gulabo - 9 in Hindi Women Focused by Neerja Pandey books and stories PDF | गुलाबो - भाग 9

गुलाबो - भाग 9

भाग 9

धीरे धीरे करके गुलाबो का गर्भावस्था समय कट रहा था। शुरुआत में तो राज रानी ज्यादा जोर नही देती थी किसी भी काम के लिए। पर छह महीने बाद वो उसे थोड़ा बहुत काम उससे करने को कहती। ना काम करो तो भी थोड़ा चलो फिरो जिससे बच्चे के जन्म में कोई परेशानी नहीं हो। पर गुलाबो को आराम करने की तलब लग चुकी थी। वो खुशी से कुछ भी करना नही चाहती थी।
अब समय बिलकुल करीब आ गया था। घर में कोई मर्द नही था। राज रानी अकेले क्या क्या कर पाएगी..? इस बारे में सोच कर उसके हाथ पांव फूलने लगते। यही सब कुछ सोच कर राज रानी ने चिट्ठी लिखवा कर अपने छोटे बेटे विजय को बुलवाने का प्रबंध कर लिया।
जैसे ही चिट्ठी मिली विश्वनाथ जी ने विजय को घर जाने का आदेश सुना दिया। वो बोले, "विजय तुम जल्दी ही घर चले जाओ। तुम्हारी अम्मा ने तुम्हें बुलाया है। बहू की तबियत कभी भी खराब हो सकती है..! तुम्हारी मां अकेले क्या क्या करेगी..?" विजय तो जैसे इस बात की प्रतीक्षा ही कर रहा था। वो तो मन ही मन खुश हो गया। पर ऊपर से दिखावे के रूप में बोला, "पर पिता जी यहां काम का हर्ज होगा..!"
वो बोले, कोई बात नही पगार ही तो नही मिलेगी। मैं सब देख लूंगा। तू तो बस जाने की तैयारी कर।"
रज्जो भी इस समय देवरानी गुलाबो के साथ रहने चाहती थी। पर बिना सास के आदेश के कैसे जाती..? उसने डरते डरते जय से कहा की वो पिता जी से पूछे। जय बोला, "पिता जी आप रज्जो को भी भेज दीजिए तो अम्मा को ज्यादा आराम हो जायेगा।"
विश्वनाथ जी ने पल भर सोचा फिर कहा,"जय.. तू कह तो ठीक रहा है। पर अगर तेरी अम्मा को रज्जो की मदद की जरूरत होती तो जैसे विजय को बुलाने के लिए चिट्ठी लिखी, वैसे ही रज्जो के लिए भी लिखवा देती। अब तू तो जनता है अपनी अम्मा का स्वभाव। उसकी इच्छा के विरुद्ध कुछ भी नही होना चाहिए।" फिर कुछ सोचते हुए बोले, "जाने दे.. बेटा..! फिर हमें भी तो परेशानी हो जायेगी खाने पीने की।" रज्जो सब कुछ बिलकुल समय से कर के देती है। हमें परेशानी होगी।" विश्वनाथ जी का कुछ ज्यादा ही स्नेह था अपने इस बड़े बेटे बहू पर। वजह थी दोनो का जरूरत से ज्यादा शांत स्वभाव। दोनो को ही अपनी कोई फिक्र नहीं थी। वो बस घर परिवार की खुशी और उसके आराम के बारे में सोचते। दोनो ही बेहद सीधे साधे थे। जबकि विजय और गुलाबो दोनो ही पहले अपने आराम और सुविधा के बारे में सोचते।
पिता जी बात से रज्जो को थोड़ी सी निराशा हुई। वो भी बच्चे के जन्म के वक्त गुलाबो की देख भाल करना चाहती थी। गुलाबो को दर्द के वक्त सहारा देना चाहती थी। पर जब पिता जी की बात सुनी तो उसे लगा कोई बात नही अम्मा तो हैं ही गुलाबो के पास उसकी देख भाल करने को। अगर वो चली जाती तो पिता जी,और जय को परेशानी हो जाती। यही सोच कर खुद को समझा लिया।
विजय ने तुरंत ही जाने की तैयारी शुरू कर दी। कुछ सामान विश्वनाथ जी ने खरीद कर दिया घर ले जाने को। कुछ वो उनकी चोरी से खरीद लाया। गुलाबो को साज श्रृंगार बहुत भाता था। इसलिए उसके लिए बिंदी, काजल, चूड़ी, लिपिस्टिक सब कुछ खरीद लिया। ये सोच कर की गुलाबो खुश हो जायेगी ये सब देख कर। सारी तैयारी हो गई तो दूसरे ही दिन जय उसे ट्रेन पर बिठा आया। साथ ही हिदायत भी दी की जैसे ही खुश खबरी मिले बिना देर किए तुरंत ही खबर भिजवाए। ट्रेन चलने पर जय वापस लौट आया। विजय खुशी खुशी अपने गांव के लिए चल पड़ा। मन में एक अलग ही उल्लास था पिता बनने का। अब तक वो ही घर में सबसे छोटा था पर अब उससे भी छोटा उसका अपना अंश आने वाला था।
