gulabo - 11 in Hindi Women Focused by Neerja Pandey books and stories PDF | गुलाबो - भाग 11

गुलाबो - भाग 11

पिछले भाग में आपने पढ़ा विजय अम्मा के बुलाने से घर आता है। गुलाबो के लिए वो सब से छुपा कर साज श्रृंगार का सामान लाता है। वो गुलाबो को उसे दे नही पाता अम्मा बीच में आ जाती हैं। अब आगे पढ़े।

वैसे तो गुलाबो कोई बहाना बना कर खाना बनाने से अपनी जान बचा लेती। पर आज तो विजय आया था।
तन मन एक नई स्फूर्ति से भर गया था। आज उसका दिल किसी भी बहाने जी चुराने का नही कर रहा था। काम वाली महाराजीन आ गई थी। पर गुलाबो आज सब कुछ विजय की पसंद का बना रही थी। उसे इस तरह रसोई में जुटे देख जगत रानी को खुशी हो रही थी। साथी वो मन ही मन गुलाबो की तिकड़म को भी समझ रही थी, कि रोज तो उसे कोई का कोई तकलीफ का बहाना बना कर रसोई में नही जाना चाहती थी। पर आज कैसे सारी तकलीफ गायब हो गई है। गुलाबो उसके बेटे को इतना प्यार करती है इस बात पर उसे प्रसन्नता हो रही थी। पर उसके बहाने और झूठ से वो परेशान भी थी।
खाना पूरा बनाने के बाद सब खाने बैठे। गुलाबो पति और सास को परोस रही थी। जगत रानी से खाते खाते रहा नही गया। वो बोल उठी, "क्यों री गुलाबो..?"
गुलाबो ने सोचा शायद कुछ मिर्च मसाला कम ज्यादा हो गया इस लिए अम्मा उसे बुला रही। वो तत्परता से बोली, "हां अम्मा ..! कुछ गड़बड़ है क्या..?"
जगत रानी बोली, "ना री..! खाना तो तूने स्वादिष्ट बनाया है। पर ये बता रोज तो तुझे कोई ना कोई तकलीफ शुरू हो जाती है, खाना बनाने के समय। पर आज तो तू बिलकुल ठीक है। क्या विजू के आते ही तेरी सारी बीमारी भाग गई..?" कह कर मजाकिया अंदाज में राज रानी मुस्कुराने लगी। वो एक बार गुलाबो को देखती फिर विजय को। विजय ये सुनकर झेंप गया। और सिर नीचे गाड़ कर खाने लगा।
"अब अम्मा जब दिक्कत होती है तभी तो आपसे कहती हूं। आप ये समझती हो की मैं बहाने बनाती हूं। ठीक है अब कुछ भी न कहूंगी आपसे।" कह कर नाटक में उस्ताद गुलाबो झूठ मूठ सिसकने लगी। अब उसकी जबान बहुत चलने लगी थी। उसे सास जगत रानी की कमजोरी पता चल गई थी। उनकी कमजोर नस उसके हाथ में थी। वो अपनी गोद में पोते को खेल के लिए बेचैन थी। गुलाबो अपने गर्भ में उनका वंश पाल रही थी। उसके हर सुख दुख का असर बच्चे पर होता। इस हालत में शरीर के साथ साथ मन भी खुश होना चाहिए। इस लिए तेज तर्रार जगत रानी खुद पर काबू रखती थीं। और कोई समय होता तो उसके रोने धोने का कोई असर जगत रानी पर नही पड़ता। पर गुलाबो इस हालत में रोए ये उससे सहन नही हुआ। वो उसे समझाते हुए बोली, "ना री गुलाबो..! तू रोती क्यों है..? मैं तो ऐसे ही तुझे कह रही थी। तू तो दिल पर ले रही है। छोड़ अब ये टेसुए बहाना। खाना बहुत अच्छा बनाया है तूने। अब हमें कुछ नही चाहिए तू भी खा ले जल्दी नही तो ठंडा हो जायेगा। जगत रानी अपना खाना समाप्त कर हाथ धोकर बाहर बने बरामदे में आ गई जहां वो गर्मी में सोती थी। पर इस बार की गर्मी में उसे गुलाबो की वजह से अंदर ही सोना पड़ता था।
