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गुलाबो - भाग 2


गुलाबो -२

उस दिन गुड़ और सत्तू कांड को लेकर अम्मा ने गुलाबो और रज्जो की खूब पिटाई की थी। साथ में ताकीद भी कर दी थी कि अब अगर कोई कांड किया तो सीधा मायके भिजवा देंगी।
छड़ी की मार से गुलाबो की उज्ज्वल पीठ पर नीले निशान पड़ गए थे।
उसके आँसू रज्जो से ना देखे जा रहे थे...।
जैसे ही अम्मा बाहर गई। बड़ी होने के नाते रज्जो अपना दर्द भूल कर गुलाबो की पीठ पर बने गुलाबी-गुलाबी निशान देखने लगी। हल्दी वाला दूध तो दे नहीं सकती थी...।
जल्दी से गई और छोटी कटोरी में हल्दी और सरसों का तेल पका कर लायी तथा गुलाबो की पीठ पर लगी चोटों पर धीरे-धीरे लगाने लगी।
रज्जो लेप लगाते हुए बोली "मैं मना कर रही थी ना तुझे पर तू नहीं मानी अब ले भुगत। कुछ मिला तो नहीं ऊपर से चोट भी लग गई।"
रज्जो द्वारा धीरे-धीरे सहलाने से गुलाबो को गुदगुदी होने लगी। हँसते हुए बोली "दीदी मुझे गुदगुदी हो रही रही है।"
अच्छा गुदगुदी हो रही और जब अम्मा ने पीटा तब नहीं हुई गुदगुदी?
फिर दोनों आपस में गले लग कर हँसने लगीं।

"ऐसी थी गुलाबो और रज्जो की जोड़ी।"

रात में दोनों लेटी तो गुलाबो कहते लगी दीदी जल्दी ही मुझे दूसरा भी कांड करना पड़ेगा। रज्जो उठकर बैठ गई और बोली ना छोटी ये अच्छी बात नहीं।
तपाक से गुलाबो बोली "और जो अम्मा करती है हमारे साथ वो अच्छा है। ना दीदी मैं तो करूंगी। मुझे मेरे अम्मा-बाबूजी की बहुत याद आ रही है।
आज ही तो अम्मा ने कहा है कि अगर अबकी बार कुछ किया तो वो हमें मायके भिजवा देंगी। मैं अपनी माँ के पास जाऊँगी वहाँ पर मुझे ना कोई मारेगा और ना ही भर पेट खाने के लिए चोरी ही करनी होगी।"
रज्जो ने उसे समझाते हुए कहा छोटी तू बड़ी भोली है। तुझे नहीं पता जिन लड़कियों को बिन बुलाए उनकी सास मायके भेज देती है, उनके मायके वाले भी उसको इज्जत और प्यार नहीं देते।
तुमने वो कहानी तो सुनी ही होगी जिसमें सती माता के, बिना बुलाए मायके जाने पर उनका कितना अपमान हुआ था।
हम तो फिर भी साधारण इंसान हैं।
भोली गुलाबो रज्जो के सीने पर सिर रख कर रोने

लगी, "पर दीदी मुझे अपने घर की बहुत याद आ रही
है।"
उसकी आँखों से बहते हुए आँसुओं को पोंछते हुए रज्जो ने कहा "मैं हूं ना तेरे साथ फिर तू क्यूं दु:खी हो रही है।"
गुलाबो को हंसाने के लिए चुहलबाज़ी करते हुए रज्जो बोली जो तू मायके चली गई और देवर जी आ गए तो ...... ?
वो तो तुझे ना देखकर उलटे पाँव वापस चले जाएँगे।

