती है। कभी कभी ऐसा लगता है की मेरे अंदर आग का गोला रखागया हो। मुझे पूरी बदन जलती हुई महसूस होरहा है। यकीन करने मे थोड़ा मुश्किल है लेकिन यही सच है। आज मैंने ज्यादा गर्मी के वजह से ज्यादा आइसक्रीम खाली थी इसीलिए मे डिनर करने नहीं आया। पर इतना ठंडी आइसक्रीम खानेके बाद भी मेरी शरीर मे जलन होती रही। कुछ देर बाद अपने आप ठीक होगयी और मैंने थोड़ा आराम किया।"
नंदनी - "पर कश्मीर तो ठंडी जगह है तो तुम्हे गर्मी महसूस कैसे होती है?"
राघव अपनी परिसानी को ब्यक्त करके बताता है - "वही तो मुझे समझ मे नहीं आरहा की मुझे इतनी गर्मी क्यों होरही है?"
नंदनी राघव का परिसानी देखकर थोड़ी घबराजाति है। और कहती है - "मुझे लगता है की तुम्हे किसी डॉक्टर को दिखाना चाहिए।"
तभी राघव की शरीर मे फिरसे अचानक पीड़ा होने लगती है। राघव खडाहुवा था वो अपनी पीड़ा को सेहेन नकरपाकर बेड पे गिरजाता है। वो दर्द के मारे छटपटाता है। ये देखकर नंदनी भी घबराने लगती है। नंदनी राघव को सम्हालने की कोसिस करती है।
वो कहती है - "तुम्हे सायद डॉक्टर को अभी दिखाना चाहिए।"
राघव का दर्द और बढ़ती है वो दर्द बरदास नहीं करपाता है और अपनी बची हुई ताकत से कहता है - "मुझे ऐसा लगरहा है की मेरे बदन मे आग लगरही है। मुझे बहत दर्द होरहाहै। मुझे ये क्या होरहाहै?"
राघव अपनी दर्द की वजह से अपनी बोलने और चलने की सक्ति खो देता है। वो धिरे धीरे अपनी आंखे बंद करता है। राघव अपनी दर्द की वजह से अपनी चेतना खोकर बेहोश होजाता है।
नंदनी राघव की गाल पर हाथ रखकर कहती है - "राघव अपनी आंखे खोलो, मेरी तरफ देखो तुम्हे कुछ नहीं हुआ है।"
नंदनी राघव का हाथ पकड़कर हिलती है और उसकी ऊपर पानी छिड़कती है। फिर भी नंदनी राघव को जगानेमे नाकामयाब होती है। नंदनी बहत घबराने लगती है। उसकी घबराहट और बढ़जाती है। वो देखती है जो पानी उसने राघव के चहरे पर छिडकाथा वो पानी भाप बनकर हवा मे मिलजाता है। नंदनी ये देखकर आश्चर्य होती है। वो फिरसे राघव के चेहरे पर पानी छिड़कती है। पानी राघव को चहरे को छुतेही फिरसे भाप बनजाति है।
नंदनी आश्चर्य होकर सोचती है - "ये पानी अचानक चहरे को छुतेहि भाप कैसे बनगयी? लगता है राघव के शरीर बहत गरम है सायद उसे कोई गर्मी की बीमारी होंगी। पर अगर ये अभी ठीक नहीं हुआ तो ये दर्द के वजह से मरजाएगा। नहीं ऐसा नहीं होसकता। मुझे किसी भी तरह से राघव को ठीक करना होगा। अब मे क्या करू?"
