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गुलाबो - भाग 3

गर्मियों में जय और विजय के साथ-साथ उनके पिता विश्वनाथ भी घर आए थे। इस बार अच्छी बचत हो गई थी, इसलिए सोचा गया कि पक्का दालान बनवा लिया जाए। जिससे मेहमानों के आने पर घर की बहुओं को कोई परेशानी ना हो। सारा इंतजाम किया गया। रेत सीमेंट ईट सब इकट्ठा किया गया । फिर मजदूर लगा कर काम शुरू हो गया । दालान बनने में तय समय से ज्यादा वक्त लगने लगा । सभी की छुट्टियां खत्म होने लगी।
विश्वनाथ जी ने फैसला किया कि वो और जय चले जाते है; विजय रुक कर काम करवाएगा। फिर जब काम पूरा हो जाएगा तो वो भी आ जाएगा।
विजय रुक गया। काम पूरा होते-होते लगभग एक महीना हो गया। अब विजय वापस जाने की तैयारी करने लगा। विजय के जाने का सोच कर घर में सभी उदास थे। जगत रानी इस छोटे बेटे से कुछ ज्यादा ही लाड करती थी इस कारण वो भी बहुत उदास थी। जाने से पहले वो विजय को अपने हाथ से सारे व्यंजन बना कर खिला देना चाहती थी। इतने समय तक साथ रहने से अल्लहड़ गुलाबो को भी विजय का साथ अच्छा लगने लगा था। विजय का जाना उसे बेहद बुरा लग रहा था। पर और कोई चारा ना था वापस जाना ही था। काम से और छुट्टी मिलना अब संभव नहीं था। विजय के साथ रहने का एक ही रास्ता बचा था कि वो भी साथ जाए। गुलाबो अब रोज ही विजय से कहती की मै भी आपके साथ चलूंगी मुझे भी साथ ले चलो। विजय भी गुलाबो से दूर अब नहीं रहना चाहता था। पर अब तक गुलाबो ने ऐसा हठ नहीं किया था। इसलिए वो साथ ले जाने के बारे में सोचा नहीं था। अब वो किसी भी तरह विजय के साथ जाना चाहती थी। विजय असमंजस में था कि मां से ये बात कैसे करे?
दोपहर का खाना खा कर विजय बरामदे में पड़े मां जगत रानी के तख्ते के पास गया और समेट कर रक्खी दरी को बिछा कर लेट गया। कुछ देर बाद मां आई और विजय को अपने बिस्तर पर बैठा देख कर अचम्भित रह गई । विजय तो रोज दोपहर का खाना निपटा कर ज्लदी से अपने कमरे में चला जाता। आज यहां बैठे देखकर उसका चौंकना लाजिमी था ।
"अरे!!.. विजू यहां क्यों बैठा है..?
जा अपने कमरे में आराम करले।" जगतारानी ने कहा।
और आकर तख्ते पर बैठ गई।
विजय सरक कर मां के पास आगया और उनकी गोद में सर रख कर, कमर में हाथ को हाथ के घेरे में लेकर मां से लिपट गया।
जगत रानी इस प्यार से अभिभूत ही गई। उसकी आंखे ये सोच कर भर आई कि बस अब दो चार दिन के अंदर ही विजय चला जाएगा। एक हाथ कंधे पर रख कर दूसरे हाथ से विजय का सर सहलाने लगी।
"क्या बात है विजू,...? आज मां पर बड़ा प्यार आ रहा है ....!"