दीदी.... कहती
हुई गुलाबो रज्जो से लिपट कर मुस्कुराने लगी। फिर

सारे दर्द भुला कर दोनों सो गयीं।


करीब साल भर पहले जगतरानी ने घर में भगवान सत्यनारायण की कथा करवाई थी। उसमें सारे करीबी रिश्तेदारों को भी बुलाया गया था। जगतरानी ने उस वक्त रिश्तेदारों और पड़ोसियों में अपनी नाक ऊंची रखने के लिए दोनों बहुओं को भी अपनी पिटारी (मूंज से बना हुआ गहने रखने का डिब्बा) में से निकाल कर कुछ चांदी के और कुछ सोने
के गहने पहनने के लिए दिए थे।
परंतु खुद ढ़ेर सारे जड़ाऊ गहने पहने।
साथ में जगतरानी ने स्वयं भी सोने के तार से कढ़ाई किया हुआ लहंगा पहना था। वो लहंगा जगतरानी के पिता ने उसके विवाह में दिया था।
वो बहुत बड़े जमींदार थे।
जगतरानी उनकी इकलौती सन्तान जी की 'कन्या' थी इस नाते उन्होंने ढ़ेर सारे सोने चाँदी जड़ित गहने भी दिए थे और लहंगा भी खास आर्डर देकर कलकत्ते से बनवाया था।
उसमें साधारण जरी के बजाय सोने के तारों का इस्तेमाल किया गया था। जिसकी चमक इतने वर्षों पश्चात भी जस की तस थी। उसे पहनने पर सामने वाले की आँखें उसकी चमक से चुंधिया जाती थी।
उस दिन भी जगतरानी ने रज्जो और गुलाबो को सस्ती जरी से कढ़ाई की हुई साड़ियाँ पहनने को दी थी। दोनों के मायके वाले ज्यादा पैसे वाले नहीं थे।इस कारण दोनों को मंहगे गहने-कपड़े

ना दे पाए थे। रज्जो तो गंभीर थी, परंतु गुलाबो की

आँखें उस लहंगे से नहीं हट रही थी। उसकी आँखों में में उस लहंगे की

सुनहरी-लाल चमक बस गई थी। जगतरानी ने जो नथ और मांग टीका पहना था, उसमें लगे छोटे-छोटे घुंघरूओं

की रूनझुन की आवाज सुनने में बेहद मीठी लगती थी।

उसकी आवाज सहज ही सामने वाले को आकर्षित करती थी।
माथे पर झुलते छोटे-छोटे घुंघरू जरा-सा हीलने पर माथे को चूमने के लिए बेताब हो जाते थे, और कमरबंद की तो बात ही निराली थी।
उममें बना मोर जैसे नाचने को बेताब हो रहा हो। उसके पंखों पर की गई हरी-नीली मीनाकारी बेजोड़ थी। कमर के एक तरफ मुंह के पास लगा पेंच कसते ही उसके पंख दूसरी तरफ फैला कर पहनने वाली की कमर की शोभा बढ़ा देते थे।
जगतरानी
को ये सब पहने देख कर गुलाबो का चंचल हृदय भी ये सब पहनने के लिए लालायित हो रहा था।वो बोली दीदी ये सब

तो हम दोनों को पहनना चाहिए था, अम्मा की उम्र थोड़ी ही है ये सब पहनने की।
तब उसे डांटते हुए रज्जो ने कहा "चुप

कर छोटी अगर अम्मा ने सुन लिया तो.. खैर नहीं।"

पर दीदी, "मुझे तो अम्मा वाले कपड़े और गहने ही पहनने हैं।"

"अच्छा जब कभी अम्मा देंगी तब पहन लेना। अभी तो

जो अम्मा ने पहनने को दिया है वही पहन कर तैयार हो जा।
नहीं तो मेहमानों के सामने ही डाँट सुननी पड़ जाएगी।"
तभी अम्मा की आवाज गूंजी, "क्या खुसुर-फुसुर कर रही हो दोनों चलो

जल्दी बाहर मेहमान आ गए हैं।"
उस दिन सारा कुछ तो

ठीक ढंग से निपट गया। पर गुलाबो के दिल में ये हसरत घर कर गई थी कि मैं इन गहनों को लहंगे संग पहन कर कैसी लगूंगी?