बहत समय सोच बिचार करनेके बाद नंदनी को एक उपाय सूझता है - "हा एक उपाय है। मेरे पास गर्मी और बर्फ की ठंडी का शक्ति है मे उनका स्तमाल करसकती हु। मुझे जल्दी करना होगा।"
नंदनी राघव को अपनी शक्ति की मदत से बेहोश करती है। वो अपनी आंखे बंद करती है और एक चित्त ध्यान लगाकर अपनी बर्फीली शक्ति से राघव की शरीर को ठंड रखती है। नंदनी के शरीर से प्रकाशित ठंडी ऊर्जा निकलकर राघव की शरीर के अंदर घुसता है और उसकी शरीर को ठंडक प्रदान करती है। इस तरह से राघव की जान बचती है। थोड़ी देर बाद नंदनी अपनी ऊर्जा भेजनें की प्रक्रिया ख़तम करती है। वो फिरसे ध्यान लगाकर अपनी शरीर से गर्मी सोखने वाली ऊर्जा निकलकर राघव के शरीर मे फैली हुई गर्मी को सोखती है। गर्मी सोखने वाली ऊर्जा राघव के शरीर के अंदर घुसकर उसकी गर्मी को सोखती है। नंदनी अपनी शक्तियों से राघव का तापक्रम ठीक करती है और उसे बेड पर ठीक तरह से सुलादेति है। नंदनी उसके पास जाकर बैठती है। वो अपनी हाथ राघव के माथा पर रखकर उसकी तापक्रम चेक करती है।
नंदनी सोचती है - "अब ये थोड़ी देर के बाद ठीक होकर इसे होस आजायेगा। अब मुझे सायद डॉक्टर को कॉल करलेना चाहिए।"
नंदनी राघव के रूम मे रखी हुई टेलीफोन पर डॉक्टर का नंबर डायल करके फ़ोन करती है।
नंदनी फ़ोन पे - "क्या आप होटल हेवन मे चेकअप करने आसकते है?"
डॉक्टर फ़ोन पे - "जी जरूर मे पांच मिनट मे पोहोच जाऊंगा।"
नंदनी फ़ोन रखकर डॉक्टर का इंतजार करती है। डॉक्टर कुछ मिनट के बाद आते है और राघव के पास जकार चेकअप करते है।
नंदनी घबराते हुवे - "डॉक्टर, राघव की तबियत कुछ दिनोसे अचानक ख़राब होने लगी। उसे बहत गर्मी महसूस होता है। इतनी गर्मी वो भी ऐसी जगा, ये कैसे मुंकिन है?"
डॉक्टर नंदनी का हौसला बढाकर - "ज्यादा चिंता वाली बात नहीं है। कभी कभी ऐसे केसेस भी आते है। मुझे लगता है इन्हे बहत तेज बुखार आया था। घबराइए मत ये अब बिलकुल ठीक है। ये मेने कुछ दबइया लिखी है इनका सेवन करना।"
इतना कहकर डॉक्टर दबाई की लिस्ट देते है। नंदनी डॉक्टर की फीस देती है।
डॉक्टर - "अरे आपसे मे पैसे कैसे लेसकता हु। आप मशहूर एक्ट्रेस नंदनी हैना? मैंने आपकी बहत सारी प्रोग्राम देखि है। आप इस देश के जनता के लिए बहत कुछ करती है। आज जब मदत करनेका वक़्त हमारा आया तो मे पैसे कैसे लेसकता हु?"
डॉक्टर इतना कहकर वहा से चले जाते है। थोड़ी देर बाद राघव को होस आता है। वो अपनी आँखे धीरे धीरे खोलता है।
राघव को होस मे आता देख नंदनी दौड़कर उसके पास जाती है और कहती है - "अब तुम्हारी तबीयत कैसी है?"
राघव - "पहले से बेहतर है। पर मे ठीक हुआ कैसे?"
नंदनी - "जब तुम बेहोश हुवे तब मैंने तुम्हारे सर पर आइस बैग रखकर डॉक्टर को फ़ोन करलिया।"
नंदनी एक प्लास्टिक मे भरी हुवी कुछ दबइया दिखाकर कहती है - "ये डॉक्टर ने कुछ दबइया दिया है, इससे वक़्त पर खाना। अब तुम आराम करो।"
राघव नंदनी का हाथ थामकर कहता है - "थैंक्स"
उसके बाद नंदनी अपनी कमरेमे जाती है। राघव को अच्छा देखकर वो बहत खुश होती है। फिर नंदनी को बड़बोला की बात याद आती है।
वो सोचती है - "बड़बोला ने कहाथा की अगर किसीकी ज्यादा फिक्र हो तो उसे प्यार कहते है तो क्या मे राघव को प्यार करती हु? कास यहाँ बड़बोला होता तो वो मेरी सवालोंका जवाफ देपाता।"
नंदनी के याद करनेके बाद बड़बोला अपने आप हवा मे प्रकट होता है।
क्रमशः.......
प्रिय मित्र, यदि मेरे इस काल्पनिक कथा मे कोई गलती हो तो कृपया मुझे माफ करें और मुझे सुझाब दे। जिसके कारण मे आपलोगो के लिए ऐसी ही रोचक कहानियाँ लिखकर भेज सकुंगी। और मेरे अगले भाग की प्रस्तुति का इंतजार करना।
प्रणाम 🙏🙏🙏