जगत रानी ने कहा।
अब विजय मां से और चिपक गया। "मां ... मुझे आपसे कुछ कहना पर पहले आप वादा करो कि आप मझे डाटोगी नहीं , और मुझे मना नहीं करोगी।"
मां से पहले वादा ले लिया फिर विजय ने मां से गुलाबो को साथ ले जाने की बात की। पहले तो जगत रानी ने ना- नुकर किया ,पर वो अपने लाडले बेटे की बात को मना कर उसका दिल नहीं तोड़ सकती थी। आखिर कार गुलाबो को विजय के साथ भेजने को राजी हो गई।
मां की हां सुनकर विजय की खुशी का ठिकाना नहीं था। वो उछलता
कूदता गुलाबो को खुशखबरी सुनाने दौड़ा गया।
कमरे में पहुंच कर बाल संवारती गुलाबो को पकड़ कर गोल-गोल चक्कर लगाने लगा । उसकी इस हरकत से विस्मित गुलाबो खुद को छुड़ाने का प्रयत्न करने लगी।
हंसता हुआ विजय जब थक गया तो बिस्तर पर गुलाबो को बैठा लिया और खुशी से चहकते हुए बोला, "अरे ..! गुलाबो मै तो डर रहा था कि मां तुझे मेरे साथ भेजने को राजी नहीं होंगी , पर कमाल हो गया। मां तो मान गई ।"
सुनकर गुलाबो हंसती हुई विजय से लिपट गई। दोनों बहुत खुश थे कि अब उन्हे अलग नहीं रहना होगा।
अब जाने की तैयारियां होने लगी। जगत रानी याद से घर - गृहस्ती का एक एक समान रखवाती जा रही थी। साथ ही गुलाबो को हिदायत भी देती जा रही थी,"ज्यादा ना उछालना कूदना, कायदे से रहना, सोती ही ना रहना , समय से खाना पीना बना कर सब को खिला देना।"
इन सब तैयारियों में समय का पता नहीं चला कि कब तीन दिन बीत गए और जाने का समय हो गया।
गुलाबो के जाने से सबसे ज्यादा दुखी रज्जो थी। उसके हर सुख दुख की भागीदार गुलाबो हमेशा साथ रहती थी। सास की डांट डपट के बीच गुलाबो की शरारतें उसका जी हल्का कर देती थी। सास तो बाहर ही रहती है । वो इस घर में अकेले कैसे रहेगी ? ये सोच कर रज्जो बहुत उदास थी ।
अपनी प्यारी दीदी को उदास देखकर गुलाबो का जी भी भर आया। बोली, " दीदी तुम उदास मत हो । तुम कहो तो मैं नहीं जाती।"
रज्जो झिड़कती हुई बोली, " तू पागल है क्या ? अरे ..! मैं उदास थोड़े ना हूं , तू देवर जी के साथ खुश रहेगी तेरी दीदी को और क्या चाहिए?
बस कुछ दिन अकेलापन खलेगा, और तेरी याद आएगी। पर तू खुश है तो मुझे सब कुछ मंजूर है।" कह कर दोनों देवरानी, जेठानी लिपट गई और आंखो से आंसू बहने लगा। रोते रोते भी गुलाबो शरारत से बाज़ नहीं आई। धीरे से आंख दबाते हुए बोली, " दीदी मुझे जाने दो ,देखना तुम्हे भी जल्दी ही वहां बुलाने का ऐसा पक्का इंतजाम करूंगी की अम्मा मना नहीं कर पाएंगी। फिर तुम भी जेठ जी के साथ रहोगी। सच ... दीदी बड़ा मज़ा आएगा जब हम दोनों यहां से दूर, आजाद रहेंगे।
अम्मा का कोई शासन नहीं होगा। ना ही हमें सुनाना पड़ेगा गुलाबो ये मत कर, रज्जो ये मत कर...।" कह कर आंसू से डूबे चेहरे से हसने लगी।