जय जब विजय को ट्रेन पर बिठा कर लौटा तो पिता जी फैक्ट्री जा चुके थे। रज्जो शांति से सारे काम निपटा कर बैठी थी। जब कुछ नही सूझा तो पुरानी कमीज और कुर्ते जो अब इस्तेमाल नहीं होते थे। उन्हे लेकर छोटे छोटे कपड़े सीने बैठ गई। छोटी छोटी फ्राक, झबले, लगोट सब सिलने की तैयारी करने लगी। विजय वापस आया तो रज्जो को कपड़े की कतरन को हाथ में लिए बैठा देख कर पूछा, "अरे..! रज्जो आज ये क्या कतरन ले कर बैठी हो..?" इतना कहते हुए जय ने रज्जो के हाथ का कपड़ा अपने हाथ में ले लिया। उसने देखा तो छोटे बच्चे का झबला था। उसे देख कर जय के मन में एक अजीब सी अनुभूति हुई। उसे लगा शायद रज्जो उम्मीद से है इसी लिए ये कपड़े सिल रही है। अपनी खुशी को काबू कर जय ने रज्जो की ओर राज भरी नजरो से देखा और हाथों से रज्जो का चेहरा अपनी ओर घुमा उसकी आंखो में झांकते हुए दूसरे हाथ में कपड़े को ले कर दिखाए हुए बोला, "ओह..! रज्जो..! क्या ये सच है…?"
रज्जो ने पति की आंखों में देखा। वहां हजारों अरमान तैरते दिखे उसे। अब उसे आभास हुआ की जय क्या समझ रहा है..? रज्जो से कुछ कहते नही बना। एक जवाब जय की सारी उम्मीदों पर पानी फेरने के लिए काफी था। पर सच तो आखिर सच है। उसे छिपाया नहीं जा सकता। वो भी ऐसा सच जिससे जिन्दगी की सबसे बड़ी खुशी जुड़ी हो। उसे व्यक्त कर देना ही भला था। रज्जो का दिल जार जार रो रहा था। जय को ये सच बताने में। पर भ्रम तो टूट जाना ही भला था।
रज्जो ने जय के हाथो को हटाते हुए अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया। वो वजहों से चेहरा घुमाना ही उसे सही विकल्प लगा। एक वो पति की उम्मीद का टूटना नही सह सकती थी। दूसरा उसे अपने आसूं भी तो छिपाने थे जय से। रज्जो ने दूसरी ओर मुंह घुमा कर अपने भर आए आंखो को पोंछा और खोखली हंसी हंसती हुई बोली, "आप भी ना…! ना जाने क्या क्या सोच लेते है..? ये तो मैं गुलाबो के बच्चे के लिए बना रही हूं। आखिर मैं उसकी बड़ी मां रहूंगी। कुछ तो मुझे भी करना चाहिए। उस नाजुक जान को कपड़े भी तो ऐसे चाहिए जो उसे चुभे ना। आप सब की पुरानी कमीज का कपड़ा मुझे बहुत मुलायम लगा तो मैने सोचा की बैठे बैठे उस बच्चे के लिए कुछ कपड़े ही सिल डालूं।"
जय की खुशियां क्षण भंगुर साबित हुईं। उसके दिल में एक आशा जागृत हो गई थी। को रज्जो के जवाब से बुझ गई। जय जानता था कि रज्जो भले ही अपनी जुबान से कुछ न कहे पर वो भी मां बनना चाहती थी। उसका दिल भी तड़पता था। आखिर उसके ब्याह को सात वर्ष होने वाले थे। ये ख्वाहिश गलत भी नहीं थी।
पर रज्जो न दुख हो इस लिए वो बात बदलते हुए बोला, "वो मैने ऐसे ही पूछ लिया था तुझे रज्जो। तू बिलकुल भी फिकर ना कर। भाई बच्चे में तो बड़ी जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। फिर एक दूसरे को ज्यादा वक्त भी नही दे पाते। हम तो ऐसे ही भले है। क्यों रज्जो..?" जय उठ कर उस तरफ चला आया जिधर मुंह घुमा कर रज्जो बैठी थी। सामने आकर रज्जो की आंखों में झांकते हुए बोला और उसे गले लगा लिया। दोनो ही दुखी थे पर एक दूसरे पर जाहिर नही करना चाहते थे।
रज्जो भी जानती थी की जय को कितनी चाह है पिता बनने की। पर वो उसे दुखी नहीं करना चाहता। इसलिए ऐसा बोल रहा है। रज्जो बोली, "माता पिता न सही, हम उससे भी बड़ी पदवी पा रहे है। मैं गुलाबो के बच्चे की बड़ी अम्मा कहलाऊंगी, आप बड़े पिताजी। आखिर वो भी तो अपना ही बच्चा होगा।"
जय मजाकिया लहजे में मुंह बनाते हुए रज्जो से बोला, "भई देखो तुम बनना ये अम्मा वम्मा..! मैं तो बड़े पिताजी विता जी नही कहलाऊंगा ।"
रज्जो बोली, "तो जरा मैं भी तो जानूं की आपको वो क्या कह के पुकारेगा..?"
जय बड़े ही शान से अपनी कमीज का कालर ऊपर करते हुए बोला, "मैं तो बड़े साहब, शहरी लोगों के बच्चो की तरह उससे बड़े पापा कहलाऊंगा।"

क्या गुलाबो की संतान सही सलामत इस दुनिया में आ पाई? क्या रज्जो समझ पाई की गुलाबो उससे दूर हो रही है? क्या रज्जो अपने प्यार से गुलाबो का दिल जीत पाई..? पढ़े अगले रविवार अगले भाग में।


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Saksham Mishra

Saksham Mishra 2 months ago

Anushka Shree

Anushka Shree 3 months ago

very interesting part

Ram Ji

Ram Ji 3 months ago

Somesh Pandey

Somesh Pandey 3 months ago

Deepika

Deepika 3 months ago

behad sunder