धीरे-धीरे इस बात को एक साल होने को हो

आया परंतु कोई ऐसा मौका नहीं मिला कि गुलाबो अपनी हसरत पूरी कर पाती।
मन की मन में ही रह जा रही थी।

सोते-जागते उसे तो बस एक ही धुन लगी थी कि जल्दी से जल्दी वो अपनी इच्छा पूरी कर ले। इन सब के लिए पर्याप्त वक्त चाहिए था, जब जगत रानी घर में ना रहे।
पर वो ज्यादा देर के लिए कहीं नहीं जाती थी।

भगवान ने गुलाबो की विनती सुन ली। अम्मा के " चचेरे भतीजे " के बेटे का मुण्डन संस्कार का निमंत्रण लेकर उनके (चाचा का बेटा ) भाई आये ।
जीजी,
आपके बिना मुंडन संस्कार नहीं होगा आपको तो आना ही होगा।
पर जगतरानी ने मना कर दिया कि मैं बहुओं को छोड़ कर नहीं जा पाऊँगी। पर भैया जिद्द करने लगे नहीं आप ना आएँगी तो मैं पूरा कार्यक्रम ही कैंसिल कर दूंगा।
फिर मामाजी ने दोनों बहुओं को बुलाया और स्नेह से कहा, "बेटा बस

एक दिन ही की तो बात है मैं एक दिन जीजी को ले जाऊँगा और दूसरे दिन ही वापस छोड़ जाऊँगा तुम लोग रह लो केवल एक दिन बिना जीजी के।"
तब रज्जो ने धीरे से कहा जी मामा जी आप अम्मा को ले जाइए हम दोनों रह लेंगी।
तभी गुलाबो भी चहकती हुई बोली हाँ-हाँ मामाजी मैं और दीदी रह लेंगे।
जगत रानी चिढ़ते हुए बोली, "हाँ-हाँ तुझे तो जैसे मौका मिल जाएगा खुराफात करने का।"
गुलाबो ने कहा, "नहीं अम्मा मैं कहाँ कुछ करती
हूँ।
बात पक्की हो गई कि एक हफ्ते बाद मामाजी आएंगे और

अम्मा को ले जाएंगे ।

अम्मा को मायके जाना था तो जोर-शोर से तैयारियाँ होने लगी।
अम्मा ने बच्चे के लिए कपड़े, करधनी और सोने की चेन खरीदी और बच्चे की माँ के लिए महंगी साड़ी खरीदी। उन्हें अपने मायके की हैसियत के

अनुसार ही देन-लेन जो करना था।
उन्हें पता था कि आते वक्त वापसी में भैया-भाभी ढ़ेरों सामान साथ में देंगे।
अम्मा ने अपने लिए भी नये कपड़े खरीद लिए।

तैयारी के साथ- साथ अम्मा,

हिदायत भी देती जा रही थी कि दरवाजे बंद रखना, छत पर नहीं जाना और दिन भर सोती ही न रहना। साफ-सफाई कर के घर को चमका देना।

तय तारीख पर मामाजी अपनी...
मोटर कार लेकर आ गए तथा उन्हें और भी कई काम थे इसलिए थोड़ी जल्दी ही आए और आते ही जल्दी मचाने लगे की जल्दी से चलो।
अम्मा अभी तैयार नहीं थी। खुद जल्दी से नहाकर आई और रज्जो को मामाजी के लिए चाय पानी लाने भेज दिया।
गुलाबो से संदूक अपनी में से जल्दी से अपने गहने

निकालने को कहा गुलाबो ने नई पाजेब, कर्णफूल और साथ ले जाने वाले सौगात (उपहार) भी निकाल दिए।

अम्मा बोली जल्दी ताला बंद कर और मुझे पाजेब और कर्णफूल जल्दी-जल्दी पहना दे। गुलाबो के दिमाग में झट से अपनी हसरत पूरी करने का मौका नजर आने लगा।
पुराने संदूक की कुंडी ढीली थी। उसे बगल में सरका कर ताला बंद कर दिया। इसके पश्चात अम्मा तैयार हो कर मामाजी के साथ जाने लगी। दोनों ने पाँव छुए और अम्मा चली गई।

उनके जाते ही दरवाजा बंद कर
गुलाबो मुड़ी और दौड़ती हुई अंदर आकर रज्जो को गोल-गोल घुमाते हुए नाचने लगी,"ओह दीदी आज अम्मा नहीं है, इसलिए आज तो सारे घर में हमारा ही राज है।"
रज्जो ने कहा बस आज ही तो तू क्या कर लेगी एक दिन में।
गुलाबो ने झूमते हुए कहा अरे! दीदी तुम देखो एक दिन में मैं क्या-क्या कर लेती हूँ।
रज्जो को खींचती हुई अम्मा के कमरे में ले आयीं और

ताला दिखाते हुए बोली दीदी ये देखो।
ताला देखते

ही रज्जो घबरा गई अरे! ये सब कैसे हो गया?
आँखें नचाते हुए गुलाबो ने कहा ये मेरी कलाकारी है और हँस पड़ी। फिर बोली चलो दीदी मिल कर सारा काम कर लेते हैं। फिर हम दोनों तैयार होंगी।
रज्जो बोली,"मुझे तो बख्श दो, मुझे नहीं शामिल होना तुम्हारे इस नाटक में।"
गुलाबो; अरे मेरी प्यारी दीदी तुम्हारे बिना मैं कोई काम करती हूं क्या?