तभी जगतरानी आ गई। उसे देख दोनों सकपका गई। जब गुलाबो पर जगतरानी की नज़र गई तो एक पल को वो भी उसकी भींगी पलके और मुस्कुराता चेहरा देख कर पलके झपकना भूल गई। गुलाबो को अपनी बहू बना कर उसे खुद पर गर्व था। पूरे गांव में ऐसी सुंदर किसी की बहू नहीं नहीं थी।
दूसरे दिन दोपहर में ट्रेन थी। सुबह ही जगत रानी ने रज्जो से रास्ते के लिए खाना बनवा दिया । गुलाबों बेहद रोमांचित थी ट्रेन में बैठने को लेकर । रज्जो को अकेले परेशान होता देख उसने गुलाबो को डांटा,
" अरी... गुलाबो अगर तेरा श्रृंगार पटार हो गया हो तो पूरियां बेल दे ।
रज्जो अकेली परेशान हो रही है। "
" जी अम्मा "कह कर मुंह बनाते हुए गुलाबो पूरियां बेलने लगी। मन ही मन सोच रही थी ' अब इनका खाना कैसे हजम होगा! जब मैं ना होऊं गी तो किसे डांट कर अपना जी हल्का करेंगी। ये इनका आखिरी आदेश और मान लेती हूं। '
अम्मा और रज्जो के चरन स्पर्श कर विजय और गुलाबो अपनी नई दुनिया बसाने चल पड़े। वे ट्रेन के समय से पहले स्टेशन आ गए। उतावली गुलाबो बार बार उठ कर झांकती की ट्रेन आ तो नहीं रही।
विजय ने समझाया , "गुलाबो तेरे झाकने से ट्रेन जल्दी नहीं आ जाएगी।
जब समय होगा तभी आएगी । पर गुलाबो को सब्र कहां था!
ट्रेन समय से आई विजय ने सहारा देकर पहले गुलाबो को चढ़ाया फिर सामान चढ़ा कर खुद भी चढ़ गया। सामान ठीक से रख कर एक खाली सीट पर गुलाबो को बैठा खुद भी बैठ गया।ट्रेन सिटी देते हुए चल पड़ी।
गुलाबो गाड़ी की छुक छुक के साथ ताल मिलाती हुई बाहर का नज़ारा देखने लगी। खेत खलिहान सब तेजी से पीछे छूटे जा रहे थे। वो इस नए अनुभव को एक पल के लिए भी खोना नहीं चाहती थी।
बाहर देखते देखते थक कर आंखे अपने आप में बंद हो गई। सर विजय के कंधे पर रख कर सो गई।
रात हो गई तो विजय ने हौले से जगाया, "उठ गुलाबो खाना खा ले फिर ऊपर जाकर सो जा।"
गुलाबो को भी जम के भूख लग आई थी । आने की खुशी में उसने थोड़ा सा ही खाया था। झोले से डिब्बा निकाल कर प्लेट में खाना निकाल कर विजय को दिया और खुद भी खाने लगी।
खाना ख़त्म कर फिर बाहर देखने की कोशिश की पर अंधेरे की वजह से कुछ ना दिखा तो उपर की सीट पर जा के सो गई।
मां ने हिदायत दी थी कि बारी बारी से सोना वरना कोई सामान लेकर चला जाएगा । इस कारण विजय जाग रहा था। वहीं सीट पर बैठे बैठे ऊंघ ले रहा था। सुबह दस बजे ट्रेन मुंबई पहुंच गई।
विजय के पिता जी स्टेशन लेने आए थे। गुलाबो झट से ससुर को पल्ला खींच कर घूंघट कर लिया और ससुर के पांव छुए।
उन्हे टैक्सी में बिठा कर घर की ओर चल पड़े।
घर पहुंच कर गुलाबो अंदर गई । विजय ने सामान रख दिया। पिताजी ने उन्हे नहा धोकर आराम करने को कहा और खुद फैक्ट्री चले गए।
गुलाबो एक कमरे को देख विजय से पूछा और कमरे किधर है?