जगत रानी बाहर आई तो उसके पीछे पीछे ही विजय भी आ गया। वो वही अम्मा के तख्ते पर उनके पास लेट गया। बड़ी देर तक विजय अम्मा से बातें करता रहा। बार बार जगत रानी उससे कहती की जा बेटा अंदर जा कर दो जा। तुझे सफर की थकान होगी। पर वो अम्मा के साथ ही लेता बातें करता रहा। जब जगत रानी ने बोलना बंद कर दिया तो विजय समझ गया की अम्मा सो गई। वो वहां से उठ कर अंदर गुलाबो के पास चला आया।
गुलाबो दिन में सो चुकी थी। इस कारण उसे नींद नही आ रही थी। वो बेसब्री से विजय की प्रतीक्षा कर रही थी। गुलाबो को पूरी आशा थी की विजय कुछ न कुछ अवश्य लाया होगा उसके लिए। अम्मा ने तो सारा सामान अंदर रखवा लिया कुछ दिखाया भी नहीं। जैसे ही विजय के आने की आहट हुई वो सोने का बहाना कर झट से लेट गई। उसे लेटते विजय ने देख लिया। वो मन ही मन मुसकाया गुलाबो की इस हरकत कर। वो आया और बिस्तर पर बैठ कर गुलाबो को हौले से छुआ और धीमे से आवाज लगाई, "गुलाबो ..! ओ गुलाबो.! सो गई क्या..?" कुछ देर प्रतीक्षा की कि शायद गुलाबो उसकी बात का कुछ जवाब दे। पर गुलाबो अनजान बनी दम साधे सोने का स्वांग किए लेटी रही। विजय ने गुलाबो की कमजोरी जनता था। वो सीधा वही चोट किया और खुद भी उसकी बगल में लेटतेबोला, "मैने सोचा की अगर तू जागती होती तो जो सारा सामान मैं तेरे लिए लाया था उसे दे देता। वो जो रंग बिरंगी चूड़ियां लाया था वो देखता कैसी लगती है मेरी गुलाबो की कलाइयों में पर जाने दो कोई बात नही वो तो दो गई है।" इतना कह कर विजय आगे गुलाबो की प्रतिक्रिया का इंतजार करते हुए करवट ले कर लेट गया।
जैसे ही गुलाबो ने सुना की विजय उसके लिए उपहार लाया है। वो झटके से उठ कर बैठ गई। और विजय से बोली, "मैं जाग रही हूं लाओ दो मेरी चूड़ियां।" अपने होठों को सिकोड़ कर गुलाबो ने अपनी हथेलियां विजय के सामने फैला दी।
विजय गुलाबो की इस हरकत पर खिलखिला कर हंस पड़ा। और ताली मारते हुए वो बोला, "मैं जानता था तू सो नही रही है। नाटक किए हुए है। देखा कैसे चूड़ियों की बात सुन कर उठ बैठी..?" फिर मुंह बनाते हुए बोला, "मैं तो कुछ भी नही लाया तेरे लिए। तुझे उल्लू बना रहा था।"
इतना सुनते ही गुलाबो फिर झटके से लेट गई। और मुंह दीवार की ओर कर लिया। विजय समझ गया की गुलाबो नाराज हो गई है। वो उठा और पूरा झोला ले कर बिस्तर पर बैठ गया। वो चूड़ियां थैले से निकाल कर गुलाबो के कान के पास ले जाकर खन खनखनाने लगा। चूड़ियों की खनखनाहट कानों में जाते ही गुलाबो उठी और विजय के हाथो से चूड़ियां लेने लगी। पर विजय ने उन्हें देने को बजाय चूड़ियां गुलाबो की कलाइयों पर पहना दी।

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