दोनों ने मिलकर जल्दी-जल्दी से सारे काम निपटाए फिर तो आज दोनों ने भर पेट खाना खाया। आदत तो थी नहीं भरपेट खाने की सो

शरीर भारी हो गया और दोनों लेट गई अम्मा तो सोने

ना देती थी। दोनों लेटी तो थी आराम करने पर आँख

लग गई। दोनों ही सो गयी। काफी देर तक सोती रहीं थी।

जब आँख खुली तो शाम हो गई थी। चौंक कर दोनों उठी

कीमती समय निकल जाने का आभास हुआ गुलाबो को।

जिद्द करने लगी चलो ना दीदी अम्मा के गहने कपड़े पहन कर देखें कैसे लगते हैं?
रज्जो बोली ना छोटी अभी रात का खाना बनाना है कपड़े में कुछ भी लग गया तो अम्मा जान जाएँगी । इसलिए चलो पहले खाना बना लें तब पहनकर देखा जाए।

गुलाबो मान गई और दोनों ने मिलकर खाना बनाना शुरू कर दिया। रज्जो ने सब्जी काटी और गुलाबो ने सब्जी बनाई, फिर रज्जो ने आटा गूंथ कर फटाफट रोटियां बेलकर दी जिन्हें गुलाबो ने सेंक दिया।

अब कोई अड़चन नहीं थी मन की मुराद पूरी करने में। खाना तैयार कर दोनों ने हाथ मुंह धोकर साफ किया और अम्मा के

कमरे में आ गयीं...

आते ही गुलाबो ने ताला जस का तस लगा रहने दिया और कुंडी सरका कर संदूक खोल दिया।

गुलाबो ने लाल सोने के तार की कढ़ाई वाला लंहगा निकाला और रज्जो को पीली साटन की गोटे वाली चुनरी निकाल दी...।

जो नानाजी ने अम्मा के लिए जयपुर से मंगवाई थी।

कपड़े पहनने के बाद नथ और मांग टीका गुलाबो ने पहना और सोने की हंसली [रामझोल] (गले में पहनने का हार नुमा आभूषण) और बाजूबंद रज्जो ने पहना। फिर संदूक में देखा तो कमरबंद तो छूट ही गया था। वही तो गुलाबो के

दिल में कब से अटका हुआ था...।
उसे अम्मा के मोटी कमर पर

वो कमरबंद ज़रा भी नहीं सुहाता था। वो सोच रही थी कि इसे तो

उसकी पतली और नाजुक कमर पर होना चाहिए था। आज उसकी हसरत पूरी हो रही थी। उसे भी निकाला और लाल सुनहरे झिलमिलाते लहंगे पर पहन लिया। कमरबंद में मोर का पेंच कसते ही

बगल की तरफ पंख फैल गये। उसकी पतली कमर पर कमरबंद बेहद खूबसूरत लग रहा था। रज्जो ने तारीफ से देखते हुए कहा। गुलाबो तू तो जंच रही है।
कपड़े-गहने पहन दोनों इठलाती हुई अपने कमरे में आई...