जवाब में विजय हंस पड़ा," मेम साहब ये मुंबई है । यह ऐसे ही घर होते है।
उत्साह में गुलाबो ने सब कुछ जल्दी है व्यवस्थित कर लिया । नहा कर शाम के खाने की तैयारी भी कर ली।
देर शाम जय और पिताजी आए तो खाना तैयार था। रोज उन्हे आकर बनाना पड़ता था।
गुलाबो ने प्यार से सब को परोस कर खिलाया। अब सोने की बारी आई तो पिताजी और जय अपना बिस्तर बाहर लगा लिया। जहां थोड़ी सी जगह थी । गुलाबो और विजय कमरे में सो गए।
दिन आराम से कटने लगे। नया नया प्यार परवान चढ़ने लगा। अब पिता जी और जय रात की शिफ्ट में ही ड्यूटी करते जिससे सोने की दिक्कत ना हो। रसोई में ज्यादा कुशल नहीं थी गुलाबो पर धीरे धीरे सब सीख रही थी।
आज सुबह जब ड्यूटी से पिता जी आए तो विजय चला गया। उन्होंने सब्जी देते हुए कहा, " बहू आज खूब चटपटी मसाले दार सब्जी बनाना। " कह कर वो रात के ज़गे थे सो गए।
गुलाबो सब्जी काटने बैठी,छिलके उतारने लगी ,पर ये क्या हर छिलके नीचे छिलका ही आता। ऐसी सब्जी तो उसने आज तक ना देखी थी।
पत्ते हटाती गई, हटाती गई पर वो खत्म ना हुए । सब्जी खत्म हो गई।
हार कर खीजी गुलाबो झल्लाती हुई गई सारे पत्ते कूड़े में डाल आलू कत कर बनाने लगी मन ही मन सब्जी वाले को कोसती जा रही थी कि उसने उसके सीधे साढ़े पिताजी को बेवकूफ बना कर खराब सब्जी दे फी जिसमें कुछ निकला ही नहीं।
दोपहर में पिता जी उठे तो गुलाबो ने उनकी और जय भैया की थाली लगा दी।
पिताजी ने खाना शुरू किया । जब सब्जी देखी तो बोल पड़े , "अरे..!
बहू में को सब्जी लाया था वो क्यूं नहीं बनाया ? ये आलू क्यों बना दिया ? "
"पिताजी ये सब्जी वाले ने आपको ठग लिया। मै काटती गई , काटती गई उसमें तो कुछ निकला ही नहीं। आप जब जाना तो उसे अच्छे से डांट लगाना।" गुलाबो ने कहा।
पिताजी ने कहा, "फिर उन पत्तो का क्या किया बहू,...?"
"मैंने उन्हे कूड़े में फेंक दिया।" गुलाबो ने जवाब दिया।
पिताजी गुलाबो के अल्लहड़पन पर मुस्कुरा उठे,पर इतनी महंगी सब्जी यूं बेकार चली गई। इसका कारण सर पे हाथ रख कर बैठ गए।
गुलाबो को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उससे क्या गलती हो गई जो पिताजी सर पे हाथ रख कर बैठे है।
जय बैठा मुस्कुरा रहा था। वहीं सब काम करता था घर का गुलाबो के आने से पहले। गुलाबो को समझाते हुए बोला, "छोटी तू फिक्र ना कर
मैं कल फिर से वही सब्जी लेकर आऊंगा और तुझे बना कर सीखा दूंगा।
अब पिताजी को अपने भूल का एहसास हुआ कि वहां गांव में तो पत्ता गोभी मिलती नहीं तो भला गुलाबो को कैसे पता होगा कि उसे कैसे बनाते है ?
दूसरे दिन जब जय ड्यूटी से लौटा तो पत्ता गोभी लेकर आया। उसे काट कर ,फिर बना कर गुलाबो को दिखाया कि ऐसे इन पत्तो को ही काट कर बनाते हैं ।
अब गुलाबो को अपनी इस बेवकूफी पर ससुर और जेठ के आगे लज्जा आ रही थी। वो सिर झुकाए जेठ को सब्जी बनाते देख रही थी।
मन ही मन सोच रही थी, आगे से ऐसी गलती ना हो कोशिश करेगी।