फिर शृंगार करने लगी। होंठों पर लाली लगा कर आंखों में काजल लगाया। फिर माथे पर बड़ी सी बिंदी लगाई।

शीशे में देख-देख कर खुद ही शरमा गई। गुलाबो वैसे ही

ऐसी थी कि उसके चेहरे से नजरें नहीं हटती थी। नाम के अनुरूप ही गुलाबी रंग।
"अहा! अप्रतिम सौंदर्य गुलाबो का...।"
शायद इसी वजह से उसके माँ-बाप ने उसका नाम गुलाबो रखा था। बड़ी-बड़ी चमकती पनीली आँखें जैसे सब का मन मोह लेती थी।
इसी सुन्दरता पर रीझ कर तो जगतरानी ने उसे अपनी बहू बनाया था।

दोनों सज-संवर कर पूरे घर में इधर-उधर डोल रही थी। छत पर जा नहीं सकती थी, इस डर से कि कहीं पड़ोस वाली भाभी अम्मा को कुछ बता न दे। कुछ देर बाद रज्जो ने कहा चलो छोटी कपड़े उतार कर रख दें। पर गुलाबो को बड़ा मज़ा आ रहा था। कहा कि दीदी थोड़ी देर और...।
फिर दोनों ने मिलकर खाना खा लिया। फिर रज्जो ने कहा चलो उतार दे कपड़े पर गुलाबो हाथ जोड़ कर विनती करने लगी दीदी मेरी प्यारी दीदी बस थोड़ी देर और...।
ऐसा करते-करते दोनों
ही बाते करते-करते सो गयीं।

इधर मुंडन संस्कार सम्पन्न हो गया और

हो गया दावत भी हो गई। सारे मेहमान जाने लगे। जगतरानी और कुछ खास मेहमान ही बचे थे। तभी जिस बच्चे का मुंडन था उसके नानाजी भी इजाजत लेने आये कि अब चलूंगा।
उनका घर भी जगतरानी के घर के पास में ही था।

उन्होंने पूछा आप तो रूकेंगी? तो जगतरानी ने कहा ना..।

भैय्या बहुओं को अकेला छोड़ कर आई हूँ। आप तो जानते हो की जमाना कितना खराब है।
वो दोनों अभी बच्ची हैं।

तो वो बोले जब चलना ही है तो मेरे साथ ही चलिए। अब तो

सब कुछ हो चुका।
सुबह बेवजह ही समधीजी परेशान होंगे। मैं तो जा ही रहा हूँ आपको भी छोड़ दूंगा। ये सुन कर जगतरानी ने भैया से बात की और तैयार हो गई आने को...।

सब से विदा लेकर जगत रानी उनके साथ उनकी मोटर कार से चल दी और आधी रात में ही घर पहुच गई। घर पहुंचते ही रज्जो और गुलाबो को आवाज देने लगी। वो दोनों तो गहरी नींद में सो रही थी। उन्हें जरा सा भी

आभास नहीं था कि अम्मा रात में ही आ सकती हैं। जोर-जोर से आवाज देकर सांकल खटखटाने पर रज्जो की आँखें खुल गईं। जागते ही अम्मा की आवाज सुनकर वो
झिंझोड़कर गुलाबो को जगाने लगी। बड़ी मुश्किल से गुलाबो उठी। ऊधर बाहर जगतरानी अनहोनी की आशंका
में और जोर-जोर से दरवाजा पीटने लगी। अब कपड़े बदलने का वक्त नहीं था। जैसी थी उसी हालत में दरवाजा खोलना पड़ा।

अंदर आते ही जगतरानी ने चिल्ला कर कहा, "करमजलियों ऐसे सोते हैं कि चोर आए और पूरा घर साफ कर के चला जाए पर तुम्हारी नींद ना खुले।
इसीलिए भरोसा नहीं है तुम पर। और मैं रात में ही चली आयी।"
.....अरी रज्जो लालटेन जरा तेज तो कर कुछ भी दिख नहीं रहा अंधेरे में...।
रज्जो ने लालटेन को तेज किया फिर उसकी रोशनी में जो कुछ भी दिखा उसे देख जगतरानी बेहोश होते-होते बची।

अच्छा तो मेरे पीछे ये गुल खिलाए जा रहे हैं। तभी इतनी देर लगी दरवाजा खोलने में।
अरे करमजलियों क्या मैं ये सब साथ लेकर जाऊँगी । मेरे बाद तुम दोनों का ही तो होगा।

पर सब्र नहीं...। कहाँ है मेरी छड़ी अभी मैं सबक सिखाती हूँ... कहकर

छड़ी लेकर पीछे-पीछे अम्मा और आगे-आगे माफी माँगती हुई

रज्जो और गुलाबो।
"अम्मा इस दफा माफ कर दो आगे
से ऐसा कभी नहीं होगा।"
रुक! तो ,रुक! तो..........?